Repentance
التَّوْبَة
التوبہ

सीखने के बिंदु
यह सूरह मूर्ति-पूजकों द्वारा तोड़े गए सभी शांति समझौतों को रद्द करके आरंभ होती है।
मुसलमानों से कहा गया है कि वे उन लोगों के साथ निष्पक्ष रहें जिन्होंने अपने समझौतों का सम्मान किया।
अल्लाह ने हमेशा अपने पैगंबर का समर्थन किया और उनकी रक्षा की, विशेषकर मक्का से मदीना की उनकी हिजरत और हुनैन के युद्ध के दौरान।
विजय केवल अल्लाह की ओर से आती है।
जीवन आजमाइशों से परिपूर्ण है।
ईमान वाले नबी के साथ शामिल हुए जब उन्होंने तबूक की लड़ाई के लिए कूच किया।
मुनाफ़िक़ों को मुस्लिम सेना के साथ कूच करने से बचने के लिए बहाने बनाने के कारण बेनकाब किया गया और उनकी आलोचना की गई।
अल्लाह, उनके नबी या क़ुरआन का मज़ाक उड़ाना हराम है।
अल्लाह उन लोगों को माफ़ करने को तैयार हैं जो ईमानदार और सच्चे हैं।
मुसलमानों को हमेशा अपने समुदाय की रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।
इस्लाम के बारे में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।
पैगंबर समस्त मानव जाति के लिए रहमत बनकर आए।


पृष्ठभूमि की कहानी
इस सूरह को सही मायने में समझने के लिए, हमें इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानने की आवश्यकता है। जहाँ तक मदीना में नए मुस्लिम समुदाय का संबंध था, शहर के अंदर और बाहर 4 मुख्य समूह थे: 1. वे मुसलमान जिनका अल्लाह में सच्चा ईमान था और जिन्होंने एक मजबूत समुदाय बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। 2. कपटी (मुनाफ़िक़) जिन्होंने सार्वजनिक रूप से इस्लाम स्वीकार किया लेकिन गुप्त रूप से मुसलमानों के खिलाफ काम किया। 3. गैर-मुसलमान (मुख्यतः मूर्तिपूजक, यहूदी और ईसाई) जिन्होंने पैगंबर के साथ अपने समझौतों का सम्मान किया। 4. गैर-मुसलमान जिन्होंने अपने समझौते तोड़े और मुस्लिम समुदाय के लिए खतरा थे।
यह सूरह इन सभी 4 समूहों के बारे में बात करती है। वफादार मुसलमानों को अल्लाह के मार्ग का समर्थन करने के लिए महान पुरस्कारों का वादा किया गया है। कपटियों (मुनाफ़िक़ों) को उनके बुरे कार्यों और दृष्टिकोणों के लिए बार-बार आलोचना की जाती है और चेतावनी दी जाती है।
जहाँ तक उन गैर-मुसलमानों का संबंध है जिन्होंने अपने समझौतों का सम्मान किया और किसी भी तरह से मुस्लिम समुदाय को धमकी नहीं दी, पैगंबर को उनके साथ अपने समझौतों का सम्मान करने का आदेश दिया गया है। जहाँ तक अन्य गैर-मुसलमानों का संबंध है जो खतरा थे (मुसलमानों पर हमला करके, उनके खिलाफ दूसरों का समर्थन करके, उनके साथ अपने समझौते तोड़कर, या उन्हें दूसरों को इस्लाम में आमंत्रित करने से रोककर), उन्हें 3 विकल्प दिए गए हैं (इमाम मुस्लिम द्वारा वर्णित एक प्रामाणिक हदीस में उल्लेखित): इस्लाम स्वीकार करें, सुरक्षा-कर (जिज़्या) का भुगतान करें, या युद्ध करें। (इमाम इब्न अल-कय्यिम ने अपनी पुस्तक 'अहकाम अहल अज़-ज़िम्माह' ('संरक्षित लोगों से संबंधित नियम') में)

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, 'यह सूरह बिस्मिल्लाह से क्यों शुरू नहीं होती, जबकि अन्य सभी सूरह होती हैं?' यह सच है कि कुरान में यह एकमात्र सूरह है जो 'अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयालु, परम कृपालु है' से शुरू नहीं होती। विद्वान इसके लिए विभिन्न कारण बताते हैं:
1. शायद इसलिए कि यह सूरह और पिछली वाली (अल-अनफाल) को जुड़वाँ सूरह माना जाता है जो एक-दूसरे को पूरा करती हैं। इसलिए, बीच में बिस्मिल्लाह जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
2. या शायद इसलिए कि यह सूरह उन दुश्मनों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करके शुरू होती है जो पैगंबर के साथ अपने शांति समझौतों को तोड़ते रहते थे। इसलिए, बिस्मिल्लाह में अल्लाह की दया और करुणा का उल्लेख करना और फिर उसी साँस में युद्ध की घोषणा करना उचित नहीं था!
इमाम अल-कुर्तुबी के अनुसार, चुनी हुई राय यह है कि सूरह इसी तरह पैगंबर पर अवतरित हुई थी और इसी तरह उन्होंने इसे लिखने का आदेश दिया था, बात खत्म!
भंग हुए अहद (समझौतों) पर प्रतिक्रिया
1अल्लाह और उसके रसूल ने उन सभी भंग हुए समझौतों को रद्द कर दिया है जो तुमने (ऐ ईमान वालो) मुशरिकों के साथ किए थे। 2तो, तुम (ऐ मुशरिको), ज़मीन में आज़ादी से घूमने के लिए तुम्हारे पास चार महीने हैं। लेकिन याद रखो कि तुम्हें अल्लाह से कोई पनाह नहीं मिलेगी और अल्लाह काफ़िरों को रुसवा करेगा। 3अल्लाह और उसके रसूल की ओर से हज-ए-अकबर के दिन सब लोगों को यह घोषणा की जाएगी कि अल्लाह और उसके रसूल मुशरिकों से बरी हैं। यदि तुम (ऐ मुशरिको) तौबा करते हो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर होगा। लेकिन यदि तुम इनकार करते हो तो याद रखो कि तुम्हें अल्लाह से कोई पनाह नहीं मिलेगी। और (ऐ पैगंबर) काफ़िरों को एक दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी दो। 4उन मुशरिकों के लिए जिन्होंने तुम्हारे साथ अपने समझौते को किसी भी तरह से नहीं तोड़ा है और तुम्हारे खिलाफ किसी दुश्मन का समर्थन नहीं किया है, उनके साथ अपने समझौते का सम्मान करो जब तक उसकी अवधि समाप्त न हो जाए। निःसंदेह, अल्लाह वफ़ादारों को पसंद करता है। 5लेकिन जब हराम महीने गुज़र जाएँ तो उन मुशरिकों को मार डालो जिन्होंने अपने समझौते तोड़े थे, जहाँ कहीं भी तुम उन्हें पाओ; उन्हें पकड़ो, उन्हें घेरो और हर घाट पर उनकी ताक में बैठो। लेकिन यदि वे तौबा करते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं और ज़कात देते हैं तो उन्हें छोड़ दो। निःसंदेह, अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान है। 6और यदि कोई मूर्तिपूजक आपसे (हे पैगंबर!) सुरक्षा मांगे, तो उसे सुरक्षा दो ताकि वह अल्लाह का कलाम सुन सके, फिर उसे उसकी सुरक्षित जगह तक पहुँचा दो। यह इसलिए है क्योंकि ये लोग (सत्य को) नहीं जानते।
بَرَآءَةٞ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلَّذِينَ عَٰهَدتُّم مِّنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ 1فَسِيحُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَرۡبَعَةَ أَشۡهُرٖ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّكُمۡ غَيۡرُ مُعۡجِزِي ٱللَّهِ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُخۡزِي ٱلۡكَٰفِرِينَ 2وَأَذَٰنٞ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلنَّاسِ يَوۡمَ ٱلۡحَجِّ ٱلۡأَكۡبَرِ أَنَّ ٱللَّهَ بَرِيٓءٞ مِّنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ وَرَسُولُهُۥۚ فَإِن تُبۡتُمۡ فَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۖ وَإِن تَوَلَّيۡتُمۡ فَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّكُمۡ غَيۡرُ مُعۡجِزِي ٱللَّهِۗ وَبَشِّرِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ 3إِلَّا ٱلَّذِينَ عَٰهَدتُّم مِّنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ثُمَّ لَمۡ يَنقُصُوكُمۡ شَيۡٔٗا وَلَمۡ يُظَٰهِرُواْ عَلَيۡكُمۡ أَحَدٗا فَأَتِمُّوٓاْ إِلَيۡهِمۡ عَهۡدَهُمۡ إِلَىٰ مُدَّتِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُتَّقِينَ 4فَإِذَا ٱنسَلَخَ ٱلۡأَشۡهُرُ ٱلۡحُرُمُ فَٱقۡتُلُواْ ٱلۡمُشۡرِكِينَ حَيۡثُ وَجَدتُّمُوهُمۡ وَخُذُوهُمۡ وَٱحۡصُرُوهُمۡ وَٱقۡعُدُواْ لَهُمۡ كُلَّ مَرۡصَدٖۚ فَإِن تَابُواْ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُاْ ٱلزَّكَوٰةَ فَخَلُّواْ سَبِيلَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ 5وَإِنۡ أَحَدٞ مِّنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ ٱسۡتَجَارَكَ فَأَجِرۡهُ حَتَّىٰ يَسۡمَعَ كَلَٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ أَبۡلِغۡهُ مَأۡمَنَهُۥۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمٞ لَّا يَعۡلَمُونَ6
आयत 3: ज़ुल-हिज्जा की १० तारीख़, हज का एक अहम दिन।
आयत 5: 2 इसका अर्थ है मक्का में पवित्र काबा के अंदर या बाहर।
अमन के समझौतों को तोड़ने वाले
7अल्लाह और उसके रसूल ऐसे धोखेबाज़ मुशरिकों के साथ समझौते कैसे निभा सकते हैं? लेकिन जिन क़बीलों ने पवित्र मस्जिद के पास तुमसे समझौता किया है, जब तक वे तुम्हारे प्रति सच्चे रहें, तुम भी उनके प्रति सच्चे रहो। निःसंदेह अल्लाह वफ़ादार लोगों से प्रेम करता है। 8फिर कैसे? यदि ऐसे लोगों का तुम पर ज़ोर चले, तो वे न तो रिश्तेदारी का लिहाज़ करेंगे और न ही किसी समझौते का। वे तुम्हें अपनी बातों से राज़ी करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनके दिल तुम्हारे ख़िलाफ़ हैं, और उनमें से अधिकतर फ़ासिक़ (अवज्ञाकारी) हैं। 9उन्होंने अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ा सा लाभ मोल ले लिया, और 'दूसरों' को उसकी राह से रोका। वास्तव में, उन्होंने जो किया वह बहुत बुरा है! 10वे मोमिनों के साथ न तो रिश्तेदारी का लिहाज़ करते हैं और न ही किसी समझौते का। वे वास्तव में हद से गुज़रने वाले हैं। 11लेकिन यदि वे तौबा करें, नमाज़ क़ायम करें, और ज़कात अदा करें, तो वे तुम्हारे दीन के भाई हैं। इस प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतों को स्पष्ट करते हैं जो जानते हैं। 12लेकिन अगर वे संधि करने के बाद अपनी कसमें तोड़ें और तुम्हारे दीन पर हमला करें, तो कुफ्र के सरदारों से लड़ो—जो अपनी कसमें नहीं निभाते—ताकि शायद वे बाज़ आ जाएँ।
كَيۡفَ يَكُونُ لِلۡمُشۡرِكِينَ عَهۡدٌ عِندَ ٱللَّهِ وَعِندَ رَسُولِهِۦٓ إِلَّا ٱلَّذِينَ عَٰهَدتُّمۡ عِندَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۖ فَمَا ٱسۡتَقَٰمُواْ لَكُمۡ فَٱسۡتَقِيمُواْ لَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُتَّقِينَ 7كَيۡفَ وَإِن يَظۡهَرُواْ عَلَيۡكُمۡ لَا يَرۡقُبُواْ فِيكُمۡ إِلّٗا وَلَا ذِمَّةٗۚ يُرۡضُونَكُم بِأَفۡوَٰهِهِمۡ وَتَأۡبَىٰ قُلُوبُهُمۡ وَأَكۡثَرُهُمۡ فَٰسِقُونَ 8ٱشۡتَرَوۡاْ بَِٔايَٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنٗا قَلِيلٗا فَصَدُّواْ عَن سَبِيلِهِۦٓۚ إِنَّهُمۡ سَآءَ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ 9لَا يَرۡقُبُونَ فِي مُؤۡمِنٍ إِلّٗا وَلَا ذِمَّةٗۚ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُعۡتَدُونَ 10فَإِن تَابُواْ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُاْ ٱلزَّكَوٰةَ فَإِخۡوَٰنُكُمۡ فِي ٱلدِّينِۗ وَنُفَصِّلُ ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ 11وَإِن نَّكَثُوٓاْ أَيۡمَٰنَهُم مِّنۢ بَعۡدِ عَهۡدِهِمۡ وَطَعَنُواْ فِي دِينِكُمۡ فَقَٰتِلُوٓاْ أَئِمَّةَ ٱلۡكُفۡرِ إِنَّهُمۡ لَآ أَيۡمَٰنَ لَهُمۡ لَعَلَّهُمۡ يَنتَهُونَ12
लड़ने का हुक्म
13क्या तुम उनसे नहीं लड़ोगे जिन्होंने अपनी कसमें तोड़ी हैं, रसूल को मक्का से निकालने की साज़िश की है, और तुम पर पहले हमला किया है? क्या तुम उनसे डरते हो? डरने के लायक़ तो बस अल्लाह ही है, अगर तुम सच्चे मोमिन हो। 14उनसे लड़ो और अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें अज़ाब देगा, उन्हें रुसवा करेगा, तुम्हें उन पर जीत दिलाएगा, और मोमिनों के दिलों को शिफ़ा देगा— 15उनके दिलों से ग़ुस्सा निकाल देगा। फिर अल्लाह जिस पर चाहेगा रहम करेगा। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है। 16क्या तुम 'मुसलमानों' ने यह गुमान किया है कि तुम्हें यूँ ही छोड़ दिया जाएगा, इससे पहले कि अल्लाह यह ज़ाहिर कर दे कि तुम में से कौन उसके रास्ते में 'सच्ची' क़ुर्बानियाँ देता है, अल्लाह, उसके रसूल, या मोमिनों के सिवा किसी और को अपना राज़दार दोस्त बनाए बिना? और अल्लाह तुम्हारे हर अमल से पूरी तरह वाक़िफ़ है।
أَلَا تُقَٰتِلُونَ قَوۡمٗا نَّكَثُوٓاْ أَيۡمَٰنَهُمۡ وَهَمُّواْ بِإِخۡرَاجِ ٱلرَّسُولِ وَهُم بَدَءُوكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٍۚ أَتَخۡشَوۡنَهُمۡۚ فَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخۡشَوۡهُ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ 13قَٰتِلُوهُمۡ يُعَذِّبۡهُمُ ٱللَّهُ بِأَيۡدِيكُمۡ وَيُخۡزِهِمۡ وَيَنصُرۡكُمۡ عَلَيۡهِمۡ وَيَشۡفِ صُدُورَ قَوۡمٖ مُّؤۡمِنِينَ 14وَيُذۡهِبۡ غَيۡظَ قُلُوبِهِمۡۗ وَيَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَىٰ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ 15أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تُتۡرَكُواْ وَلَمَّا يَعۡلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَٰهَدُواْ مِنكُمۡ وَلَمۡ يَتَّخِذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَا رَسُولِهِۦ وَلَا ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَلِيجَةٗۚ وَٱللَّهُ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ16
आयत 15: मक्का के कई दुश्मनों को इस्लाम कबूल करने का मार्गदर्शन करके।

