Those ˹Angels˺ Lined up in Ranks
الصَّافَّات
الصَّافّات

सीखने के बिंदु
यह सूरह कुछ मूलभूत सच्चाइयों को उजागर करती है, जिनमें अल्लाह की एकता, मृत्यु के बाद का जीवन और मुहम्मद (ﷺ) की पैगंबरी शामिल है।
नूह, इब्राहिम, लूत और इलियास (अ.स.) की कौमों की कहानियों का उल्लेख सच्चाई को ठुकराने वाले काफ़िरों के लिए एक चेतावनी के रूप में किया गया है।
मूर्तिपूजकों की आलोचना की गई है क्योंकि उन्होंने पैगंबर (ﷺ) को एक पागल कवि कहा, यह दावा किया कि फ़रिश्ते अल्लाह की बेटियाँ हैं, और मृत्यु के बाद के जीवन का मज़ाक उड़ाया।
अल्लाह की रहमत का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है, जैसा कि हम यूनुस (अ.स.) की कौम की कहानी में देख सकते हैं।
यह सूरह आखिरत में काफ़िरों की सज़ा और मोमिनों के इनाम पर अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करती है।
क़यामत के दिन काफ़िर इतने स्तब्ध होंगे कि वे एक-दूसरे की या यहाँ तक कि अपनी भी मदद नहीं कर पाएँगे।
पैगंबर (ﷺ) से कहा गया है कि अल्लाह के रसूल अंत में हमेशा जीतते हैं।

