यह अनुवाद कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से किया गया है। इसके अलावा, यह डॉ. मुस्तफा खत्ताब के "स्पष्ट कुरआन" पर आधारित है।

Al-Mumtaḥanah (सूरह 60)
المُمْتَحَنَة (The Test of Faith)
परिचय
यह मदनी सूरह नबी (ﷺ) की मक्का विजय से पहले अवतरित हुई थी, जब मूर्तिपूजकों ने हुदैबिया में मुसलमानों के साथ की गई शांति संधि का उल्लंघन किया था। नबी (ﷺ) के इस योजना को गुप्त रखने के आदेशों के बावजूद, हातिब इब्न अबी बलतआ नाम के एक सहाबी ने मक्कावासियों को एक चेतावनी पत्र भेजा। उन्होंने ऐसा इस उम्मीद में किया था कि यदि मुसलमान शहर में प्रवेश करने में सफल न हो पाएँ, तो मक्कावासी उनके परिवार की रक्षा करेंगे, जो उस समय भी मक्का में ही था। जल्द ही नबी (ﷺ) को हातिब के इस कार्य के बारे में वही प्राप्त हुई। वह पत्र रोक लिया गया और हातिब को बाद में माफ़ कर दिया गया। मक्का ने शांतिपूर्वक मुसलमानों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, और उसके निवासियों को नबी (ﷺ) द्वारा क्षमा कर दिया गया। मुसलमानों को अल्लाह और साथी मोमिनों के प्रति वफ़ादार रहने का निर्देश दिया गया है, नबी इब्राहीम (ﷺ) के उदाहरण का पालन करते हुए (आयतों 4-6)। मोमिनों को गैर-मुसलमानों के प्रति शिष्टाचार रखने से मना नहीं किया गया है, जब तक वे मुसलमानों को सता नहीं रहे हैं (आयतों 8-9)। इस सूरह का नाम मक्का से भागकर आने वाली महिलाओं के ईमान की परीक्षा लेने से पड़ा है, उनसे यह पूछकर, उदाहरण के लिए, कि क्या उन्होंने इस्लाम के लिए हिजरत की है या केवल अपने मूर्तिपूजक पतियों से अलग होने के लिए (आयत 10)। मोमिनों को अन्य निर्देश इस सूरह के अंत में और अगली सूरह के प्रारंभ में दिए गए हैं। अल्लाह के नाम से—जो अत्यंत दयालु, परम कृपालु है।