का'बा के सच्चे संरक्षक
17मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) के लिए यह उचित नहीं है कि वे अल्लाह की मस्जिदों के रखवाले बनें, जबकि वे स्वयं अपने कुफ्र (अविश्वास) की गवाही देते रहते हैं। उनके कर्म व्यर्थ हैं, और वे हमेशा आग (जहन्नम) में रहेंगे। 18अल्लाह की मस्जिदों के रखवाले तो केवल वे ही होने चाहिए जो अल्लाह पर और अंतिम दिन (क़यामत) पर ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात अदा करते हैं और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते। आशा है कि वे ही सही मार्ग पर चलने वालों में से होंगे। 19क्या तुम (मूर्तिपूजक) हाजियों को पानी पिलाना और पवित्र मस्जिद (मस्जिद-ए-हराम) की देखभाल करना, इस बात के बराबर समझते हो कि कोई अल्लाह पर और अंतिम दिन पर ईमान लाए और अल्लाह के मार्ग में जिहाद (संघर्ष/बलिदान) करे? वे अल्लाह के निकट बराबर नहीं हैं। और अल्लाह ज़ालिमों (गलत करने वालों) को मार्ग नहीं दिखाता। 20जिन्होंने ईमान लाया, हिजरत की और अपने माल और अपनी जान से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया, अल्लाह के निकट उनके सबसे ऊँचे दर्जे हैं। ऐसे लोग ही सच्चे विजेता हैं। 21उनका रब उन्हें अपनी रहमत (दया), अपनी रज़ा (प्रसन्नता) और ऐसे बाग़ों (जन्नतों) का शुभ समाचार देता है जिनमें उनके लिए स्थायी सुख होगा। 22वहाँ हमेशा-हमेशा रहने के लिए। बेशक अल्लाह के पास महान प्रतिफल है।
مَا كَانَ لِلۡمُشۡرِكِينَ أَن يَعۡمُرُواْ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ شَٰهِدِينَ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِم بِٱلۡكُفۡرِۚ أُوْلَٰٓئِكَ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ وَفِي ٱلنَّارِ هُمۡ خَٰلِدُونَ 17إِنَّمَا يَعۡمُرُ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَلَمۡ يَخۡشَ إِلَّا ٱللَّهَۖ فَعَسَىٰٓ أُوْلَٰٓئِكَ أَن يَكُونُواْ مِنَ ٱلۡمُهۡتَدِينَ 18أَجَعَلۡتُمۡ سِقَايَةَ ٱلۡحَآجِّ وَعِمَارَةَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ كَمَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَجَٰهَدَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ لَا يَسۡتَوُۥنَ عِندَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ 19ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَٰهَدُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ أَعۡظَمُ دَرَجَةً عِندَ ٱللَّهِۚ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡفَآئِزُونَ 20يُبَشِّرُهُمۡ رَبُّهُم بِرَحۡمَةٖ مِّنۡهُ وَرِضۡوَٰنٖ وَجَنَّٰتٖ لَّهُمۡ فِيهَا نَعِيمٞ مُّقِيمٌ 21خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥٓ أَجۡرٌ عَظِيمٞ22
मोमिनों को चेतावनी
23ऐ ईमानवालो! अपने माँ-बाप और भाइयों को अपना वली (संरक्षक/मित्र) न बनाओ, यदि वे ईमान के बजाय कुफ्र को पसंद करें। और तुम में से जो कोई ऐसा करेगा, तो वही वास्तव में ज़ालिम होंगे। 24कहो, 'ऐ नबी! यदि तुम्हारे माँ-बाप, औलाद, भाई, बीवियाँ, रिश्तेदार, तुम्हारी कमाई हुई दौलत, ऐसे व्यापार जिनका घाटा होने का तुम्हें डर हो, और तुम्हारे प्यारे घर तुम्हें अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा प्यारे हैं, तो इंतज़ार करो जब तक अल्लाह अपना अज़ाब न भेज दे। और अल्लाह ऐसे फ़ासिक़ों (अवज्ञाकारियों) को हिदायत नहीं देता।'
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُوٓاْ ءَابَآءَكُمۡ وَإِخۡوَٰنَكُمۡ أَوۡلِيَآءَ إِنِ ٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡكُفۡرَ عَلَى ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمۡ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ 23قُلۡ إِن كَانَ ءَابَآؤُكُمۡ وَأَبۡنَآؤُكُمۡ وَإِخۡوَٰنُكُمۡ وَأَزۡوَٰجُكُمۡ وَعَشِيرَتُكُمۡ وَأَمۡوَٰلٌ ٱقۡتَرَفۡتُمُوهَا وَتِجَٰرَةٞ تَخۡشَوۡنَ كَسَادَهَا وَمَسَٰكِنُ تَرۡضَوۡنَهَآ أَحَبَّ إِلَيۡكُم مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَجِهَادٖ فِي سَبِيلِهِۦ فَتَرَبَّصُواْ حَتَّىٰ يَأۡتِيَ ٱللَّهُ بِأَمۡرِهِۦۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡفَٰسِقِينَ24
आयत 23: भाइयों और बहनों
आयत 24: पति या पत्नियाँ।

पृष्ठभूमि की कहानी
मक्का पर विजय के बाद, अधिकांश अरब ने इस्लाम स्वीकार कर लिया और शांति स्थापित की, लेकिन हवाज़ीन और थकीफ़ के क़बीलों ने मुसलमानों पर हमला करने की योजना बनाई।
इसके जवाब में, पैगंबर (उन पर शांति हो) ने उस समय तक की सबसे बड़ी मुस्लिम सेना का नेतृत्व किया, जिसमें 12,000 सैनिक थे, उनसे लड़ने के लिए।
कुछ मुसलमानों ने, अपनी बड़ी संख्या पर अति-आत्मविश्वास के कारण, शेखी बघारी कि उनकी सेना अजेय थी।
हालांकि, युद्ध के दौरान, मुस्लिम सेना पर घात लगाकर हमला किया गया। अधिकांश सैनिक भाग गए, केवल पैगंबर और कुछ वफादार साथियों को ही अपनी जगह पर डटे रहने के लिए छोड़कर।
पैगंबर (उन पर शांति हो) दृढ़ रहे और विश्वासियों को वापस लौटने और लड़ने के लिए प्रेरित किया। अंततः, सेना फिर से संगठित हुई और हुनैंन में विजय प्राप्त की। (इमाम इब्न कथीर और इमाम अल-क़ुर्तुबी द्वारा वर्णित)
नसर अल्लाह ही से है।
25निःसंदेह, अल्लाह ने तुम्हें अनेक रणभूमियों में विजय दी है, और हुनैंन के दिन भी, जब तुम अपनी बड़ी संख्या पर इतरा रहे थे—परन्तु वह संख्या तुम्हारे कुछ काम न आई। तुम पर विस्तृत धरती तंग हो गई, फिर तुम पीठ फेर कर भाग निकले। 26फिर अल्लाह ने अपने रसूल पर और मोमिनों पर अपनी प्रशांतता (सकीना) उतारी, और ऐसी सेनाएँ उतारीं जिन्हें तुम देख नहीं सकते थे, और उन लोगों को दंडित किया जिन्होंने कुफ़्र किया। और यही काफ़िरों का प्रतिफल है। 27फिर अल्लाह जिस पर चाहेगा, दया करेगा। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, बड़ा दयावान है।
لَقَدۡ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ فِي مَوَاطِنَ كَثِيرَةٖ وَيَوۡمَ حُنَيۡنٍ إِذۡ أَعۡجَبَتۡكُمۡ كَثۡرَتُكُمۡ فَلَمۡ تُغۡنِ عَنكُمۡ شَيۡٔٗا وَضَاقَتۡ عَلَيۡكُمُ ٱلۡأَرۡضُ بِمَا رَحُبَتۡ ثُمَّ وَلَّيۡتُم مُّدۡبِرِينَ 25ثُمَّ أَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُودٗا لَّمۡ تَرَوۡهَا وَعَذَّبَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡكَٰفِرِينَ 26ثُمَّ يَتُوبُ ٱللَّهُ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ عَلَىٰ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ27
आयत 26: 6. यानी फ़रिश्ते।
आयत 27: पैगंबर मुहम्मद ﷺ की वफ़ात से पहले लगभग पूरा अरब मुसलमान बन गया।

ज्ञान की बातें
जजिया (सुरक्षा कर) एक ऐसी प्रथा थी जो पैगंबर मुहम्मद के समय से भी पहले से चली आ रही थी। बाइबिल के अनुसार, ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों को रोमन सम्राट को कर चुकाने की अनुमति दी थी।
इस्लामी शासन के तहत, सभी नागरिकों के वित्तीय कर्तव्य थे: मुसलमानों ने ज़कात (अपनी बचत का 2.5%) अदा की, और गैर-मुसलमानों ने जजिया अदा किया।
जजिया एक छोटी वार्षिक राशि थी, जिसका औसत एक दीनार (4.25 ग्राम सोना) था।
कई गैर-मुसलमानों को जजिया चुकाने से छूट थी, जिनमें महिलाएँ, बच्चे, बुजुर्ग, गरीब, काम करने में असमर्थ लोग और वे लोग शामिल थे जिन्होंने मंदिरों में पूजा-अर्चना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। जो लोग मुस्लिम सेना में शामिल हुए, उन्हें भी छूट थी।
गरीब गैर-मुसलमानों को मुस्लिम राज्य से वित्तीय सहायता मिलती थी। इसके अतिरिक्त, यदि कोई मुस्लिम शासक अपनी देखरेख में गैर-मुसलमानों की रक्षा करने में असमर्थ होता था, तो जजिया उन्हें वापस कर दिया जाता था।
हक़ के लिए खड़ा होना
28ऐ ईमानवालो! निःसंदेह, मूर्तिपूजक (मुशरिक) 'आध्यात्मिक रूप से' अपवित्र हैं, अतः इस वर्ष के बाद वे मस्जिदे-हराम के पास न आएँ। यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो, तो अल्लाह अपनी कृपा से तुम्हें समृद्ध कर देगा, यदि वह चाहेगा। निःसंदेह, अल्लाह सर्वज्ञ और हिकमत वाला है। 29अहले-किताब (ग्रंथधारियों) में से उन लोगों से युद्ध करो जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं लाते, और अल्लाह तथा उसके रसूल ने जो हराम किया है, उसे नहीं छोड़ते, और सत्य धर्म का पालन नहीं करते, जब तक कि वे जिज़्या (सुरक्षा-कर) न दें, पूरी तरह से अधीन होकर।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِنَّمَا ٱلۡمُشۡرِكُونَ نَجَسٞ فَلَا يَقۡرَبُواْ ٱلۡمَسۡجِدَ ٱلۡحَرَامَ بَعۡدَ عَامِهِمۡ هَٰذَاۚ وَإِنۡ خِفۡتُمۡ عَيۡلَةٗ فَسَوۡفَ يُغۡنِيكُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦٓ إِن شَآءَۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ حَكِيم 28قَٰتِلُواْ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ ٱلۡحَقِّ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ حَتَّىٰ يُعۡطُواْ ٱلۡجِزۡيَةَ عَن يَدٖ وَهُمۡ صَٰغِرُونَ29
आयत 28: उनकी झूठे देवताओं में आस्था के कारण।
आयत 29: नबी की मक्का से मदीना हिज्रत का नौवाँ वर्ष।

ज्ञान की बातें
आयत 31 बताती है कि यहूदियों और ईसाइयों ने अपने धार्मिक नेताओं को रब बना लिया है।
'अदी इब्न हातिम नामक एक व्यक्ति, जो इस्लाम स्वीकार करने से पहले ईसाई था, ने पैगंबर से अपनी उलझन व्यक्त की, यह कहते हुए, 'लेकिन वे अपने धार्मिक नेताओं की पूजा नहीं करते!'
पैगंबर ने यह पूछकर जवाब दिया, 'क्या वे उन नेताओं का पालन नहीं करते जब वे वर्जित को अनुमति देते हैं और अनुमत को वर्जित करते हैं?'
'अदी ने पुष्टि की, 'हाँ, वे करते हैं।'
पैगंबर ने तब समझाया, 'इसी तरह वे उनकी पूजा करते हैं।' (इमाम अत-तिर्मिज़ी द्वारा दर्ज)

