The Private Quarters
الحُجُرَات
الحُجُرات

सीखने के बिंदु
यह सूरह मुसलमानों को सिखाती है कि पैगंबर का सम्मान इस तरह करें कि उनके सामने बहस न करें और न ही अपनी आवाज़ ऊँची करें। उन्हें कोई भी निर्णय लेने से पहले उनकी बात सुननी चाहिए।
यह बात आज हम पर भी लागू होती है। हमें अल्लाह और उसके पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के फैसलों पर अपनी निजी राय को तरजीह नहीं देनी चाहिए।
अगर हम अल्लाह का तक़वा रखते हैं (उसे ध्यान में रखकर), तो यह हमें सही काम करने और गलत से बचने में मदद करेगा।
हमें लोगों की नीयत का अंदाज़ा लगाने में जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए।
जब हम कोई खबर सुनते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह खबर सही है, इससे पहले कि हम इसे दूसरों के साथ साझा करें या कोई कार्रवाई करें।
हमें लोगों की निजता का सम्मान करना चाहिए।
हमें किसी को ठेस पहुँचाने, ग़ीबत करने, धमकाने या दुख पहुँचाने की अनुमति नहीं है।
हमें विनम्र होना चाहिए, यहाँ तक कि जब हम किसी को सुधारते हैं।
हमें इस्लाम में अपने भाई-बहनों के बीच सुलह कराने का प्रयास करना चाहिए।
सभी इंसान बराबर बनाए गए हैं। सबसे अच्छा व्यक्ति वह है जो अल्लाह का तक़वा रखता है और जिसके अख़लाक़ सबसे अच्छे हैं।
कुछ लोग अपने ईमान की मज़बूती की बातें कर सकते हैं, लेकिन उनके कर्म ही यह सिद्ध करेंगे कि वे वास्तव में मोमिन हैं या नहीं।

पृष्ठभूमि की कहानी
एक दिन, नबी ﷺ अपने कुछ साथियों के साथ बैठे हुए थे, जिनमें अबू बक्र रज़ि० और उमर रज़ि० भी शामिल थे। जब उन्होंने ﷺ पूछा कि बनी तमीम क़बीले से आए हुए एक समूह का नेता कौन होना चाहिए, तो अबू बक्र रज़ि० ने एक व्यक्ति का सुझाव दिया और उमर रज़ि० ने दूसरे व्यक्ति का। तब अबू बक्र रज़ि० और उमर रज़ि० में बहस हो गई और वे अपनी आवाज़ें ऊंची करने लगे। जब यह आयत नाज़िल हुई, तो दोनों ने नबी ﷺ से वादा किया कि वे उनके अधिकार का सम्मान करेंगे और नरमी से बात करेंगे। {इमाम अल-बुखारी द्वारा वर्णित}

नबी का अदब
1) Respect Authority
1ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढ़ो। और अल्लाह से डरो। बेशक अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيِ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ1

