Surah 34
Volume 4

Sheba

سَبَأ

سَبَأ

LEARNING POINTS

सीखने के बिंदु

जो लोग अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा नहीं करते (जैसे सबा के लोग), उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

शैतान के मुख्य लक्ष्यों में से एक लोगों को अल्लाह का नाशुकरा बनाना है।

दाऊद और सुलेमान दोनों अल्लाह के शुक्रगुज़ार बंदे थे।

मक्का के मुशरिकों को बताया गया है कि केवल ईमान ही उन्हें अल्लाह के करीब ला सकता है, न कि उनकी दौलत।

मुशरिकों की निंदा की गई है कि उन्होंने नबी को दीवाना कहा, और उन्हें इस दुनिया और आख़िरत में अज़ाब की चेतावनी दी गई है।

जहन्नम में दुष्ट एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगाएंगे।

फ़रिश्ते अल्लाह के वफ़ादार बंदे हैं।

क़यामत के दिन इनकार करने वालों के लिए अल्लाह पर ईमान लाना बहुत देर हो चुकी होगी।

Illustration

अल्लाह की हम्द

1सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, उसी का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है। और आख़िरत में भी उसी के लिए प्रशंसा है। वह हिकमत वाला और बाख़बर है। 2वह जानता है जो कुछ ज़मीन में दाख़िल होता है और जो कुछ उससे निकलता है, और जो कुछ आसमान से उतरता है और जो कुछ उसमें ऊपर जाता है। और वह बहुत मेहरबान और बख़्शने वाला है।

ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي لَهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَهُ ٱلۡحَمۡدُ فِي ٱلۡأٓخِرَةِۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡخَبِيرُ 1يَعۡلَمُ مَا يَلِجُ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَا يَخۡرُجُ مِنۡهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ وَمَا يَعۡرُجُ فِيهَاۚ وَهُوَ ٱلرَّحِيمُ ٱلۡغَفُورُ2

क़यामत का इनकार

3काफ़िर कहते हैं, "क़यामत की घड़ी हम पर कभी नहीं आएगी।" कहो, हे नबी, "हाँ—मेरे रब की क़सम, जो ग़ैब (अदृश्य) का जानने वाला है—वह तुम पर निश्चित रूप से आएगी! आसमानों में या ज़मीन में उससे एक ज़र्रे के बराबर भी कुछ छिपा नहीं है; और न उससे कुछ भी छोटा या बड़ा, बल्कि वह एक पूर्ण ग्रंथ में अंकित है।" 4ताकि वह उन लोगों को प्रतिफल दे जो ईमान लाए और नेक अमल किए। उनके लिए क्षमा और बेहतरीन रिज़्क़ (आजीविका) है। 5और जो हमारी आयतों को चुनौती देने में प्रयासरत रहते हैं, उन्हें भयानक पीड़ा की सबसे कठोर सज़ा मिलेगी। 6और जिन्हें इल्म (ज्ञान) दिया गया है, वे साफ़-साफ़ देखते हैं कि जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम पर (हे नबी) नाज़िल किया गया है, वह सत्य है, और वह अल-अज़ीज़ (सर्वशक्तिमान), अल-हमीद (प्रशंसा के योग्य) के मार्ग की ओर मार्गदर्शन करता है।

وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَأۡتِينَا ٱلسَّاعَةُۖ قُلۡ بَلَىٰ وَرَبِّي لَتَأۡتِيَنَّكُمۡ عَٰلِمِ ٱلۡغَيۡبِۖ لَا يَعۡزُبُ عَنۡهُ مِثۡقَالُ ذَرَّةٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَآ أَصۡغَرُ مِن ذَٰلِكَ وَلَآ أَكۡبَرُ إِلَّا فِي كِتَٰبٖ مُّبِينٖ 3لِّيَجۡزِيَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِۚ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَرِزۡقٞ كَرِيم 4وَٱلَّذِينَ سَعَوۡ فِيٓ ءَايَٰتِنَا مُعَٰجِزِينَ أُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٞ مِّن رِّجۡزٍ أَلِيمٞ 5وَيَرَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ إِلَيۡكَ مِن رَّبِّكَ هُوَ ٱلۡحَقَّ وَيَهۡدِيٓ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَمِيدِ6

झुठलाने वालों को चेतावनी

7काफ़िर (आपस में मज़ाक उड़ाते हुए) कहते हैं, 'क्या हम तुम्हें एक ऐसे आदमी को दिखाएँ जो दावा करता है कि तुम्हारे शरीर के पूरी तरह गल-सड़ जाने के बाद तुम्हें फिर से उठाया जाएगा?' 8'क्या उसने अल्लाह पर झूठ गढ़ा है? या वह पागल है?' वास्तव में, जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते, वे सज़ा की ओर बढ़ रहे हैं और (सत्य से) बहुत दूर जा चुके हैं। 9तो क्या वे अपने चारों ओर के विशाल आकाश और धरती को नहीं देखते? यदि हम चाहते, तो हम उन्हें धरती में धँसा देते, या उन पर आकाश से (घातक) टुकड़े गिरा देते। निश्चय ही इसमें हर उस बंदे के लिए एक निशानी है जो (हमेशा) अल्लाह की ओर रुजू करता है।

وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ هَلۡ نَدُلُّكُمۡ عَلَىٰ رَجُلٖ يُنَبِّئُكُمۡ إِذَا مُزِّقۡتُمۡ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمۡ لَفِي خَلۡقٖ جَدِيدٍ 7أَفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَم بِهِۦ جِنَّةُۢۗ بَلِ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ فِي ٱلۡعَذَابِ وَٱلضَّلَٰلِ ٱلۡبَعِيدِ 8أَفَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَىٰ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۚ إِن نَّشَأۡ نَخۡسِفۡ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضَ أَوۡ نُسۡقِطۡ عَلَيۡهِمۡ كِسَفٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّكُلِّ عَبۡدٖ مُّنِيب9

अल्लाह की नेमतें दाऊद पर

10निश्चित रूप से हमने दाऊद को अपनी ओर से एक बड़ा फज़ल अता किया, (यह) आदेश देते हुए: 'हे पहाड़ों! उसके साथ (हमारी) तस्बीह करो! और पक्षियों को भी।' और हमने उसके लिए लोहे को नरम कर दिया, 11यह हिदायत देते हुए: 'लंबे-लंबे कवच बनाओ, और कड़ियों को ठीक माप से जोड़ो। और नेक अमल करो, ऐ दाऊद के परिवार!' जो तुम करते हो, मैं उसे निश्चित रूप से देख रहा हूँ।

وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ مِنَّا فَضۡلٗاۖ يَٰجِبَالُ أَوِّبِي مَعَهُۥ وَٱلطَّيۡرَۖ وَأَلَنَّا لَهُ ٱلۡحَدِيدَ 10أَنِ ٱعۡمَلۡ سَٰبِغَٰتٖ وَقَدِّرۡ فِي ٱلسَّرۡدِۖ وَٱعۡمَلُواْ صَٰلِحًاۖ إِنِّي بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِير11

अल्लाह की सुलेमान पर नियमतें

12और हमने सुलेमान के लिए हवा को वश में कर दिया; उसकी सुबह की यात्रा एक महीने का सफर थी, और उसकी शाम की यात्रा भी। और हमने उसके लिए पिघले हुए तांबे का एक स्रोत बहा दिया। और कुछ जिन्नों को उसके रब की अनुमति से उसके लिए काम करने को लगाया। और उनमें से जिसने भी हमारे हुक्म की नाफरमानी की, हमने उसे आग के अज़ाब का मज़ा चखाया। 13वे उसके लिए वह सब कुछ बनाते थे जो वह चाहता था - महल, मूर्तियाँ, हौज़ों जितनी बड़ी थालियाँ, और ज़मीन में गड़ी हुई विशाल देगें। हमने हुक्म दिया: 'शुक्रगुज़ारी के साथ काम करो, ऐ दाऊद के घराने!' 'मेरे बंदों में से बहुत कम ही शुक्रगुज़ार होते हैं।' 14अंत में, जब सुलेमान की मृत्यु का हमारा हुक्म आया, तो उन जिन्नों को पता नहीं चला कि वह मर चुका था, जब तक कि दीमक ने उसकी लाठी को खा नहीं लिया। तो जब उसका शरीर गिरा, तो जिन्नों को एहसास हुआ कि अगर वे ग़ैब को जानते होते तो वे ऐसी अपमानजनक सेवा जारी नहीं रखते।

وَلِسُلَيۡمَٰنَ ٱلرِّيحَ غُدُوُّهَا شَهۡرٞ وَرَوَاحُهَا شَهۡرٞۖ وَأَسَلۡنَا لَهُۥ عَيۡنَ ٱلۡقِطۡرِۖ وَمِنَ ٱلۡجِنِّ مَن يَعۡمَلُ بَيۡنَ يَدَيۡهِ بِإِذۡنِ رَبِّهِۦۖ وَمَن يَزِغۡ مِنۡهُمۡ عَنۡ أَمۡرِنَا نُذِقۡهُ مِنۡ عَذَابِ ٱلسَّعِيرِ 12يَعۡمَلُونَ لَهُۥ مَا يَشَآءُ مِن مَّحَٰرِيبَ وَتَمَٰثِيلَ وَجِفَانٖ كَٱلۡجَوَابِ وَقُدُورٖ رَّاسِيَٰتٍۚ ٱعۡمَلُوٓاْ ءَالَ دَاوُۥدَ شُكۡرٗاۚ وَقَلِيلٞ مِّنۡ عِبَادِيَ ٱلشَّكُورُ 13فَلَمَّا قَضَيۡنَا عَلَيۡهِ ٱلۡمَوۡتَ مَا دَلَّهُمۡ عَلَىٰ مَوۡتِهِۦٓ إِلَّا دَآبَّةُ ٱلۡأَرۡضِ تَأۡكُلُ مِنسَأَتَهُۥۖ فَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ ٱلۡجِنُّ أَن لَّوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ ٱلۡغَيۡبَ مَا لَبِثُواْ فِي ٱلۡعَذَابِ ٱلۡمُهِينِ14