छोटी कहानी
इमाम अहमद द्वारा वर्णित सलमान अल-फ़ारसी के इस्लाम में धर्मांतरण की कहानी एक उल्लेखनीय कहानी है।
फ़ारस के रहने वाले सलमान शुरुआत में अग्नि-पूजक थे और उनके पिता उनकी 'पवित्र अग्नि' के संरक्षक थे। बाद में वे ईसाई बन गए और सीरिया में एक धार्मिक नेता की सेवा की।
सलमान ने पाया कि यह नेता बेईमान था, जो गरीबों को देने के बजाय चर्च के सोने और चांदी के दान को गुप्त रूप से जमा कर रहा था। जब उस नेता की मृत्यु हुई, तो सलमान ने लोगों के सामने उसकी धोखेबाज़ी उजागर की, जिन्होंने अपने क्रोध में, शव को दफनाने से इनकार कर दिया।
अन्य नेक धार्मिक नेताओं की सेवा करने के बाद, सलमान को पैगंबर मुहम्मद के बारे में बताया गया। अरब की अपनी यात्रा के दौरान, उन्हें पकड़ लिया गया और मदीना में एक गुलाम के रूप में बेच दिया गया।
जब पैगंबर मदीना पहुँचे, तो सलमान ने इस्लाम स्वीकार किया और मुस्लिम समुदाय की मदद से, वे अपनी आज़ादी खरीद पाए।
कुरान की आयत संख्या 34-35 उन बेईमान धर्मगुरुओं की कड़ी निंदा करती हैं जो दान हड़पते हैं। ये आयतें चेतावनी देती हैं कि क़यामत के दिन, उनके द्वारा जमा किए गए ख़ज़ानों का उपयोग उन्हें जहन्नम में दंडित करने के लिए किया जाएगा।
बेईमान अहले किताब
30यहूदी कहते हैं, 'उज़ैर अल्लाह का बेटा है,' जबकि ईसाई कहते हैं, 'मसीह अल्लाह का बेटा है।' ये उनके निराधार दावे हैं, वे तो बस पहले के काफ़िरों की बातें दोहरा रहे हैं। अल्लाह उन्हें बर्बाद करे! वे सत्य से कैसे बहकाए जा सकते हैं? 31उन्होंने अपने विद्वानों और भिक्षुओं को, और मरियम के बेटे मसीह को अल्लाह के सिवा रब बना लिया है, जबकि उन्हें एक अल्लाह के सिवा किसी की इबादत करने का हुक्म नहीं दिया गया था। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह पाक है, उन सब चीज़ों से बहुत ऊपर है जिन्हें वे उसका साझी बनाते हैं। 32वे अपने मुँह से अल्लाह के नूर को बुझाना चाहते हैं, लेकिन अल्लाह अपने नूर को पूरा करके ही रहेगा—चाहे काफ़िरों को कितना ही नागवार गुज़रे। 33वही है जिसने अपने रसूल को हिदायत और सत्य धर्म के साथ भेजा है, ताकि उसे सभी धर्मों पर ग़ालिब कर दे—चाहे मुशरिकों को कितना ही नागवार गुज़रे। 34ऐ ईमान वालो! बेशक, बहुत से (यहूदी) विद्वान और (ईसाई) भिक्षु लोगों का माल नाजायज़ तरीक़े से खाते हैं और (दूसरों को) अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं। और जो लोग सोना-चाँदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह के रास्ते में ख़र्च नहीं करते, उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दो। 35एक दिन, उनका खजाना जहन्नम की आग में तपाया जाएगा, और उससे उनकी पेशानियाँ, पहलू और पीठें दागी जाएँगी। उनसे कहा जाएगा, 'यह वही खजाना है जो तुमने अपने लिए जमा किया था। अब चखो उस चीज़ का मज़ा जो तुमने जमा की थी!'
وَقَالَتِ ٱلۡيَهُودُ عُزَيۡرٌ ٱبۡنُ ٱللَّهِ وَقَالَتِ ٱلنَّصَٰرَى ٱلۡمَسِيحُ ٱبۡنُ ٱللَّهِۖ ذَٰلِكَ قَوۡلُهُم بِأَفۡوَٰهِهِمۡۖ يُضَٰهُِٔونَ قَوۡلَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قَبۡلُۚ قَٰتَلَهُمُ ٱللَّهُۖ أَنَّىٰ يُؤۡفَكُونَ 30ٱتَّخَذُوٓاْ أَحۡبَارَهُمۡ وَرُهۡبَٰنَهُمۡ أَرۡبَابٗا مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَٱلۡمَسِيحَ ٱبۡنَ مَرۡيَمَ وَمَآ أُمِرُوٓاْ إِلَّا لِيَعۡبُدُوٓاْ إِلَٰهٗا وَٰحِدٗاۖ لَّآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۚ سُبۡحَٰنَهُۥ عَمَّا يُشۡرِكُونَ 31يُرِيدُونَ أَن يُطۡفُِٔواْ نُورَ ٱللَّهِ بِأَفۡوَٰهِهِمۡ وَيَأۡبَى ٱللَّهُ إِلَّآ أَن يُتِمَّ نُورَهُۥ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡكَٰفِرُونَ 32هُوَ ٱلَّذِيٓ أَرۡسَلَ رَسُولَهُۥ بِٱلۡهُدَىٰ وَدِينِ ٱلۡحَقِّ لِيُظۡهِرَهُۥ عَلَى ٱلدِّينِ كُلِّهِۦ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡمُشۡرِكُونَ 33۞ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِنَّ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلۡأَحۡبَارِ وَٱلرُّهۡبَانِ لَيَأۡكُلُونَ أَمۡوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡبَٰطِلِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۗ وَٱلَّذِينَ يَكۡنِزُونَ ٱلذَّهَبَ وَٱلۡفِضَّةَ وَلَا يُنفِقُونَهَا فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَبَشِّرۡهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٖ 34يَوۡمَ يُحۡمَىٰ عَلَيۡهَا فِي نَارِ جَهَنَّمَ فَتُكۡوَىٰ بِهَا جِبَاهُهُمۡ وَجُنُوبُهُمۡ وَظُهُورُهُمۡۖ هَٰذَا مَا كَنَزۡتُمۡ لِأَنفُسِكُمۡ فَذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡنِزُونَ35
आयत 30: 10, 'उज़ैर बनी इसराईल के एक नेक व्यक्ति थे। इमाम इब्न आशूर के अनुसार, कुछ यहूदी 'उज़ैर को अल्लाह का बेटा कहते थे क्योंकि उन्हें तौरात का अद्भुत ज्ञान था।
आयत 31: ईसाई जो पूरी निष्ठा से उपासना करते हैं।

पृष्ठभूमि की कहानी
इस्लामी कैलेंडर में पवित्र महीने ग्यारहवाँ (ज़ुल-क़ादाह), बारहवाँ (ज़ुल-हिज्जा), पहला (मुहर्रम) और सातवाँ (रजब) महीने हैं।
मूर्ति पूजक जानते थे कि इन पवित्र महीनों के दौरान लड़ाई वर्जित थी, लेकिन वे इस निषेध को दूसरे महीनों पर बदल देते थे।
वे वास्तविक पवित्र महीनों में लड़ाई की अनुमति देते थे और, चार निषिद्ध महीनों की कुल संख्या बनाए रखने के लिए, वे मनमाने ढंग से चार अलग-अलग महीनों में (उदाहरण के लिए, तीसरा, चौथा, आठवाँ और दसवाँ) लड़ाई पर प्रतिबंध लगा देते थे।
पवित्र महीनों को बदलने की यह प्रथा धोखे और हेरफेर का एक रूप थी। (इमाम इब्न कसीर और इमाम अल-बग़वी द्वारा दर्ज किया गया)
मुक़द्दस महीनों का सम्मान
36निःसंदेह, जिस दिन अल्लाह ने आकाशों और पृथ्वी को बनाया, उसी दिन से उसने अपनी किताब में महीनों की संख्या बारह निर्धारित की है, जिनमें से चार पवित्र हैं। यही सीधा धर्म है। अतः तुम इन महीनों में एक-दूसरे पर अत्याचार न करो। और मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) से मिलकर लड़ो जैसे वे सब मिलकर तुमसे लड़ते हैं। और जान लो कि अल्लाह ईमानवालों के साथ है। 37इन पवित्र महीनों को आगे-पीछे करना कुफ़्र में वृद्धि है, जिससे काफ़िर गुमराह किए जाते हैं। वे इसे एक वर्ष हलाल करते हैं और दूसरे वर्ष हराम, ताकि अल्लाह ने जितने महीनों को पवित्र ठहराया है, उनकी संख्या पूरी कर सकें, इस प्रकार वे उसे हलाल कर लेते हैं जिसे अल्लाह ने हराम किया है। उनके बुरे कर्म उनके लिए सुशोभित कर दिए गए हैं। और अल्लाह काफ़िर लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता।
إِنَّ عِدَّةَ ٱلشُّهُورِ عِندَ ٱللَّهِ ٱثۡنَا عَشَرَ شَهۡرٗا فِي كِتَٰبِ ٱللَّهِ يَوۡمَ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ مِنۡهَآ أَرۡبَعَةٌ حُرُمٞۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلۡقَيِّمُۚ فَلَا تَظۡلِمُواْ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمۡۚ وَقَٰتِلُواْ ٱلۡمُشۡرِكِينَ كَآفَّةٗ كَمَا يُقَٰتِلُونَكُمۡ كَآفَّةٗۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِينَ 36إِنَّمَا ٱلنَّسِيٓءُ زِيَادَةٞ فِي ٱلۡكُفۡرِۖ يُضَلُّ بِهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُحِلُّونَهُۥ عَامٗا وَيُحَرِّمُونَهُۥ عَامٗا لِّيُوَاطُِٔواْ عِدَّةَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ فَيُحِلُّواْ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُۚ زُيِّنَ لَهُمۡ سُوٓءُ أَعۡمَٰلِهِمۡۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَٰفِرِينَ37
आयत 36: लौहे महफूज़ जिसमें सब कुछ लिखा हुआ है।
आयत 37: मतलब पवित्र महीनों में लड़ाई।

पृष्ठभूमि की कहानी
इस्लाम के तहत अरब की एकता ने रोमन और फ़ारसी साम्राज्यों को खतरा पैदा किया, क्योंकि कई गैर-मुस्लिम जनजातियाँ मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी वफ़ादारी बदलने लगी थीं।
इमाम इब्न कसीर के अनुसार, पैगंबर को खबर मिली कि रोमन सेनाएँ मुसलमानों पर हमला करने की तैयारी कर रही थीं। हिज्रत के 9वें वर्ष में, पैगंबर ने उनका सामना करने के लिए तबूक (मदीना से 700 किमी से अधिक उत्तर में) के लिए एक अभियान की घोषणा की।
यह अभियान भीषण गर्मी, लंबी दूरी और मुसलमानों की वित्तीय कठिनाई के कारण अत्यंत कठिन था। इसके बावजूद, पैगंबर ने समर्थन के लिए आह्वान किया, और वफ़ादार मुसलमानों ने जो कुछ वे कर सकते थे दान किया, जबकि मुनाफ़िक़ों ने ऐसा नहीं किया।
हालांकि पैगंबर 30,000 से अधिक सैनिकों को इकट्ठा करने में कामयाब रहे, कई अन्य वैध बहानों के साथ या उनके बिना सेना में शामिल होने में विफल रहे।
यात्रा के दौरान, पैगंबर ने कई चमत्कार किए, जैसे भोजन और पानी को कई गुना करना, बारिश के लिए प्रार्थना करना और आने वाले तूफान की चेतावनी देना। वापसी के रास्ते पर, अल्लाह ने उन्हें कुछ मुनाफ़िक़ों द्वारा किए गए हत्या के प्रयास से बचाया। (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम द्वारा दर्ज)
एक साल पहले मु'ताह की लड़ाई में 3,000 सैनिकों वाली मुस्लिम सेना के साथ अपनी मुश्किलों को स्मरण करते हुए, रोमन सेना तबूक से सीरिया जैसे अन्य रोमन-नियंत्रित क्षेत्रों में भाग गई।
मुस्लिम सेना ने अपना साहस प्रदर्शित करने के लिए कई दिनों तक तबूक में डेरा डाला। इस दौरान, कई ईसाई अरब जनजातियाँ मुसलमानों को जिज़्या देने आईं।
इस अभियान ने रोमन सेना की प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से क्षति पहुँचाई और मुसलमानों के लिए सीरिया, लेबनान, जॉर्डन, फिलिस्तीन और मिस्र जैसे रोमन-नियंत्रित क्षेत्रों को बाद में जीतने का मार्ग प्रशस्त किया।

तबूक के अभियान पर पैगंबर के साथ शामिल न होने वालों की आलोचना करने के लिए निम्नलिखित आयतें नाज़िल हुईं।
हक़ के लिए लड़ने से इनकार
38ऐ ईमानवालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे अल्लाह की राह में निकलने को कहा जाता है, तो तुम अपनी ज़मीन से चिमट जाते हो? क्या तुम आख़िरत के मुक़ाबले में दुनियावी ज़िंदगी को पसंद करते हो? दुनियावी ज़िंदगी का मज़ा आख़िरत के मुक़ाबले में बहुत थोड़ा है। 39अगर तुम नहीं निकलोगे, तो वह तुम्हें दर्दनाक अज़ाब देगा और तुम्हारी जगह दूसरों को ले आएगा। तुम उसे ज़रा भी नुक़सान नहीं पहुँचा सकते। और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है। 40अगर तुम पैग़म्बर की मदद नहीं करोगे, तो अल्लाह ने उसकी मदद पहले ही की है—जब काफ़िरों ने उसे निकाल दिया था और वह दो में से दूसरा था। उसने अपने साथी से कहा, जब वे दोनों गुफ़ा में थे, 'घबराओ मत; अल्लाह यक़ीनन हमारे साथ है।' तो अल्लाह ने उस पर अपनी शांति उतारी, और उसे ऐसी सेनाओं से मदद दी जिन्हें तुमने नहीं देखा, और काफ़िरों के बोल को नीचा कर दिया, जबकि अल्लाह का वचन सर्वोच्च है। और अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है। 41निकलो, चाहे तुम्हारे लिए आसान हो या मुश्किल, और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जानों से क़ुर्बानियाँ दो। यही तुम्हारे लिए बेहतर है, अगर तुम जानते हो।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَا لَكُمۡ إِذَا قِيلَ لَكُمُ ٱنفِرُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱثَّاقَلۡتُمۡ إِلَى ٱلۡأَرۡضِۚ أَرَضِيتُم بِٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا مِنَ ٱلۡأٓخِرَةِۚ فَمَا مَتَٰعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا فِي ٱلۡأٓخِرَةِ إِلَّا قَلِيلٌ 38إِلَّا تَنفِرُواْ يُعَذِّبۡكُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا وَيَسۡتَبۡدِلۡ قَوۡمًا غَيۡرَكُمۡ وَلَا تَضُرُّوهُ شَيۡٔٗاۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ 39إِلَّا تَنصُرُوهُ فَقَدۡ نَصَرَهُ ٱللَّهُ إِذۡ أَخۡرَجَهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ثَانِيَ ٱثۡنَيۡنِ إِذۡ هُمَا فِي ٱلۡغَارِ إِذۡ يَقُولُ لِصَٰحِبِهِۦ لَا تَحۡزَنۡ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَنَاۖ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَيۡهِ وَأَيَّدَهُۥ بِجُنُودٖ لَّمۡ تَرَوۡهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلسُّفۡلَىٰۗ وَكَلِمَةُ ٱللَّهِ هِيَ ٱلۡعُلۡيَاۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ 40ٱنفِرُواْ خِفَافٗا وَثِقَالٗا وَجَٰهِدُواْ بِأَمۡوَٰلِكُمۡ وَأَنفُسِكُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكُمۡ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ41
आयत 40: अबू बक्र अस-सिद्दीक़, जो मक्का में कई सालों के अत्याचार सहने के बाद, पैगंबर की मक्का से मदीना हिजरत के दौरान उनके साथ थे।
मुनाफ़िक़ों के झूठे बहाने
42यदि लाभ आसान होता और यात्रा छोटी होती, तो वे 'मुनाफ़िक़' तुम्हारे पीछे चलते, लेकिन उन्हें दूरी बहुत लंबी लगी। वे अल्लाह की क़सम खाएँगे, 'यदि हम सक्षम होते, तो हम निश्चित रूप से तुम्हारे साथ शामिल होते।' वे स्वयं को बर्बाद कर रहे हैं। और अल्लाह जानता है कि वे निश्चित रूप से झूठे हैं। 43अल्लाह ने आपको, ऐ नबी, पहले ही माफ़ कर दिया है! लेकिन आपने उन्हें 'पीछे रह जाने' की अनुमति क्यों दी, इससे पहले कि आप जान लेते कि कौन सच बोल रहा था और कौन झूठ? 44वे लोग जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं, वे कभी भी आपको अपने धन और अपनी जान से क़ुर्बानी देने से बचने के बहाने नहीं देंगे। और अल्लाह उन लोगों को भली-भाँति जानता है जो ईमानदार हैं। 45ऐसा कोई नहीं करेगा सिवाय उन लोगों के जिनका अल्लाह या आख़िरत के दिन पर कोई ईमान नहीं है, और जिनके दिल शक में हैं, इसलिए वे अपने संदेहों में उलझे हुए हैं। 46यदि उनका 'वास्तव में' कूच करने का इरादा होता, तो वे उसके लिए तैयारियाँ करते। लेकिन अल्लाह ने उनके साथ जाना नापसंद किया, इसलिए उसने उन्हें पीछे रहने दिया, और उनसे कहा गया, 'उन 'कमज़ोरों' के साथ रहो जो पीछे रह गए हैं।' 47यदि वे तुम्हारे साथ निकलते, तो वे तुम्हारे लिए केवल उपद्रव बढ़ाते। वे तुम्हारे बीच फूट डालने की कोशिश करते हुए दौड़-धूप करते। और तुम में से कुछ उनकी बात मान लेते। अल्लाह ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है। 48वे पहले भी फसाद डालने की कोशिश कर चुके थे, और तुम्हारे विरुद्ध हर संभव चाल चल चुके थे, ऐ पैगंबर, यहाँ तक कि सत्य की विजय हो गई और अल्लाह का हुक्म सब पर ग़ालिब आ गया—हालाँकि वे इसके सख्त खिलाफ थे।
لَوۡ كَانَ عَرَضٗا قَرِيبٗا وَسَفَرٗا قَاصِدٗا لَّٱتَّبَعُوكَ وَلَٰكِنۢ بَعُدَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلشُّقَّةُۚ وَسَيَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ لَوِ ٱسۡتَطَعۡنَا لَخَرَجۡنَا مَعَكُمۡ يُهۡلِكُونَ أَنفُسَهُمۡ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ إِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ 42عَفَا ٱللَّهُ عَنكَ لِمَ أَذِنتَ لَهُمۡ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكَ ٱلَّذِينَ صَدَقُواْ وَتَعۡلَمَ ٱلۡكَٰذِبِينَ 43لَا يَسۡتَٔۡذِنُكَ ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ أَن يُجَٰهِدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُتَّقِينَ 44إِنَّمَا يَسۡتَٔۡذِنُكَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَٱرۡتَابَتۡ قُلُوبُهُمۡ فَهُمۡ فِي رَيۡبِهِمۡ يَتَرَدَّدُونَ 45۞ وَلَوۡ أَرَادُواْ ٱلۡخُرُوجَ لَأَعَدُّواْ لَهُۥ عُدَّةٗ وَلَٰكِن كَرِهَ ٱللَّهُ ٱنۢبِعَاثَهُمۡ فَثَبَّطَهُمۡ وَقِيلَ ٱقۡعُدُواْ مَعَ ٱلۡقَٰعِدِينَ 46لَوۡ خَرَجُواْ فِيكُم مَّا زَادُوكُمۡ إِلَّا خَبَالٗا وَلَأَوۡضَعُواْ خِلَٰلَكُمۡ يَبۡغُونَكُمُ ٱلۡفِتۡنَةَ وَفِيكُمۡ سَمَّٰعُونَ لَهُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلظَّٰلِمِينَ 47لَقَدِ ٱبۡتَغَوُاْ ٱلۡفِتۡنَةَ مِن قَبۡلُ وَقَلَّبُواْ لَكَ ٱلۡأُمُورَ حَتَّىٰ جَآءَ ٱلۡحَقُّ وَظَهَرَ أَمۡرُ ٱللَّهِ وَهُمۡ كَٰرِهُونَ48
आयत 48: उदाहरण के लिए, अब्दुल्ला इब्न सलूल, एक प्रमुख मुनाफ़िक़, पैगंबर के साथ उहुद की लड़ाई के लिए कूच किया, फिर लड़ाई में शामिल होने से इनकार कर दिया और अपने अनुयायियों के साथ मदीना लौट गया, जो मुस्लिम सेना का लगभग एक-तिहाई हिस्सा थे।