पृष्ठभूमि की कहानी
एक सहाबी जिनका नाम साबित इब्न क़ैस रज़ियल्लाहु अन्हु था, उन्हें सुनने में समस्या थी। वह खुद को ठीक से सुन नहीं पाते थे, इसलिए जब वह लोगों से बात करते थे, जिसमें पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी शामिल थे, तो उन्हें अपनी आवाज़ ऊंची करनी पड़ती थी। जब निम्नलिखित आयत अवतरित हुई, तो उन्हें डर लगा कि यह उनके बारे में है। वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहा कि वह भविष्य में अपनी आवाज़ नीची रखने की कोशिश करेंगे। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा कि वह एक अच्छे व्यक्ति हैं और उन्हें जन्नत की खुशखबरी दी। {इमाम अल-बुखारी द्वारा दर्ज किया गया है}
पैगंबर के साथ आदाब
2) Watch Your Tongue
2ऐ ईमान वालो! अपनी आवाज़ें नबी की आवाज़ से ऊँची न करो और न उनसे इस तरह ज़ोर से बात करो जैसे तुम आपस में एक-दूसरे से करते हो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे आमाल ज़ाया हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो। 3जो लोग अल्लाह के रसूल के पास अपनी आवाज़ें पस्त रखते हैं, वही लोग हैं जिनके दिलों को अल्लाह ने तक़वा (परहेज़गारी) के लिए पाक कर दिया है। उनके लिए मग़फ़िरत (माफ़ी) और बड़ा अज्र (इनाम) है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَرۡفَعُوٓاْ أَصۡوَٰتَكُمۡ فَوۡقَ صَوۡتِ ٱلنَّبِيِّ وَلَا تَجۡهَرُواْ لَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ كَجَهۡرِ بَعۡضِكُمۡ لِبَعۡضٍ أَن تَحۡبَطَ أَعۡمَٰلُكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ 2إِنَّ ٱلَّذِينَ يَغُضُّونَ أَصۡوَٰتَهُمۡ عِندَ رَسُولِ ٱللَّهِ أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱمۡتَحَنَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُمۡ لِلتَّقۡوَىٰۚ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٌ عَظِيمٌ3

पृष्ठभूमि की कहानी
बनी तमीम क़बीले का एक समूह पैगंबर (ﷺ) से मिलने आया, जब वह दोपहर में क़ैलूला (दोपहर की नींद) कर रहे थे। वे उनके घर के बाहर खड़े हो गए और उन्हें बाहर आकर उनसे मिलने के लिए पुकारने लगे। निम्नलिखित उद्धरण के अनुसार, उन्हें पैगंबर (ﷺ) को परेशान नहीं करना चाहिए था। इसके बजाय, उन्हें मस्जिद में इंतज़ार करना चाहिए था जब तक वह स्वयं जाग न जाते और उनसे मिलने बाहर न आते। (इमाम अत-तबरानी द्वारा दर्ज किया गया है)
नबी के साथ आदाब
3) Respect Privacy
4निश्चित रूप से, उनमें से अधिकांश जो आपको आपके घरों के बाहर से ऊँची आवाज़ में पुकारते हैं, वे समझ नहीं रखते। 5यदि वे धैर्य रखते जब तक आप उनके पास बाहर न आ जाते, तो यह उनके लिए बेहतर होता। और अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُنَادُونَكَ مِن وَرَآءِ ٱلۡحُجُرَٰتِ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ 4وَلَوۡ أَنَّهُمۡ صَبَرُواْ حَتَّىٰ تَخۡرُجَ إِلَيۡهِمۡ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ5

पृष्ठभूमि की कहानी
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बनी अल-मुस्तलिक़ क़बीले से ज़कात इकट्ठा करने के लिए अल-वलीद इब्न 'उक़बाह नामक एक व्यक्ति को भेजा। इस व्यक्ति के अतीत में इस क़बीले के साथ कुछ समस्याएँ थीं। तो जब वे बड़ी संख्या में उसका स्वागत करने के लिए बाहर आए, तो उसने मान लिया कि वे उसे मारने की योजना बना रहे थे। वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास वापस भागा और उन्हें बताया कि वे उसे मारना चाहते थे, इसलिए उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। कुछ ही समय बाद, क़बीले का एक समूह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास यह समझाने के लिए आया कि क्या हुआ था। {इमाम अहमद द्वारा दर्ज}
सामाजिक शिष्टाचार
1) Check Information
6ऐ ईमान वालो! यदि कोई फासिक (दुराचारी) तुम्हें कोई खबर लाए, तो उसकी अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल कर लो, ताकि तुम अनजाने में किसी कौम को नुकसान न पहुँचा दो, फिर अपने किए पर पछताओ। 7और जान लो कि अल्लाह का रसूल तुम्हारे बीच मौजूद है। यदि वह तुम्हारे बहुत से मामलों में तुम्हारी बात मान लेता, तो तुम बड़ी कठिनाई में पड़ जाते। लेकिन अल्लाह ने तुम्हें ईमान से मुहब्बत दिलाई है और उसे तुम्हारे दिलों में प्रिय बना दिया है। और उसने तुम्हें कुफ्र, गुनाह और नाफरमानी से नफरत दिलाई है। यही लोग सही राह पर हैं। 8यह अल्लाह की ओर से एक कृपा और नेमत है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن جَآءَكُمۡ فَاسِقُۢ بِنَبَإٖ فَتَبَيَّنُوٓاْ أَن تُصِيبُواْ قَوۡمَۢا بِجَهَٰلَةٖ فَتُصۡبِحُواْ عَلَىٰ مَا فَعَلۡتُمۡ نَٰدِمِينَ 6وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ فِيكُمۡ رَسُولَ ٱللَّهِۚ لَوۡ يُطِيعُكُمۡ فِي كَثِيرٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ لَعَنِتُّمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ حَبَّبَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَزَيَّنَهُۥ فِي قُلُوبِكُمۡ وَكَرَّهَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡكُفۡرَ وَٱلۡفُسُوقَ وَٱلۡعِصۡيَانَۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلرَّٰشِدُونَ 7فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَنِعۡمَةٗۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ8