एक ही अल्लाह
1क़सम है उन फ़रिश्तों की जो उपासना में पंक्तिबद्ध खड़े हैं। 2और उन की जो बादलों को हाँकते हैं। 3और उन की जो ज़िक्र (अनुस्मारक) की तिलावत करते हैं। 4निश्चित रूप से तुम्हारा पूज्य एक ही है— 5आकाशों और धरती का रब और जो कुछ उन दोनों के बीच है, और सभी मशरिक़ों (सूर्योदय स्थलों) का भी रब।
وَٱلصَّٰٓفَّٰتِ صَفّٗا 1فَٱلزَّٰجِرَٰتِ زَجۡرٗا 2فَٱلتَّٰلِيَٰتِ ذِكۡرًا 3إِنَّ إِلَٰهَكُمۡ لَوَٰحِدٞ 4رَّبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَرَبُّ ٱلۡمَشَٰرِقِ5
सजा हुआ और महफूज़ आसमान
6बेशक हमने सबसे निचले आसमान को तारों से सजाया है, शोभा के लिए। 7और हर सरकश शैतान से हिफाज़त के लिए। 8वे मला-ए-आ'ला की बातें नहीं सुन सकते, क्योंकि उन्हें हर तरफ से मारा जाता है। 9उन्हें भगाने के लिए। और उनके लिए एक निरंतर अज़ाब है। 10लेकिन जो कोई कोई बात चुराने में कामयाब हो जाता है, तो एक शोला-ए-साक़िब उसका पीछा करता है।
إِنَّا زَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِزِينَةٍ ٱلۡكَوَاكِبِ 6وَحِفۡظٗا مِّن كُلِّ شَيۡطَٰنٖ مَّارِدٖ 7لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ ٱلۡأَعۡلَىٰ وَيُقۡذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٖ 8دُحُورٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ وَاصِبٌ 9إِلَّا مَنۡ خَطِفَ ٱلۡخَطۡفَةَ فَأَتۡبَعَهُۥ شِهَابٞ ثَاقِبٞ10
आख़िरत के मुनकिरों से एक प्रश्न
11अब उनसे पूछिए, 'ऐ पैगंबर', क्या उन्हें बनाना अधिक कठिन है या हमारी अन्य अद्भुत रचनाओं को? निःसंदेह हमने उन्हें चिपचिपी मिट्टी से बनाया। 12बल्कि, आप हैरान हैं 'क्योंकि वे कुफ़्र करते हैं' जबकि वे 'आपका' उपहास करते हैं। 13जब उन्हें नसीहत दी जाती है, तो वे उस पर कभी गौर नहीं करते। 14और जब भी वे कोई आयत देखते हैं, तो वे उसका उपहास करते हैं, 15कहते हैं, "यह तो बस खुला जादू है।" 16क्या! जब हम मर जाएँगे और मिट्टी तथा हड्डियाँ बन जाएँगे, तो क्या हमें सचमुच उठाया जाएगा? 17ओह! और हमारे बाप-दादा भी? 18कहो, "हाँ! और तुम ज़लील किए जाओगे।"
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَهُمۡ أَشَدُّ خَلۡقًا أَم مَّنۡ خَلَقۡنَآۚ إِنَّا خَلَقۡنَٰهُم مِّن طِينٖ لَّازِبِۢ 11بَلۡ عَجِبۡتَ وَيَسۡخَرُونَ 12وَإِذَا ذُكِّرُواْ لَا يَذۡكُرُونَ 13وَإِذَا رَأَوۡاْ ءَايَةٗ يَسۡتَسۡخِرُونَ 14وَقَالُوٓاْ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٌ 15أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ 16أَوَ ءَابَآؤُنَا ٱلۡأَوَّلُونَ 17قُلۡ نَعَمۡ وَأَنتُمۡ دَٰخِرُونَ18
क़यामत के दिन झुठलाने वाले
19यह केवल एक चीख होगी, फिर वे तुरंत सब कुछ देख लेंगे। 20वे चिल्लाएँगे, "हाय अफ़सोस! हम बर्बाद हो गए! यह तो क़यामत का दिन है!" 21उनसे कहा जाएगा, "यह फ़ैसले का दिन है जिसका तुम इनकार किया करते थे।" 22अल्लाह फ़रिश्तों से कहेगा, "उन सब को इकट्ठा करो जिन्होंने ज़ुल्म किया, और उनके जैसे दूसरों को भी, और जिन (माबूदों) की वे पूजा किया करते थे 23अल्लाह के सिवा, फिर उन सब को जहन्नम के रास्ते पर ले जाओ।" 24और उन्हें ठहराओ। उनसे पूछताछ की जाएगी। 25फिर उनसे पूछा जाएगा, 'तुम्हें क्या हुआ है कि तुम अब एक-दूसरे की सहायता नहीं कर सकते?' 26बेशक, उस दिन वे पूर्णतः समर्पण करेंगे।
فَإِنَّمَا هِيَ زَجۡرَةٞ وَٰحِدَةٞ فَإِذَا هُمۡ يَنظُرُونَ 19وَقَالُواْ يَٰوَيۡلَنَا هَٰذَا يَوۡمُ ٱلدِّينِ 20هَٰذَا يَوۡمُ ٱلۡفَصۡلِ ٱلَّذِي كُنتُم بِهِۦ تُكَذِّبُونَ 21ٱحۡشُرُواْ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ وَأَزۡوَٰجَهُمۡ وَمَا كَانُواْ يَعۡبُدُونَ 22مِن دُونِ ٱللَّهِ فَٱهۡدُوهُمۡ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡجَحِيمِ 23وَقِفُوهُمۡۖ إِنَّهُم مَّسُۡٔولُونَ 24مَا لَكُمۡ لَا تَنَاصَرُونَ 25بَلۡ هُمُ ٱلۡيَوۡمَ مُسۡتَسۡلِمُونَ26
गुमराह करने वाले बनाम गुमराह
27वे एक-दूसरे पर पलटेंगे, इल्ज़ाम लगाते हुए। 28गुमराह लोग कहेंगे, "तुम ही थे जिन्होंने हमें सीधी राह से भटकाया।" 29गुमराह करने वाले जवाब देंगे, "नहीं! तुमने खुद ही कुफ़्र किया था। 30हमारा तुम पर कोई अधिकार नहीं था। बल्कि, तुम तो स्वयं ही हद से ज़्यादा सरकश थे। 31हमारे रब का फ़ैसला हम सब के विरुद्ध सच हो गया है: हम अवश्य ही अज़ाब चखेंगे। 32हमने तुम्हें गुमराह किया क्योंकि हम रास्ता भटक गए थे। 33बेशक उस दिन वे सब अज़ाब में शरीक होंगे।
وَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ 27قَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَأۡتُونَنَا عَنِ ٱلۡيَمِينِ 28قَالُواْ بَل لَّمۡ تَكُونُواْ مُؤۡمِنِينَ 29وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيۡكُم مِّن سُلۡطَٰنِۢۖ بَلۡ كُنتُمۡ قَوۡمٗا طَٰغِينَ 30فَحَقَّ عَلَيۡنَا قَوۡلُ رَبِّنَآۖ إِنَّا لَذَآئِقُونَ 31فَأَغۡوَيۡنَٰكُمۡ إِنَّا كُنَّا غَٰوِينَ 32فَإِنَّهُمۡ يَوۡمَئِذٖ فِي ٱلۡعَذَابِ مُشۡتَرِكُونَ33
मूर्ति पूजकों को चेतावनी
34निश्चय ही हम अपराधियों के साथ ऐसा ही करते हैं।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفۡعَلُ بِٱلۡمُجۡرِمِينَ34
ईमान वालों का इनाम
40लेकिन यह अल्लाह के चुने हुए बंदों के लिए अलग होगा। 41उनके लिए ज्ञात प्रावधान होंगे: 42हर प्रकार के फल। और वे सम्मानित होंगे 43आनंद के बागों में, 44तख्तों पर एक-दूसरे के सामने। 45उन्हें बहती हुई धारा से एक शुद्ध पेय पिलाया जाएगा। 46जो सफेद और पीने में स्वादिष्ट होगा। 47इससे उन्हें न तो कोई हानि होगी और न ही यह उन्हें मदहोश करेगा। 48और उनके साथ बड़ी-बड़ी आँखों वाली हूरें होंगी, जो अपने पतियों के सिवा किसी और को नहीं देखेंगी। 49मानो वे शुद्ध मोती हों।
إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 40أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ رِزۡقٞ مَّعۡلُومٞ 41فَوَٰكِهُ وَهُم مُّكۡرَمُونَ 42فِي جَنَّٰتِ ٱلنَّعِيمِ 43عَلَىٰ سُرُرٖ مُّتَقَٰبِلِينَ 44يُطَافُ عَلَيۡهِم بِكَأۡسٖ مِّن مَّعِينِۢ 45بَيۡضَآءَ لَذَّةٖ لِّلشَّٰرِبِينَ 46لَا فِيهَا غَوۡلٞ وَلَا هُمۡ عَنۡهَا يُنزَفُونَ 47وَعِندَهُمۡ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ عِينٞ 48كَأَنَّهُنَّ بَيۡضٞ مَّكۡنُونٞ49
आयत 49: एक-दूसरे के सामने होने का अर्थ है कि उनके मन में एक-दूसरे के प्रति कोई दुर्भावना नहीं होगी।