और झूठे बहाने
49उनमें से कुछ ऐसे हैं जो (पैगंबर से) कहते हैं, "मुझे रहने दो, और मुझे फ़ितने में मत डालो।" वे तो पहले ही फ़ितने में पड़ चुके हैं। और जहन्नम काफ़िरों को पूरी तरह घेर लेगी। 50यदि आपको (हे पैगंबर) कोई भलाई पहुँचती है, तो उन्हें नागवार गुज़रता है। लेकिन यदि आपको कोई बुराई पहुँचती है, तो वे कहते हैं, "हमने तो पहले ही अपनी एहतियात बरत ली थी," और वे बहुत खुशी से मुँह मोड़ लेते हैं। 51कहो, "हमें कुछ नहीं पहुँचेगा सिवाय उसके जो अल्लाह ने हमारे लिए लिख दिया है। वही हमारा मौला है।" और अल्लाह पर ही ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए। 52कहो, "क्या तुम हमारे लिए दो बेहतरीन चीज़ों में से किसी एक के सिवा कुछ और उम्मीद करते हो? लेकिन हम तुम्हारे लिए यह उम्मीद करते हैं कि अल्लाह तुम्हें अपनी ओर से या हमारे हाथों से कोई अज़ाब देगा। तो इंतज़ार करो! हम भी तुम्हारे साथ इंतज़ार कर रहे हैं।" 53कहो, "हे पैगंबर," "तुम स्वेच्छा से या अनिच्छा से जो चाहो दान करो। तुमसे कुछ भी स्वीकार नहीं किया जाएगा, क्योंकि तुम अवज्ञाकारी रहे हो।" 54उनके दान स्वीकार न होने का कारण यह है कि वे अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान नहीं रखते, और वे नमाज़ के लिए नहीं आते मगर सुस्ती से, और वे खर्च नहीं करते मगर नाखुशी से। 55तो उनकी दौलत और औलाद तुम्हें प्रभावित न करें, ऐ नबी। अल्लाह तो बस चाहता है कि उन्हें इन्हीं चीज़ों के ज़रिए इस दुनिया में अज़ाब दे, फिर उनकी जान निकल जाएगी जबकि वे कुफ़्र की हालत में होंगे। 56वे अल्लाह की क़सम खाते हैं कि वे तुम में से हैं, जबकि वे नहीं हैं। वे यह सिर्फ़ डर के मारे कहते हैं। अगर उन्हें कोई पनाहगाह, कोई गुफा, या कोई भी बिल मिल जाए, तो वे उसी में तेज़ी से घुस जाएँगे।
وَمِنۡهُم مَّن يَقُولُ ٱئۡذَن لِّي وَلَا تَفۡتِنِّيٓۚ أَلَا فِي ٱلۡفِتۡنَةِ سَقَطُواْۗ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةُۢ بِٱلۡكَٰفِرِينَ 49إِن تُصِبۡكَ حَسَنَةٞ تَسُؤۡهُمۡۖ وَإِن تُصِبۡكَ مُصِيبَةٞ يَقُولُواْ قَدۡ أَخَذۡنَآ أَمۡرَنَا مِن قَبۡلُ وَيَتَوَلَّواْ وَّهُمۡ فَرِحُونَ 50قُل لَّن يُصِيبَنَآ إِلَّا مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَنَا هُوَ مَوۡلَىٰنَاۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ 51قُلۡ هَلۡ تَرَبَّصُونَ بِنَآ إِلَّآ إِحۡدَى ٱلۡحُسۡنَيَيۡنِۖ وَنَحۡنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمۡ أَن يُصِيبَكُمُ ٱللَّهُ بِعَذَابٖ مِّنۡ عِندِهِۦٓ أَوۡ بِأَيۡدِينَاۖ فَتَرَبَّصُوٓاْ إِنَّا مَعَكُم مُّتَرَبِّصُونَ 52قُلۡ أَنفِقُواْ طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهٗا لَّن يُتَقَبَّلَ مِنكُمۡ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ 53وَمَا مَنَعَهُمۡ أَن تُقۡبَلَ مِنۡهُمۡ نَفَقَٰتُهُمۡ إِلَّآ أَنَّهُمۡ كَفَرُواْ بِٱللَّهِ وَبِرَسُولِهِۦ وَلَا يَأۡتُونَ ٱلصَّلَوٰةَ إِلَّا وَهُمۡ كُسَالَىٰ وَلَا يُنفِقُونَ إِلَّا وَهُمۡ كَٰرِهُونَ 54فَلَا تُعۡجِبۡكَ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُمۡۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُعَذِّبَهُم بِهَا فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَتَزۡهَقَ أَنفُسُهُمۡ وَهُمۡ كَٰفِرُونَ 55وَيَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنَّهُمۡ لَمِنكُمۡ وَمَا هُم مِّنكُمۡ وَلَٰكِنَّهُمۡ قَوۡمٞ يَفۡرَقُونَ56
आयत 49: इब्न कसीर के अनुसार, एक मुनाफिक (जिसका नाम जद्द बिन कैस था) ने पीछे रुकने की इजाज़त माँगी, क्योंकि अगर उसने रोमन महिलाओं को देखा तो वह खुद पर काबू नहीं रख पाएगा।
आयत 52: 18. या तो जीत या अल्लाह की राह में शहादत।
लालची मुनाफ़िक़
58ऐ पैग़म्बर, उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो आपके ज़कात वितरण के तरीक़े पर ऐतराज़ करते हैं। अगर उन्हें उसमें से कुछ मिल जाए तो वे ख़ुश होते हैं, लेकिन अगर उन्हें न मिले तो वे नाराज़ होते हैं। 59काश वे उस पर संतुष्ट होते जो अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें दिया था और कहते, 'हमारे लिए अल्लाह ही पर्याप्त है! जल्द ही अल्लाह और उसका रसूल हमें अपनी कृपा से देगा। हम अल्लाह से ही उम्मीद रखते हैं।' 60ज़कात तो बस फ़क़ीरों, मिस्कीनों, उस पर काम करने वालों, जिनके दिल मोले जाने हों, गर्दनों को छुड़ाने, क़र्ज़दारों, अल्लाह के मार्ग में और मुसाफ़िरों के लिए है। यह अल्लाह की ओर से एक अनिवार्य आदेश है। और अल्लाह पूर्ण ज्ञान वाला, हिकमत वाला है।
وَمِنۡهُم مَّن يَلۡمِزُكَ فِي ٱلصَّدَقَٰتِ فَإِنۡ أُعۡطُواْ مِنۡهَا رَضُواْ وَإِن لَّمۡ يُعۡطَوۡاْ مِنۡهَآ إِذَا هُمۡ يَسۡخَطُونَ 58وَلَوۡ أَنَّهُمۡ رَضُواْ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَقَالُواْ حَسۡبُنَا ٱللَّهُ سَيُؤۡتِينَا ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ وَرَسُولُهُۥٓ إِنَّآ إِلَى ٱللَّهِ رَٰغِبُونَ 59۞ إِنَّمَا ٱلصَّدَقَٰتُ لِلۡفُقَرَآءِ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱلۡعَٰمِلِينَ عَلَيۡهَا وَٱلۡمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمۡ وَفِي ٱلرِّقَابِ وَٱلۡغَٰرِمِينَ وَفِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِۖ فَرِيضَةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيم60
आयत 60: नव-मुस्लिमों और इस धर्म में रुचि रखने वालों का समर्थन करने के लिए।
मुनाफ़िक़ पैगंबर का उपहास करते हैं।
61उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो पैगंबर को यह कहकर दुख पहुँचाते हैं, 'वह हर किसी की बात सुन लेते हैं।' कहो, 'ऐ पैगंबर,' 'वह वही सुनते हैं जो तुम्हारे हित में है। वह अल्लाह पर ईमान रखते हैं, मोमिनों पर भरोसा करते हैं, और तुममें से जो ईमान लाए हैं उनके लिए रहमत हैं।' जो लोग अल्लाह के रसूल को दुख पहुँचाते हैं, उन्हें दर्दनाक अज़ाब मिलेगा। 62फिर भी, वे तुम्हें मोमिनों को खुश करने के लिए अल्लाह की कसमें खाते हैं। लेकिन अगर वे सच्चे मोमिन होते, तो उन्हें अल्लाह और उसके रसूल को खुश करने की ज़्यादा फिक्र होती। 63क्या वे नहीं जानते कि जो कोई अल्लाह और उसके रसूल को चुनौती देता है, वह हमेशा के लिए जहन्नम की आग में रहेगा? यही सबसे बड़ी रुसवाई है। 64मुनाफिकों को चिंता है कि उनके बारे में कोई ऐसी सूरह नाज़िल हो जाएगी जो उनके दिलों में जो कुछ है उसे ज़ाहिर कर देगी। कहो, 'ऐ पैगंबर,' 'मज़ाक उड़ाते रहो! अल्लाह वही ज़ाहिर करने वाला है जिसकी तुम्हें चिंता है।' 65अगर तुम उनसे सवाल करोगे, तो वे ज़रूर कहेंगे, 'हम तो बस बातें कर रहे थे और मज़ाक कर रहे थे।' कहो, 'क्या! तुम अल्लाह, उसकी आयतों और उसके रसूल का मज़ाक कैसे उड़ा सकते हो?' 66बहाने मत बनाओ! तुम अपने ईमान लाने के बाद कुफ़्र कर चुके हो। यदि हम तुममें से कुछ को माफ़ कर दें, तो दूसरों को उनकी बुराई के कारण सज़ा देंगे।
وَمِنۡهُمُ ٱلَّذِينَ يُؤۡذُونَ ٱلنَّبِيَّ وَيَقُولُونَ هُوَ أُذُنٞۚ قُلۡ أُذُنُ خَيۡرٖ لَّكُمۡ يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَيُؤۡمِنُ لِلۡمُؤۡمِنِينَ وَرَحۡمَةٞ لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنكُمۡۚ وَٱلَّذِينَ يُؤۡذُونَ رَسُولَ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيم 61يَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمۡ لِيُرۡضُوكُمۡ وَٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ أَحَقُّ أَن يُرۡضُوهُ إِن كَانُواْ مُؤۡمِنِينَ 62أَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّهُۥ مَن يُحَادِدِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَأَنَّ لَهُۥ نَارَ جَهَنَّمَ خَٰلِدٗا فِيهَاۚ ذَٰلِكَ ٱلۡخِزۡيُ ٱلۡعَظِيمُ 63يَحۡذَرُ ٱلۡمُنَٰفِقُونَ أَن تُنَزَّلَ عَلَيۡهِمۡ سُورَةٞ تُنَبِّئُهُم بِمَا فِي قُلُوبِهِمۡۚ قُلِ ٱسۡتَهۡزِءُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ مُخۡرِجٞ مَّا تَحۡذَرُونَ 64وَلَئِن سَأَلۡتَهُمۡ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلۡعَبُۚ قُلۡ أَبِٱللَّهِ وَءَايَٰتِهِۦ وَرَسُولِهِۦ كُنتُمۡ تَسۡتَهۡزِءُونَ 65لَا تَعۡتَذِرُواْ قَدۡ كَفَرۡتُم بَعۡدَ إِيمَٰنِكُمۡۚ إِن نَّعۡفُ عَن طَآئِفَةٖ مِّنكُمۡ نُعَذِّبۡ طَآئِفَةَۢ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ مُجۡرِمِينَ66
आयत 66: 20. अर्थात जो लोग तौबा करेंगे।