पृष्ठभूमि की कहानी
मदीना में इब्न सलूल नाम का एक मुनाफिक (पाखंडी) था, जो मुसलमानों से बहुत नाराज़ था क्योंकि वह शहर का बादशाह बनने ही वाला था, लेकिन जब पैगंबर वहाँ चले गए, तो सब कुछ बदल गया।
सामाजिक अदब
2) Muslims Are One Big Family
9और यदि मोमिनों के दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें, तो उनके बीच सुलह करा दो। लेकिन यदि उनमें से एक दूसरे पर ज़्यादती करे, तो ज़्यादती करने वालों से लड़ो जब तक कि वे अल्लाह के हुक्म की ओर लौट न आएं। यदि वे लौट आएं, तो दोनों गिरोहों के बीच इंसाफ़ के साथ सुलह करा दो और न्याय करो। निःसंदेह अल्लाह न्याय करने वालों को पसंद करता है। 10मोमिन तो आपस में भाई-भाई हैं, तो अपने भाइयों के बीच सुलह करा दो। और अल्लाह से डरो, ताकि तुम पर रहम किया जाए।
وَإِن طَآئِفَتَانِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱقۡتَتَلُواْ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَاۖ فَإِنۢ بَغَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا عَلَى ٱلۡأُخۡرَىٰ فَقَٰتِلُواْ ٱلَّتِي تَبۡغِي حَتَّىٰ تَفِيٓءَ إِلَىٰٓ أَمۡرِ ٱللَّهِۚ فَإِن فَآءَتۡ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَا بِٱلۡعَدۡلِ وَأَقۡسِطُوٓاْۖ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ 9إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِخۡوَةٞ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَ أَخَوَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ10

पृष्ठभूमि की कहानी
थाबित इब्न क़ैस (जिन्हें सुनने में समस्या थी) आमतौर पर पैगंबर के बगल में बैठते थे ताकि वे उन्हें अच्छी तरह सुन सकें। एक दिन वे थोड़ी देर से आए और सामने तक गए, लेकिन उनकी जगह पहले ही भर चुकी थी। थाबित ने उस व्यक्ति से, जिसने उनकी जगह ले ली थी, हटने के लिए कहा, लेकिन उस व्यक्ति ने उन्हें कहीं और बैठने को कहा। थाबित बहुत क्रोधित हो गए क्योंकि उन्हें उस व्यक्ति के पीछे दूसरी पंक्ति में बैठना पड़ा। उन्होंने पूछा कि वह व्यक्ति कौन था। जब उन्हें उसका नाम बताया गया, तो थाबित ने उस व्यक्ति की माँ के बारे में कुछ बुरा कहा, और वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ। पैगंबर थाबित की कही बात से खुश नहीं थे। जल्द ही, इस सूरह की आयत 11 अवतरित हुई। {इमाम अल-कुर्तुबी द्वारा दर्ज}