पृष्ठभूमि की कहानी
दो दोस्त थे जिन्होंने अपना व्यवसाय बांटने का फैसला किया। उनमें से एक आस्तिक था जो दान देता था, परलोक में सवाब पाने की उम्मीद में। दूसरा परलोक को नहीं मानता था और आस्तिक का मज़ाक उड़ाता था।
काफ़िर कहता था, 'क्या तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है? क्या तुम सच में इस 'परलोक' की बातों पर यक़ीन करते हो? क्या हम सच में मरने के बाद और हमारे शरीर क़ब्र में सड़ जाने के बाद हिसाब के लिए खड़े होंगे?' वह आस्तिक पर हिसाब को नकारने का दबाव डालता रहा, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी।
आख़िरकार, वे दोनों मर गए। आस्तिक जन्नत (स्वर्ग) में पहुँचा और इनकार करने वाला जहन्नम (नरक) में। आयतें 51-59 हमें आस्तिक की प्रतिक्रिया बताती हैं जब वह अपने व्यापारिक साथी को आग में देखता है।
जन्नती बातें करते हुए
50फिर वे एक-दूसरे की ओर मुड़कर आपस में पूछेंगे। 51उनमें से कोई कहेगा, "दुनिया में मेरा एक साथी था।" 52जो मुझसे पूछा करता था, "क्या तुम सचमुच आख़िरत पर यक़ीन रखते हो?" 53"जब हम मर जाएँगे और मिट्टी और हड्डियाँ हो जाएँगे, तो क्या हमें सचमुच हिसाब के लिए खड़ा किया जाएगा?" 54वह फिर पूछेगा, "क्या तुम उसका हश्र देखना चाहोगे?" 55फिर वह (और दूसरे) उसे जहन्नम के बीच में देखेंगे और पा लेंगे। 56फिर वह कहेगा, "अल्लाह की क़सम! मैं तुम्हारी वजह से लगभग बर्बाद हो गया था। 57अगर मेरे रब की रहमत न होती, तो मैं भी (जहन्नम में) फँस गया होता।" 58फिर वह अपने साथी मोमिनों से पूछेगा, "क्या तुम कल्पना कर सकते हो कि हम कभी नहीं मरेंगे, 59सिवाय हमारी पहली मौत के, और हमें दूसरों की तरह सज़ा नहीं दी जाएगी?" 60यह वास्तव में सबसे बड़ी सफलता है। 61ऐसे 'सम्मान' के लिए सभी को 'कड़ी मेहनत' करनी चाहिए।
فَأَقۡبَلَ بَعۡضُهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ يَتَسَآءَلُونَ 50قَالَ قَآئِلٞ مِّنۡهُمۡ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٞ 51يَقُولُ أَءِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُصَدِّقِينَ 52أَءِذَا مِتۡنَا وَكُنَّا تُرَابٗا وَعِظَٰمًا أَءِنَّا لَمَدِينُونَ 53قَالَ هَلۡ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ 54فَٱطَّلَعَ فَرَءَاهُ فِي سَوَآءِ ٱلۡجَحِيمِ 55قَالَ تَٱللَّهِ إِن كِدتَّ لَتُرۡدِينِ 56وَلَوۡلَا نِعۡمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُحۡضَرِينَ 57أَفَمَا نَحۡنُ بِمَيِّتِينَ 58إِلَّا مَوۡتَتَنَا ٱلۡأُولَىٰ وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ 59إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ 60لِمِثۡلِ هَٰذَا فَلۡيَعۡمَلِ ٱلۡعَٰمِلُونَ61

पृष्ठभूमि की कहानी
अबू जहल और अन्य मक्का के मूर्तिपूजकों ने पैगंबर (ﷺ) का उपहास किया जब उन्होंने उन्हें ज़क़्क़ूम के बारे में चेतावनी दी, जो नरक की गहराइयों से उगने वाला एक भयानक पेड़ है। उन्होंने कहा, 'नरक में पेड़ कैसे उग सकता है?'
अबू जहल ने अन्य मूर्तिपूजकों से कहा, 'यह ज़क़्क़ूम तो मक्खन के साथ स्वादिष्ट खजूरों से ज़्यादा कुछ नहीं है!' तब आयतें 62-65 अवतरित हुईं, जिनमें कहा गया कि यह पेड़ दिखने में और स्वाद में भयानक है।
जहन्नम वालों का अंजाम
62क्या यह 'सुख' बेहतर सत्कार है या ज़क़्क़ूम का पेड़? 63हमने इसे निश्चित रूप से उन लोगों के लिए एक आज़माइश बनाया है जो ज़ुल्म करते हैं। 64निश्चित रूप से यह एक ऐसा पेड़ है जो जहन्नम की गहराइयों से उगता है, 65जिसके फल शैतानों के सिरों जैसे दिखते हैं। 66गुनहगार यक़ीनन इससे खाएँगे, अपने पेट भरकर। 67फिर इसके अतिरिक्त उन्हें खौलते हुए पेय का मिश्रण दिया जाएगा। 68फिर वे जहन्नम में अपने ठिकाने पर लौटेंगे।
أَذَٰلِكَ خَيۡرٞ نُّزُلًا أَمۡ شَجَرَةُ ٱلزَّقُّومِ 62إِنَّا جَعَلۡنَٰهَا فِتۡنَةٗ لِّلظَّٰلِمِينَ 63إِنَّهَا شَجَرَةٞ تَخۡرُجُ فِيٓ أَصۡلِ ٱلۡجَحِيمِ 64طَلۡعُهَا كَأَنَّهُۥ رُءُوسُ ٱلشَّيَٰطِينِ 65فَإِنَّهُمۡ لَأٓكِلُونَ مِنۡهَا فَمَالُِٔونَ مِنۡهَا ٱلۡبُطُونَ 66ثُمَّ إِنَّ لَهُمۡ عَلَيۡهَا لَشَوۡبٗا مِّنۡ حَمِيمٖ 67ثُمَّ إِنَّ مَرۡجِعَهُمۡ لَإِلَى ٱلۡجَحِيمِ68