ज्ञान की बातें
कुरान में, 'अल्लाह उन्हें भूल गया' (9:67) जैसे भावों को ऐसे समझा जाना चाहिए जो अल्लाह की शान के अनुकूल हो, क्योंकि अल्लाह भूलता नहीं है (19:64, 20:52)। इसका अर्थ है कि चूंकि मुनाफिकों (कपटी लोगों) ने अल्लाह के प्रति अपने कर्तव्यों की उपेक्षा की, इसलिए वह उन्हें जहन्नम (नरक) में अनदेखा करेगा।
इसी तरह, जब कुरान कहता है, 'उन काफिरों ने बुरी योजनाएँ बनाईं, और अल्लाह ने भी योजनाएँ बनाईं' (3:54), तो इसका मतलब यह नहीं है कि अल्लाह ने बुरी योजनाएँ बनाईं। इसका मतलब है कि उसने उनकी बुरी योजनाओं को उन्हीं पर उल्टा पड़वा दिया।
जब अल्लाह मोमिनों (विश्वासियों) से उसे 'अच्छा कर्ज़' देने के लिए कहता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसे ज़रूरत है। इसके बजाय, यह वादा करता है कि जो लोग उसके मार्ग में दान करते हैं, उन्हें इस जीवन में महान आशीर्वाद और परलोक में अपार प्रतिफल मिलेगा।
एक हदीस-ए-कुदसी में, अल्लाह कहता है, 'मैं बीमार था, लेकिन तुम मुझसे मिलने नहीं आए! ... मैंने तुमसे कुछ खाने को माँगा, लेकिन तुमने मुझे कुछ नहीं दिया! ... मैंने तुमसे कुछ पीने को माँगा, लेकिन तुमने मुझे कुछ नहीं दिया!' (इमाम मुस्लिम द्वारा दर्ज)। इसे लाक्षणिक रूप से समझा जाना चाहिए: अल्लाह बीमार, भूखा या प्यासा नहीं है। इसका मतलब है कि एक साथी मुसलमान ज़रूरत में था, और उनकी मदद करके, व्यक्ति को अल्लाह के पास अपना प्रतिफल मिल जाता।
एक और हदीस-ए-कुदसी में कहा गया है, 'अगर मैं अपने बंदे से प्यार करता हूँ, तो मैं उसकी सुनने की शक्ति बन जाता हूँ जिससे वह सुनता है, उसकी देखने की शक्ति बन जाता हूँ जिससे वह देखता है, उसके हाथ बन जाता हूँ जिससे वह पकड़ता है, और उसके पैर बन जाता हूँ जिससे वह चलता है' (इमाम अल-बुखारी द्वारा दर्ज)। इसका मतलब यह नहीं है कि अल्लाह शाब्दिक रूप से ये शारीरिक अंग बन जाता है। इसका अर्थ है कि अल्लाह इन अंगों को वही करने के लिए मार्गदर्शन करता है जो नेक और सही है।
मुनाफ़िक़ों का अज़ाब
67मुनाफ़िक़ मर्द और औरतें सब एक जैसे हैं: वे बुराई का हुक्म देते हैं, भलाई से रोकते हैं और अपने हाथों को बंद रखते हैं। उन्होंने अल्लाह को भुला दिया, तो अल्लाह ने उन्हें भुला दिया। मुनाफ़िक़ ही फ़ासिक़ हैं। 68अल्लाह ने मुनाफ़िक़ मर्दों और औरतों और काफ़िरों से जहन्नम की आग में हमेशा रहने का वादा किया है—वही उनके लिए काफ़ी है। अल्लाह ने उन पर लानत की है, और उनके लिए स्थायी अज़ाब है। 69तुम (मुनाफ़िक़) उन लोगों जैसे हो जो तुमसे पहले गुज़रे। वे तुमसे ज़्यादा ताक़तवर थे और उनके पास ज़्यादा माल और औलाद थी। उन्होंने दुनिया में अपने हिस्से का मज़ा लिया। तुमने भी अपने हिस्से का मज़ा लिया, जैसे उन्होंने लिया था। और तुमने भी वैसी ही बुरी बातें कीं, जैसी उन्होंने की थीं। ऐसे लोगों के आमाल दुनिया और आख़िरत में बर्बाद हो गए हैं। और वही असल में ख़सारा उठाने वाले हैं। 70क्या उन्हें उन लोगों की ख़बरें नहीं पहुँचीं जो उनसे पहले तबाह किए गए: नूह, आद और समूद की क़ौम, इब्राहीम की क़ौम, मदयन के लोग और लूत की उलट दी गई बस्तियाँ? उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे। अल्लाह ने उन पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि उन्होंने ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया।
ٱلۡمُنَٰفِقُونَ وَٱلۡمُنَٰفِقَٰتُ بَعۡضُهُم مِّنۢ بَعۡضٖۚ يَأۡمُرُونَ بِٱلۡمُنكَرِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَقۡبِضُونَ أَيۡدِيَهُمۡۚ نَسُواْ ٱللَّهَ فَنَسِيَهُمۡۚ إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ هُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ 67وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلۡكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ هِيَ حَسۡبُهُمۡۚ وَلَعَنَهُمُ ٱللَّهُۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّقِيمٞ 68كَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ كَانُوٓاْ أَشَدَّ مِنكُمۡ قُوَّةٗ وَأَكۡثَرَ أَمۡوَٰلٗا وَأَوۡلَٰدٗا فَٱسۡتَمۡتَعُواْ بِخَلَٰقِهِمۡ فَٱسۡتَمۡتَعۡتُم بِخَلَٰقِكُمۡ كَمَا ٱسۡتَمۡتَعَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُم بِخَلَٰقِهِمۡ وَخُضۡتُمۡ كَٱلَّذِي خَاضُوٓاْۚ أُوْلَٰٓئِكَ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ 69أَلَمۡ يَأۡتِهِمۡ نَبَأُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ قَوۡمِ نُوحٖ وَعَادٖ وَثَمُودَ وَقَوۡمِ إِبۡرَٰهِيمَ وَأَصۡحَٰبِ مَدۡيَنَ وَٱلۡمُؤۡتَفِكَٰتِۚ أَتَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِۖ فَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيَظۡلِمَهُمۡ وَلَٰكِن كَانُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ70

छोटी कहानी
हमज़ा ने, एक दोस्त की मौत के बाद, अपने धर्म के प्रति अधिक गंभीर होने का फैसला किया और सालों बाद अपनी पहली जुमे की नमाज़ में शामिल हुआ। जब वह मस्जिद के बीच में बैठा था, खुतबे (उपदेश) के दौरान उसका फोन ज़ोर से बज उठा।
इमाम ने, रमज़ान पर अपना खुतबा जारी रखने के बजाय, लापरवाह 'पार्ट-टाइम' मुसलमानों की आलोचना करने के लिए विषय बदल दिया जो दूसरों की शांति भंग करते हैं। हमज़ा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई क्योंकि सब उसे घूर रहे थे, और वह टकराव से बचने के लिए नमाज़ के बाद सबसे पहले निकला।
अवांछित महसूस करते हुए, हमज़ा दोस्तों के साथ एक कैफे गया। वहाँ, उसने गलती से जूस का एक गिलास गिरा दिया, जो दूसरों पर छलक गया। उसे अपमानित होने की उम्मीद थी लेकिन इसके बजाय उसे दयालुता मिली; एक व्यक्ति ने पूछा कि क्या वह ठीक है, और कर्मचारी विनम्र और दोस्ताना थे। उसे दुख हुआ कि कैफे के लोग मस्जिद के लोगों की तुलना में अधिक स्वागत करने वाले थे।
कुछ साल बाद, एक सहकर्मी ने उसे एक अलग मस्जिद में आमंत्रित किया। शुरू में हिचकिचाते हुए, हमज़ा जाने के लिए सहमत हो गया और उसने पाया कि इमाम बुद्धिमान और दयालु थे, जिससे सभी को घर जैसा महसूस हुआ। उस दिन से, हमज़ा नियमित रूप से उस मस्जिद में जाता रहा है।


ज्ञान की बातें
यह सूरह, सूरह 3 की तरह, 'भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने' (अम्र बिल मारूफ़ व नाहि अनिल मुनकर) के इस्लामी सिद्धांत पर ज़ोर देती है। इसका मतलब है कि लोगों को सही की ओर मार्गदर्शन करना और गलत से दूर रखना हमारा कर्तव्य है।
हालाँकि, ज़्यादातर लोगों को सुधारा जाना पसंद नहीं होता, खासकर अगर यह कठोरता से किया जाए। सार्वजनिक अपमान या आलोचना किसी को इस्लाम से और दूर धकेल सकती है।
इसलिए, हमें दूसरों को दयालुता और बुद्धिमत्ता के साथ सुधारना चाहिए।
जब लोग ईमानदारी से अल्लाह की रहमत चाहते हैं, तो हमें उन्हें दूर नहीं करना चाहिए।

छोटी कहानी
एक युवा मुस्लिम, खव्वत इब्न जुबैर को एक बार पैगंबर ने कुछ महिलाओं के साथ बातचीत करते हुए पाया, जिसे उचित नहीं माना जाता था।
हैरान और घबराए हुए महसूस करते हुए, खव्वत ने तुरंत एक बहाना बनाया, पैगंबर से कहा कि वह महिलाओं से अपने भागे हुए ऊँट के लिए एक लगाम बनाने के लिए कह रहे थे।
उस घटना के बाद, हर बार जब पैगंबर उन्हें देखते थे, तो वे मज़ाक में पूछते थे, 'तुम्हारे जंगली ऊँट का क्या हुआ?' खव्वत हमेशा जवाब देने में असमर्थ रहते थे।
एक दिन, जब खव्वत नमाज़ पढ़ रहे थे, पैगंबर उनके बगल में बैठ गए। खव्वत, यह उम्मीद करते हुए कि पैगंबर चले जाएंगे, अपनी नमाज़ को लंबा करने की कोशिश की। हालांकि, पैगंबर ने उनसे धीरे से कहा, 'मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, इसलिए जितनी चाहो उतनी नमाज़ पढ़ो!'
खव्वत की नमाज़ खत्म होने के बाद, पैगंबर ने एक बार फिर ऊँट के बारे में पूछा। अपना सबक सीख चुके खव्वत ने खुशखबरी के साथ जवाब दिया: 'अल-हम्दु-लिल्लाह! मेरे ऊँट ने सचमुच इस्लाम कबूल कर लिया है, इसलिए अब वह भागता नहीं है।'
पैगंबर उनके जवाब से प्रसन्न हुए और उनके लिए दुआ की। (इमाम अत-तबरानी द्वारा रिवायत किया गया है।)
मोमिनों का सवाब
71मोमिन मर्द और औरतें एक-दूसरे के मददगार हैं। वे नेकी का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते हैं और अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करते हैं। अल्लाह उन पर रहम करेगा। बेशक अल्लाह ग़ालिब और हिकमत वाला है। 72अल्लाह ने मोमिन मर्दों और औरतों से ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जिनमें वे हमेशा रहेंगे, और हमेशा की जन्नतों में पाकीज़ा घरों का, और सबसे बढ़कर अल्लाह की रज़ामंदी का। यही सबसे बड़ी कामयाबी है।
وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتُ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٖۚ يَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَيُطِيعُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓۚ أُوْلَٰٓئِكَ سَيَرۡحَمُهُمُ ٱللَّهُۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيم 71وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَمَسَٰكِنَ طَيِّبَةٗ فِي جَنَّٰتِ عَدۡنٖۚ وَرِضۡوَٰنٞ مِّنَ ٱللَّهِ أَكۡبَرُۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ72
काफ़िरों को चेतावनी
73ऐ नबी! काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उन पर सख़्ती बरतो। जहन्नम उनका ठिकाना होगा और वह क्या ही बुरा ठिकाना है! 74वे अल्लाह की क़सम खाते हैं कि उन्होंने कोई 'बुरी' बात नहीं कही, जबकि उन्होंने वास्तव में कुफ़्र की बातें कही थीं, इस्लाम क़बूल करने के बाद ईमान से फिर गए थे और कुछ बुरी साज़िशें की थीं, जिन्हें वे पूरा न कर सके। उनके नाराज़ होने का कोई कारण नहीं है सिवाय इसके कि अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें अपने फ़ज़्ल से मालामाल किया है! अगर वे तौबा करें, तो यह उनके लिए बेहतर होगा। लेकिन अगर वे इनकार करें, तो अल्लाह उन्हें इस दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब देगा, और ज़मीन पर उनका कोई वाली और मददगार न होगा।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ جَٰهِدِ ٱلۡكُفَّارَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱغۡلُظۡ عَلَيۡهِمۡۚ وَمَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ 73يَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ مَا قَالُواْ وَلَقَدۡ قَالُواْ كَلِمَةَ ٱلۡكُفۡرِ وَكَفَرُواْ بَعۡدَ إِسۡلَٰمِهِمۡ وَهَمُّواْ بِمَا لَمۡ يَنَالُواْۚ وَمَا نَقَمُوٓاْ إِلَّآ أَنۡ أَغۡنَىٰهُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ مِن فَضۡلِهِۦۚ فَإِن يَتُوبُواْ يَكُ خَيۡرٗا لَّهُمۡۖ وَإِن يَتَوَلَّوۡاْ يُعَذِّبۡهُمُ ٱللَّهُ عَذَابًا أَلِيمٗا فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۚ وَمَا لَهُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مِن وَلِيّٖ وَلَا نَصِير74
आयत 74: उनमें से कुछ ने तबूक से लौटते समय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर घात लगाकर हमला करने और उन्हें मारने की कोशिश की। इसका मतलब है कि वे लोग एहसानफरामोश हैं, और उनके पास इतना बुरा होने का कोई कारण नहीं है।
कृतघ्न मुनाफ़िक़
75कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अल्लाह से वादा किया था: 'अगर वह हमें अपनी नेमतों में से देगा, तो हम अवश्य सदक़ा करेंगे और नेक लोगों में से होंगे।' 76लेकिन जब उसने उन्हें अपनी नेमतों में से दिया, तो उन्होंने सदक़ा करने से इनकार कर दिया और लापरवाही से मुँह मोड़ लिया। 77तो उसने उनके दिलों में मुनाफ़िक़त भर दी उस दिन तक जब वे उससे मिलेंगे, अल्लाह से अपना वादा तोड़ने के कारण और अपने झूठ के कारण। 78क्या वे नहीं जानते कि अल्लाह उनके मन के भेदों और उनकी गुप्त बातों को भली-भाँति जानता है और यह कि अल्लाह ही सभी ग़ैब की बातों को जानता है?
وَمِنۡهُم مَّنۡ عَٰهَدَ ٱللَّهَ لَئِنۡ ءَاتَىٰنَا مِن فَضۡلِهِۦ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُونَنَّ مِنَ ٱلصَّٰلِحِينَ 75فَلَمَّآ ءَاتَىٰهُم مِّن فَضۡلِهِۦ بَخِلُواْ بِهِۦ وَتَوَلَّواْ وَّهُم مُّعۡرِضُونَ 76فَأَعۡقَبَهُمۡ نِفَاقٗا فِي قُلُوبِهِمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ يَلۡقَوۡنَهُۥ بِمَآ أَخۡلَفُواْ ٱللَّهَ مَا وَعَدُوهُ وَبِمَا كَانُواْ يَكۡذِبُونَ 77أَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ سِرَّهُمۡ وَنَجۡوَىٰهُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ عَلَّٰمُ ٱلۡغُيُوبِ78


छोटी कहानी
एक छोटे से कस्बे में, मुख्य सड़क के बीच में एक बड़ी चट्टान आ गई। कई लोग वहाँ से गुज़रे और सड़क को साफ रखने में राजा की विफलता के बारे में शिकायत की।
एक गरीब किसान आया और, बिना कुछ कहे, चट्टान को धकेलने और खींचने लगा। वह पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) की एक हदीस से प्रेरित था: 'लोगों के रास्ते से हानिकारक वस्तु को हटाना एक सदक़ा है' (इमाम मुस्लिम)।
जब किसान संघर्ष कर रहा था, वही लोग जो राजा की आलोचना कर रहे थे, उन्होंने मदद की पेशकश नहीं की। कुछ ने तो उस पर दिखावा करने का आरोप भी लगाया, जबकि दूसरों ने उसके प्रयास के लिए उसे मूर्ख कहा।
चट्टान हटाने के बाद, किसान को उसके नीचे 100 दीनार (सोने के सिक्के) वाला एक थैला और राजा का एक पत्र मिला। पत्र में उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया गया था जिसने केवल शिकायत करने के बजाय समस्या को हल करने के लिए स्वेच्छा से काम किया।

छोटी कहानी
जैसा कि कहावत है, 'जो ज़्यादा बोलते हैं, वे कम काम करते हैं।' यह कहानी इसी बात को दर्शाती है।
एक दिन, एक मुख्य मार्ग पर एक बड़ा पत्थर आ गया। कई लोगों ने शिकायत की और राजा की आलोचना की कि उन्होंने सड़क को साफ़ नहीं रखा, लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की।
एक गरीब किसान आया और पैगंबर की हदीस, 'लोगों के रास्ते से हानिकारक वस्तु को हटाना एक सदक़ा है' (इमाम मुस्लिम) से प्रेरित होकर, उसने खुद पत्थर हटाने का फैसला किया।
वही लोग जो शिकायत कर रहे थे, किसान को संघर्ष करते देखते रहे लेकिन कोई मदद नहीं की। कुछ ने तो उसका मज़ाक भी उड़ाया, उसे मूर्ख कहकर या उस पर दिखावा करने का आरोप लगाया।
पत्थर हटाने के बाद, किसान को 100 सोने के सिक्कों से भरी एक थैली और राजा का एक पत्र मिला, जिसमें उस व्यक्ति को धन्यवाद दिया गया था जिसने केवल शिकायत करने के बजाय समस्या का समाधान किया था।

पृष्ठभूमि की कहानी
आयत 79 के अनुसार, मुनाफ़िक़ों ने अल्लाह के मार्ग में दान देने से न केवल इनकार किया, बल्कि उन लोगों की आलोचना भी की जिन्होंने दान दिया।
यदि कोई धनी मुसलमान उदारतापूर्वक दान देता, तो मुनाफ़िक़ कहते, 'वह दिखावा कर रहा है!'
और यदि कोई ग़रीब मुसलमान अपनी सामर्थ्य के अनुसार थोड़ा-सा दान देता, तो मुनाफ़िक़ उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहते, 'देखो तो! यह कुछ भी नहीं है।'
यह इमाम अल-बुख़ारी और इमाम मुस्लिम द्वारा दर्ज किया गया है।
मुनाफ़िक़ सदक़ात की आलोचना करते हैं।
79ऐसे लोग भी हैं जो कुछ मोमिनों की उदारतापूर्वक दान करने के लिए आलोचना करते हैं, और दूसरों का उपहास करते हैं कि वे केवल उतना ही देते हैं जितना वे वहन कर सकते हैं। अल्लाह उनका उपहास उन्हीं पर पलट देगा, और उन्हें दर्दनाक अज़ाब मिलेगा। 80यह मायने नहीं रखता कि आप, ऐ पैगंबर, उनके लिए माफ़ी की दुआ करें या न करें। चाहे आप सत्तर बार भी उनकी माफ़ी के लिए दुआ करें, अल्लाह उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा। यह इसलिए है क्योंकि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल पर से ईमान खो दिया है। और अल्लाह ऐसे लोगों को हिदायत नहीं देता जो फ़ासिक़ हैं।
ٱلَّذِينَ يَلۡمِزُونَ ٱلۡمُطَّوِّعِينَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ فِي ٱلصَّدَقَٰتِ وَٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ إِلَّا جُهۡدَهُمۡ فَيَسۡخَرُونَ مِنۡهُمۡ سَخِرَ ٱللَّهُ مِنۡهُمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ 79ٱسۡتَغۡفِرۡ لَهُمۡ أَوۡ لَا تَسۡتَغۡفِرۡ لَهُمۡ إِن تَسۡتَغۡفِرۡ لَهُمۡ سَبۡعِينَ مَرَّةٗ فَلَن يَغۡفِرَ ٱللَّهُ لَهُمۡۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَفَرُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡفَٰسِقِينَ80
और झूठे बहाने
81वे 'मुनाफ़िक़' जो पीछे रह गए थे, पैगंबर के चले जाने के बाद अपने घरों में प्रसन्न थे। वे अल्लाह के मार्ग में अपने धन और अपने प्राणों से बलिदान देने के विरुद्ध थे, आपस में कहते हुए, 'इस गर्मी में कूच मत करो।' कहो, 'हे पैगंबर, जहन्नम की आग कहीं ज़्यादा गर्म है!' काश वे समझते! 82तो, उन्हें थोड़ा हँस लेने दो; वे बहुत रोएँगे—उनके किए के दंड स्वरूप। 83बाद में, जब अल्लाह तुम्हें वापस लौटाएगा, 'हे पैगंबर,' और उनमें से कुछ तुमसे बाहर जाकर लड़ने की अनुमति माँगें, तो कहो, 'तुम कभी मेरे साथ बाहर नहीं जाओगे और न ही किसी दुश्मन से लड़ोगे। तुमने पहली बार पीछे रहना पसंद किया था, तो उन 'असहायों' के साथ रहो जो पीछे रह गए हैं।'
فَرِحَ ٱلۡمُخَلَّفُونَ بِمَقۡعَدِهِمۡ خِلَٰفَ رَسُولِ ٱللَّهِ وَكَرِهُوٓاْ أَن يُجَٰهِدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَالُواْ لَا تَنفِرُواْ فِي ٱلۡحَرِّۗ قُلۡ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرّٗاۚ لَّوۡ كَانُواْ يَفۡقَهُونَ 81فَلۡيَضۡحَكُواْ قَلِيلٗا وَلۡيَبۡكُواْ كَثِيرٗا جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ 82فَإِن رَّجَعَكَ ٱللَّهُ إِلَىٰ طَآئِفَةٖ مِّنۡهُمۡ فَٱسۡتَٔۡذَنُوكَ لِلۡخُرُوجِ فَقُل لَّن تَخۡرُجُواْ مَعِيَ أَبَدٗا وَلَن تُقَٰتِلُواْ مَعِيَ عَدُوًّاۖ إِنَّكُمۡ رَضِيتُم بِٱلۡقُعُودِ أَوَّلَ مَرَّةٖ فَٱقۡعُدُواْ مَعَ ٱلۡخَٰلِفِينَ83

पृष्ठभूमि की कहानी
इब्न सलूल मदीना का सरदार बनने ही वाला था, लेकिन पैगंबर के आने और मक्का के मुसलमानों ने सब कुछ बदल दिया।
इस्लाम स्वीकार करने का दावा करने के बावजूद, वह गुप्त रूप से मुसलमानों के विरुद्ध काम करता था और उसे प्रमुख पाखंडी के रूप में जाना जाता था।
जब उसका निधन हुआ, तो उसके बेटे अब्दुल्ला, जो एक वफादार मुसलमान था, ने पैगंबर से उसके जनाज़े की नमाज़ पढ़ाने का अनुरोध किया।
उमर इस अनुरोध के पूरी तरह खिलाफ थे क्योंकि इब्न सलूल का इस्लाम के प्रति शत्रुता का एक लंबा इतिहास था।
हालांकि, पैगंबर अब्दुल्ला का सम्मान करना चाहते थे और इब्न सलूल के अनुयायियों को इस्लाम की ओर आकर्षित करने की उम्मीद करते थे।
इसके तुरंत बाद, आयतें 84-85 नाज़िल हुईं, जिनमें पैगंबर को ऐसे मुनाफिकों के लिए दुआ न करने का निर्देश दिया गया था। (इमाम अल-बुखारी द्वारा दर्ज)
मुनाफ़िक़ों के लिए दुआ
84उन पर कभी जनाज़े की नमाज़ मत पढ़ना और न ही उनकी क़ब्र पर दुआ के लिए खड़े होना, क्योंकि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का इन्कार किया और फ़ासिक़ होकर मरे। 85और उनकी दौलत और औलाद से प्रभावित मत होना। अल्लाह तो बस चाहता है कि इन चीज़ों के ज़रिए उन्हें दुनिया में अज़ाब दे, फिर उनकी रूहें इस हाल में निकलें कि वे काफ़िर हों।
وَلَا تُصَلِّ عَلَىٰٓ أَحَدٖ مِّنۡهُم مَّاتَ أَبَدٗا وَلَا تَقُمۡ عَلَىٰ قَبۡرِهِۦٓۖ إِنَّهُمۡ كَفَرُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَمَاتُواْ وَهُمۡ فَٰسِقُونَ 84وَلَا تُعۡجِبۡكَ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَأَوۡلَٰدُهُمۡۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِي ٱلدُّنۡيَا وَتَزۡهَقَ أَنفُسُهُمۡ وَهُمۡ كَٰفِرُونَ85
काफ़िरों
86जब कोई सूरह अवतरित होती है, आदेश देते हुए: 'अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के साथ संघर्ष करो,' तो उनमें से धनी लोग तुमसे घर पर रहने की अनुमति माँगते हैं, यह कहते हुए, 'हमें उनके साथ छोड़ दो जो पीछे रह जाते हैं।' 87उन्होंने कमज़ोरों के साथ पीछे रहना पसंद किया, और उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई है ताकि वे वास्तव में समझ न सकें। 88लेकिन रसूल और उनके साथ के ईमान वाले अपने माल और अपनी जानों से संघर्ष किया। उनके लिए ही सारी भलाइयाँ हैं, और वही सफल होंगे। 89अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार किए हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जिनमें वे हमेशा रहेंगे। यही सबसे बड़ी सफलता है। 90कुछ बद्दू अरब भी घर पर रहने की अनुमति माँगने आए। और जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल से बेईमानी की, वे 'बिना किसी बहाने के' पीछे रह गए। उनमें से काफ़िरों को दर्दनाक अज़ाब मिलेगा।
وَإِذَآ أُنزِلَتۡ سُورَةٌ أَنۡ ءَامِنُواْ بِٱللَّهِ وَجَٰهِدُواْ مَعَ رَسُولِهِ ٱسۡتَٔۡذَنَكَ أُوْلُواْ ٱلطَّوۡلِ مِنۡهُمۡ وَقَالُواْ ذَرۡنَا نَكُن مَّعَ ٱلۡقَٰعِدِينَ 86رَضُواْ بِأَن يَكُونُواْ مَعَ ٱلۡخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَهُمۡ لَا يَفۡقَهُونَ 87ٰكِنِ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ جَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡۚ وَأُوْلَٰٓئِكَ لَهُمُ ٱلۡخَيۡرَٰتُۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ 88أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ 89وَجَآءَ ٱلۡمُعَذِّرُونَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ لِيُؤۡذَنَ لَهُمۡ وَقَعَدَ ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ سَيُصِيبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۡهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ90
मान्य और अमान्य उज़्र
91कमज़ोरों पर, बीमारों पर, और उन पर जिनके पास खर्च करने को कुछ नहीं, कोई दोष नहीं यदि वे पीछे रह जाएँ, जब तक वे अल्लाह और उसके रसूल के प्रति सच्चे रहें। नेकी करने वालों पर कोई दोष नहीं। और अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, दयावान है। 92और उन पर भी कोई दोष नहीं जो आपके पास आए थे कि आप उन्हें सवारी दें। फिर जब आपने उनसे कहा, 'मुझे तुम्हारे लिए कोई सवारी नहीं मिल सकती,' तो वे आँखों से आँसू बहाते हुए लौट गए, बहुत दुखी होकर क्योंकि उनके पास खर्च करने को कुछ नहीं था। 93दोष केवल उन पर है जो रुकने की अनुमति माँगते हैं, जबकि वे धनी हैं। उन्होंने असहायों के साथ पीछे रहना पसंद किया, और अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी है ताकि वे जान न सकें। 94वे तुम्हें बहाने बनाएँगे जब तुम उनके पास लौटोगे। कहो, 'बहाने मत बनाओ; हम तुम पर विश्वास नहीं करेंगे। अल्लाह ने हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है। तुम्हारे कर्मों को अल्लाह और उसके रसूल द्वारा देखा जाएगा। अंत में, तुम्हें देखे और अनदेखे के जानने वाले की ओर लौटाया जाएगा, फिर वह तुम्हें बताएगा कि तुमने क्या किया था।' 95जब तुम लौटोगे, तो वे तुम्हें अल्लाह की कसमें खाते रहेंगे, केवल इसलिए कि उन्हें अकेला छोड़ दिया जाए। तो उन्हें अकेला छोड़ दो; वे वास्तव में अपवित्र हैं। जहन्नम उनका ठिकाना होगा उनके किए की सज़ा के तौर पर। 96वे फिर क़सम खाएँगे ताकि तुम उन्हें वापस ले लो। और अगर तुम उन्हें स्वीकार कर भी लो, तो अल्लाह फ़सादियों को कभी क़बूल नहीं करेगा।
لَّيۡسَ عَلَى ٱلضُّعَفَآءِ وَلَا عَلَى ٱلۡمَرۡضَىٰ وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ مَا يُنفِقُونَ حَرَجٌ إِذَا نَصَحُواْ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦۚ مَا عَلَى ٱلۡمُحۡسِنِينَ مِن سَبِيلٖۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ 91وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ إِذَا مَآ أَتَوۡكَ لِتَحۡمِلَهُمۡ قُلۡتَ لَآ أَجِدُ مَآ أَحۡمِلُكُمۡ عَلَيۡهِ تَوَلَّواْ وَّأَعۡيُنُهُمۡ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمۡعِ حَزَنًا أَلَّا يَجِدُواْ مَا يُنفِقُونَ 92إِنَّمَا ٱلسَّبِيلُ عَلَى ٱلَّذِينَ يَسۡتَٔۡذِنُونَكَ وَهُمۡ أَغۡنِيَآءُۚ رَضُواْ بِأَن يَكُونُواْ مَعَ ٱلۡخَوَالِفِ وَطَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ فَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ 93يَعۡتَذِرُونَ إِلَيۡكُمۡ إِذَا رَجَعۡتُمۡ إِلَيۡهِمۡۚ قُل لَّا تَعۡتَذِرُواْ لَن نُّؤۡمِنَ لَكُمۡ قَدۡ نَبَّأَنَا ٱللَّهُ مِنۡ أَخۡبَارِكُمۡۚ وَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمۡ وَرَسُولُهُۥ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَٰلِمِ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ 94سَيَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمۡ إِذَا ٱنقَلَبۡتُمۡ إِلَيۡهِمۡ لِتُعۡرِضُواْ عَنۡهُمۡۖ فَأَعۡرِضُواْ عَنۡهُمۡۖ إِنَّهُمۡ رِجۡسٞۖ وَمَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ 95يَحۡلِفُونَ لَكُمۡ لِتَرۡضَوۡاْ عَنۡهُمۡۖ فَإِن تَرۡضَوۡاْ عَنۡهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يَرۡضَىٰ عَنِ ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡفَٰسِقِينَ96
मोमिन और काफ़िर क़बीले
97मदीना के आस-पास के ग्रामीण अरब कुफ़्र और निफ़ाक़ में बहुत अधिक कठोर हैं, और वे अल्लाह द्वारा अपने रसूल पर अवतरित किए गए कानूनों से अनजान रहने के अधिक योग्य हैं। अल्लाह पूर्ण ज्ञान और हिकमत वाला है। 98उन लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो कुछ वे दान करते हैं उसे घाटा समझते हैं और तुम्हारे साथ बुरी घटनाओं के घटने की प्रतीक्षा करते हैं। उन्हीं पर बुरी घटनाएँ घटें! और अल्लाह सब कुछ सुनता और जानता है। 99लेकिन उन लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं, और जो कुछ वे दान करते हैं उसे अल्लाह के क़रीब होने का ज़रिया और रसूल की दुआएँ प्राप्त करने का माध्यम समझते हैं। यह निश्चित रूप से उन्हें क़रीब लाएगा। अल्लाह उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल करेगा। निःसंदेह, अल्लाह बहुत क्षमाशील और दयावान है। 100और जो ईमान लाने वालों में सबसे आगे थे—मुहाजिरों और अंसार में से सबसे पहले—और जो नेकी में उनके पीछे चले, अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। और उसने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार किए हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जिनमें वे हमेशा-हमेशा रहेंगे। यही सबसे बड़ी सफलता है। 101तुम्हारे आस-पास के ग्रामीण अरबों में से कुछ मुनाफ़िक़ हैं, जैसे मदीना के कुछ लोग। उन्होंने निफ़ाक़ में महारत हासिल कर ली है। तुम उन्हें नहीं जानते; हम उन्हें जानते हैं। हम उन्हें बार-बार सज़ा देंगे (इस दुनिया में), फिर वे एक भयानक अज़ाब की ओर लौटाए जाएंगे।
ٱلۡأَعۡرَابُ أَشَدُّ كُفۡرٗا وَنِفَاقٗا وَأَجۡدَرُ أَلَّا يَعۡلَمُواْ حُدُودَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ 97وَمِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ مَن يَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ مَغۡرَمٗا وَيَتَرَبَّصُ بِكُمُ ٱلدَّوَآئِرَۚ عَلَيۡهِمۡ دَآئِرَةُ ٱلسَّوۡءِۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٞ 98وَمِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ مَن يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَيَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ قُرُبَٰتٍ عِندَ ٱللَّهِ وَصَلَوَٰتِ ٱلرَّسُولِۚ أَلَآ إِنَّهَا قُرۡبَةٞ لَّهُمۡۚ سَيُدۡخِلُهُمُ ٱللَّهُ فِي رَحۡمَتِهِۦٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ 99وَٱلسَّٰبِقُونَ ٱلۡأَوَّلُونَ مِنَ ٱلۡمُهَٰجِرِينَ وَٱلۡأَنصَارِ وَٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُم بِإِحۡسَٰنٖ رَّضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُواْ عَنۡهُ وَأَعَدَّ لَهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي تَحۡتَهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ 100وَمِمَّنۡ حَوۡلَكُم مِّنَ ٱلۡأَعۡرَابِ مُنَٰفِقُونَۖ وَمِنۡ أَهۡلِ ٱلۡمَدِينَةِ مَرَدُواْ عَلَى ٱلنِّفَاقِ لَا تَعۡلَمُهُمۡۖ نَحۡنُ نَعۡلَمُهُمۡۚ سَنُعَذِّبُهُم مَّرَّتَيۡنِ ثُمَّ يُرَدُّونَ إِلَىٰ عَذَابٍ عَظِيم101
आयत 100: 23. मक्का के वे शुरुआती मुसलमान जो मक्का में कई सालों के उत्पीड़न के बाद मदीना हिजरत कर गए। 24. मदीना के वे मुसलमान जिन्होंने मक्की मुसलमानों को पनाह दी।
आयत 101: इस दुनिया में ज़िल्लत, उनकी ज़िंदगी का बुरा अंजाम, क़ब्र का अज़ाब और इसी तरह की सज़ाओं के ज़रिए।
मग़फ़िरत की उम्मीद करने वाले
102कुछ अन्य लोगों ने अपनी गलती स्वीकार की है: उन्होंने नेक काम को बुरे काम के साथ मिलाया। यह उचित है कि आशा की जाए कि अल्लाह उन पर दया करेगा। निःसंदेह, अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यंत दयावान है। 103'हे नबी', उनके माल से सदक़ा (दान) लें ताकि उन्हें पाक करें और उन्हें बरकत दें, और उनके लिए दुआ करें। निःसंदेह आपकी दुआ उनके लिए सुकून का कारण है। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है। 104क्या वे नहीं जानते कि अल्लाह ही अपने बंदों की तौबा कबूल करता है और उनके सदक़ात (दान) लेता है, और यह कि अल्लाह ही तौबा कबूल करने वाला, अत्यंत दयावान है? 105उनसे कहो, 'हे नबी,' 'जो तुम्हें करना है, करो। तुम्हारे कर्मों को अल्लाह, उसके रसूल और मोमिन देखेंगे। अंततः, तुम्हें हर छिपी और खुली चीज़ को जानने वाले की ओर लौटाया जाएगा, फिर वह तुम्हें बताएगा कि तुमने क्या किया था।' 106और कुछ अन्य अल्लाह के हुक्म पर छोड़े गए हैं: चाहे वह उन्हें अज़ाब दे या उन पर रहम करे। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है।
وَءَاخَرُونَ ٱعۡتَرَفُواْ بِذُنُوبِهِمۡ خَلَطُواْ عَمَلٗا صَٰلِحٗا وَءَاخَرَ سَيِّئًا عَسَى ٱللَّهُ أَن يَتُوبَ عَلَيۡهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ 102خُذۡ مِنۡ أَمۡوَٰلِهِمۡ صَدَقَةٗ تُطَهِّرُهُمۡ وَتُزَكِّيهِم بِهَا وَصَلِّ عَلَيۡهِمۡۖ إِنَّ صَلَوٰتَكَ سَكَنٞ لَّهُمۡۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ 103أَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ هُوَ يَقۡبَلُ ٱلتَّوۡبَةَ عَنۡ عِبَادِهِۦ وَيَأۡخُذُ ٱلصَّدَقَٰتِ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ 104وَقُلِ ٱعۡمَلُواْ فَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمۡ وَرَسُولُهُۥ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۖ وَسَتُرَدُّونَ إِلَىٰ عَٰلِمِ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ 105وَءَاخَرُونَ مُرۡجَوۡنَ لِأَمۡرِ ٱللَّهِ إِمَّا يُعَذِّبُهُمۡ وَإِمَّا يَتُوبُ عَلَيۡهِمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيم106
आयत 102: उन्होंने अल्लाह पर अपने ईमान को उनके पैगंबर का साथ देने से इनकार करने के साथ जोड़ दिया है।
आयत 103: अपनी गलती सुधारने के लिए, जो लोग पीछे रह गए थे उनमें से कुछ ने अल्लाह के मार्ग में दान करने की पेशकश की। इमाम इब्न कसीर और कई अन्य विद्वानों के अनुसार, इसी कारण से यह आयत नाज़िल हुई।
आयत 106: 28. वे तीन सहाबी जो बिना किसी बहाने के पीछे रह गए। विवरण के लिए सूरह 9:118-119 की पृष्ठभूमि की कहानी पढ़िए।


पृष्ठभूमि की कहानी
अबू आमिर अर-राहिब नामक एक मुनाफ़िक़ था जिसने मुसलमानों के विरुद्ध सक्रिय रूप से लड़ाई लड़ी और मक्कावासियों को मदीना पर हमला करने के लिए उकसाया। इन प्रयासों के बावजूद, मुस्लिम समुदाय अल्लाह की मदद से बचा रहा।
जब पूरा अरब इस्लाम के अधीन एकजुट हो गया, तो अबू आमिर रोमनों को मुसलमानों पर आक्रमण करने के लिए समझाने हेतु सीरिया गया।
मदीना में अन्य मुनाफ़िक़ों के लिए एक अड्डा स्थापित करने हेतु, अबू आमिर ने गुप्त रूप से अपने अनुयायियों को मस्जिद क़ुबा के पास एक मस्जिद बनाने का निर्देश दिया, जो शहर में मुसलमानों द्वारा निर्मित पहली मस्जिद थी।
यह नई मस्जिद समुदाय को नुकसान पहुँचाने और अबू आमिर की सहायता से मुसलमानों को मदीना से निष्कासित करने की योजना बनाने के लिए एक अड्डा बनने के इरादे से थी।
मुनाफ़िक़ों ने पैगंबर से तबूक के लिए रवाना होने से पहले संपर्क भी किया, उनसे अपनी नई मस्जिद को वहाँ नमाज़ पढ़कर आशीर्वाद देने के लिए कहा। उन्होंने अपनी वापसी पर आने का वादा किया।
तथापि, पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मदीना लौटने से ठीक पहले, आयतें 107-110 अवतरित हुईं, जिन्होंने उन्हें उस मस्जिद के खिलाफ चेतावनी दी। तत्पश्चात, उन्होंने 'मस्जिद-ए-ज़रार' को नष्ट करने का आदेश दिया। (इमाम इब्न कसीर द्वारा दर्ज)
ज़रर की मस्जिद
107और उन मुनाफ़िक़ों में से भी हैं जिन्होंने एक मस्जिद बनाई केवल नुक़सान पहुँचाने, कुफ़्र को बढ़ावा देने, ईमान वालों को बाँटने और उन लोगों के लिए एक अड्डे के रूप में जिन्होंने पहले अल्लाह और उसके रसूल से लड़ाई की थी। वे यक़ीनन क़सम खाएँगे, 'हमारा इरादा नेक नियती के सिवा कुछ नहीं था,' लेकिन अल्लाह गवाह है कि वे यक़ीनन झूठे हैं। 108ऐ नबी, ऐसी जगह में कभी नमाज़ अदा न करना। निःसंदेह, एक मस्जिद जिसकी नींव पहले दिन से ही तक़वा पर रखी गई थी, वह तुम्हारी नमाज़ की अधिक हक़दार है। उसमें ऐसे लोग हैं जो पवित्र होना पसंद करते हैं। और अल्लाह उन लोगों से प्रेम करता है जो स्वयं को पवित्र करते हैं। 109कौन बेहतर है: जिन्होंने अपनी इमारत सच्ची आस्था और अल्लाह की रज़ा पर स्थापित की, या जिन्होंने ऐसा एक ढहते हुए किनारे पर किया जो उनके साथ जहन्नम की आग में गिर जाता है? और अल्लाह ज़ालिमों को मार्ग नहीं दिखाता। 110यह इमारत जो उन्होंने खड़ी की, उनके दिलों में संदेह पैदा करती रहेगी जब तक उनके दिल फट न जाएँ। और अल्लाह के पास पूर्ण ज्ञान और हिकमत है।
وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مَسۡجِدٗا ضِرَارٗا وَكُفۡرٗا وَتَفۡرِيقَۢا بَيۡنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَإِرۡصَادٗا لِّمَنۡ حَارَبَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ مِن قَبۡلُۚ وَلَيَحۡلِفُنَّ إِنۡ أَرَدۡنَآ إِلَّا ٱلۡحُسۡنَىٰۖ وَٱللَّهُ يَشۡهَدُ إِنَّهُمۡ لَكَٰذِبُونَ 107لَا تَقُمۡ فِيهِ أَبَدٗاۚ لَّمَسۡجِدٌ أُسِّسَ عَلَى ٱلتَّقۡوَىٰ مِنۡ أَوَّلِ يَوۡمٍ أَحَقُّ أَن تَقُومَ فِيهِۚ فِيهِ رِجَالٞ يُحِبُّونَ أَن يَتَطَهَّرُواْۚ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُطَّهِّرِينَ 108أَفَمَنۡ أَسَّسَ بُنۡيَٰنَهُۥ عَلَىٰ تَقۡوَىٰ مِنَ ٱللَّهِ وَرِضۡوَٰنٍ خَيۡرٌ أَم مَّنۡ أَسَّسَ بُنۡيَٰنَهُۥ عَلَىٰ شَفَا جُرُفٍ هَارٖ فَٱنۡهَارَ بِهِۦ فِي نَارِ جَهَنَّمَۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّٰلِمِينَ 109لَا يَزَالُ بُنۡيَٰنُهُمُ ٱلَّذِي بَنَوۡاْ رِيبَةٗ فِي قُلُوبِهِمۡ إِلَّآ أَن تَقَطَّعَ قُلُوبُهُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ110
अहम बात
111निःसंदेह, अल्लाह ने मोमिनों से उनकी जानों और मालों को जन्नत के बदले में खरीद लिया है। वे अल्लाह की राह में लड़ते हैं, मारते हैं या मारे जाते हैं। यह एक सच्चा वादा है जो उसने तौरात, इंजील और कुरआन में किया है। और अल्लाह से बढ़कर अपना वादा कौन पूरा कर सकता है? तो अपनी उस सौदेबाजी पर खुश हो जाओ जो तुमने उससे की है। यही वास्तव में सबसे बड़ी कामयाबी है। 112ईमानवाले वे हैं जो हमेशा तौबा करते हैं, अपने रब की इबादत और तारीफ करते हैं, रोज़े रखते हैं, रुकूअ और सुजूद करते हैं, भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं, और अल्लाह की हदों को कायम रखते हैं। और ईमानवालों को खुशखबरी सुना दो।
۞ إِنَّ ٱللَّهَ ٱشۡتَرَىٰ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ أَنفُسَهُمۡ وَأَمۡوَٰلَهُم بِأَنَّ لَهُمُ ٱلۡجَنَّةَۚ يُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيَقۡتُلُونَ وَيُقۡتَلُونَۖ وَعۡدًا عَلَيۡهِ حَقّٗا فِي ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَٱلۡإِنجِيلِ وَٱلۡقُرۡءَانِۚ وَمَنۡ أَوۡفَىٰ بِعَهۡدِهِۦ مِنَ ٱللَّهِۚ فَٱسۡتَبۡشِرُواْ بِبَيۡعِكُمُ ٱلَّذِي بَايَعۡتُم بِهِۦۚ وَذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ 111ٱلتَّٰٓئِبُونَ ٱلۡعَٰبِدُونَ ٱلۡحَٰمِدُونَ ٱلسَّٰٓئِحُونَ ٱلرَّٰكِعُونَ ٱلسَّٰجِدُونَ ٱلۡأٓمِرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَٱلنَّاهُونَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَٱلۡحَٰفِظُونَ لِحُدُودِ ٱللَّهِۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ112
आयत 112: या नेक मकसदों के लिए सफर करना
मूर्ति-पूजकों के लिए दुआ
113नबी और ईमान वालों के लिए यह उचित नहीं है कि वे मुशरिकों (मूर्तिपूजकों) के लिए मग़फ़िरत (क्षमा) की दुआ करें—चाहे वे उनके करीबी रिश्तेदार ही क्यों न हों—जब उन्हें यह स्पष्ट हो जाए कि ऐसे लोग जहन्नम (नरक) के हकदार हैं। 114इब्राहीम का अपने पिता के लिए मग़फ़िरत की दुआ करना केवल उस वादे के कारण था जो उन्होंने उनसे किया था। लेकिन जब उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि उनका पिता अल्लाह का दुश्मन है, तो उन्होंने उससे संबंध तोड़ लिए। निःसंदेह, इब्राहीम बहुत कोमल हृदय और धैर्यवान थे। 115अल्लाह किसी कौम को हिदायत (मार्गदर्शन) देने के बाद कभी गुमराह नहीं ठहराता, जब तक कि वह उन्हें स्पष्ट न कर दे कि उन्हें किन चीज़ों से बचना चाहिए। निःसंदेह, अल्लाह हर चीज़ का पूर्ण ज्ञान रखता है। 116निःसंदेह, आसमानों और ज़मीन की बादशाही अल्लाह ही की है। वही जीवन देता है और मृत्यु देता है। और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा कोई संरक्षक या सहायक नहीं है।
مَا كَانَ لِلنَّبِيِّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَن يَسۡتَغۡفِرُواْ لِلۡمُشۡرِكِينَ وَلَوۡ كَانُوٓاْ أُوْلِي قُرۡبَىٰ مِنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمۡ أَنَّهُمۡ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَحِيمِ 113وَمَا كَانَ ٱسۡتِغۡفَارُ إِبۡرَٰهِيمَ لِأَبِيهِ إِلَّا عَن مَّوۡعِدَةٖ وَعَدَهَآ إِيَّاهُ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُۥٓ أَنَّهُۥ عَدُوّٞ لِّلَّهِ تَبَرَّأَ مِنۡهُۚ إِنَّ إِبۡرَٰهِيمَ لَأَوَّٰهٌ حَلِيمٞ 114وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِلَّ قَوۡمَۢا بَعۡدَ إِذۡ هَدَىٰهُمۡ حَتَّىٰ يُبَيِّنَ لَهُم مَّا يَتَّقُونَۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٌ 115إِنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۚ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا نَصِير116
आयत 113: 30. जब वे कुफ़्र की अवस्था में मरते हैं।
आयत 114: उसने उनसे अपना रिश्ता तोड़ दिया।

पृष्ठभूमि की कहानी
आयत 118-119 में तीन सहाबा—काब बिन मालिक, मुरारा बिन अर-रबी और हिलाल बिन उमैया—का ज़िक्र है, जो कोई जायज़ उज़्र न होने के बावजूद पैगंबर के साथ तबूक अभियान में शामिल नहीं हुए थे।
काब बिन मालिक ने बताया कि वह अपनी तैयारी टालते रहे, यह कहते हुए कि 'मैं इसे कल करूँगा,' जब तक बहुत देर हो गई। उन्हें मुनाफ़िक़ों और बेबस लोगों के साथ पीछे रह जाने का गहरा पछतावा हुआ।
जब पैगंबर वापस लौटे, तो ये तीनों आदमी आए और माफ़ी माँगी, सच्चाई बयान करते हुए, झूठे उज़्र गढ़े बिना जैसा कि दूसरों ने किया था। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी ईमानदारी माफ़ी का सबब बनेगी।
उन्हें सबक सिखाने के लिए, पैगंबर ने समुदाय को उनसे सभी तरह का मेल-जोल बंद करने का आदेश दिया। तीनों आदमियों ने बेहद मुश्किल समय सहा क्योंकि सबने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, और उन्होंने अल्लाह से माफ़ी के लिए दुआ की।
50 दिनों के बाद, ये दो आयतें नाज़िल हुईं, यह घोषणा करते हुए कि अल्लाह ने उन्हें माफ़ कर दिया था। (इमाम अल-बुख़ारी और इमाम मुस्लिम द्वारा दर्ज)
यह कहानी हमें दो मुख्य शिक्षाएँ देती है: 1) हमें नेक कामों में देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि 'आज का काम कल पर मत टालो', और 2) हमें हमेशा सच बोलना चाहिए, भले ही वह हमारे अपने खिलाफ हो।

छोटी कहानी
एक दिन, युवा इमाम अब्दुल-कादिर अल-जीलानी ज्ञान प्राप्त करने के लिए मक्का से बगदाद तक एक कारवां के साथ यात्रा कर रहे थे। उनकी माँ ने उन्हें 40 सोने के सिक्के (दीनार) दिए थे, जो उन्होंने उनकी कमीज में सिल दिए थे, और उन्हें हमेशा सच बोलने की सलाह दी थी।
अपनी यात्रा के दौरान, चोरों ने कारवां पर हमला किया और सबका पैसा लूट लिया। उन्होंने अब्दुल-कादिर को नज़रअंदाज़ कर दिया, यह सोचकर कि वह इतने छोटे हैं कि उनके पास कोई कीमती चीज़ नहीं होगी। हालाँकि, जब एक चोर ने यूँ ही पूछा कि क्या उनके पास कुछ है, तो अब्दुल-कादिर ने सच्चाई से जवाब दिया, 'हाँ, 40 दीनार।'
उनकी ईमानदारी से हैरान होकर, चोर उन्हें अपने सरदार के पास ले गया। अब्दुल-कादिर ने उन्हें दिखाया कि पैसा कहाँ छिपाया गया था। जब उनसे पूछा गया कि वह इतने ईमानदार क्यों हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, 'क्योंकि मैंने अपनी माँ से हमेशा सच बोलने का वादा किया है।'
चोरों का सरदार अब्दुल-कादिर की ईमानदारी से इतना प्रभावित हुआ कि उसने कहा, 'हमें खुद पर शर्म आनी चाहिए, क्योंकि तुम्हारे जैसा एक युवा अपनी माँ का सम्मान करता है, लेकिन हम अल्लाह का सम्मान करने में विफल रहे हैं।'
सरदार ने तब आदेश दिया कि सभी चोरी की गई वस्तुएँ कारवां को वापस कर दी जाएँ और घोषणा की कि उसने और उसके आदमियों ने चोरी करना छोड़ दिया है।


छोटी कहानी
तीन कॉलेज छात्र थे जिन्होंने अपनी अंतिम परीक्षा की पढ़ाई को बिलकुल आखिरी रात तक टालमटोल किया।
यह महसूस करते हुए कि उन्होंने बिलकुल पढ़ाई नहीं की थी, उन्होंने अधिक समय पाने के लिए अपने प्रोफेसर से झूठ बोलने का फैसला किया। उन्होंने उन्हें बताया कि उन्हें एक दोस्त को आपातकालीन कक्ष ले जाना पड़ा और फिर उनका टायर पंचर हो गया, इसलिए उन्हें कार को वापस धकेलना पड़ा, जिससे उन्हें पढ़ाई का कोई समय नहीं मिला।
प्रोफेसर, उनकी कहानी पर संदेह करते हुए, उन्हें कुछ दिनों बाद परीक्षा देने के लिए सहमत हो गए, जिससे छात्र खुश हो गए क्योंकि उन्होंने सोचा कि उन्होंने उसे सफलतापूर्वक मूर्ख बना दिया था।
परीक्षा के दिन, प्रोफेसर ने प्रत्येक छात्र को एक अलग कमरे में बिठाया और उन्हें चार प्रश्नों वाला एक पेपर दिया, जिनमें से प्रत्येक 25 अंकों का था। प्रश्न थे: 1. आपके उस दोस्त का नाम क्या है जिसे आप अस्पताल ले गए थे? 2. उसे क्या हुआ था? 3. आप उसे किस अस्पताल ले गए थे? 4. कौन सा टायर फटा था?

छोटी कहानी
आपने शायद 'भेड़िया आया' कहानी सुनी होगी। एक लड़का पहाड़ पर भेड़ें चरा रहा था। उसने अपने गाँव वालों के साथ मज़ाक करने का फैसला किया और चिल्लाया, 'भेड़िया! भेड़िया मेरी भेड़ों पर हमला कर रहा है!'
लोग मदद के लिए दौड़े, लेकिन पाया कि वह झूठ बोल रहा था। उन्होंने गुस्से में उसे चेतावनी दी कि असली भेड़िया न होने पर मदद के लिए न चिल्लाए। उसने यह मज़ाक कुछ बार दोहराया, और सभी का विश्वास खो दिया।
एक दिन, सच में भेड़ियों ने उसके झुंड पर हमला कर दिया। उसने मदद के लिए चिल्लाया, लेकिन कोई नहीं आया, यह सोचकर कि यह एक और झूठी चेतावनी थी। अंततः उसने अपनी सारी भेड़ें खो दीं।
जब उसने गाँव के मुखिया से शिकायत की, तो उसे बताया गया, 'कोई भी झूठे व्यक्ति पर विश्वास नहीं करता, भले ही वह सच बोल रहा हो।'
अल्लाह की रहमत ईमान वालों पर
117अल्लाह ने बेशक नबी पर और मुहाजिरों और अंसार पर रहमत फरमाई, जिन्होंने उस कठिन समय में उनका साथ दिया, जब उनमें से कुछ के दिल लगभग फिरने लगे थे। फिर उसने उनकी तौबा क़बूल की। बेशक वह उनके लिए अत्यंत करुणामय (रऊफ) और दयावान (रहीम) है। 118और उन तीन पर भी (अल्लाह ने रहमत फरमाई) जो पीछे रह गए थे। उन्हें इतना अपराधबोध हुआ कि विस्तृत धरती उनके लिए तंग पड़ गई और उनकी जान घुटने लगीं। उन्होंने जान लिया कि अल्लाह के सिवा अल्लाह से कोई पनाह नहीं। फिर उसने उन पर रहमत फरमाई ताकि वे तौबा कर सकें। बेशक, अल्लाह तौबा क़बूल करने वाला और रहम करने वाला है। 119ऐ ईमान वालो! अल्लाह का तक़वा इख्तियार करो और सच्चों के साथ रहो।
لَّقَد تَّابَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلنَّبِيِّ وَٱلۡمُهَٰجِرِينَ وَٱلۡأَنصَارِ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ فِي سَاعَةِ ٱلۡعُسۡرَةِ مِنۢ بَعۡدِ مَا كَادَ يَزِيغُ قُلُوبُ فَرِيقٖ مِّنۡهُمۡ ثُمَّ تَابَ عَلَيۡهِمۡۚ إِنَّهُۥ بِهِمۡ رَءُوفٞ رَّحِيمٞ 117وَعَلَى ٱلثَّلَٰثَةِ ٱلَّذِينَ خُلِّفُواْ حَتَّىٰٓ إِذَا ضَاقَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلۡأَرۡضُ بِمَا رَحُبَتۡ وَضَاقَتۡ عَلَيۡهِمۡ أَنفُسُهُمۡ وَظَنُّوٓاْ أَن لَّا مَلۡجَأَ مِنَ ٱللَّهِ إِلَّآ إِلَيۡهِ ثُمَّ تَابَ عَلَيۡهِمۡ لِيَتُوبُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ 118يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَكُونُواْ مَعَ ٱلصَّٰدِقِينَ119
आयत 117: 32. रसूल की दृढ़ता से रहमत। 33. जिहाद की कठिनाइयों के कारण।
आयत 118: ३४. ये तीन सहाबी जिन्हें माफ़ कर दिया गया था: का'ब बिन मालिक, मुरारा बिन रबी' और हिलाल बिन उमय्या।
प्रयाण का सवाब
120मदीना के कुछ लोगों और उनके आस-पास के खानाबदोश अरबों के लिए यह उचित नहीं था कि वे अल्लाह के रसूल के साथ कूच करने से बचें या अपने जीवन को उनके जीवन से अधिक प्राथमिकता दें। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भी वे अल्लाह के मार्ग में प्यासे, थके हुए या भूखे होते हैं; किसी ऐसे क्षेत्र में कदम रखते हैं जिससे काफ़िरों को निराशा होती है; या किसी दुश्मन को कोई नुकसान पहुँचाते हैं—तो यह उनके खाते में एक नेक काम के रूप में दर्ज होता है। निःसंदेह, अल्लाह नेक काम करने वालों के प्रतिफल को कभी व्यर्थ नहीं करता। 121और जब भी वे छोटा या बड़ा कोई दान करते हैं, या अल्लाह के मार्ग में किसी घाटी को पार करते हैं—तो यह भी उनके खाते में दर्ज होता है, ताकि अल्लाह उन्हें उनके सर्वोत्तम कर्मों के अनुसार प्रतिफल दे। 122हालाँकि, ईमानवालों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे सभी एक साथ कूच करें। प्रत्येक समूह में से केवल कुछ सदस्यों को ही कूच करना चाहिए, बाकियों को धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए छोड़कर, और बाद में जब वे (कूच करने वाले) लौटें तो उन्हें (अपने लोगों को) सिखाएँ, ताकि वे भी बुराई से बच सकें।
مَا كَانَ لِأَهۡلِ ٱلۡمَدِينَةِ وَمَنۡ حَوۡلَهُم مِّنَ ٱلۡأَعۡرَابِ أَن يَتَخَلَّفُواْ عَن رَّسُولِ ٱللَّهِ وَلَا يَرۡغَبُواْ بِأَنفُسِهِمۡ عَن نَّفۡسِهِۦۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ لَا يُصِيبُهُمۡ ظَمَأٞ وَلَا نَصَبٞ وَلَا مَخۡمَصَةٞ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا يَطَُٔونَ مَوۡطِئٗا يَغِيظُ ٱلۡكُفَّارَ وَلَا يَنَالُونَ مِنۡ عَدُوّٖ نَّيۡلًا إِلَّا كُتِبَ لَهُم بِهِۦ عَمَلٞ صَٰلِحٌۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجۡرَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ 120وَلَا يُنفِقُونَ نَفَقَةٗ صَغِيرَةٗ وَلَا كَبِيرَةٗ وَلَا يَقۡطَعُونَ وَادِيًا إِلَّا كُتِبَ لَهُمۡ لِيَجۡزِيَهُمُ ٱللَّهُ أَحۡسَنَ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ 121وَمَا كَانَ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ لِيَنفِرُواْ كَآفَّةٗۚ فَلَوۡلَا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرۡقَةٖ مِّنۡهُمۡ طَآئِفَةٞ لِّيَتَفَقَّهُواْ فِي ٱلدِّينِ وَلِيُنذِرُواْ قَوۡمَهُمۡ إِذَا رَجَعُوٓاْ إِلَيۡهِمۡ لَعَلَّهُمۡ يَحۡذَرُونَ122
फसाद करने वालों को चेतावनी
123ऐ ईमान वालो! अपने आस-पास के काफ़िरों से लड़ो और उन्हें तुम में सख्ती मिले। और जान लो कि अल्लाह उन लोगों के साथ है जो तक़वा इख़्तियार करते हैं। 124जब कोई सूरह नाज़िल होती है, तो उनमें से कुछ 'मज़ाक उड़ाते हुए' पूछते हैं, 'इससे तुम में से किसके ईमान में इज़ाफ़ा हुआ है?' जहाँ तक ईमान वालों का सवाल है, इसने उनके ईमान में वृद्धि की है और वे खुश हैं। 125लेकिन जिन 'मुनाफ़िक़ों' के दिलों में बीमारी है, इसने उनकी नापाकी पर नापाकी ही बढ़ाई है, और वे काफ़िरों की हालत में मरते हैं। 126क्या वे नहीं देखते कि वे हर साल बार-बार आज़माइश में नाकाम होते हैं? फिर भी वे तौबा नहीं करते और न ही कोई सबक़ सीखते हैं। 127जब कोई सूरह नाज़िल होती है, तो वे एक-दूसरे की तरफ़ देखते हैं, 'क्या कोई तुम्हें देख रहा है?' फिर वे खिसक जाते हैं। यह अल्लाह ही है जिसने उनके दिलों को फेर दिया है, क्योंकि वे ऐसी क़ौम हैं जो हक़ीक़त में नहीं समझते।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ قَٰتِلُواْ ٱلَّذِينَ يَلُونَكُم مِّنَ ٱلۡكُفَّارِ وَلۡيَجِدُواْ فِيكُمۡ غِلۡظَةٗۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِينَ 123وَإِذَا مَآ أُنزِلَتۡ سُورَةٞ فَمِنۡهُم مَّن يَقُولُ أَيُّكُمۡ زَادَتۡهُ هَٰذِهِۦٓ إِيمَٰنٗاۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ فَزَادَتۡهُمۡ إِيمَٰنٗا وَهُمۡ يَسۡتَبۡشِرُونَ 124وَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ فَزَادَتۡهُمۡ رِجۡسًا إِلَىٰ رِجۡسِهِمۡ وَمَاتُواْ وَهُمۡ كَٰفِرُونَ 125أَوَلَا يَرَوۡنَ أَنَّهُمۡ يُفۡتَنُونَ فِي كُلِّ عَامٖ مَّرَّةً أَوۡ مَرَّتَيۡنِ ثُمَّ لَا يَتُوبُونَ وَلَا هُمۡ يَذَّكَّرُونَ 126وَإِذَا مَآ أُنزِلَتۡ سُورَةٞ نَّظَرَ بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٍ هَلۡ يَرَىٰكُم مِّنۡ أَحَدٖ ثُمَّ ٱنصَرَفُواْۚ صَرَفَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُم بِأَنَّهُمۡ قَوۡمٞ لَّا يَفۡقَهُونَ127

सभी को संदेश
128निश्चय ही तुम्हारे पास तुम ही में से एक रसूल आया है। तुम्हारी कठिनाई उसे बहुत भारी पड़ती है। वह तुम्हारी भलाई का बहुत इच्छुक है। वह ईमानवालों पर बड़ा ही दयालु और कृपालु है। 129फिर भी यदि वे मुँह फेरें, तो कहो, 'ऐ नबी,' 'मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है। उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं। उसी पर मैंने भरोसा किया। और वही महान अर्श का रब है।'
لَقَدۡ جَآءَكُمۡ رَسُولٞ مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ عَزِيزٌ عَلَيۡهِ مَا عَنِتُّمۡ حَرِيصٌ عَلَيۡكُم بِٱلۡمُؤۡمِنِينَ رَءُوفٞ رَّحِيمٞ 128فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَقُلۡ حَسۡبِيَ ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ عَلَيۡهِ تَوَكَّلۡتُۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلۡعَرۡشِ ٱلۡعَظِيمِ129