छोटी कहानी
पैगंबर ईसा अलैहिस्सलाम ने अपने साथियों को सकारात्मक रहने और दूसरों के बारे में कभी नकारात्मक बातें न कहने की शिक्षा दी। एक दिन, वे उनके साथ चल रहे थे जब वे एक मरे हुए कुत्ते के पास से गुजरे जिसकी बदबू बहुत भयानक थी। उनमें से कुछ ने कहा, "कितना घिनौना कुत्ता है!" ईसा अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया, "नहीं! उसके सुंदर दाँतों को देखो।" {इमाम अस-सुयूती द्वारा दर्ज}

सामाजिक शिष्टाचार
3) Respect for All
11ऐ ईमान वालो! कोई पुरुष दूसरे पुरुषों का उपहास न करे, हो सकता है कि वे उनसे बेहतर हों। और न कोई स्त्री दूसरी स्त्रियों का उपहास करे, हो सकता है कि वे उनसे बेहतर हों। और आपस में एक-दूसरे पर ताना न मारो, और न एक-दूसरे को बुरे नामों से पुकारो। ईमान लाने के बाद ऐसा बुरा आचरण करना कितना बुरा है! और जो तौबा नहीं करते, वही ज़ालिम हैं। 12ऐ ईमान वालो! बहुत अधिक गुमान न करो; क्योंकि कुछ गुमान पाप होते हैं। और जासूसी न करो, और न एक-दूसरे की पीठ पीछे बुराई करो। क्या तुम में से कोई अपने मरे हुए भाई का मांस खाना पसंद करेगा? तुम तो इसे घृणा करोगे! और अल्लाह से डरो। निश्चित रूप से अल्लाह तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयालु है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَسۡخَرۡ قَوۡمٞ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُونُواْ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَآءٞ مِّن نِّسَآءٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُواْ بِٱلۡأَلۡقَٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن لَّمۡ يَتُبۡ فَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّٰلِمُونَ 11يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱجۡتَنِبُواْ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلظَّنِّ إِنَّ بَعۡضَ ٱلظَّنِّ إِثۡمٞۖ وَ لَا تَجَسَّسُواْ وَلَا يَغۡتَب بَّعۡضُكُم بَعۡضًاۚ أَيُحِبُّ أَحَدُكُمۡ أَن يَأۡكُلَ لَحۡمَ أَخِيهِ مَيۡتٗا فَكَرِهۡتُمُوهُۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ تَوَّابٞ رَّحِيمٞ12
आयत 12: किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना उनके शरीर को नष्ट करने जैसा है। यह आयत उस व्यक्ति की तुलना करती है जो लोगों की पीठ पीछे बुराई करता है, उस व्यक्ति से जो किसी के शरीर को तब चीरता है जब उसकी रूह उसमें नहीं होती।

पृष्ठभूमि की कहानी
जब मुस्लिम सेना ने मक्का पर कब्ज़ा कर लिया (उसके लोगों द्वारा मुसलमानों के साथ अपनी शांति संधि तोड़ने के बाद), पैगंबर ﷺ ने बिलाल ﷺ (जो मूल रूप से इथियोपिया के एक गुलाम थे और जिनकी आवाज़ बहुत खूबसूरत थी) से कहा कि वे काबा के ऊपर जाकर अज़ान दें। एक मक्का के व्यक्ति ने अपने दोस्त से कहा, "मुझे खुशी है कि मेरे पिता की मृत्यु हो गई इससे पहले कि वे बिलाल जैसे किसी व्यक्ति को काबा के ऊपर देख पाते।" उसके दोस्त ने जवाब दिया, "क्या मुहम्मद को इस काले कौवे के अलावा अज़ान देने के लिए कोई और नहीं मिला?" अल्लाह ने पैगंबर ﷺ को बताया कि इन दोनों व्यक्तियों ने क्या कहा था, इसलिए उन्होंने ﷺ उन्हें बताया कि उनकी टिप्पणियाँ नस्लवादी थीं। {इमाम अल-क़ुर्त्बी द्वारा दर्ज}


