The Inevitable Hour
الحَاقَّة
الحَاقَّہ

सीखने के बिंदु
यह सूरह उन लोगों के दंड का वर्णन करती है जो आख़िरत का इनकार करते हैं।
यह क़यामत के दिन की भयावहता का भी वर्णन करती है और कैसे मोमिन प्रसन्न होंगे और काफ़िर दुखी होंगे।
यह सूरह सिद्ध करती है कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसके पैगंबर हैं।

ज्ञान की बातें
आगे आने वाली कई सूरतों की तरह, यह सूरत क़यामत के बारे में बात करती है—उन भयानक चीज़ों के बारे में जो अंतिम निर्णय के समय से पहले होंगी। इसमें दुनिया का विनाश शामिल है, साथ ही कई अन्य बड़ी और छोटी निशानियाँ भी। कुछ छात्र इन निशानियों के बारे में सवाल पूछते रहते हैं। पैगंबर के कुछ सहाबा (साथियों) ने भी ऐसा ही किया और उन्होंने उनसे पूछा, "और तुमने उस दिन के लिए क्या तैयारी की है?" {इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम द्वारा वर्णित} तो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क़यामत का दिन कल आता है या एक महीने बाद या 100 साल बाद। जो मायने रखता है वह यह है: क्या आप उस दिन के लिए तैयार हैं? तैयार रहने के लिए, हमें वे काम करने होंगे जो अल्लाह को पसंद हैं (जैसे नमाज़, दान, दयालुता, सम्मान, इत्यादि) और उन चीज़ों से दूर रहना होगा जो उसे नापसंद हैं (जैसे नफ़रत, चुगली, चोरी, बुराई, इत्यादि)।
क़यामत यकीनन आ रही है।
1आने वाली घड़ी! 2आने वाली घड़ी क्या है? 3और तुम्हें क्या मालूम कि आने वाली घड़ी क्या है?
ٱلۡحَآقَّةُ 1مَا ٱلۡحَآقَّةُ 2وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا ٱلۡحَآقَّةُ3
तबाह शुदा कौमों की मिसालें
4समूद और आद दोनों ने क़यामत की घड़ी को झुठलाया। 5तो समूद को एक भयानक धमाके से हलाक कर दिया गया। 6और आद को एक अत्यंत प्रचंड, ठंडी हवा से हलाक कर दिया गया, 7जिसे अल्लाह ने उन पर लगातार सात रातें और आठ दिन तक चला दी, ताकि तुम देखते कि उसके लोग गिरे हुए, खोखले खजूर के तनों की तरह मृत पड़े थे। 8क्या तुम उनमें से किसी को ज़िंदा बचा हुआ देखते हो? 9और फ़िरऔन ने और उससे पहले वालों ने और लूत की उलट दी गई बस्तियों के लोगों ने ख़ता की। 10हर एक ने अपने रब के रसूल की नाफ़रमानी की, तो उसने उन्हें सख़्त पकड़ से ले लिया। 11यक़ीनन जब पानी हद से बढ़ गया था, तो हमने तुम्हें चलती हुई कश्ती में सवार किया। 12ताकि हम इसे तुम्हारे लिए एक नसीहत बना दें और सुनने वाले कान नसीहत हासिल करें।
كَذَّبَتۡ ثَمُودُ وَعَادُۢ بِٱلۡقَارِعَةِ 4فَأَمَّا ثَمُودُ فَأُهۡلِكُواْ بِٱلطَّاغِيَةِ 5وَأَمَّا عَادٞ فَأُهۡلِكُواْ بِرِيحٖ صَرۡصَرٍ عَاتِيَةٖ 6سَخَّرَهَا عَلَيۡهِمۡ سَبۡعَ لَيَالٖ وَثَمَٰنِيَةَ أَيَّامٍ حُسُومٗاۖ فَتَرَى ٱلۡقَوۡمَ فِيهَا صَرۡعَىٰ كَأَنَّهُمۡ أَعۡجَازُ نَخۡلٍ خَاوِيَةٖ 7فَهَلۡ تَرَىٰ لَهُم مِّنۢ بَاقِيَةٖ 8وَجَآءَ فِرۡعَوۡنُ وَمَن قَبۡلَهُۥ وَٱلۡمُؤۡتَفِكَٰتُ بِٱلۡخَاطِئَةِ 9فَعَصَوۡاْ رَسُولَ رَبِّهِمۡ فَأَخَذَهُمۡ أَخۡذَةٗ رَّابِيَةً 10إِنَّا لَمَّا طَغَا ٱلۡمَآءُ حَمَلۡنَٰكُمۡ فِي ٱلۡجَارِيَةِ 11لِنَجۡعَلَهَا لَكُمۡ تَذۡكِرَةٗ وَتَعِيَهَآ أُذُنٞ وَٰعِيَةٞ12
क़यामत के दिन की भयावहता
13अंततः, जब सूर एक ही फूंक से फूंका जाएगा, 14और पृथ्वी और पहाड़ उठा लिए जाएंगे और एक ही प्रहार से चूर-चूर कर दिए जाएंगे, 15उस दिन वह आने वाली घटना अंततः आ चुकी होगी। 16तब आकाश इतना विदीर्ण होगा कि वह कमजोर पड़ जाएगा, 17उसके किनारों पर फ़रिश्तों के साथ। उस दिन आठ 'शक्तिशाली फ़रिश्ते' तुम्हारे रब का अर्श उनके ऊपर उठाएंगे। 18आपको फिर उनके सामने हिसाब के लिए पेश किया जाएगा, और आपके कोई भी रहस्य छिपे नहीं रहेंगे।
فَإِذَا نُفِخَ فِي ٱلصُّورِ نَفۡخَةٞ وَٰحِدَةٞ 13وَحُمِلَتِ ٱلۡأَرۡضُ وَٱلۡجِبَالُ فَدُكَّتَا دَكَّةٗ وَٰحِدَةٗ 14فَيَوۡمَئِذٖ وَقَعَتِ ٱلۡوَاقِعَةُ 15وَٱنشَقَّتِ ٱلسَّمَآءُ فَهِيَ يَوۡمَئِذٖ وَاهِيَةٞ 16وَٱلۡمَلَكُ عَلَىٰٓ أَرۡجَآئِهَاۚ وَيَحۡمِلُ عَرۡشَ رَبِّكَ فَوۡقَهُمۡ يَوۡمَئِذٖ ثَمَٰنِيَةٞ 17يَوۡمَئِذٖ تُعۡرَضُونَ لَا تَخۡفَىٰ مِنكُمۡ خَافِيَةٞ18