अंधानुकरण
69निश्चय ही उन्होंने अपने बाप-दादाओं को गुमराह पाया, 70तो वे उनके पदचिह्नों पर दौड़ पड़े! 71और बेशक उनसे पहले अधिकतर पिछली पीढ़ियाँ गुमराह हो चुकी थीं, 72हालाँकि हमने उनके बीच डराने वाले पहले ही भेज दिए थे। 73तो देखो उन लोगों का क्या अंजाम हुआ जिन्हें डराया गया था। 74लेकिन अल्लाह के चुने हुए बंदों के लिए यह अलग होगा।
إِنَّهُمۡ أَلۡفَوۡاْ ءَابَآءَهُمۡ ضَآلِّينَ 69فَهُمۡ عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِمۡ يُهۡرَعُونَ 70وَلَقَدۡ ضَلَّ قَبۡلَهُمۡ أَكۡثَرُ ٱلۡأَوَّلِينَ 71وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ 72فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُنذَرِينَ 73إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ74
नबी नूह
75बेशक नूह ने हमें पुकारा, और हम क्या ही ख़ूब जवाब देने वाले हैं! 76हमने उसे और उसकी क़ौम को भयानक अज़ाब से बचाया, 77और उसकी औलाद को ही बाक़ी रहने वाला बनाया। 78और हमने बाद की नस्लों में उसके लिए अच्छा ज़िक्र छोड़ा: 79"नूह पर सलाम हो तमाम जहानों में।" 80निश्चित रूप से हम इसी प्रकार सत्कर्म करने वालों को प्रतिफल देते हैं। 81वह वास्तव में हमारे निष्ठावान बंदों में से एक था। 82फिर हमने दूसरों को ग़र्क़ कर दिया।
وَلَقَدۡ نَادَىٰنَا نُوحٞ فَلَنِعۡمَ ٱلۡمُجِيبُونَ 75وَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ 76وَجَعَلۡنَا ذُرِّيَّتَهُۥ هُمُ ٱلۡبَاقِينَ 77وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 78سَلَٰمٌ عَلَىٰ نُوحٖ فِي ٱلۡعَٰلَمِينَ 79إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 80إِنَّهُۥ مِنْ عِبَادِنَا ٱلْمُؤْمِنِينَ 81ثُمَّ أَغۡرَقۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ82
पैगंबर इब्राहिम
83और निःसंदेह उसके मार्ग पर चलने वालों में से एक इब्राहीम था। 84(वह समय) याद करो जब वह अपने रब के पास एक पवित्र हृदय के साथ आया, 85और अपने पिता और अपनी क़ौम से कहा, "तुम किसकी इबादत कर रहे हो?" 86क्या तुम अल्लाह के बजाय झूठे देवताओं को चाहते हो? 87तो फिर तुम सारे जहान के रब से क्या उम्मीद रखते हो? 88फिर उसने तारों की ओर देखा और निश्चय किया। 89फिर उसने कहा, "मैं तो बीमार हूँ।" 90तो वे उससे मुँह फेर कर चले गए। 91फिर वह चुपके से उनकी पूज्य-प्रतिमाओं के पास गया और उपहास करते हुए बोला, "क्या तुम खाते नहीं?" 92तुम्हें क्या हो गया है कि तुम बात नहीं करते? 93फिर वह तेज़ी से उनकी ओर पलटा और अपने दाहिने हाथ से उन पर वार किया। 94फिर उसकी क़ौम क्रोधित होकर उसकी ओर दौड़ती हुई आई। 95उसने तर्क दिया, "तुम उसकी पूजा कैसे कर सकते हो जिसे तुम अपने हाथों से तराशते हो, 96जबकि अल्लाह ही वह है जिसने तुम्हें और जो कुछ तुम करते हो उसे पैदा किया है?" 97उन्होंने कहा, "उसके लिए एक भट्ठी बनाओ, और उसे धधकती आग में फेंक दो।" 98और उन्होंने उसे हानि पहुँचाने का प्रयास किया, परन्तु हमने उन्हें विफल कर दिया।
وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِۦ لَإِبۡرَٰهِيمَ 83إِذۡ جَآءَ رَبَّهُۥ بِقَلۡبٖ سَلِيمٍ 84إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَاذَا تَعۡبُدُونَ 85أَئِفۡكًا ءَالِهَةٗ دُونَ ٱللَّهِ تُرِيدُونَ 86فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ 87فَنَظَرَ نَظۡرَةٗ فِي ٱلنُّجُومِ 88فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٞ 89فَتَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ مُدۡبِرِينَ 90فَرَاغَ إِلَىٰٓ ءَالِهَتِهِمۡ فَقَالَ أَلَا تَأۡكُلُونَ 91مَا لَكُمۡ لَا تَنطِقُونَ 92فَرَاغَ عَلَيۡهِمۡ ضَرۡبَۢا بِٱلۡيَمِينِ 93فَأَقۡبَلُوٓاْ إِلَيۡهِ يَزِفُّونَ 94قَالَ أَتَعۡبُدُونَ مَا تَنۡحِتُونَ 95وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ وَمَا تَعۡمَلُونَ 96قَالُواْ ٱبۡنُواْ لَهُۥ بُنۡيَٰنٗا فَأَلۡقُوهُ فِي ٱلۡجَحِيمِ 97فَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَسۡفَلِينَ98
आयत 98: वह उनके साथ उनके त्योहार पर जाना नहीं चाहते थे।

पृष्ठभूमि की कहानी
इब्राहीम (अ.स.) महानतम पैगंबरों में से एक थे, जिन्होंने अपना जीवन अल्लाह की सेवा में बिताया। जब वे 86 वर्ष के हुए, तो वे संतान प्राप्ति के लिए बहुत उत्सुक थे, इसलिए उन्होंने एक नेक संतान के लिए दुआ की। अंततः, अल्लाह ने उन्हें इस्माईल (अ.स.) से नवाज़ा।

स्वाभाविक रूप से, इब्राहीम (अ.स.) अपने बेटे से पूरे दिल से प्यार करते थे। एक रात, उन्होंने सपने में देखा कि वे अपने इकलौते बेटे (जो अब 13 वर्ष का था) की कुर्बानी दे रहे हैं। उन्होंने यह सपना कुछ बार देखा, इसलिए उन्होंने इस्माईल (अ.स.) से पूछा, 'हमें क्या करना चाहिए?' इस्माईल (अ.स.) ने जवाब दिया, 'जो तुम्हें अल्लाह की तरफ़ से हुक्म दिया गया है, वही करो!'
जब इब्राहीम (अ.स.) और उनके बेटे कुर्बानी के लिए तैयार हुए, तो अल्लाह ने उन्हें पुकारा: 'ऐ इब्राहीम! तुमने पहले ही सपने के अनुसार अमल कर लिया है। अब तुमने अपना दिल पूरी तरह से हमें समर्पित कर दिया है, तो तुम्हारा बेटा तुम्हें वापस लौटाया जाता है!' तब स्वर्ग से एक नर भेड़ भेजी गई और उसकी जगह कुर्बानी के तौर पर पेश की गई। हम हर साल 'ईद अल-अज़हा' के दौरान इस कहानी का सम्मान करते हैं।

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, 'किसकी कुर्बानी दी जाने वाली थी: इस्माईल या इसहाक (अ.स.) की?' संक्षिप्त उत्तर है इस्माईल (अ.स.), जिसके कारण निम्नलिखित हैं। आयतों 100-111 में वर्णित कहानी इब्राहीम (अ.स.) को अपने बेटे की कुर्बानी देने के आदेश के बारे में है। कहानी समाप्त होने के बाद, आयत 112 के अनुसार, इब्राहीम (अ.स.) को दूसरे बेटे, इसहाक (अ.स.) से नवाज़ा गया।

इब्राहीम (अ.स.) को अपने पहले बेटे की कुर्बानी देने का आदेश दिया गया था। इसहाक (अ.स.) उनके दूसरे बेटे थे। कुर्बानी की कहानी मक्का में हुई थी, जहाँ इस्माईल (अ.स.) रहते थे। इसहाक (अ.स.) कभी मक्का नहीं आए।
सूरह हूद (11:71) में, इब्राहीम (अ.स.) की पहली पत्नी सारा को फरिश्तों ने बताया था कि उन्हें इसहाक (अ.स.) नाम का एक बेटा होगा, जो बड़ा होकर याकूब (अ.स.) नाम के एक बेटे का पिता बनेगा। उस समय इब्राहीम (अ.स.) 99 वर्ष के थे। जिस बेटे की कुर्बानी दी जाने वाली थी वह एक युवा था, इसलिए वह इस्माईल (अ.स.) ही होने चाहिए।

ज्ञान की बातें
कुरान में कई नबियों और हस्तियों के नाम गहरे अर्थ रखते हैं जो उनकी मूल भाषाओं जैसे अरामाईक, हिब्रू और प्राचीन मिस्री में निहित हैं। ये अर्थ अक्सर व्यक्ति के गुणों या कहानी को दर्शाते हैं, जिससे उनकी कथा को समझने की एक गहरी परत जुड़ जाती है।
आस्था और आशा के नामों में शामिल हैं: **इब्राहिम** (अ.स.), जिसका अर्थ है 'आदर्श,' और **इशाक** (अ.स.), 'मुस्कुराने वाला।' आतिथ्य और दिव्य उत्तरों से संबंधित नाम हैं **यूसुफ** (अ.स.), 'मेजबानी करने वाला,' और **इस्माईल** (अ.स.), 'ईश्वर सुनता है।'
धैर्य और दृढ़ता नामों में परिलक्षित होती है: **नूह** (अ.स.), 'ठहरने वाला,' और **अय्यूब** (अ.स.), 'नुकसान से प्रभावित,' जो चुनौतियों के माध्यम से उनकी दृढ़ता को उजागर करती है।
अन्य नाम विशिष्ट भूमिकाओं पर जोर देते हैं: **मूसा** (अ.स.) का अर्थ है 'छोटा लड़का/बेटा,' जो उनके प्रारंभिक जीवन की याद दिलाता है, और **दाऊद** (अ.स.) का अर्थ है 'शक्तिशाली व्यक्ति,' जो उनकी शक्ति और अधिकार को दर्शाता है।
**जिब्रील** (अ.स.), 'महान शक्तियों वाला,' और **मरियम** (अ.स.), 'पूजा में समर्पित होने वाली,' जैसे नाम उनकी दिव्य भूमिकाओं और गहरी भक्ति को रेखांकित करते हैं।
अंततः, फ़िरौन और क़ारून सांसारिक अवधारणाओं को दर्शाते हैं। 'फ़िरौन' का अर्थ है 'महान घर,' जो भव्यता का प्रतीक है, जबकि 'क़ारून' का अर्थ है 'धन से लदा हुआ व्यक्ति,' जो उसके चरित्र के सांसारिक केंद्र बिंदु को स्पष्ट करता है।
इब्राहीम, इस्माईल और क़ुर्बानी
99बाद में इब्राहीम ने कहा, "मैं अपने रब की ओर जा रहा हूँ, वह मुझे मार्गदर्शन देगा।" 100ऐ मेरे रब! मुझे एक नेक औलाद प्रदान कर। 101तो हमने उसे एक सहनशील बेटे की खुशखबरी दी। 102फिर जब वह लड़का उसके साथ काम करने की उम्र को पहुँचा, इब्राहीम ने कहा, "ऐ मेरे प्यारे बेटे! मैंने सपने में देखा है कि मैं तुम्हें ज़बह कर रहा हूँ। तो बताओ तुम्हारी क्या राय है?" उसने जवाब दिया, "ऐ मेरे प्यारे अब्बा! जो तुम्हें हुक्म दिया गया है, वही करो। इंशाअल्लाह, तुम मुझे सब्र करने वाला पाओगे।" 103फिर जब उन दोनों ने अल्लाह के हुक्म के आगे सर झुकाया, और इब्राहीम ने उसे उसके माथे के बल लिटा दिया (क़ुर्बानी के लिए), 104हमने उसे पुकारा, "ऐ इब्राहीम!" 105तुम ने सपने को सच कर दिखाया है। निश्चय ही हम नेक काम करने वालों को ऐसे ही बदला देते हैं। 106निःसंदेह वह एक स्पष्ट परीक्षा थी। 107और हमने उसके बेटे को एक बड़ी कुर्बानी के मेमने से बदल दिया। 108और हमने इब्राहीम को बाद की पीढ़ियों में शुभ कीर्ति से नवाज़ा: 109इब्राहीम पर सलाम हो। 110इसी प्रकार हम भलाई करने वालों को प्रतिफल देते हैं। 111वह निःसंदेह हमारे निष्ठावान बंदों में से था। 112फिर हमने उसे इसहाक़ की खुशखबरी दी - एक नबी और निष्ठावानों में से एक। 113हमने उसे और इसहाक़ को भी बरकत दी। उनकी कुछ संतान ने भलाई की, जबकि दूसरों ने स्पष्टतः स्वयं पर अत्याचार किया।
وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَىٰ رَبِّي سَيَهۡدِينِ 99رَبِّ هَبۡ لِي مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ 100فَبَشَّرۡنَٰهُ بِغُلَٰمٍ حَلِيمٖ 101فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ ٱلسَّعۡيَ قَالَ يَٰبُنَيَّ إِنِّيٓ أَرَىٰ فِي ٱلۡمَنَامِ أَنِّيٓ أَذۡبَحُكَ فَٱنظُرۡ مَاذَا تَرَىٰۚ قَالَ يَٰٓأَبَتِ ٱفۡعَلۡ مَا تُؤۡمَرُۖ سَتَجِدُنِيٓ إِن شَآءَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلصَّٰبِرِينَ 102فَلَمَّآ أَسۡلَمَا وَتَلَّهُۥ لِلۡجَبِينِ 103وَنَٰدَيۡنَٰهُ أَن يَٰٓإِبۡرَٰهِيمُ 104قَدۡ صَدَّقۡتَ ٱلرُّءۡيَآۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 105إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡبَلَٰٓؤُاْ ٱلۡمُبِينُ 106وَفَدَيۡنَٰهُ بِذِبۡحٍ عَظِيمٖ 107وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 108سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ 109كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 110إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 111وَبَشَّرۡنَٰهُ بِإِسۡحَٰقَ نَبِيّٗا مِّنَ ٱلصَّٰلِحِينَ 112وَبَٰرَكۡنَا عَلَيۡهِ وَعَلَىٰٓ إِسۡحَٰقَۚ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحۡسِنٞ وَظَالِمٞ لِّنَفۡسِهِۦ مُبِينٞ113
पैगंबर मूसा और पैगंबर हारून
114और हमने मूसा और हारून पर यक़ीनन एहसान किया, 115और उन्हें और उनकी क़ौम को कठोर यातना से बचाया। 116हमने उनकी मदद की तो वही विजयी हुए। 117हमने उन्हें खुली किताब दी, 118और उन्हें सीधे रास्ते की हिदायत दी। 119और हमने बाद की नस्लों में उनके लिए नेक ज़िक्र छोड़ा। 120मूसा और हारून पर सलाम हो। 121बेशक हम एहसान करने वालों को इसी तरह बदला देते हैं। 122यक़ीनन वे हमारे वफ़ादार बंदों में से दो थे।
وَلَقَدۡ مَنَنَّا عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ 114وَنَجَّيۡنَٰهُمَا وَقَوۡمَهُمَا مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ 115وَنَصَرۡنَٰهُمۡ فَكَانُواْ هُمُ ٱلۡغَٰلِبِينَ 116وَءَاتَيۡنَٰهُمَا ٱلۡكِتَٰبَ ٱلۡمُسۡتَبِينَ 117وَهَدَيۡنَٰهُمَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلۡمُسۡتَقِيمَ 118وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِمَا فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 119سَلَٰمٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ 120إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 121إِنَّهُمَا مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ122
पैगंबर इलियास
123और इल्यास अवश्य ही रसूलों में से एक था। 124जब उसने अपनी क़ौम से कहा, "क्या तुम अल्लाह से नहीं डरोगे? 125तुम बा'ल को कैसे पुकारते हो और सबसे उत्तम सृष्टिकर्ता को छोड़ देते हो— 126अल्लाह को, जो तुम्हारा रब है और तुम्हारे पूर्वजों का रब है?" 127लेकिन उन्होंने उसे झुठलाया, अतः वे अवश्य ही पकड़े जाएँगे। 128लेकिन अल्लाह के मुखलिस बंदों के लिए यह भिन्न होगा। 129हमने बाद की पीढ़ियों में उसके लिए नेक नामी छोड़ी: 130"सलाम हो इल्यास पर।" 131बेशक हम एहसान करने वालों को इसी तरह बदला देते हैं। 132वह यकीनन हमारे मोमिन बंदों में से था।
وَإِنَّ إِلۡيَاسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 123إِذۡ قَالَ لِقَوۡمِهِۦٓ أَلَا تَتَّقُونَ 124أَتَدۡعُونَ بَعۡلٗا وَتَذَرُونَ أَحۡسَنَ ٱلۡخَٰلِقِينَ 125ٱللَّهَ رَبَّكُمۡ وَرَبَّ ءَابَآئِكُمُ ٱلۡأَوَّلِينَ 126فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ 127إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 128وَتَرَكۡنَا عَلَيۡهِ فِي ٱلۡأٓخِرِينَ 129سَلَٰمٌ عَلَىٰٓ إِلۡ يَاسِينَ 130إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلۡمُحۡسِنِينَ 131إِنَّهُۥ مِنۡ عِبَادِنَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ132
नबी लूत
133और लूत निःसंदेह रसूलों में से थे। 134याद करो, जब हमने उसे और उसके समस्त परिवार को बचाया, 135सिवाय एक बूढ़ी स्त्री के, जो तबाह होने वालों में से थी। 136फिर हमने शेष को पूरी तरह नष्ट कर दिया। 137तुम मक्कावासी अवश्य उनके खंडहरों से सुबह के वक़्त गुज़रते हो। 138और रात। क्या तुम फिर भी नहीं समझोगे?
وَإِنَّ لُوطٗا لَّمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 133إِذۡ نَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥٓ أَجۡمَعِينَ 134إِلَّا عَجُوزٗا فِي ٱلۡغَٰبِرِينَ 135ثُمَّ دَمَّرۡنَا ٱلۡأٓخَرِينَ 136وَإِنَّكُمۡ لَتَمُرُّونَ عَلَيۡهِم مُّصۡبِحِينَ 137وَبِٱلَّيۡلِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ138
आयत 138: लूत की पत्नी

पृष्ठभूमि की कहानी
पैगंबर यूनुस (अ.स.) ने कई सालों तक अपनी कौम को इस्लाम की दावत दी, लेकिन उन्होंने उनके पैगाम को ठुकरा दिया। जब वे बहुत हताश हो गए, तो उन्होंने उन्हें आने वाले अज़ाब से आगाह किया और फिर अल्लाह की इजाज़त के बिना शहर छोड़कर चले गए।
जब उनकी कौम को अज़ाब आने से पहले अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने अल्लाह से माफ़ी मांगी, और उसने उनकी तौबा कुबूल की।
यूनुस (अ.स.) अपनी बेसब्री के कारण व्हेल के पेट में जा पहुँचे। वे व्हेल के अंदर इतने परेशान थे कि वे कई दिनों तक दुआ करते रहे। अल्लाह ने उनकी दुआएँ कुबूल कीं, और व्हेल ने उन्हें एक खुले किनारे पर छोड़ दिया।
फिर अल्लाह ने एक कद्दू का पौधा उगाया ताकि उन्हें धूप और कीड़ों से पनाह मिल सके। आखिरकार, वे अपनी कौम के पास वापस गए और उन्होंने उनके पैगाम पर ईमान ले आए।

ज्ञान की बातें
आयत 143-144 के अनुसार, एक महत्वपूर्ण सबक जो सीखा जाना चाहिए वह यह है कि नेक अमल हमें मुश्किल समय में बचाते हैं।

पैगंबर यूनुस (अलैहिस्सलाम) इसलिए बचाए गए क्योंकि उन्होंने हमेशा दुआ की, निगले जाने से पहले भी और व्हेल के अंदर रहते हुए भी (21:87)।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हमें उन तीन आदमियों की कहानी सुनाई जो चट्टान खिसकने के बाद एक गुफा में फंस गए थे। आखिरकार, वे तब आज़ाद हो पाए जब उनमें से हर एक ने अल्लाह से अपने एक नेक अमल का ज़िक्र किया।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह भी फरमाया, 'खुशहाली के दिनों में अल्लाह को पहचानो, और वह मुश्किल समय में तुम्हारी देखभाल करेगा।'
पैगंबर यूनुस
139और यूनुस निश्चित रूप से रसूलों में से एक थे। 140स्मरण करो जब वह एक लदे हुए जहाज़ की ओर भागा। 141फिर उसे डूबने से बचाने के लिए उसने (अन्य यात्रियों के साथ) कुर्रा डाला। वह हार गया और उसे समुद्र में फेंक दिया गया। 142फिर व्हेल मछली ने उसे निगल लिया, जबकि वह कसूरवार था। 143यदि वह निरंतर अल्लाह की स्तुति न करता, 144वह निश्चित रूप से उसके पेट में रहता, क़यामत के दिन तक। 145लेकिन हमने उसे खुले तट पर निढाल छोड़ दिया, 146और उसके ऊपर एक कद्दू का पौधा उगा दिया। 147हमने उसे एक लाख या उससे अधिक लोगों की ओर भेजा, 148जिन्होंने फिर ईमान लाया, तो हमने उन्हें एक समय तक लाभ उठाने दिया।
وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ 139إِذۡ أَبَقَ إِلَى ٱلۡفُلۡكِ ٱلۡمَشۡحُونِ 140فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ ٱلۡمُدۡحَضِينَ 141فَٱلۡتَقَمَهُ ٱلۡحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٞ 142فَلَوۡلَآ أَنَّهُۥ كَانَ مِنَ ٱلۡمُسَبِّحِينَ 143لَلَبِثَ فِي بَطۡنِهِۦٓ إِلَىٰ يَوۡمِ يُبۡعَثُونَ 144فَنَبَذۡنَٰهُ بِٱلۡعَرَآءِ وَهُوَ سَقِيمٞ 145وَأَنۢبَتۡنَا عَلَيۡهِ شَجَرَةٗ مِّن يَقۡطِينٖ 146وَأَرۡسَلۡنَٰهُ إِلَىٰ مِاْئَةِ أَلۡفٍ أَوۡ يَزِيدُونَ 147فََٔامَنُواْ فَمَتَّعۡنَٰهُمۡ إِلَىٰ حِينٖ148

पृष्ठभूमि की कहानी
कुछ मूर्तिपूजकों ने दावा किया कि फ़रिश्ते जिन्नों से विवाह के माध्यम से अल्लाह की बेटियाँ थीं!

आयतों 151-154 में, अल्लाह मूर्तिपूजकों की इस बात के लिए आलोचना करते हैं कि वे कहते हैं कि उसकी बेटियाँ हैं, जबकि वे स्वयं बेटियाँ पसंद नहीं करते थे।
इस्लाम में, पुरुष और महिलाएँ दोनों अल्लाह के समक्ष समान हैं।
मूर्ति-पूजकों से प्रश्न
149उनसे पूछिए, 'ऐ नबी', क्या आपके रब के लिए बेटियाँ हैं, जबकि वे अपने लिए बेटे पसंद करते हैं? 150या उनसे पूछिए, क्या हमने फ़रिश्तों को नारियाँ बनाया था उनकी आँखों के सामने? 151निःसंदेह यह उनकी भयानक झूठी बातों में से एक है, यह कहना कि, 152"अल्लाह की संतान है।" वे तो केवल झूठ बोल रहे हैं। 153क्या उसने बेटों के मुकाबले बेटियाँ पसंद की हैं? 154तुम्हें क्या हुआ है? तुम इतने ज़ालिम कैसे हो? 155तो क्या तुम फिर भी होश में नहीं आओगे? 156या तुम्हारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण है? 157तो अपनी किताब हमारे पास लाओ, अगर तुम सच्चे हो! 158उन्होंने तो यह भी दावा किया है कि उसका जिन्नों से कोई रिश्ता है! जबकि जिन्न खुद अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसे लोग अवश्य ही अज़ाब में फँसेंगे। 159अल्लाह पाक है उन बातों से जो वे बयान करते हैं! 160मगर अल्लाह के मुंतख़ब बंदों के लिए ऐसा नहीं होगा। 161बेशक तुम इनकार करने वाले और जो भी 'माबूद' तुम पूजते हो, 162कभी किसी को उसकी राह से गुमराह नहीं कर सकते 163सिवाय उनके जो जहन्नम में जलने वाले हैं।
فَٱسۡتَفۡتِهِمۡ أَلِرَبِّكَ ٱلۡبَنَاتُ وَلَهُمُ ٱلۡبَنُونَ 149أَمۡ خَلَقۡنَا ٱلۡمَلَٰٓئِكَةَ إِنَٰثٗا وَهُمۡ شَٰهِدُونَ 150أَلَآ إِنَّهُم مِّنۡ إِفۡكِهِمۡ لَيَقُولُونَ 151وَلَدَ ٱللَّهُ وَإِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ 152أَصۡطَفَى ٱلۡبَنَاتِ عَلَى ٱلۡبَنِينَ 153مَا لَكُمۡ كَيۡفَ تَحۡكُمُونَ 154أَفَلَا تَذَكَّرُونَ 155أَمۡ لَكُمۡ سُلۡطَٰنٞ مُّبِينٞ 156فَأۡتُواْ بِكِتَٰبِكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ 157وَجَعَلُواْ بَيۡنَهُۥ وَبَيۡنَ ٱلۡجِنَّةِ نَسَبٗاۚ وَلَقَدۡ عَلِمَتِ ٱلۡجِنَّةُ إِنَّهُمۡ لَمُحۡضَرُونَ 158سُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ 159إِلَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 160فَإِنَّكُمۡ وَمَا تَعۡبُدُونَ 161مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ بِفَٰتِنِينَ 162إِلَّا مَنۡ هُوَ صَالِ ٱلۡجَحِيمِ163
फ़रिश्तों का जवाब
164फ़रिश्तों ने जवाब दिया, "हममें से कोई ऐसा नहीं जिसके लिए एक निर्धारित स्थान न हो।" 165"निश्चित रूप से हम ही हैं जो सफ़ें बाँधे हुए हैं।" 166"और निश्चित रूप से हम ही हैं जो उसकी तस्बीह करते हैं।"
وَمَا مِنَّآ إِلَّا لَهُۥ مَقَامٞ مَّعۡلُومٞ 164وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلصَّآفُّونَ 165وَإِنَّا لَنَحۡنُ ٱلۡمُسَبِّحُونَ166
कुरान से पूर्व के मूर्तिपूजक
167बेशक ये मुशरिक कहते थे, 168"काश हमें पहले के लोगों की तरह कोई नसीहत मिलती, 169हम ज़रूर अल्लाह के वफ़ादार बंदे होते।" 170लेकिन 'अब' वे इसका इन्कार करते हैं, तो वे जल्द ही देखेंगे।
وَإِن كَانُواْ لَيَقُولُونَ 167لَوۡ أَنَّ عِندَنَا ذِكۡرٗا مِّنَ ٱلۡأَوَّلِينَ 168لَكُنَّا عِبَادَ ٱللَّهِ ٱلۡمُخۡلَصِينَ 169فَكَفَرُواْ بِهِۦۖ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ170
नबी का समर्थन
171हमारा वचन हमारे बंदों, रसूलों को पहले ही दिया जा चुका है, 172कि उनकी अवश्य सहायता की जाएगी, 173और यह कि हमारी सेनाएँ निश्चित रूप से विजयी होंगी। 174तो, ऐ पैगंबर, उन 'झुठलाने वालों' से कुछ समय के लिए मुँह मोड़ लो। 175तुम देखोगे, और वे भी देखेंगे! 176क्या वे सचमुच हमारी सज़ा को जल्दी लाना चाहते हैं? 177लेकिन जब वह उन पर आ पड़ेगा—तो उन लोगों के लिए वह सुबह कितनी भयानक होगी जिन्हें चेतावनी दी गई थी! 178फिर कुछ समय के लिए उनसे मुँह मोड़ लो। 179तुम देखोगे, और वे भी देखेंगे! 180पाक है तुम्हारा रब—इज़्ज़त और कुव्वत का मालिक—उन बातों से बहुत ऊपर जो वे कहते हैं! 181रसूलों पर सलाम हो। 182और सब तारीफें अल्लाह के लिए हैं जो सारे जहानों का रब है।
وَلَقَدۡ سَبَقَتۡ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا ٱلۡمُرۡسَلِينَ 171إِنَّهُمۡ لَهُمُ ٱلۡمَنصُورُونَ 172وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ 173فَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ 174وَأَبۡصِرۡهُمۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ 175أَفَبِعَذَابِنَا يَسۡتَعۡجِلُونَ 176فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمۡ فَسَآءَ صَبَاحُ ٱلۡمُنذَرِينَ 177وَتَوَلَّ عَنۡهُمۡ حَتَّىٰ حِينٖ 178وَأَبۡصِرۡ فَسَوۡفَ يُبۡصِرُونَ 179سُبۡحَٰنَ رَبِّكَ رَبِّ ٱلۡعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ 180وَسَلَٰمٌ عَلَى ٱلۡمُرۡسَلِينَ 181وَٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ182