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المُلْك
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सीखने के बिंदु
अल्लाह ने कायनात को पूर्णता से बनाया है।
उसके पास सबको फैसले के लिए दोबारा जीवित करने का सामर्थ्य है।
हर किसी को अल्लाह का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, जो हमेशा हमारी देखभाल करता है।
जवाब देने से पहले कही जा रही बात को ध्यान से सुनना और उस पर गंभीरता से सोचना ज़रूरी है।
जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं उन्हें जन्नत में इनाम मिलेगा, और बुत-परस्त (जो बेजान देवताओं में विश्वास रखते हैं और क़यामत के दिन का मज़ाक उड़ाते हैं) को जहन्नम में सज़ा मिलेगी।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि क़यामत के दिन यह सूरह उस व्यक्ति की शफ़ाअत करेगी जो इसे दुनिया में पढ़ता था, जब तक कि उसकी मग़फ़िरत न हो जाए। {इसे इमाम अबू दाऊद ने रिवायत किया है}

छोटी कहानी
एक बहुत शक्तिशाली, धनी राजा अपनी मृत्यु-शैय्या पर था। उसने अपने सहायकों से कहा, 'मेरे मरने के बाद, मेरे शव को मेरे चिकित्सक उठाएँ, और सुनिश्चित करना कि लोग मेरे हाथ देखें।' जब उन्होंने कारण पूछा, तो उसने कहा, 'मैं चाहता हूँ कि लोग जानें कि मेरे चिकित्सक भी मुझे मृत्यु से नहीं बचा सके, और मैं चाहता हूँ कि वे देखें कि मैंने यह दुनिया खाली हाथों छोड़ी है।'
निम्नलिखित गद्यांश के अनुसार, यह जीवन एक परीक्षा है। हम इस दुनिया में कुछ भी लेकर नहीं आते और अपने कर्मों के सिवाय कुछ भी लेकर नहीं जाते। यही कर्म तय करते हैं कि न्याय के दिन हमें पुरस्कृत किया जाएगा या दंडित।

जीवन एक इम्तिहान है
1बड़ा बरकत वाला है वह जिसके हाथ में सारी बादशाही है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। 2उसी ने मौत और ज़िंदगी को पैदा किया ताकि तुम्हें आज़माए कि तुम में से कौन अमल में बेहतर है। और वह ज़बरदस्त, बड़ा बख़्शने वाला है।
تَبَٰرَكَ ٱلَّذِي بِيَدِهِ ٱلۡمُلۡكُ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ 1ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡمَوۡتَ وَٱلۡحَيَوٰةَ لِيَبۡلُوَكُمۡ أَيُّكُمۡ أَحۡسَنُ عَمَلٗاۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفُورُ2

अल्लाह की उत्तम रचना
3वही है जिसने सात आसमान तह-ब-तह बनाए। तुम रहमान की रचना में कोई कमी नहीं देखोगे। तो फिर नज़र डालो: क्या तुम्हें कोई त्रुटि दिखती है? 4फिर बार-बार नज़र डालो—तुम्हारी आँखें थक जाएँगी पर कुछ भी नहीं पाएँगी। 5और निश्चय ही हमने सबसे निचले आसमान को चिरागों (तारों) से सजाया, और उन्हें शैतानों को मार भगाने का साधन बनाया, और हमने उनके लिए दहकती आग का अज़ाब तैयार कर रखा है।
ٱلَّذِي خَلَقَ سَبۡعَ سَمَٰوَٰتٖ طِبَاقٗاۖ مَّا تَرَىٰ فِي خَلۡقِ ٱلرَّحۡمَٰنِ مِن تَفَٰوُتٖۖ فَٱرۡجِعِ ٱلۡبَصَرَ هَلۡ تَرَىٰ مِن فُطُورٖ 3ثُمَّ ٱرۡجِعِ ٱلۡبَصَرَ كَرَّتَيۡنِ يَنقَلِبۡ إِلَيۡكَ ٱلۡبَصَرُ خَاسِئٗا وَهُوَ حَسِيرٞ 4وَلَقَدۡ زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِمَصَٰبِيحَ وَجَعَلۡنَٰهَا رُجُومٗا لِّلشَّيَٰطِينِۖ وَأَعۡتَدۡنَا لَهُمۡ عَذَابَ ٱلسَّعِيرِ5
आयत 5: वे शैतान जो आसमान में फ़रिश्तों की बातें चोरी-छिपे सुनने का प्रयास कर रहे थे।

छोटी कहानी
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि अल्लाह क़यामत के दिन एक काफ़िर से पूछेगा, "अगर तुम्हारे पास पूरी दुनिया को भरने जितना सोना होता, तो क्या तुम आज उसे जहन्नम से बचने के लिए दे देते?" वह काफ़िर रोते हुए कहेगा, "हाँ, मेरे रब!" अल्लाह कहेगा, "मैंने तो तुमसे इससे बहुत कम माँगा था - मेरे साथ किसी और की इबादत न करना, लेकिन तुमने नहीं सुना।" फिर इस व्यक्ति को आग में फेंक दिया जाएगा। (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम द्वारा दर्ज)
काफ़िरों का अज़ाब
6जिन्होंने अपने रब का इनकार किया, उन्हें जहन्नम का अज़ाब होगा। क्या ही बुरा ठिकाना है! 7जब वे उसमें फेंके जाएँगे, तो वे उसकी दहाड़ सुनेंगे, जबकि वह खौल रही होगी, 8मानो क्रोध से फट पड़ने वाली हो। जब भी कोई गिरोह उसमें डाला जाएगा, तो उसके दारोगा उनसे पूछेंगे, "क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था?" 9वे कहेंगे, "हाँ, निश्चय ही हमारे पास एक डराने वाला आया था, किंतु हमने उसे झुठलाया और कहा, 'अल्लाह ने कुछ भी नाज़िल नहीं किया है। तुम तो बड़ी गुमराही में हो।'" 10और वे कहेंगे, "काश! हमने सुना होता और अक्ल से काम लिया होता, तो हम इस दहकती आग वालों में से न होते!" 11और इस प्रकार वे अपने गुनाहों को स्वीकार करेंगे। तो धिक्कार है भड़कती आग वालों को!
وَلِلَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمۡ عَذَابُ جَهَنَّمَۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ 6إِذَآ أُلۡقُواْ فِيهَا سَمِعُواْ لَهَا شَهِيقٗا وَهِيَ تَفُورُ 7تَكَادُ تَمَيَّزُ مِنَ ٱلۡغَيۡظِۖ كُلَّمَآ أُلۡقِيَ فِيهَا فَوۡجٞ سَأَلَهُمۡ خَزَنَتُهَآ أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ نَذِيرٞ 8قَالُواْ بَلَىٰ قَدۡ جَآءَنَا نَذِيرٞ فَكَذَّبۡنَا وَقُلۡنَا مَا نَزَّلَ ٱللَّهُ مِن شَيۡءٍ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا فِي ضَلَٰلٖ كَبِيرٖ 9وَقَالُواْ لَوۡ كُنَّا نَسۡمَعُ أَوۡ نَعۡقِلُ مَا كُنَّا فِيٓ أَصۡحَٰبِ ٱلسَّعِيرِ 10فَٱعۡتَرَفُواْ بِذَنۢبِهِمۡ فَسُحۡقٗا لِّأَصۡحَٰبِ ٱلسَّعِيرِ11
मोमिनों का इनाम
12निःसंदेह जो लोग अपने रब से परोक्ष में डरते हैं, उनके लिए क्षमा और एक महान अज्र है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٞ كَبِيرٞ12

छोटी कहानी
एक गुनाहगार आदमी एक आलिम के पास आया और कहा, "मैं बहुत गुनाह करता हूँ और मैं उन्हें छोड़ नहीं पाता। लेकिन मैं नहीं चाहता कि अल्लाह मुझे सज़ा दे।" आलिम ने कहा, "यदि तुम अल्लाह की नाफरमानी करते रहते हो, तो तुम्हें निम्नलिखित करना चाहिए:"
1. उसके रिज़्क से मत खाओ।
2. उसकी सल्तनत में मत रहो।
3. जब तुम गुनाह करो तो उसे तुम्हें देखने मत दो।
4. जब तुम्हारी मौत आए तो मत मरो।
5. क़यामत के दिन फ़रिश्तों से सज़ा मत पाओ।
आदमी ने कहा, लेकिन मैं इनमें से कुछ भी नहीं कर सकता। अल्लाह के सिवा कोई मुझे रोज़ी नहीं देता। उसके राज्य के बाहर कोई और राज्य नहीं है। मैं कहीं भी रहूँ, वह मुझे देखता है। मैं मौत को नहीं रोक सकता। और मैं फ़रिश्तों को मुझे सज़ा देने से नहीं रोक सकता। तो विद्वान ने कहा, फिर तुम्हें उसकी अवज्ञा नहीं करनी चाहिए। आदमी ने कहा, आप सही कह रहे हैं।
एक आदमी अपने शहर में नौकरी ढूंढ रहा था लेकिन उसे कोई नहीं मिली। इमाम ने उसे कहीं और तलाश करने की सलाह दी। तो वह आदमी दूसरे शहर जा रहा था, जब उसने एक गुफा के अंदर आराम करने का फैसला किया। गुफा में, उसने एक घोंसले के अंदर टूटे पंख वाले एक पक्षी को देखा, फिर एक दूसरा पक्षी कई बार उस पक्षी के मुँह में खाना डालने आया। आदमी ने अपने शहर वापस जाने का फैसला किया। इमाम ने पूछा कि वह क्यों वापस आया, और आदमी ने कहा कि अल्लाह ने उसे एक संकेत दिया है। उसने इमाम को दोनों पक्षियों की कहानी सुनाई और फिर कहा, मैंने टूटे पंख वाले पक्षी से सीखा कि मुझे बस अपने घर में बैठना चाहिए और अल्लाह मेरे मुँह में खाना डालने के लिए किसी को भेजेगा। इमाम ने कहा, तुमने टूटे पंख वाले पक्षी बनना क्यों चुना और उस दूसरे पक्षी को क्यों नहीं चुना जो काम करने और दूसरों की मदद करने में सक्षम था?

दिए गए अंश के अनुसार, अल्लाह ने हमारे लिए धरती को समतल बनाया है ताकि हम काम कर सकें और रोज़ी कमा सकें।
प्रश्न 1) क्या अल्लाह नहीं जानते?
13तुम अपनी बात गुप्त रखो या प्रकट करो, वह निश्चित रूप से जानता है जो दिलों में छिपा है। 14वह अपनी ही सृष्टि को कैसे नहीं जानेगा, जबकि उसे सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों का भी ज्ञान है और वह सर्वज्ञ है? 15वही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को बिछाया, तो उसमें चलो-फिरो और उसके रिज़क में से खाओ। और उसी की ओर तुम सब फिर से जीवित किए जाओगे।
وَأَسِرُّواْ قَوۡلَكُمۡ أَوِ ٱجۡهَرُواْ بِهِۦٓۖ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ 13أَلَا يَعۡلَمُ مَنۡ خَلَقَ وَهُوَ ٱللَّطِيفُ ٱلۡخَبِيرُ 14هُوَ ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ ذَلُولٗا فَٱمۡشُواْ فِي مَنَاكِبِهَا وَكُلُواْ مِن رِّزۡقِهِۦۖ وَإِلَيۡهِ ٱلنُّشُورُ15
आयत 14: 2 अल-लतीफ़ का अर्थ सबसे कोमल भी है।
क्या आप अल्लाह की पहुँच से बाहर हैं?
16क्या तुम इस बात से निश्चिंत हो गए हो कि जो आसमान में है, वह तुम्हें ज़मीन में न धँसा दे जबकि वह ज़ोर से हिल रही हो? 17या क्या तुम इस बात से निश्चिंत हो गए हो कि जो आसमान में है, वह तुम पर पत्थरों का तूफ़ान न भेज दे? तब तुम्हें मालूम होगा कि मेरी चेतावनी कितनी गंभीर थी! 18और बेशक उनसे पहले वालों ने भी झुठलाया, तो मेरी पकड़ कितनी सख़्त थी!
ءَأَمِنتُم مَّن فِي ٱلسَّمَآءِ أَن يَخۡسِفَ بِكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فَإِذَا هِيَ تَمُورُ 16أَمۡ أَمِنتُم مَّن فِي ٱلسَّمَآءِ أَن يُرۡسِلَ عَلَيۡكُمۡ حَاصِبٗاۖ فَسَتَعۡلَمُونَ كَيۡفَ نَذِيرِ 17وَلَقَدۡ كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَكَيۡفَ كَانَ نَكِيرِ18
प्रश्न 3) क्या आप अल्लाह की शक्ति नहीं देखते?
19क्या उन्होंने अपने ऊपर पक्षियों को पंख फैलाते और समेटते हुए नहीं देखा? उन्हें अत्यंत दयालु के सिवा कोई नहीं थामता। वह वास्तव में सब कुछ देखता है। 20इसके अलावा, कौन सी 'शक्तिहीन' सेना तुम्हारी मदद के लिए आएगी अत्यंत दयालु के मुक़ाबले में? काफ़िर वास्तव में धोखे में हैं। 21या कौन है जो तुम्हें रिज़्क़ देगा यदि वह अपना रिज़्क़ रोक ले? वास्तव में, वे अहंकार में और सच्चाई से भागने में बहुत आगे बढ़ गए हैं।
أَوَ لَمۡ يَرَوۡاْ إِلَى ٱلطَّيۡرِ فَوۡقَهُمۡ صَٰٓفَّٰتٖ وَيَقۡبِضۡنَۚ مَا يُمۡسِكُهُنَّ إِلَّا ٱلرَّحۡمَٰنُۚ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَيۡءِۢ بَصِيرٌ 19أَمَّنۡ هَٰذَا ٱلَّذِي هُوَ جُندٞ لَّكُمۡ يَنصُرُكُم مِّن دُونِ ٱلرَّحۡمَٰنِۚ إِنِ ٱلۡكَٰفِرُونَ إِلَّا فِي غُرُورٍ 20أَمَّنۡ هَٰذَا ٱلَّذِي يَرۡزُقُكُمۡ إِنۡ أَمۡسَكَ رِزۡقَهُۥۚ بَل لَّجُّواْ فِي عُتُوّٖ وَنُفُورٍ21
प्रश्न ४) क्या मोमिन और काफ़िर बराबर हैं?
22कौन अधिक हिदायत याफ्ता है: वह जो अपने मुँह के बल रेंगता है या वह जो सीधे मार्ग पर सीधा चलता है?
أَفَمَن يَمۡشِي مُكِبًّا عَلَىٰ وَجۡهِهِۦٓ أَهۡدَىٰٓ أَمَّن يَمۡشِي سَوِيًّا عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ22
प्रश्न ५) तुम्हें किसने बनाया?
23कहो, "ऐ नबी, वही है जिसने तुम्हें पैदा किया और तुम्हें कान, आँखें और दिल दिए।" "फिर भी तुम बहुत कम शुक्र अदा करते हो।" 24और कहो, "वही है जिसने तुम्हें धरती पर फैलाया है, और उसी की ओर तुम सब जमा किए जाओगे।"
قُلۡ هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنشَأَكُمۡ وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡأَبۡصَٰرَ وَٱلۡأَفِۡٔدَةَۚ قَلِيلٗا مَّا تَشۡكُرُونَ 23قُلۡ هُوَ ٱلَّذِي ذَرَأَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَإِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ24
प्रश्न 6) क्या तुम अब भी क़यामत से इनकार करते हो?
25फिर भी वे पूछते हैं, "यह धमकी कब पूरी होगी, यदि तुम सच्चे हो?" 26कहो, "ऐ नबी, वह ज्ञान केवल अल्लाह के पास है, और मैं तो केवल एक स्पष्ट चेतावनी के साथ भेजा गया हूँ।" 27फिर जब वे उस अज़ाब को करीब आते देखेंगे, तो उनके चेहरे उतर जाएँगे। और उनसे कहा जाएगा, "यही है जिसके आने से तुम इनकार करते थे।"
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ 25قُلۡ إِنَّمَا ٱلۡعِلۡمُ عِندَ ٱللَّهِ وَإِنَّمَآ أَنَا۠ نَذِيرٞ مُّبِينٞ 26فَلَمَّا رَأَوۡهُ زُلۡفَةٗ سِيَٓٔتۡ وُجُوهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَقِيلَ هَٰذَا ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تَدَّعُونَ27

पृष्ठभूमि की कहानी
मूर्तिपूजकों ने पैगंबर की मृत्यु की कामना की। तो, निम्नलिखित अंश उन्हें बताता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जीवित रहते हैं या मर जाते हैं - किसी भी तरह, उन्हें उनके संदेश को अस्वीकार करने के लिए दंडित किया जाएगा। और उन्हें इसी बात की चिंता करनी चाहिए, न कि उनके जीवन या मृत्यु की। (इमाम अत-तबरी द्वारा दर्ज किया गया)
प्रश्न ७) और कौन आपकी मदद कर सकता है?
28कहो, 'ऐ नबी,' "सोचो इस बारे में: चाहे अल्लाह मुझे और मेरे साथ वालों को मौत दे दे या हम पर रहम करे, काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब से कौन बचाएगा?" 29कहो, "वही अत्यंत दयालु है—उसी पर हम ईमान लाए हैं, और उसी पर हम भरोसा करते हैं। तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा कि कौन खुली गुमराही में था।" 30कहो, "सोचो इस बारे में: अगर तुम्हारा पानी ज़मीन में बहुत नीचे चला जाए, तो कौन है जो तुम्हें बहता हुआ पानी ला देगा?"
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِنۡ أَهۡلَكَنِيَ ٱللَّهُ وَمَن مَّعِيَ أَوۡ رَحِمَنَا فَمَن يُجِيرُ ٱلۡكَٰفِرِينَ مِنۡ عَذَابٍ أَلِيمٖ 28قُلۡ هُوَ ٱلرَّحۡمَٰنُ ءَامَنَّا بِهِۦ وَعَلَيۡهِ تَوَكَّلۡنَاۖ فَسَتَعۡلَمُونَ مَنۡ هُوَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ 29قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِنۡ أَصۡبَحَ مَآؤُكُمۡ غَوۡرٗا فَمَن يَأۡتِيكُم بِمَآءٖ مَّعِينِۢ30