कामयाब लोग
19जिनको उनका कर्म-पत्र उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा, वे खुशी से पुकारेंगे, 'लो, सब लोग! मेरा कर्म-पत्र पढ़ो!' 20मुझे पूरा विश्वास था कि मुझे मेरा हिसाब मिलेगा। 21वे ऐश व आराम की ज़िंदगी में होंगे, 22एक ऊँची जन्नत में, 23जिसके फल सुलभ होंगे। 24उनसे कहा जाएगा, "खुशी से खाओ और पियो, अपने उन कर्मों के बदले जो तुमने किए थे।"
فَأَمَّا مَنۡ أُوتِيَ كِتَٰبَهُۥ بِيَمِينِهِۦ فَيَقُولُ هَآؤُمُ ٱقۡرَءُواْ كِتَٰبِيَهۡ 19إِنِّي ظَنَنتُ أَنِّي مُلَٰقٍ حِسَابِيَهۡ 20فَهُوَ فِي عِيشَةٖ رَّاضِيَةٖ 21فِي جَنَّةٍ عَالِيَةٖ 22قُطُوفُهَا دَانِيَةٞ 23كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ هَنِيَٓٔۢا بِمَآ أَسۡلَفۡتُمۡ فِي ٱلۡأَيَّامِ ٱلۡخَالِيَةِ24
हारने वाले
25और जिन्हें उनका कर्म-पत्र उनके बाएँ हाथ में दिया जाएगा, वे चीख उठेंगे, "हाय! काश मुझे मेरी किताब न दी जाती, 26या मुझे मेरे हिसाब-किताब का कुछ भी पता न चलता! 27काश मौत पर ही सब कुछ खत्म हो जाता! 28मेरा माल मेरे किसी काम न आया! 29मेरी सत्ता मुझसे छीन ली गई है।" 30कहा जाएगा, "उन्हें पकड़ो और जंजीरों में जकड़ो," 31फिर उन्हें जहन्नम में जलाओ, 32फिर उन्हें सत्तर फुट लंबी जंजीरों से बाँधो। 33यह इसलिए है क्योंकि उन्होंने कभी अल्लाह, जो महानतम है, पर ईमान नहीं लाया, 34और न ही मिसकीनों को खाना खिलाने का प्रोत्साहन दिया। 35तो इस दिन उनके लिए यहाँ कोई घनिष्ठ मित्र नहीं होगा, 36और न कोई भोजन, सिवाय घिनौनी गंदगी के, 37जिसे पापी लोगों के सिवा कोई नहीं खाएगा।
وَأَمَّا مَنۡ أُوتِيَ كِتَٰبَهُۥ بِشِمَالِهِۦ فَيَقُولُ يَٰلَيۡتَنِي لَمۡ أُوتَ كِتَٰبِيَهۡ 25وَلَمۡ أَدۡرِ مَا حِسَابِيَهۡ 26يَٰلَيۡتَهَا كَانَتِ ٱلۡقَاضِيَةَ 27مَآ أَغۡنَىٰ عَنِّي مَالِيَهۡۜ 28هَلَكَ عَنِّي سُلۡطَٰنِيَهۡ 29خُذُوهُ فَغُلُّوهُ 30ثُمَّ ٱلۡجَحِيمَ صَلُّوهُ 31ثُمَّ فِي سِلۡسِلَةٖ ذَرۡعُهَا سَبۡعُونَ ذِرَاعٗا فَٱسۡلُكُوهُ 32إِنَّهُۥ كَانَ لَا يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ ٱلۡعَظِيمِ 33وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ ٱلۡمِسۡكِينِ 34فَلَيۡسَ لَهُ ٱلۡيَوۡمَ هَٰهُنَا حَمِيمٞ 35وَلَا طَعَامٌ إِلَّا مِنۡ غِسۡلِينٖ 36لَّا يَأۡكُلُهُۥٓ إِلَّا ٱلۡخَٰطُِٔونَ37