ज्ञान की बातें
पैगंबर ﷺ ने फरमाया, "ऐ लोगों! तुम्हारा रब एक है और तुम सब एक ही माँ-बाप से हो। किसी अरबी को किसी गैर-अरबी पर कोई फजीलत नहीं, न किसी गैर-अरबी को किसी अरबी पर। न किसी गोरे को किसी काले पर कोई फजीलत है और न किसी काले को किसी गोरे पर। महत्व इस बात का है कि किसके अख़लाक़ सबसे अच्छे हैं।" {इमाम अहमद द्वारा रिवायत किया गया}
यह एक नेमत है कि हम अलग दिखते हैं, अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं और हमारी संस्कृतियाँ अलग-अलग हैं। कल्पना कीजिए अगर हम सब एक जैसे दिखते, एक ही भाषा बोलते और हर दिन एक ही खाना खाते। यह दुनिया कितनी नीरस जगह होती।
हालाँकि हममें मतभेद हैं, हमें समान बनाया गया है। गोरे कालों से बेहतर नहीं हैं और काले गोरों से बेहतर नहीं हैं। पुरुष महिलाओं से बेहतर नहीं हैं और महिलाएँ पुरुषों से बेहतर नहीं हैं। इस्लाम में नस्लवाद स्वीकार्य नहीं है। शैतान पहला नस्लवादी था। उसने सोचा कि वह आदम अलैहिस्सलाम से बेहतर है, केवल इसलिए कि उसे कैसे बनाया गया था।
कुरान इस्लाम में भाईचारे और बहनचारे के 3 प्रकारों के बारे में बात करता है:
इंसानियत में हमारे भाई और बहन - क्योंकि हम सब एक ही माँ-बाप (आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम) से आए हैं। इसमें पूरी इंसानियत (अरबों लोग) शामिल है।
हमारे सगे भाई-बहन, जो एक ही माता-पिता से जन्मे हैं। इसमें हमारे वे भाई-बहन भी शामिल हैं, जिनका उपनाम (या सरनेम) एक ही है।
इस्लाम में हमारे भाई-बहन। इसमें दुनिया के सभी मुसलमान (1.8 अरब लोग) शामिल हैं।
इस्लाम में, अल्लाह और कानून के सामने हर कोई बराबर है (16:97 और 33:35), जिसमें पुरुष और महिलाएँ दोनों शामिल हैं। यदि कोई पुरुष या महिला सदक़ा (दान) देता/देती है, तो उन्हें उतनी ही नेकी मिलती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनमें से प्रत्येक कितना सच्चा है। अल्लाह ने उन्हें जीवन में अनूठी भूमिकाएँ निभाने के लिए समान बनाया है—एक-दूसरे को पूरा करने के लिए, न कि एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के लिए। कुछ बहनें पूछती हैं, "मुझे हिजाब क्यों पहनना पड़ता है जबकि मेरे भाई को नहीं?" कुछ भाई पूछते हैं, "मेरी बहन को सोना और रेशम पहनने की इजाज़त क्यों है जबकि मुझे नहीं?" पुरुष महिलाओं के लिए मानक नहीं हैं, और महिलाएँ पुरुषों के लिए मानक नहीं हैं। यदि सेना या जेल में अधिकांश लोग पुरुष हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि समानता प्राप्त करने के लिए महिलाओं को भी वहाँ होना चाहिए। यदि अधिकांश नर्सें और कला के छात्र महिलाएँ हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि पुरुषों को सफलता प्राप्त करने के लिए वही काम करना होगा। सभी पुरुष सेना में रुचि नहीं रखते, और सभी महिलाएँ कला में रुचि नहीं रखतीं। हर कोई अपने तरीके से अद्वितीय है, और हर किसी में वह करने की क्षमता है जिसमें वे स्वयं रुचि रखते हैं। अंततः, प्रत्येक व्यक्ति को अल्लाह के प्रति उनकी आज्ञाकारिता और वे दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, उसके आधार पर उनका सवाब मिलेगा।
इस्लाम ने महिलाओं को उनके रिश्तेदारों से विरासत पाने, शिक्षा प्राप्त करने, संपत्ति का मालिक बनने और शादी में अपनी बात रखने का अधिकार देकर सम्मानित किया है। इस्लाम में महिलाओं की उच्च स्थिति बताती है कि क्यों सभी नए मुसलमानों में से 75% महिलाएँ होती हैं।
कुछ मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ दुर्व्यवहार (जैसे कि उन्हें नापसंद व्यक्ति से शादी करने के लिए मजबूर करना, शिक्षा प्राप्त न करने देना, या विरासत में उनके हिस्से से वंचित करना) कुछ मुस्लिम देशों में ऐसी सांस्कृतिक प्रथाएँ हैं जो इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ जाती हैं।
हर क्षेत्र में कई सफल मुस्लिम महिलाएँ हैं: शिक्षा, विज्ञान, व्यवसाय, इत्यादि। इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की जैसे मुस्लिम देशों में कुछ मुस्लिम महिलाएँ राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री चुनी गई हैं।

आपके देश में रही कुछ महिला राष्ट्रपतियों या प्रधानमंत्रियों के नाम बताइए।
कोई पूछ सकता है, "यदि पुरुष और महिलाएँ समान हैं, तो इस्लाम में कोई महिला पैगंबर क्यों नहीं हैं?" इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें 'वही' (ईश्वरीय संदेश) का अर्थ समझने की आवश्यकता है, जिसमें शामिल हैं:
प्रेरणा - कुरान के अनुसार, अल्लाह ने कई लोगों को एक निश्चित तरीके से कार्य करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें मूसा (अलैहिस्सलाम) की माँ भी शामिल थीं (28:7)। इसके अलावा, जिब्रील (अलैहिस्सलाम) और अन्य फरिश्तों ने मरियम (अलैहिस्सलाम), जो ईसा (अलैहिस्सलाम) की माँ थीं, से सीधे बात की (19:16-21 और 3:42-45)।
वह्य (प्रकाशना) - यह अल्लाह की ओर से उनके पैगंबरों और रसूलों को एक सीधा आदेश है, जो सभी पुरुष थे (21:7)। यद्यपि पुरुष और महिलाएँ महान कार्य करने में समान रूप से सक्षम हैं, हमें उन चुनौतियों को ध्यान में रखना होगा जिनका सामना हजारों साल पहले महिला पैगंबरों को करना पड़ता। कुरान के अनुसार, कई पैगंबरों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, उनका उपहास किया गया, या उन्हें मार भी दिया गया। कुछ को अपना संदेश पहुँचाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ी, या अपने समुदाय की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़े। ऐतिहासिक रूप से, अधिकांश महिलाएँ अपने बच्चों और परिवारों की देखभाल करती थीं। उन्हें संदेश पहुँचाने और अपने दुश्मनों से निपटने के लिए जिम्मेदार बनाना उनके जीवन में और अधिक कठिनाई जोड़ देता। यही कारण है कि अल्लाह ने उन्हें दुर्व्यवहार और अतिरिक्त बोझ से बचाया। यह सच है कि सभी पैगंबर पुरुष थे, लेकिन महिलाएँ उनकी माताएँ, बहनें और सबसे अच्छी सहायक थीं।

सामाजिक शिष्टाचार
4) Equality
13ऐ लोगो! बेशक हमने तुम्हें एक नर और एक मादा से पैदा किया और तुम्हें क़ौमों और क़बीलों में बाँटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। यक़ीनन अल्लाह की निगाह में तुममें सबसे इज़्ज़तदार वह है जिसके अख़लाक़ सबसे अच्छे हैं। अल्लाह यक़ीनन सब कुछ जानने वाला और पूरी तरह ख़बरदार है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّا خَلَقۡنَٰكُم مِّن ذَكَرٖ وَأُنثَىٰ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ شُعُوبٗا وَقَبَآئِلَ لِتَعَارَفُوٓاْۚ إِنَّ أَكۡرَمَكُمۡ عِندَ ٱللَّهِ أَتۡقَىٰكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٞ13

पृष्ठभूमि की कहानी
अरब रेगिस्तान में बनी असद नाम का एक क़बीला रहता था। वे अपने जानवरों के लिए पानी और भोजन की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह यात्रा करते थे। उनमें से एक समूह ने इस्लाम केवल इसलिए स्वीकार किया क्योंकि वे पैगंबर से कुछ दान प्राप्त करना चाहते थे। वे अपने ईमान पर इतराते थे, इसलिए पैगंबर ने उनसे कहा कि उन्होंने अपनी ज़ुबान से इस्लाम क़बूल किया होगा, लेकिन अपने दिलों से नहीं। {इमाम अल-क़ुरतुबी द्वारा उल्लेखित}
कर्म शब्दों से ज़्यादा बोलते हैं।
14कुछ बद्दू अरबों ने डींग मारी, "हम वास्तव में ईमान ले आए हैं।" कहो, 'हे पैगंबर,' "तुम वास्तव में ईमान नहीं लाए हो। बल्कि कहो, 'हमने इस्लाम स्वीकार कर लिया है,' क्योंकि ईमान अभी तक तुम्हारे दिलों में दाखिल नहीं हुआ है। लेकिन अगर तुम अल्लाह और उसके रसूल का सच्चे दिल से आज्ञापालन करोगे, तो वह तुम्हारे किसी भी सवाब को कम नहीं करेगा। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।" 15सच्चे ईमान वाले तो वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर बिना किसी संदेह के ईमान लाते हैं, और अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जानों से कुर्बानियाँ देते हैं। वही लोग हैं जो (अपने) ईमान में सच्चे हैं। 16कहो, "क्या तुम अल्लाह को अपने ईमान की खबर दे रहे हो, जबकि अल्लाह तो जानता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है? और अल्लाह हर चीज़ का पूरा इल्म रखता है।" 17वे अपने इस्लाम स्वीकार करने को तुम पर, 'हे पैगंबर', एक एहसान समझते हैं। उनसे कहो, "तुमने इस्लाम स्वीकार करके मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है। बल्कि, यह तो अल्लाह है जिसने तुम्हें ईमान की राह दिखाकर तुम पर एहसान किया है, यदि तुम सच्चे ईमान वाले हो।" 18अल्लाह निश्चित रूप से जानता है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में गुप्त है। और अल्लाह तुम्हारे सभी कर्मों को देखता है।
قَالَتِ ٱلۡأَعۡرَابُ ءَامَنَّاۖ قُل لَّمۡ تُؤۡمِنُواْ وَلَٰكِن قُولُوٓاْ أَسۡلَمۡنَا وَلَمَّا يَدۡخُلِ ٱلۡإِيمَٰنُ فِي قُلُوبِكُمۡۖ وَإِن تُطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَا يَلِتۡكُم مِّنۡ أَعۡمَٰلِكُمۡ شَيًۡٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ 14إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ لَمۡ يَرۡتَابُواْ وَجَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلصَّٰدِقُونَ 15قُلۡ أَتُعَلِّمُونَ ٱللَّهَ بِدِينِكُمۡ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ 16يَمُنُّونَ عَلَيۡكَ أَنۡ أَسۡلَمُواْۖ قُل لَّا تَمُنُّواْ عَلَيَّ إِسۡلَٰمَكُمۖ بَلِ ٱللَّهُ يَمُنُّ عَلَيۡكُمۡ أَنۡ هَدَىٰكُمۡ لِلۡإِيمَٰنِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ 17إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ غَيۡبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ18