The ˹Rising for˺ Judgment
القِيَامَة
القِیامَہ

सीखने के बिंदु
अल्लाह सबको फैसले के लिए दोबारा जीवित करने की शक्ति रखता है। वह तो यहाँ तक कि हर किसी की उंगलियों के पोरों को उनके अद्वितीय उंगलियों के निशानों के साथ पुनः स्थापित करने में भी सक्षम है।
जो लोग आख़िरत में विश्वास नहीं करते, उन्हें एक भयानक अज़ाब का सामना करना पड़ेगा।
पैगंबर को इत्मीनान से कुरान कंठस्थ करने की सलाह दी जाती है।


पृष्ठभूमि की कहानी
अदी इब्न राबिया नाम का एक मूर्तिपूजक पैगंबर के पास आया और उनसे पूछा, 'अल्लाह हमें दोबारा कैसे जीवित करेगा?' पैगंबर ने उसे बताया कि अल्लाह हड्डियों को फिर से जोड़ेगा और आत्माओं को उनके शरीरों में वापस भेज देगा। अदी ने पैगंबर के जवाब का मज़ाक उड़ाया और कहा, 'क्या! इसका कोई मतलब नहीं बनता। अगर मैं इसे अपनी आँखों से भी देख लूँ, तब भी मैं कभी इस पर विश्वास नहीं करूँगा। अल्लाह सड़ी हुई हड्डियों को दोबारा जीवित नहीं कर सकता।' तो यह सूरह इस मूर्तिपूजक को सुधारने के लिए अवतरित हुई। (इमाम अल-कुर्तुबी द्वारा दर्ज)

मुनकिरों को चेतावनी
1क़सम है क़यामत के दिन की! 2और क़सम है मलामत करने वाली आत्मा की! 3क्या मनुष्य सोचता है कि हम उसकी हड्डियों को फिर से जमा नहीं कर सकते? 4बेशक, हम उसकी उंगलियों के पोरों को भी फिर से व्यवस्थित करने की सामर्थ्य रखते हैं। 5फिर भी मनुष्य उस चीज़ को झुठलाना चाहता है जो अभी आने वाली है। 6उपहासपूर्वक पूछते हैं, "यह क़यामत का दिन कब है?" 7लेकिन जब आँखें चकाचौंध हो जाएँगी, 8और चाँद अपनी रोशनी खो देगा, 9और सूरज को चाँद से मिला दिया जाएगा,' 10उस दिन कोई पुकारेगा, "भागने की जगह कहाँ है?" 11हरगिज़ नहीं! कोई पनाह नहीं होगी। 12उस दिन सब अपने रब के पास अकेले ही लौटेंगे। 13तब सब जान लेंगे कि उन्होंने क्या किया और उन्हें क्या करना चाहिए था। 14बल्कि, मनुष्य अपने ही विरुद्ध गवाह होंगे, 15भले ही वे कितने भी बहाने बनाएँ।
لَآ أُقۡسِمُ بِيَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ 1وَلَآ أُقۡسِمُ بِٱلنَّفۡسِ ٱللَّوَّامَةِ 2أَيَحۡسَبُ ٱلۡإِنسَٰنُ أَلَّن نَّجۡمَعَ عِظَامَهُۥ 3بَلَىٰ قَٰدِرِينَ عَلَىٰٓ أَن نُّسَوِّيَ بَنَانَهُۥ 4بَلۡ يُرِيدُ ٱلۡإِنسَٰنُ لِيَفۡجُرَ أَمَامَهُۥ 5يَسَۡٔلُ أَيَّانَ يَوۡمُ ٱلۡقِيَٰمَةِ 6فَإِذَا بَرِقَ ٱلۡبَصَرُ 7وَخَسَفَ ٱلۡقَمَرُ 8وَجُمِعَ ٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُ 9يَقُولُ ٱلۡإِنسَٰنُ يَوۡمَئِذٍ أَيۡنَ ٱلۡمَفَرُّ 10كَلَّا لَا وَزَرَ 11إِلَىٰ رَبِّكَ يَوۡمَئِذٍ ٱلۡمُسۡتَقَرُّ 12يُنَبَّؤُاْ ٱلۡإِنسَٰنُ يَوۡمَئِذِۢ بِمَا قَدَّمَ وَأَخَّرَ 13بَلِ ٱلۡإِنسَٰنُ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦ بَصِيرَةٞ 14وَلَوۡ أَلۡقَىٰ مَعَاذِيرَهُۥ15

पृष्ठभूमि की कहानी
जब कुरान की पहली सूरतें अवतरित हुईं, तो पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जिब्रील (अलैहिस्सलाम) के साथ पाठ करने में जल्दबाजी करते थे, क्योंकि वे इन वहियों को शीघ्रता से कंठस्थ करना चाहते थे। यह अगला अंश पैगंबर को इत्मीनान से काम लेने को कहता है, क्योंकि अल्लाह ने स्वयं उन्हें कुरान को याद कराने और समझाने की गारंटी ली है। (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम द्वारा दर्ज)

पैगंबर का कुरान हिफ़्ज़ करने का उत्साह
16क़ुरआन की वही को याद करने की कोशिश में अपनी ज़बान को जल्दी-जल्दी न हिलाओ। 17निश्चित रूप से उसे (वही को) कंठस्थ करवाना और उसका पाठ करवाना हमारी ज़िम्मेदारी है। 18तो जब हम किसी वही का पाठ कर लें, तो उसके पाठ का ध्यानपूर्वक अनुसरण करो। 19फिर निश्चित रूप से उसे (तुम्हारे लिए) स्पष्ट करना हमारी ज़िम्मेदारी है।
لَا تُحَرِّكۡ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعۡجَلَ بِهِۦٓ 16إِنَّ عَلَيۡنَا جَمۡعَهُۥ وَقُرۡءَانَهُۥ 17فَإِذَا قَرَأۡنَٰهُ فَٱتَّبِعۡ قُرۡءَانَهُۥ 18ثُمَّ إِنَّ عَلَيۡنَا بَيَانَهُۥ19
झुठलाने वालों को एक और चेतावनी
20हरगिज़ नहीं! बल्कि तुम इस सांसारिक जीवन से प्रेम करते हो, 21और परलोक की उपेक्षा करते हो। 22उस दिन कुछ चेहरे उज्ज्वल होंगे, 23अपने रब को निहार रहे होंगे। 24और दूसरे चेहरे उदास होंगे, 25किसी भयावह चीज़ के उन्हें कुचल डालने की आशंका कर रहे थे।
كَلَّا بَلۡ تُحِبُّونَ ٱلۡعَاجِلَةَ 20وَتَذَرُونَ ٱلۡأٓخِرَةَ 21وُجُوهٞ يَوۡمَئِذٖ نَّاضِرَةٌ 22إِلَىٰ رَبِّهَا نَاظِرَةٞ 23وَوُجُوهٞ يَوۡمَئِذِۢ بَاسِرَةٞ 24تَظُنُّ أَن يُفۡعَلَ بِهَا فَاقِرَةٞ25
काफ़िर की मौत
26कदापि नहीं! जब रूह (प्राण) तरक़ुवा तक पहुँच जाए, 27और कहा जाएगा, "क्या कोई बचाने वाला है?" 28और वह (मरने वाला) जान लेता है कि यह विदाई का समय है, 29और एक पीड़ा दूसरी से जुड़ जाती है। 30उस दिन उन्हें अकेले तुम्हारे रब की ओर हाँका जाएगा। 31इस इनकार करने वाले ने न ईमान लाया और न नमाज़ पढ़ी, 32बल्कि इनकार करता रहा और मुँह फेर लिया, 33फिर अपने लोगों के पास इतराते हुए चला गया। 34तुम्हारे लिए बर्बादी है, सचमुच बर्बादी है! 35फिर तुम्हारे लिए बर्बादी है, हाँ, और भी ज़्यादा!
كَلَّآ إِذَا بَلَغَتِ ٱلتَّرَاقِيَ 26وَقِيلَ مَنۡۜ رَاقٖ 27وَظَنَّ أَنَّهُ ٱلۡفِرَاقُ 28وَٱلۡتَفَّتِ ٱلسَّاقُ بِٱلسَّاقِ 29إِلَىٰ رَبِّكَ يَوۡمَئِذٍ ٱلۡمَسَاقُ 30فَلَا صَدَّقَ وَلَا صَلَّىٰ 31وَلَٰكِن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ 32ثُمَّ ذَهَبَ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦ يَتَمَطَّىٰٓ 33أَوۡلَىٰ لَكَ فَأَوۡلَىٰ 34ثُمَّ أَوۡلَىٰ لَكَ فَأَوۡلَىٰٓ35

ज्ञान की बातें
कुछ लोग सोचते हैं कि उनके अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य खाना-पीना और बच्चे पैदा करना है। यदि यह सच है, तो उनमें और उनके घर की बिल्ली या आँगन के कीड़े-मकोड़ों में क्या अंतर है? इस सूरह के अंत और अगली सूरह के आरंभ के अनुसार, अल्लाह ने हमें एक उच्चतर उद्देश्य के लिए बनाया है—अर्थात केवल उसी की इबादत करना और नेक काम करना।

अल्लाह की शक्ति
36क्या लोगों को लगता है कि उन्हें यूँ ही छोड़ दिया जाएगा? 37क्या वे एक टपकी हुई वीर्य की बूँद नहीं थे? 38फिर वे एक चिपका हुआ लोथड़ा बन गए, फिर उसने (अल्लाह ने) उनकी सूरत को संवारा और मुकम्मल किया, 39उससे दोनों लिंगों, नर और मादा को पैदा किया। 40क्या ऐसा (पैदा करने वाला) मुर्दों को फिर से ज़िंदा करने पर क़ादिर नहीं है?
أَيَحۡسَبُ ٱلۡإِنسَٰنُ أَن يُتۡرَكَ سُدًى 36أَلَمۡ يَكُ نُطۡفَةٗ مِّن مَّنِيّٖ يُمۡنَىٰ 37ثُمَّ كَانَ عَلَقَةٗ فَخَلَقَ فَسَوَّىٰ 38فَجَعَلَ مِنۡهُ ٱلزَّوۡجَيۡنِ ٱلذَّكَرَ وَٱلۡأُنثَىٰٓ 39أَلَيۡسَ ذَٰلِكَ بِقَٰدِرٍ عَلَىٰٓ أَن يُحۡـِۧيَ ٱلۡمَوۡتَىٰ40