पृष्ठभूमि की कहानी
उमर इब्न अल-खत्ताब के मुसलमान बनने से पहले, वह इस्लाम के पूरी तरह खिलाफ थे। एक दिन, वह पैगंबर के पास से गुज़रे जब वे रात में काबा के पास नमाज़ में इस सूरह का पाठ कर रहे थे। उमर ने छिपकर सुनना शुरू किया और वह पाठ से चकित रह गए। उन्होंने अपने आप से कहा, 'यह आदमी एक कवि है, जैसा कि मक्का के लोग कहते हैं।' तभी पैगंबर ने आयत 41 का पाठ किया जिसमें कहा गया है कि कुरान किसी कवि का काम नहीं है। तब उमर ने कहा, 'खैर, वह ज़रूर कोई ज्योतिषी होगा।' तब पैगंबर ने आयत 42 का पाठ किया जिसमें कहा गया है कि वह कोई ज्योतिषी नहीं हैं। उमर हैरान हो गए और उन्होंने खुद से पूछा, 'तो फिर यह क्या है?' पैगंबर ने 43 का पाठ किया, जिसमें कहा गया था कि कुरान पूरे ब्रह्मांड के रब की ओर से एक रहस्योद्घाटन है। उमर ने कहा कि यह वह समय था जब कुरान ने पहली बार उनके दिल को छुआ। उन्होंने बाद में इस्लाम कबूल कर लिया जब उन्हें पता चला कि उनकी बहन और उनके बहनोई गुप्त रूप से सूरह ता-हा (20) पढ़ रहे थे। {इमाम इब्न कसीर द्वारा दर्ज किया गया}

क़ुरआन अल्लाह का कलाम है।
38अब, मैं क़सम खाता हूँ जो कुछ तुम देखते हो उसकी, 39और जो कुछ तुम नहीं देख सकते हो उसकी! 40निःसंदेह यह 'क़ुरआन' एक सम्मानित रसूल की तिलावत है। 41यह किसी शायर का कलाम नहीं है, जैसा कि तुम दावा करते हो, फिर भी तुम मुश्किल से ही ईमान लाते हो। 42और यह किसी काहिन की बड़बड़ाहट नहीं है, फिर भी तुम मुश्किल से ही याद रखते हो। 43यह समस्त ब्रह्मांड के रब की ओर से एक प्रकाशना है।
فَلَآ أُقۡسِمُ بِمَا تُبۡصِرُونَ 38وَمَا لَا تُبۡصِرُونَ 39إِنَّهُۥ لَقَوۡلُ رَسُولٖ كَرِيمٖ 40وَمَا هُوَ بِقَوۡلِ شَاعِرٖۚ قَلِيلٗا مَّا تُؤۡمِنُونَ 41وَلَا بِقَوۡلِ كَاهِنٖۚ قَلِيلٗا مَّا تَذَكَّرُونَ 42تَنزِيلٞ مِّن رَّبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ43

पृष्ठभूमि की कहानी
पैगंबर ने कुरान स्वयं रचा था। मूर्तिपूजकों ने दावा किया कि उन्होंने कुरान स्वयं बनाया था, इसलिए आयतें 44-47 अवतरित हुईं, ताकि उन्हें बताया जा सके कि यदि उन्होंने कुरान स्वयं रचा होता, तो अल्लाह उन्हें सबसे पहले दंडित करता। लेकिन पैगंबर ईमानदार थे, और यही कारण है कि अल्लाह ने उनका समर्थन किया। (इमाम अल-कुरतुबी द्वारा दर्ज)

ज्ञान की बातें
यह साबित करने के लिए कि कुरान अल्लाह का कलाम है, कुरान ने इनकार करने वालों को एक 'मिथ्याकरण परीक्षण' की चुनौती दी - जिसका अर्थ है कि यदि वे यह साबित करना चाहते थे कि कुरान पैगंबर द्वारा गढ़ा गया था, तो उन्हें निम्नलिखित 2 काम करने थे:

1. कुरान जैसा कुछ बनाओ (17:88), या 10 सूरह (11:13), या यहाँ तक कि एक सूरह भी (2:23)।
2. कुरान में कोई गलती ढूँढो (4:82)।
हालाँकि उस समय के अरब अरबी भाषा के माहिर थे, वे इन चुनौतियों को पूरा करने में असमर्थ रहे। इसके बजाय, उन्होंने यह कहकर जवाब दिया: चलो युद्ध करते हैं!
क़ुरआन मनगढ़ंत नहीं है।
44यदि रसूल ने हमारे नाम पर कुछ गढ़ लिया होता, 45तो हम अवश्य ही उसे उसके दाहिने हाथ से पकड़ लेते, 46फिर उसकी शाह रग काट डालते, 47और तुम में से कोई भी उसे हमसे बचा नहीं सकता था!
وَلَوۡ تَقَوَّلَ عَلَيۡنَا بَعۡضَ ٱلۡأَقَاوِيلِ 44لَأَخَذۡنَا مِنۡهُ بِٱلۡيَمِينِ 45ثُمَّ لَقَطَعۡنَا مِنۡهُ ٱلۡوَتِينَ 46فَمَا مِنكُم مِّنۡ أَحَدٍ عَنۡهُ حَٰجِزِينَ47
क़ुरआन ही सत्य है।
48निःसंदेह यह क़ुरआन ईमानवालों के लिए एक नसीहत है। 49और हम निश्चित रूप से जानते हैं कि तुममें से कुछ लोग इनकार करते रहेंगे, तो यह अवश्य ही काफ़िरों के लिए पछतावे का कारण बनेगा। 50और निःसंदेह यह क़ुरआन ही अटल सत्य है। 51तो अपने महानतम रब के नाम की तस्बीह करो। 52तो अपने महानतम रब के नाम की तस्बीह करो।
وَإِنَّهُۥ لَتَذۡكِرَةٞ لِّلۡمُتَّقِينَ 48وَإِنَّا لَنَعۡلَمُ أَنَّ مِنكُم مُّكَذِّبِينَ 49وَإِنَّهُۥ لَحَسۡرَةٌ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ 50وَإِنَّهُۥ لَحَقُّ ٱلۡيَقِينِ 51فَسَبِّحۡ بِٱسۡمِ رَبِّكَ ٱلۡعَظِيمِ52