BACKGROUND STORY

पृष्ठभूमि की कहानी

सुलेमान अल्लाह की नेमतों के लिए बहुत आभारी थे। नीचे दिए गए आयत 15-19 उन लोगों के एक समूह के बारे में बात करते हैं जिन्होंने अल्लाह की सभी कृपाओं के लिए उसका शुक्रिया अदा नहीं किया। सबा के लोग सदियों से यमन में रहते थे। अल्लाह ने उन्हें अच्छी ज़मीन, पानी और बाग़ों से नवाज़ा। लेकिन उन्होंने अल्लाह का इनकार किया और उसका शुक्रिया अदा करने से इनकार कर दिया, इसलिए उनका बाँध टूट गया, जिससे उनकी संपत्तियाँ नष्ट हो गईं और उन्हें अलग-अलग जगहों पर जाना पड़ा। उनमें से कुछ पैगंबर के जन्म से बहुत पहले मदीना में रहे।

SIDE STORY

छोटी कहानी

सूरह 105 में, हम 'अम्र इब्न 'आमनेर के बारे में पढ़ते हैं, जो शेबा में उसके बांध के नष्ट होने से पहले रहता था। एक दिन वह पहाड़ पर गया और महसूस किया कि बांध कुछ दिनों में टूटने वाला है। उसने इसे गुप्त रखा और शहर छोड़ने से पहले अपना घर और ज़मीन बेचने की एक बुरी योजना बनाई। उसने अपने बेटे से कहा, 'जब हम कल शहर की सभा में जाएंगे, तो मैं तुम्हें एक गिलास पानी देने के लिए कहूँगा। मेरी बात मत सुनना। जब मैं तुमसे दोबारा पूछूँ, तो मैं चाहता हूँ कि तुम गुस्सा हो जाओ और मुझे थप्पड़ मारो!' उसके बेटे ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन अंततः योजना पर सहमत हो गया। जब 'अम्र को थप्पड़ पड़ा, तो उसने बहुत गुस्सा होने का नाटक किया और अपने बेटे को जान से मारने की धमकी दी। लोगों ने उससे ऐसा न करने की विनती की। अंत में उसने कहा, 'ठीक है! लेकिन मैं ऐसे शहर में नहीं रहूँगा जहाँ मुझे मेरे अपने बेटे ने अपमानित किया हो।' उन्होंने उसका घर और ज़मीन खरीदने की पेशकश की। उसने कहा, 'ठीक है, लेकिन आपको आज ही मुझे भुगतान करना होगा इससे पहले कि मैं अपना मन बदलूँ।' तो, उन्होंने उसे सोने में भुगतान किया। फिर वह अपने परिवार को, अपने बेटे सहित, सारे सोने के साथ ले गया और रात भर में, जब सब सो रहे थे, चला गया। दो दिन बाद बांध टूट गया, जिससे शेबा के सभी घर और खेत नष्ट हो गए। (इमाम इब्न कसीर द्वारा दर्ज)

Illustration

अल्लाह की सबा पर نعمتें: १) संसाधन

15निश्चय ही सबा की क़ौम के लिए उनके वतन में एक निशानी थी: दो बाग़ - एक दाहिनी ओर और दूसरा बाईं ओर। उनसे कहा गया: 'अपने रब के दिए हुए रिज़्क़ से खाओ और उसका शुक्र अदा करो। तुम्हारे पास एक अच्छी ज़मीन है और एक बख्शने वाला रब है।' 16मगर उन्होंने मुँह फेर लिया। तो हमने उन पर एक भयानक बाढ़ भेजी, और उनके बाग़ों को दो ऐसे बाग़ों से बदल दिया जो कड़वे फल, बेकार झाड़ियाँ और कुछ कंटीले पेड़ पैदा करते थे। 17इस तरह हमने उन्हें उनकी नाशुक्री का बदला दिया। क्या हम किसी को इस तरह सज़ा देते हैं सिवाय नाशुक्रे के?

لَقَدۡ كَانَ لِسَبَإٖ فِي مَسۡكَنِهِمۡ ءَايَةٞۖ جَنَّتَانِ عَن يَمِينٖ وَشِمَالٖۖ كُلُواْ مِن رِّزۡقِ رَبِّكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لَهُۥۚ بَلۡدَةٞ طَيِّبَةٞ وَرَبٌّ غَفُورٞ 15فَأَعۡرَضُواْ فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ سَيۡلَ ٱلۡعَرِمِ وَبَدَّلۡنَٰهُم بِجَنَّتَيۡهِمۡ جَنَّتَيۡنِ ذَوَاتَيۡ أُكُلٍ خَمۡطٖ وَأَثۡلٖ وَشَيۡءٖ مِّن سِدۡرٖ قَلِيل 16ذَٰلِكَ جَزَيۡنَٰهُم بِمَا كَفَرُواْۖ وَهَلۡ نُجَٰزِيٓ إِلَّا ٱلۡكَفُورَ17

WORDS OF WISDOM

ज्ञान की बातें

कोई पूछ सकता है, 'यदि अल्लाह ने उनकी यात्रा आसान कर दी थी, तो वे इसे कठिन क्यों बनाना चाहते थे?' इसका जवाब यह है कि लोग आरामदायक जीवन से ऊब जाते हैं, इसलिए कभी-कभी वे बदलाव के लिए कुछ चुनौतियों और रोमांच के साथ इसे और दिलचस्प बनाना चाहते हैं। कल्पना कीजिए कि यदि आपकी पसंदीदा टीम सालों तक हर एक खेल जीतती रहे; इसमें मज़ा कहाँ है? कुरान (2:61) में मूसा अलैहिस्सलाम की कौम के साथ भी ऐसा ही हुआ था। उन्होंने उस अद्भुत भोजन के बारे में शिकायत की जो अल्लाह उन्हें हर दिन आसमान से भेजते थे - बटेर (मुर्गियों से छोटे पक्षी) और शहद जैसी मिठाइयाँ। उन्होंने कहा, 'हम इस भोजन से ऊब गए हैं। क्या हमें इसके बजाय कुछ प्याज और लहसुन मिल सकते हैं?' इसी तरह, मुस्लिम स्पेन में अल-मुअतमिद नाम का एक शासक था। सालों तक, उसकी पत्नी महल में एक शानदार जीवन जीती रही। एक दिन, उसने उससे कहा, 'मैं महंगे कालीनों पर चलकर ऊब गई हूँ। मैं कीचड़ में चलना चाहती हूँ!' तो उसने अपने नौकरों को बगीचे में उसके लिए कीचड़ का एक कुंड बनाने का आदेश दिया।

शेबा पर अल्लाह की नेमतें 2) महफूज़ सफर

18हमने उनके और उन बस्तियों के बीच, जिन्हें हमने बरकत दी थी, बहुत-सी ज़ाहिरी बस्तियाँ रख दी थीं जो एक-दूसरे से मिली हुई थीं। और हमने उनके बीच यात्रा की दूरियाँ निर्धारित की थीं, 'यह कहते हुए,' 'उनमें दिन और रात सुरक्षित रूप से यात्रा करो।' 19लेकिन उन्होंने कहा, 'हमारे रब! हमारी यात्राओं की दूरियों को लंबा कर दे,' और उन्होंने अपने आप पर ज़ुल्म किया। तो हमने उन्हें एक मिसाल बना दिया, और उन्हें हर जगह छिन्न-भिन्न कर दिया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो धैर्यवान और कृतज्ञ हैं।

وَجَعَلۡنَا بَيۡنَهُمۡ وَبَيۡنَ ٱلۡقُرَى ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَا قُرٗى ظَٰهِرَةٗ وَقَدَّرۡنَا فِيهَا ٱلسَّيۡرَۖ سِيرُواْ فِيهَا لَيَالِيَ وَأَيَّامًا ءَامِنِينَ 18فَقَالُواْ رَبَّنَا بَٰعِدۡ بَيۡنَ أَسۡفَارِنَا وَظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَحَادِيثَ وَمَزَّقۡنَٰهُمۡ كُلَّ مُمَزَّقٍۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّكُلِّ صَبَّارٖ شَكُورٖ19

BACKGROUND STORY

पृष्ठभूमि की कहानी

अल्लाह ने हमें एक उद्देश्य से पैदा किया है - उसकी इबादत करने और उसका शुक्र अदा करने के लिए। हम दौलत के लिए सदक़ा करके उसका शुक्र अदा करते हैं। हम सेहत के लिए रोज़ा रखकर उसका शुक्र अदा करते हैं। हम हर चीज़ के लिए नमाज़ अदा करके उसका शुक्र अदा करते हैं, और इसी तरह। अब, जब शैतान को अल्लाह की रहमत से निकाल दिया गया, तो उसका नाम इब्लीस हो गया, जिसका अर्थ है 'वह जिसने अल्लाह की रहमत से उम्मीद खो दी'। उसने इंसानों को गुमराह करने का वादा किया, उन्हें अल्लाह का नाशुकरा बनाने का। सूरह अल-आराफ 7:16-17 के अनुसार, उसने अल्लाह से कहा, 'चूँकि तूने मुझे गुमराह किया, मैं तेरी सीधी राह पर उनके लिए घात लगाकर बैठूँगा। फिर मैं उनके आगे से, उनके पीछे से, उनके दाएँ से और उनके बाएँ से उन पर हमला करूँगा, और तू उनमें से ज़्यादातर को नाशुकरा पाएगा।' अगले अंश में, अल्लाह हमें बताता है कि इब्लीस का वादा सच हो गया है, क्योंकि बहुत से लोगों ने उसकी शैतानी वसवसों पर अमल किया है।

शैतान का वादा

20बेशक इब्लीस का उनके बारे में किया गया वादा सच हो गया है, तो वे सब उसका अनुसरण करते हैं, सिवाय सच्चे ईमान वालों के एक समूह के। 21उसका उन पर कोई अधिकार नहीं है, बल्कि हमारा उद्देश्य केवल उन लोगों को अलग करना है जो आख़िरत पर ईमान लाते हैं, उनसे जो उसके बारे में संदेह में हैं। और तुम्हारा रब हर चीज़ पर निगहबान है।

وَلَقَدۡ صَدَّقَ عَلَيۡهِمۡ إِبۡلِيسُ ظَنَّهُۥ فَٱتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِيقٗا مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ 20وَمَا كَانَ لَهُۥ عَلَيۡهِم مِّن سُلۡطَٰنٍ إِلَّا لِنَعۡلَمَ مَن يُؤۡمِنُ بِٱلۡأٓخِرَةِ مِمَّنۡ هُوَ مِنۡهَا فِي شَكّٖۗ وَرَبُّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٍ حَفِيظٞ21

Illustration

बेबस मूर्तियाँ

22कहो, 'हे नबी,' 'अल्लाह के सिवा तुम जिन 'झूठे पूज्यों' का दावा करते हो, उन्हें पुकारो। वे आकाशों और पृथ्वी में एक अणु के बराबर भी किसी चीज़ के मालिक नहीं हैं, और उनका उनमें कोई साझा नहीं है। उनमें से कोई भी उसका सहायक नहीं है।' 23उसके पास (परलोक में) कोई भी सिफ़ारिश काम नहीं आएगी, सिवाय उनके जिन्हें उसने अनुमति दी हो। जब उनके दिलों से (क़यामत का) भय हट जाएगा (क्योंकि उन्हें बोलने की अनुमति मिल गई होगी), तो वे (प्रसन्नतापूर्वक) फ़रिश्तों से पूछेंगे, 'तुम्हारे रब ने (अभी-अभी) क्या कहा है?' फ़रिश्ते उत्तर देंगे, 'सत्य! और वह सर्वोच्च, महान है।'

قُلِ ٱدۡعُواْ ٱلَّذِينَ زَعَمۡتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ لَا يَمۡلِكُونَ مِثۡقَالَ ذَرَّةٖ فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَلَا فِي ٱلۡأَرۡضِ وَمَا لَهُمۡ فِيهِمَا مِن شِرۡكٖ وَمَا لَهُۥ مِنۡهُم مِّن ظَهِير 22وَلَا تَنفَعُ ٱلشَّفَٰعَةُ عِندَهُۥٓ إِلَّا لِمَنۡ أَذِنَ لَهُۥۚ حَتَّىٰٓ إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمۡ قَالُواْ مَاذَا قَالَ رَبُّكُمۡۖ قَالُواْ ٱلۡحَقَّۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِيُّ ٱلۡكَبِيرُ23

बुत-परस्तों से सवाल

24हे नबी, उनसे पूछो, 'तुम्हें आसमानों और ज़मीन से रोज़ी कौन देता है?' कहो, 'अल्लाह!' अब, निश्चित रूप से हम दोनों में से एक गिरोह हिदायत पर है और दूसरा खुली गुमराही में है। 25कहो, 'तुमसे हमारे गुनाहों के बारे में नहीं पूछा जाएगा, और हमसे तुम्हारे कर्मों के बारे में नहीं पूछा जाएगा।' 26कहो, 'हमारा रब हमें इकट्ठा करेगा, फिर वह हमारे बीच सच्चाई के साथ फैसला करेगा। वही सर्वज्ञ निर्णायक है।' 27कहो, 'मुझे वे 'झूठे पूज्य' दिखाओ जिन्हें तुमने उसके साथ शरीक ठहराया है। हरगिज़ नहीं! बल्कि, वही 'अकेला' अल्लाह है--अजेय और हिकमत वाला।'

قُلۡ مَن يَرۡزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ قُلِ ٱللَّهُۖ وَإِنَّآ أَوۡ إِيَّاكُمۡ لَعَلَىٰ هُدًى أَوۡ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِين 24قُل لَّا تُسۡ‍َٔلُونَ عَمَّآ أَجۡرَمۡنَا وَلَا نُسۡ‍َٔلُ عَمَّا تَعۡمَلُونَ 25قُلۡ يَجۡمَعُ بَيۡنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ يَفۡتَحُ بَيۡنَنَا بِٱلۡحَقِّ وَهُوَ ٱلۡفَتَّاحُ ٱلۡعَلِيمُ 26قُلۡ أَرُونِيَ ٱلَّذِينَ أَلۡحَقۡتُم بِهِۦ شُرَكَآءَۖ كَلَّاۚ بَلۡ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ27

क़यामत के दिन की चेतावनी

28हमने आपको (ऐ पैगंबर) केवल शुभ-सूचना देने वाला और समस्त मानवजाति के लिए चेतावनी देने वाला बनाकर भेजा है, लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते। 29और वे (मज़ाक उड़ाते हुए) पूछते हैं, 'यह धमकी कब पूरी होगी, अगर तुम सच्चे हो?' 30कह दीजिए, ऐ पैगंबर, 'तुम्हारे लिए एक दिन मुकर्रर किया जा चुका है, जिसे तुम एक पल के लिए भी न तो टाल सकते हो और न ही आगे बढ़ा सकते हो।'

وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ إِلَّا كَآفَّةٗ لِّلنَّاسِ بَشِيرٗا وَنَذِيرٗا وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ 28وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ 29قُل لَّكُم مِّيعَادُ يَوۡمٖ لَّا تَسۡتَ‍ٔۡخِرُونَ عَنۡهُ سَاعَةٗ وَلَا تَسۡتَقۡدِمُونَ30

गुमराह करने वाले बनाम गुमराह होने वाले

31काफ़िर कहते हैं, 'हम इस क़ुरआन पर और न ही इससे पहले आई किसी किताब पर कभी ईमान लाएँगे।' काश तुम देख पाते जब ज़ालिमों को उनके रब के सामने रोका जाएगा, एक-दूसरे पर इल्ज़ाम लगाते हुए! कमज़ोर अनुयायी घमंडी नेताओं से कहेंगे, 'अगर तुम न होते, तो हम यक़ीनन ईमान वाले होते।' 32घमंडी अनुयायियों को जवाब देंगे, 'क्या हमने तुम्हें हिदायत से रोका था जब वह तुम्हारे पास आ चुकी थी? बल्कि तुम ख़ुद ही बुरे थे।' 33अनुयायी घमंडियों से कहेंगे, 'नहीं! यह सब तुम्हारी दिन-रात की 'बुरी' साज़िशों के कारण था जबकि तुम हमें अल्लाह का इनकार करने और दूसरों को उसका शरीक ठहराने का हुक्म देते थे।' वे सब अपनी पछतावे को छिपाएँगे जब वे अज़ाब देखेंगे। और हम काफ़िरों की गर्दनों में ज़ंजीरें डाल देंगे। क्या उन्हें उसी का बदला नहीं दिया जाएगा जो वे करते थे?

وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن نُّؤۡمِنَ بِهَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَلَا بِٱلَّذِي بَيۡنَ يَدَيۡهِۗ وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذِ ٱلظَّٰلِمُونَ مَوۡقُوفُونَ عِندَ رَبِّهِمۡ يَرۡجِعُ بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٍ ٱلۡقَوۡلَ يَقُولُ ٱلَّذِينَ ٱسۡتُضۡعِفُواْ لِلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُواْ لَوۡلَآ أَنتُمۡ لَكُنَّا مُؤۡمِنِينَ 31قَالَ ٱلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُواْ لِلَّذِينَ ٱسۡتُضۡعِفُوٓاْ أَنَحۡنُ صَدَدۡنَٰكُمۡ عَنِ ٱلۡهُدَىٰ بَعۡدَ إِذۡ جَآءَكُمۖ بَلۡ كُنتُم مُّجۡرِمِينَ 32وَقَالَ ٱلَّذِينَ ٱسۡتُضۡعِفُواْ لِلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُواْ بَلۡ مَكۡرُ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ إِذۡ تَأۡمُرُونَنَآ أَن نَّكۡفُرَ بِٱللَّهِ وَنَجۡعَلَ لَهُۥٓ أَندَادٗاۚ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَۚ وَجَعَلۡنَا ٱلۡأَغۡلَٰلَ فِيٓ أَعۡنَاقِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۖ هَلۡ يُجۡزَوۡنَ إِلَّا مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ33

घमंडी अभिजात

34जब भी हमने किसी बस्ती में कोई चेतावनी देने वाला भेजा, तो उसके ऐश-परस्त सरदारों ने कहा, 'हम तो उस चीज़ को बिल्कुल नहीं मानते जिसके साथ तुम भेजे गए हो।' 35और उन्होंने कहा, 'हम माल और औलाद में ईमान वालों से बहुत ज़्यादा हैं, और हमें कभी अज़ाब नहीं दिया जाएगा।' 36कहो, 'ऐ नबी, निश्चित रूप से मेरा रब ही है जो जिसे चाहता है, रोज़ी फैलाकर देता है और जिसे चाहता है, तंग कर देता है। लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते।' 37तुम्हारा माल और तुम्हारी औलाद ऐसी चीज़ें नहीं हैं जो तुम्हें हमारे निकट कर दें। लेकिन जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म किए, उनके लिए उनके कर्मों का दुगुना बदला होगा, और वे ऊँचे महलों में सुरक्षित होंगे। 38और जो लोग हमारी आयतों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, वे अज़ाब में जकड़े रहेंगे। 39कहो, 'ऐ नबी,' 'निश्चित रूप से मेरा रब ही है जो अपने बंदों में से जिसे चाहता है, उसे खुली या तंग रोज़ी देता है। और तुम जो कुछ भी (अल्लाह की राह में) खर्च करते हो, वह उसका बदला देता है। और वह सबसे अच्छा रोज़ी देने वाला है।'

وَمَآ أَرۡسَلۡنَا فِي قَرۡيَةٖ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوهَآ إِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ 34وَقَالُواْ نَحۡنُ أَكۡثَرُ أَمۡوَٰلٗا وَأَوۡلَٰدٗا وَمَا نَحۡنُ بِمُعَذَّبِينَ 35قُلۡ إِنَّ رَبِّي يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ 36وَمَآ أَمۡوَٰلُكُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُكُم بِٱلَّتِي تُقَرِّبُكُمۡ عِندَنَا زُلۡفَىٰٓ إِلَّا مَنۡ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَأُوْلَٰٓئِكَ لَهُمۡ جَزَآءُ ٱلضِّعۡفِ بِمَا عَمِلُواْ وَهُمۡ فِي ٱلۡغُرُفَٰتِ ءَامِنُونَ 37وَٱلَّذِينَ يَسۡعَوۡنَ فِيٓ ءَايَٰتِنَا مُعَٰجِزِينَ أُوْلَٰٓئِكَ فِي ٱلۡعَذَابِ مُحۡضَرُونَ 38قُلۡ إِنَّ رَبِّي يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦ وَيَقۡدِرُ لَهُۥۚ وَمَآ أَنفَقۡتُم مِّن شَيۡءٖ فَهُوَ يُخۡلِفُهُۥۖ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلرَّٰزِقِينَ39

बंदे और माबूद

40और जिस दिन वह उन सबको इकट्ठा करेगा, फिर फ़रिश्तों से पूछेगा, 'क्या ये लोग तुम्हारी इबादत करते थे?' 41वे कहेंगे, 'तू पाक है! हम तेरे ही वफ़ादार हैं, न कि उनके। बल्कि वे तो जिन्नों की पैरवी करते थे, और उनमें से ज़्यादातर उन पर ईमान रखते थे।' 42तो आज तुम एक-दूसरे को न तो कोई लाभ पहुँचा सकते हो और न ही कोई बचाव कर सकते हो। और हम उन ज़ालिमों से कहेंगे, 'आग के अज़ाब का मज़ा चखो, जिसे तुम झुठलाया करते थे।'

وَيَوۡمَ يَحۡشُرُهُمۡ جَمِيعٗا ثُمَّ يَقُولُ لِلۡمَلَٰٓئِكَةِ أَهَٰٓؤُلَآءِ إِيَّاكُمۡ كَانُواْ يَعۡبُدُونَ 40قَالُواْ سُبۡحَٰنَكَ أَنتَ وَلِيُّنَا مِن دُونِهِمۖ بَلۡ كَانُواْ يَعۡبُدُونَ ٱلۡجِنَّۖ أَكۡثَرُهُم بِهِم مُّؤۡمِنُونَ 41فَٱلۡيَوۡمَ لَا يَمۡلِكُ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٖ نَّفۡعٗا وَلَا ضَرّٗا وَنَقُولُ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ ذُوقُواْ عَذَابَ ٱلنَّارِ ٱلَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ42

मूर्ति-पूजकों की प्रतिक्रिया

43जब हमारी स्पष्ट आयतें उन्हें सुनाई जाती हैं, तो वे कहते हैं, 'यह तो बस एक आदमी है जो तुम्हें उन चीज़ों से रोकना चाहता है जिनकी तुम्हारे बाप-दादा पूजा करते थे।' और वे यह भी कहते हैं, 'यह क़ुरआन तो बस एक गढ़ा हुआ झूठ है।' और जब उनके पास सत्य आ जाता है, तो काफ़िर उसके बारे में कहते हैं, 'यह तो केवल खुला जादू है।' 44वे ऐसा कहते हैं, जबकि हमने उन्हें कोई ऐसी किताबें नहीं दी थीं जिन्हें वे पढ़ते, और तुमसे पहले हमने उनके पास कोई सचेतक नहीं भेजा था, हे पैगंबर। 45उनसे पहले जो नष्ट किए गए, उन्होंने भी झुठलाया था – और 'इन मक्कावासियों' के पास तो उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं है जो हमने उनसे पहले वालों को दिया था। लेकिन जब उन्होंने मेरे रसूलों को झुठलाया, तो मेरी प्रतिक्रिया कितनी कठोर थी!

وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا بَيِّنَٰتٖ قَالُواْ مَا هَٰذَآ إِلَّا رَجُلٞ يُرِيدُ أَن يَصُدَّكُمۡ عَمَّا كَانَ يَعۡبُدُ ءَابَآؤُكُمۡ وَقَالُواْ مَا هَٰذَآ إِلَّآ إِفۡكٞ مُّفۡتَرٗىۚ وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لِلۡحَقِّ لَمَّا جَآءَهُمۡ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ مُّبِينٞ 43وَمَآ ءَاتَيۡنَٰهُم مِّن كُتُبٖ يَدۡرُسُونَهَاۖ وَمَآ أَرۡسَلۡنَآ إِلَيۡهِمۡ قَبۡلَكَ مِن نَّذِير 44وَكَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ وَمَا بَلَغُواْ مِعۡشَارَ مَآ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ فَكَذَّبُواْ رُسُلِيۖ فَكَيۡفَ كَانَ نَكِيرِ45

मक्का के मूर्तिपूजकों को उपदेश

46कहो, 'हे नबी,' 'मैं तुम्हें 'केवल' एक बात की नसीहत देता हूँ: अल्लाह की खातिर खड़े हो जाओ - दो-दो करके या अकेले-अकेले - फिर इस पर विचार करो। तुम्हारा साथी पागल नहीं है। वह तो तुम्हें एक कठोर अज़ाब के आने से पहले केवल एक चेतावनी देने वाला है।' 47कहो, 'यदि मैंने तुमसे इस संदेश के लिए कभी कोई शुल्क माँगा हो, तो वह तुम ही रख लो। मेरा प्रतिफल तो केवल अल्लाह के पास है। और वह हर चीज़ पर गवाह है।' 48कहो, 'निश्चित रूप से मेरा रब सत्य को भेजता है। वह सभी अनदेखी चीज़ों का जानने वाला है।' 49कहो, 'सत्य आ गया है, और असत्य मिट जाएगा, कभी वापस नहीं आएगा।' 50कहो, 'यदि मैं भटक जाऊँ, तो यह मेरा ही नुकसान है। और यदि मैं मार्गदर्शन पाता हूँ, तो यह 'केवल' उसी के कारण है जो मेरा रब मुझ पर प्रकट करता है। वह निश्चित रूप से सब कुछ सुनता है और 'हमेशा' करीब है।'

قُلۡ إِنَّمَآ أَعِظُكُم بِوَٰحِدَةٍۖ أَن تَقُومُواْ لِلَّهِ مَثۡنَىٰ وَفُرَٰدَىٰ ثُمَّ تَتَفَكَّرُواْۚ مَا بِصَاحِبِكُم مِّن جِنَّةٍۚ إِنۡ هُوَ إِلَّا نَذِيرٞ لَّكُم بَيۡنَ يَدَيۡ عَذَابٖ شَدِيدٖ 46قُلۡ مَا سَأَلۡتُكُم مِّنۡ أَجۡرٖ فَهُوَ لَكُمۡۖ إِنۡ أَجۡرِيَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٞ 47قُلۡ إِنَّ رَبِّي يَقۡذِفُ بِٱلۡحَقِّ عَلَّٰمُ ٱلۡغُيُوبِ 48قُلۡ جَآءَ ٱلۡحَقُّ وَمَا يُبۡدِئُ ٱلۡبَٰطِلُ وَمَا يُعِيدُ 49قُلۡ إِن ضَلَلۡتُ فَإِنَّمَآ أَضِلُّ عَلَىٰ نَفۡسِيۖ وَإِنِ ٱهۡتَدَيۡتُ فَبِمَا يُوحِيٓ إِلَيَّ رَبِّيٓۚ إِنَّهُۥ سَمِيعٞ قَرِيبٞ50

झुठलाने वालों के लिए बहुत देर हो चुकी

51काश तुम देख पाते जब वे (कब्रों से निकलते हुए) भयभीत होंगे और कोई बच निकलने का रास्ता नहीं होगा! और उन्हें एक नज़दीकी जगह से झपट लिया जाएगा। 52तब वे चिल्लाएँगे, 'हम अब इस सब पर ईमान लाए।' लेकिन वे इतनी दूर की जगह से (दुनिया से) ईमान तक कैसे पहुँच सकते हैं? 53जबकि वे पहले ही इसे नकार चुके थे, अंधेरे में अटकलें लगाते हुए एक ऐसी जगह से जो (आख़िरत से) उतनी ही दूर थी? 54उन्हें हर उस चीज़ से वंचित कर दिया जाएगा जिसकी वे इच्छा करेंगे, जैसा कि उनसे पहले उनके जैसों के साथ किया गया था। यक़ीनन वे (सभी) बेचैन करने वाले शक़ में थे।

وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذۡ فَزِعُواْ فَلَا فَوۡتَ وَأُخِذُواْ مِن مَّكَانٖ قَرِيبٖ 51وَقَالُوٓاْ ءَامَنَّا بِهِۦ وَأَنَّىٰ لَهُمُ ٱلتَّنَاوُشُ مِن مَّكَانِۢ بَعِيدٖ 52وَقَدۡ كَفَرُواْ بِهِۦ مِن قَبۡلُۖ وَيَقۡذِفُونَ بِٱلۡغَيۡبِ مِن مَّكَانِۢ بَعِيدٖ 53وَحِيلَ بَيۡنَهُمۡ وَبَيۡنَ مَا يَشۡتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشۡيَاعِهِم مِّن قَبۡلُۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ فِي شَكّٖ مُّرِيبِۢ54

Saba () - बच्चों के लिए कुरान - अध्याय 34 - स्पष्ट कुरान डॉ. मुस्तफा खत्ताब द्वारा