Women
النِّسَاء
النِّسَاء

सीखने के बिंदु
इस सूरह में विवाह, तलाक और विरासत में महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
मुसलमानों को न्याय के लिए खड़े होने और यतीमों की देखभाल करने का निर्देश दिया गया है।
उन्हें अपने समुदाय की रक्षा करने और कमज़ोर पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की हिफाज़त करने का भी निर्देश दिया गया है।
अल्लाह की रहमत का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है, जब तक कि व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले तौबा कर ले।
अल्लाह लोगों के लिए आसानी पैदा करता है।
हम सफ़र के दौरान नमाज़ क़स्र कर सकते हैं।
यहूदियों और ईसाइयों की 'ईसा के बारे में उनके झूठे अक़ीदों के लिए आलोचना की जाती है।
'ईसा को क़त्ल नहीं किया गया था। बल्कि, अल्लाह ने उन्हें आसमानों की ओर उठा लिया।
मुनाफ़िक़ों की उनके बुरे आमाल और रवैयों के लिए आलोचना की जाती है।
सभी को मुहम्मद पर अंतिम पैग़म्बर के रूप में ईमान लाने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

अल्लाह की महिमा
1ऐ लोगो! अपने रब से डरो, जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया, और उसी से उसका जोड़ा बनाया, और उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैला दीं। और अल्लाह से डरो—जिसके नाम पर तुम एक-दूसरे से माँगते हो—और नाते-रिश्तों को निभाओ। बेशक अल्लाह तुम पर निगाह रखे हुए है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ وَخَلَقَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَبَثَّ مِنۡهُمَا رِجَالٗا كَثِيرٗا وَنِسَآءٗۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِي تَسَآءَلُونَ بِهِۦ وَٱلۡأَرۡحَامَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَيۡكُمۡ رَقِيبٗا1
आयत 1: जैसे कि आदम और हव्वा (ईव)।

पृष्ठभूमि की कहानी
इस्लाम से पहले, अनाथों (विशेषकर लड़कियों) का शोषण किया जाता था। महिलाओं को आमतौर पर उनके पुरुष रिश्तेदारों द्वारा विरासत में उनके हिस्से से वंचित रखा जाता था और उनके विवाह उपहारों (मेहर) पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था। इस्लाम ने महिलाओं और समुदाय के अन्य कमजोर सदस्यों को अधिकार प्रदान किए, जिनमें विरासत का अधिकार, धार्मिक शिक्षा, संपत्ति का स्वामित्व और विवाह में अपनी बात रखने का अधिकार शामिल है।
इस सूरह की कई आयतें अनाथ लड़कों और लड़कियों की देखभाल पर जोर देती हैं ताकि उनके पिताओं को खोने के बाद उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। उनके संरक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे उनके साथ अपने बच्चों जैसा व्यवहार करें, उनकी संपत्ति बढ़ाएँ, और एक बार जब वे परिपक्वता और जिम्मेदारी की उम्र तक पहुँच जाएँ तो उसे उन्हें लौटा दें।
आयतें 3-4 मुस्लिम पुरुषों को निर्देश देती हैं: यदि तुम अनाथ लड़कियों से विवाह करते हो, तो उन्हें उनके विवाह उपहार (मेहर) दो। यदि तुम्हें डर है कि तुम उनके साथ न्याय नहीं कर पाओगे, तो कई अन्य महिलाएँ उपलब्ध हैं। विवाह उपहार (मेहर) संस्कृति के अनुसार भिन्न होता है; यह पैसा, सोना, हज या उमरा की यात्राएँ, या पति के लिए वहनीय और पत्नी के लिए स्वीकार्य कुछ भी हो सकता है। तकनीकी रूप से, यह उपहार तब दिया जाना चाहिए जब पत्नी पति के घर आ जाए, लेकिन इसे बाद में भी चुकाया जा सकता है, और यदि दोनों पक्ष सहमत हों तो पत्नी इसके एक हिस्से को माफ कर सकती है।

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, "यदि इस्लाम महिलाओं के प्रति निष्पक्ष है, तो मुस्लिम देशों में उनमें से कुछ के साथ दुर्व्यवहार क्यों किया जाता है?" कुरान स्पष्ट रूप से कहता है कि पुरुष और महिलाएं अल्लाह और इस्लामी कानून के समक्ष समान हैं (16:97 और 33:35)। कुछ मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ दुर्व्यवहार कुछ मुस्लिम देशों में सख्त सांस्कृतिक प्रथाएं हैं जिनका इस्लामी शिक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है। इसमें किसी महिला को ऐसे पुरुष से शादी करने के लिए मजबूर करना जिसे वह पसंद नहीं करती, उसे विरासत में हिस्सा मिलने से रोकना, या उसे ज्ञान प्राप्त करने से रोकना शामिल है।
इसके बावजूद, शिक्षा, विज्ञान, व्यवसाय और अन्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई सफल मुस्लिम महिलाएं हैं। हालांकि विद्वानों ने इस बात पर बहस की है कि क्या कोई महिला किसी देश की नेता बन सकती है या नहीं, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और तुर्की जैसे मुस्लिम-बहुल देशों में कई महिलाओं को राष्ट्राध्यक्ष चुना गया है—ऐसा कुछ जो आज तक (1776-2023) अमेरिकी इतिहास में नहीं हुआ है। इस्लाम में महिलाओं की उच्च स्थिति बताती है कि सभी नए मुसलमानों में से लगभग 75% महिलाएं क्यों हैं।

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, "कुरान पुरुषों को 4 पत्नियों से शादी करने का आदेश क्यों देता है?" कुरान हर पुरुष को 4 महिलाओं से शादी करने का आदेश नहीं देता है। यह केवल आवश्यकता होने पर ही इसकी अनुमति देता है। वास्तव में, कुरान एकमात्र पवित्र पुस्तक है जो एक पुरुष को केवल एक पत्नी से शादी करने के लिए कहती है (श्लोक 3)। बाइबिल में कई धार्मिक हस्तियों की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। उदाहरण के लिए, सुलैमान की 700 पत्नियाँ थीं (1 राजा 11:3) और उसके पिता, दाऊद की कई पत्नियाँ थीं (2 शमूएल 5:13)।
तो, इस्लाम एक पुरुष द्वारा रखी जा सकने वाली पत्नियों की संख्या पर एक सीमा लगाता है। एक मुस्लिम पुरुष केवल 4 पत्नियों तक शादी कर सकता है, बशर्ते वह उनका भरण-पोषण करने और उनके साथ समान व्यवहार करने में सक्षम हो। अन्यथा, यह वर्जित है। यह नियम उन समाजों में व्यावहारिक है जहाँ कई अकेली माताएँ हैं या जहाँ महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक है, खासकर युद्धों के बाद, जहाँ अधिकतर पुरुष युद्ध में मारे जाते हैं।
अनाथों के धन का प्रबंधन
2अनाथों को उनका माल लौटा दो जब वे बालिग हो जाएँ, और उनकी कीमती चीज़ों को घटिया चीज़ों से न बदलो, और न ही उनके माल को अपने माल में मिलाकर उन्हें धोखा दो। यह वास्तव में एक बड़ा गुनाह होगा। 3यदि तुम्हें डर हो कि तुम अनाथ स्त्रियों को उनके अधिकार नहीं दे पाओगे यदि तुम उनसे विवाह करो, तो अपनी पसंद की अन्य स्त्रियों से विवाह करो—दो, तीन, या चार। लेकिन यदि तुम्हें डर हो कि तुम उनके साथ समान व्यवहार नहीं कर पाओगे, तो केवल एक से संतुष्ट रहो या उन से जो तुम्हारे अधिकार में हैं। इस तरह तुम अन्याय से बचोगे। 4अपनी पत्नियों को उनका मेहर (विवाह उपहार) भले मन से दो। लेकिन यदि वे स्वेच्छा से उसमें से कुछ छोड़ दें, तो तुम उसे खुशी-खुशी और अपनी मर्ज़ी से उपभोग कर सकते हो। 5उन नासमझों को वह धन न सौंपो जो अल्लाह ने तुम्हारे संरक्षण में उनके पालन-पोषण के लिए रखा है। बल्कि उसी में से उन्हें खिलाओ और पहनाओ, और उनसे भली बात कहो। 6अनाथों को परखो जब तक वे विवाह की उम्र तक न पहुँच जाएँ। फिर यदि तुम्हें लगे कि वे समझदार हैं, तो उनका माल उन्हें लौटा दो। और उसे जल्दी से बर्बाद न करो इससे पहले कि वे बड़े होकर उसे माँगें। यदि संरक्षक धनी हो, तो उसे कोई शुल्क नहीं लेना चाहिए। लेकिन यदि संरक्षक गरीब हो, तो उसे उचित शुल्क लेने दो। जब तुम अनाथों को उनकी संपत्ति लौटाओ, तो गवाह बुलाओ। और हिसाब लेने के लिए अल्लाह ही काफी है।
وَءَاتُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰٓ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَتَبَدَّلُواْ ٱلۡخَبِيثَ بِٱلطَّيِّبِۖ وَلَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَهُمۡ إِلَىٰٓ أَمۡوَٰلِكُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ حُوبٗا كَبِيرٗا 2وَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا تُقۡسِطُواْ فِي ٱلۡيَتَٰمَىٰ فَٱنكِحُواْ مَا طَابَ لَكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ مَثۡنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا تَعۡدِلُواْ فَوَٰحِدَةً أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۚ ذَٰلِكَ أَدۡنَىٰٓ أَلَّا تَعُولُواْ 3وَءَاتُواْ ٱلنِّسَآءَ صَدُقَٰتِهِنَّ نِحۡلَةٗۚ فَإِن طِبۡنَ لَكُمۡ عَن شَيۡءٖ مِّنۡهُ نَفۡسٗا فَكُلُوهُ هَنِيٓٔٗا مَّرِيٓٔٗا 4وَلَا تُؤۡتُواْ ٱلسُّفَهَآءَ أَمۡوَٰلَكُمُ ٱلَّتِي جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمۡ قِيَٰمٗا وَٱرۡزُقُوهُمۡ فِيهَا وَٱكۡسُوهُمۡ وَقُولُواْ لَهُمۡ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا 5وَٱبۡتَلُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰ حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغُواْ ٱلنِّكَاحَ فَإِنۡ ءَانَسۡتُم مِّنۡهُمۡ رُشۡدٗا فَٱدۡفَعُوٓاْ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَأۡكُلُوهَآ إِسۡرَافٗا وَبِدَارًا أَن يَكۡبَرُواْۚ وَمَن كَانَ غَنِيّٗا فَلۡيَسۡتَعۡفِفۡۖ وَمَن كَانَ فَقِيرٗا فَلۡيَأۡكُلۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ فَإِذَا دَفَعۡتُمۡ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡ فَأَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبٗا6
आयत 5: अर्थ है अपनी दासियाँ।
आयत 6: यतीमों की संपत्ति के प्रबंधन के लिए।
विरासत कानून: पुरुष और महिलाएँ
7पुरुषों के लिए उस विरासत में हिस्सा है जो उनके माता-पिता और निकट संबंधी छोड़ जाएँ, और महिलाओं के लिए भी उस विरासत में हिस्सा है जो उनके माता-पिता और निकट संबंधी छोड़ जाएँ—चाहे वह थोड़ा हो या बहुत। ये निर्धारित हिस्से हैं। 8यदि (विरासत के) बँटवारे के समय अन्य संबंधी, अनाथ और ज़रूरतमंद उपस्थित हों, तो उन्हें भी उसमें से कुछ दो और उनसे भली बात कहो।
لِّلرِّجَالِ نَصِيبٞ مِّمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٞ مِّمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنۡهُ أَوۡ كَثُرَۚ نَصِيبٗا مَّفۡرُوضٗا 7وَإِذَا حَضَرَ ٱلۡقِسۡمَةَ أُوْلُواْ ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينُ فَٱرۡزُقُوهُم مِّنۡهُ وَقُولُواْ لَهُمۡ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا8
आयत 8: ऐसे यतीम जिनका मृतक से संबंध है, लेकिन विरासत में उनका कोई हिस्सा नहीं होता।
यतीमों की देखभाल
9अनाथों के अभिभावकों को उतनी ही चिंता करनी चाहिए जितनी वे अपने उन बच्चों के लिए करते जिन्हें वे अपने पीछे असहाय छोड़ जाते। अतः उन्हें अल्लाह से डरना चाहिए और सीधी बात कहनी चाहिए। 10जो लोग अनाथों का धन अन्यायपूर्वक खाते हैं, वे वास्तव में अपने पेट में आग ही भरते हैं। और उन्हें धधकती हुई जहन्नम में जलाया जाएगा!
وَلۡيَخۡشَ ٱلَّذِينَ لَوۡ تَرَكُواْ مِنۡ خَلۡفِهِمۡ ذُرِّيَّةٗ ضِعَٰفًا خَافُواْ عَلَيۡهِمۡ فَلۡيَتَّقُواْ ٱللَّهَ وَلۡيَقُولُواْ قَوۡلٗا سَدِيدًا 9إِنَّ ٱلَّذِينَ يَأۡكُلُونَ أَمۡوَٰلَ ٱلۡيَتَٰمَىٰ ظُلۡمًا إِنَّمَا يَأۡكُلُونَ فِي بُطُونِهِمۡ نَارٗاۖ وَسَيَصۡلَوۡنَ سَعِيرٗا10


छोटी कहानी
जॉन और माइकल भाई हैं, जिनकी एक छोटी बहन लिसा है। जब उनके धनी पिता का 1995 में 87 वर्ष की आयु में निधन हुआ, तो उन्होंने एक वसीयत छोड़ी, जिसमें उन्होंने परिवार का घर (जिसका मूल्य $1,000,000 था) अपनी पत्नी को, $50,000 अपने सबसे अच्छे दोस्त, एक बूढ़े बुलडॉग को, और उनकी बाकी संपत्ति (लगभग $4,950,000) जॉन को दी। माइकल और लिसा को कुछ नहीं मिला।
अब, जॉन के बच्चे बहुत आरामदायक जीवन जी रहे हैं, अपने पिता से मिली संपत्ति और ज़मीन का आनंद ले रहे हैं। हालांकि, माइकल और लिसा के पास अपने बच्चों को देने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि वे जॉन जितने भाग्यशाली नहीं थे। माइकल के बेटे को अपनी कॉलेज की शिक्षा के लिए एक बड़ा छात्र ऋण लेना पड़ा। हालांकि उसने बहुत पहले स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी, वह अभी भी अपने ऋण का भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जो वर्षों से ब्याज के कारण दोगुना हो गया है। उसे बस यह समझ नहीं आता कि आखिर उसके पिता को उसके दादा की संपत्ति में हिस्सा क्यों नहीं मिला।
अली और यासीन भाई हैं, जिनकी एक छोटी बहन मरियम है। जब उनके धनी पिता का 1995 में निधन हुआ, तो उनकी संपत्ति (जिसका मूल्य $6,000,000 था) शरिया (इस्लामी कानून) के अनुसार वितरित की गई: उनकी पत्नी को 1/8 = $750,000 मिले। अली और यासीन प्रत्येक को $2,100,000 मिले। मरियम को $1,050,000 मिले।
उन सभी ने अपने-अपने व्यवसाय शुरू किए हैं और उनके बच्चे कुछ अच्छे स्कूलों में गए। परिवार की संपत्ति में हिस्सा मिलने के लिए हर कोई आभारी है।

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, "अगर इस्लाम निष्पक्ष है, तो पुरुष को महिला के हिस्से का दोगुना क्यों मिलता है?" यह एक बहुत अच्छा सवाल है। निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करें: एक महिला मृत व्यक्ति की माँ, बहन, बेटी या पत्नी हो सकती है। एक पुरुष पिता, भाई, बेटा या पति हो सकता है।
किसी व्यक्ति का हिस्सा मुख्य रूप से इस बात पर तय होता है कि वे मृत व्यक्ति के कितने करीब हैं, साथ ही उनकी उम्र पर भी। सामान्य तौर पर, जो लोग मृत व्यक्ति से छोटे और करीब होते हैं, उन्हें दूर और बड़े लोगों की तुलना में अधिक मिलता है। उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई और उसने $60,000 छोड़े, तो यह पैसा उसके करीबी रिश्तेदारों के बीच इस प्रकार वितरित किया जाएगा: महिलाओं के लिए, उनका हिस्सा या तो हो सकता है:
1. पुरुष के हिस्से से कम। उदाहरण के लिए, यदि वह एक बेटी है, तो उसे अपने भाई के हिस्से का आधा मिलेगा, क्योंकि उसे परिवार का भरण-पोषण करना होता है और शादी करने पर विवाह उपहार (मेहर) देना होता है, जबकि उसकी बहन अपना सारा पैसा अपने पास रखती है।
2. पुरुष के हिस्से से अधिक। उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति $24,000 और 2 बेटियाँ, एक भाई, एक पत्नी, एक माँ और 2 चाचा छोड़ता है। पत्नी को 1/8 = $3,000 मिलेंगे, माँ को 1/6 = $4,000 मिलेंगे, 2 बेटियाँ $16,000 साझा करेंगी (प्रत्येक $8,000), उसका भाई शेष ($1,000) लेगा, जबकि उसके चाचाओं को $0 मिलेंगे।
3. या एक समान हिस्सा। उदाहरण के लिए, पिता और माता में से प्रत्येक को अपने मृत पुत्र की संपत्ति का 1/6 हिस्सा मिलेगा, जिसने बच्चे छोड़े हों, इस सूरह की आयत 11 के अनुसार। साथ ही, यदि किसी व्यक्ति की संपत्ति केवल उसकी माँ की ओर से भाई-बहनों द्वारा विरासत में मिली है, तो उसके भाई-बहन उसकी संपत्ति को आयत 12 के अनुसार समान रूप से साझा करेंगे।

पृष्ठभूमि की कहानी
साद बिन अर-रबी' मदीना के एक धनी सहाबी थे। उहुद की लड़ाई में शहीद होने के बाद, उनके भाई ने उनकी सारी संपत्ति ले ली, साद की पत्नी और 2 बेटियों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। जब उनकी पत्नी ने पैगंबर से शिकायत की, तो आयत 11 अवतरित हुई। अतः, उन्होंने भाई को आदेश दिया कि वह संपत्ति का 2/3 हिस्सा साद की बेटियों को दे, 1/8 हिस्सा उनकी पत्नी को, और शेष वह स्वयं ले सकता है। (इमाम अहमद)

ज्ञान की बातें
आयतें 7, 11-13, 32-33, और 176 करीबी रिश्तेदारों के हिस्सों के बारे में बात करती हैं, जिनमें बच्चे, माता-पिता, सगे और सौतेले भाई-बहन, पति और पत्नियाँ शामिल हैं।
इन हिस्सों को वितरित करने से पहले, अन्य वित्तीय कर्तव्यों का पहले ध्यान रखा जाना चाहिए, जैसे अंतिम संस्कार के खर्च, कर्ज, और वसीयतें (उपहार या दान)।
यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी कुछ संपत्ति अपने बच्चों के बीच वितरित करने का फैसला करता है (जब तक वह बहुत बीमार न हो), तो इसे विरासत (ميراث) नहीं माना जाता है, बल्कि एक उपहार (هبه) माना जाता है, जिसका अर्थ है कि उसकी बेटी को अपने भाई के समान उपहार मिलेगा।

एक व्यक्ति अपनी संपत्ति का 1/3 तक दान या उपहार देने के लिए वसीयत लिख सकता है, उन धर्मार्थ संस्थाओं या व्यक्तियों के लिए जिनका विरासत में कोई हिस्सा नहीं है।
मान लीजिए एक मुस्लिम पुरुष ने एक ईसाई महिला से शादी की है। भले ही उसे 1/4 (यदि उनके बच्चे नहीं हैं) या 1/8 (यदि उनके बच्चे हैं) विरासत में नहीं मिलता है, वह वसीयत के माध्यम से उसकी संपत्ति का 1/3 तक प्राप्त कर सकती है। यही बात किसी के गैर-मुस्लिम माता-पिता के लिए भी सच है।
वरासत का क़ानून 2) औलाद और वालिदैन
11अल्लाह तुम्हें तुम्हारी औलाद के बारे में हुक्म देता है: लड़के का हिस्सा लड़की के हिस्से का दुगना होगा। यदि तुम केवल दो या अधिक लड़कियाँ छोड़ते हो, तो उनका हिस्सा संपत्ति का दो-तिहाई होगा। लेकिन यदि केवल एक लड़की हो, तो उसका हिस्सा आधा होगा। यदि तुम कोई औलाद छोड़ते हो, तो माता-पिता में से प्रत्येक को एक-छठा हिस्सा मिलेगा। लेकिन यदि तुम बेऔलाद हो और तुम्हारे माता-पिता ही एकमात्र वारिस हैं, तो तुम्हारी माँ को एक-तिहाई हिस्सा मिलेगा। लेकिन यदि तुम भाई या बहन छोड़ते हो, तो तुम्हारी माँ को एक-छठा हिस्सा मिलेगा—किसी भी वसीयत और कर्ज के भुगतान के बाद। अपने माता-पिता और बच्चों के साथ न्याय करो, क्योंकि तुम नहीं जानते कि उनमें से कौन तुम्हारे लिए अधिक लाभदायक है। यह अल्लाह की ओर से एक फ़र्ज़ है। निःसंदेह अल्लाह पूर्ण ज्ञान और हिकमत (बुद्धिमत्ता) वाला है।
يُوصِيكُمُ ٱللَّهُ فِيٓ أَوۡلَٰدِكُمۡۖ لِلذَّكَرِ مِثۡلُ حَظِّ ٱلۡأُنثَيَيۡنِۚ فَإِن كُنَّ نِسَآءٗ فَوۡقَ ٱثۡنَتَيۡنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَۖ وَإِن كَانَتۡ وَٰحِدَةٗ فَلَهَا ٱلنِّصۡفُۚ وَلِأَبَوَيۡهِ لِكُلِّ وَٰحِدٖ مِّنۡهُمَا ٱلسُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِن كَانَ لَهُۥ وَلَدٞۚ فَإِن لَّمۡ يَكُن لَّهُۥ وَلَدٞ وَوَرِثَهُۥٓ أَبَوَاهُ فَلِأُمِّهِ ٱلثُّلُثُۚ فَإِن كَانَ لَهُۥٓ إِخۡوَةٞ فَلِأُمِّهِ ٱلسُّدُسُۚ مِنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ يُوصِي بِهَآ أَوۡ دَيۡنٍۗ ءَابَآؤُكُمۡ وَأَبۡنَآؤُكُمۡ لَا تَدۡرُونَ أَيُّهُمۡ أَقۡرَبُ لَكُمۡ نَفۡعٗاۚ فَرِيضَةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا11
आयत 11: और पिता शेष संपत्ति लेगा।
विरासत के नियम: पति-पत्नी और माँ की तरफ से भाई-बहन
12यदि आपकी पत्नियों के कोई संतान न हो, तो आप उनके द्वारा छोड़ी गई संपत्ति का आधा हिस्सा विरासत में पाएँगे। लेकिन यदि उनके बच्चे हों, तो आपका हिस्सा संपत्ति का एक-चौथाई होगा—किसी वसीयत और ऋण के भुगतान के बाद। और यदि आपके कोई संतान न हो, तो आपकी पत्नियाँ आपके द्वारा छोड़ी गई संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा विरासत में पाएँगी। लेकिन यदि आपके बच्चे हों, तो आपकी पत्नियाँ आपकी संपत्ति का एक-आठवाँ हिस्सा पाएँगी—किसी वसीयत और ऋण के भुगतान के बाद। और यदि कोई पुरुष या महिला न तो माता-पिता छोड़े और न ही संतान, बल्कि केवल एक भाई या एक बहन 'अपनी माँ की तरफ से' छोड़े, तो उनमें से प्रत्येक को एक-छठा हिस्सा मिलेगा, लेकिन यदि वे एक से अधिक हों, तो वे 'सभी' संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा साझा करेंगे—किसी वसीयत और ऋण के भुगतान के बाद, वारिसों को कोई हानि पहुँचाए बिना। यह अल्लाह का एक आदेश है। और अल्लाह पूर्ण ज्ञान वाला और अत्यंत सहनशील है।
وَلَكُمۡ نِصۡفُ مَا تَرَكَ أَزۡوَٰجُكُمۡ إِن لَّمۡ يَكُن لَّهُنَّ وَلَدٞۚ فَإِن كَانَ لَهُنَّ وَلَدٞ فَلَكُمُ ٱلرُّبُعُ مِمَّا تَرَكۡنَۚ مِنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ يُوصِينَ بِهَآ أَوۡ دَيۡنٖۚ وَلَهُنَّ ٱلرُّبُعُ مِمَّا تَرَكۡتُمۡ إِن لَّمۡ يَكُن لَّكُمۡ وَلَدٞۚ فَإِن كَانَ لَكُمۡ وَلَدٞ فَلَهُنَّ ٱلثُّمُنُ مِمَّا تَرَكۡتُمۚ مِّنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ تُوصُونَ بِهَآ أَوۡ دَيۡنٖۗ وَإِن كَانَ رَجُلٞ يُورَثُ كَلَٰلَةً أَوِ ٱمۡرَأَةٞ وَلَهُۥٓ أَخٌ أَوۡ أُخۡتٞ فَلِكُلِّ وَٰحِدٖ مِّنۡهُمَا ٱلسُّدُسُۚ فَإِن كَانُوٓاْ أَكۡثَرَ مِن ذَٰلِكَ فَهُمۡ شُرَكَآءُ فِي ٱلثُّلُثِۚ مِنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ يُوصَىٰ بِهَآ أَوۡ دَيۡنٍ غَيۡرَ مُضَآرّٖۚ وَصِيَّةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَلِيمٞ12
अल्लाह के आदेशों का पालन
13ये 'हिस्से' अल्लाह द्वारा निर्धारित नियम हैं। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करेगा, उसे वह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, जहाँ वे हमेशा रहेंगे: यही सबसे बड़ी सफलता है! 14लेकिन जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा और उन नियमों को तोड़ेगा, उसे वह आग में डालेगा, जहाँ वे हमेशा रहेंगे। और उन्हें अपमानजनक सज़ा मिलेगी।
تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِۚ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدۡخِلۡهُ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ 13وَمَن يَعۡصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُۥ يُدۡخِلۡهُ نَارًا خَٰلِدٗا فِيهَا وَلَهُۥ عَذَابٞ مُّهِينٞ14
हराम प्रेम संबंध
15तुम्हारी जिन औरतों से व्यभिचार का गुनाह सरज़द हो जाए, तो तुम अपने में से चार गवाह बुलाओ। अगर गवाहों ने उनकी गवाही दे दी, तो उन औरतों को घरों में कैद रखो जब तक कि मौत उन्हें न आ जाए या अल्लाह उनके लिए कोई और रास्ता न निकाल दे। 16और तुम में से जो दो इस गुनाह के मुर्तकिब हों, तो उन्हें तकलीफ़ दो। फिर अगर वे तौबा कर लें और अपनी इस्लाह कर लें, तो उन्हें छोड़ दो। बेशक अल्लाह तौबा कुबूल करने वाला, निहायत मेहरबान है।
وَٱلَّٰتِي يَأۡتِينَ ٱلۡفَٰحِشَةَ مِن نِّسَآئِكُمۡ فَٱسۡتَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِنَّ أَرۡبَعَةٗ مِّنكُمۡۖ فَإِن شَهِدُواْ فَأَمۡسِكُوهُنَّ فِي ٱلۡبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّىٰهُنَّ ٱلۡمَوۡتُ أَوۡ يَجۡعَلَ ٱللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلٗ 15وَٱلَّذَانِ يَأۡتِيَٰنِهَا مِنكُمۡ فََٔاذُوهُمَاۖ فَإِن تَابَا وَأَصۡلَحَا فَأَعۡرِضُواْ عَنۡهُمَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ تَوَّابٗا رَّحِيمًا16
आयत 16: इसे बाद में 24:2 में वर्णित हुक्म से बदल दिया गया।
क़बूल और नामंज़ूर तौबा
17अल्लाह केवल उन लोगों की तौबा (पश्चाताप) स्वीकार करता है जो लापरवाही से बुराई करते हैं और फिर जल्द ही पश्चाताप करते हैं: ऐसे लोगों पर अल्लाह की रहमत (दया) होगी। और अल्लाह पूर्ण ज्ञान और हिकमत (बुद्धिमत्ता) वाला है। 18लेकिन उन लोगों से तौबा स्वीकार नहीं की जाती जो जानबूझकर गुनाह करते रहते हैं जब तक कि उनकी मौत का वक्त करीब न आ जाए और फिर वे चिल्लाएं, "अब मैं तौबा करता हूँ!" या उन लोगों से जो काफ़िर (अविश्वासी) के रूप में मरते हैं। हमने ऐसे लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब (सजा) तैयार कर रखा है।
إِنَّمَا ٱلتَّوۡبَةُ عَلَى ٱللَّهِ لِلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلسُّوٓءَ بِجَهَٰلَةٖ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِن قَرِيبٖ فَأُوْلَٰٓئِكَ يَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا 17وَلَيۡسَتِ ٱلتَّوۡبَةُ لِلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلسَّئَِّاتِ حَتَّىٰٓ إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ إِنِّي تُبۡتُ ٱلۡـَٰٔنَ وَلَا ٱلَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمۡ كُفَّارٌۚ أُوْلَٰٓئِكَ أَعۡتَدۡنَا لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا18
आयत 17: किसी व्यक्ति को तब तक क्षमा कर दिया जाता है जब तक वह अपनी मृत्यु से पहले किसी भी समय तौबा कर लेता है। यह ध्यान में रखते हुए कि अचानक मृत्यु बहुत सामान्य है, लोगों को अपनी तौबा में देरी नहीं करनी चाहिए।
महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव न करें।
19ऐ ईमानवालो! तुम्हें यह हलाल नहीं कि तुम ज़बरदस्ती औरतों के वारिस बनो। और न ही उन्हें इस इरादे से तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है उसमें से कुछ वापस ले लो—सिवाय इसके कि वे किसी खुली बेहयाई की मुजरिम हों। उनके साथ अच्छे बर्ताव से रहो। और अगर तुम उन्हें नापसंद करो, तो हो सकता है कि तुम किसी ऐसी चीज़ को नापसंद करो जिसमें अल्लाह ने बहुत बड़ी भलाई रख दी हो। 20और अगर तुम एक बीवी की जगह दूसरी बीवी लाना चाहो, और तुमने उसे सोने का एक ढेर भी दिया हो, तो उसमें से कुछ भी वापस न लो। क्या तुम उसे ज़ुल्म और खुले गुनाह के साथ वापस लोगे? 21और तुम उसे कैसे वापस ले सकते हो जबकि तुम एक-दूसरे से मिल चुके हो और उसने तुमसे एक मज़बूत अहद लिया है?
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَرِثُواْ ٱلنِّسَآءَ كَرۡهٗاۖ وَلَا تَعۡضُلُوهُنَّ لِتَذۡهَبُواْ بِبَعۡضِ مَآ ءَاتَيۡتُمُوهُنَّ إِلَّآ أَن يَأۡتِينَ بِفَٰحِشَةٖ مُّبَيِّنَةٖۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ فَإِن كَرِهۡتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰٓ أَن تَكۡرَهُواْ شَيۡٔٗا وَيَجۡعَلَ ٱللَّهُ فِيهِ خَيۡرٗا كَثِيرٗا 19وَإِنۡ أَرَدتُّمُ ٱسۡتِبۡدَالَ زَوۡجٖ مَّكَانَ زَوۡجٖ وَءَاتَيۡتُمۡ إِحۡدَىٰهُنَّ قِنطَارٗا فَلَا تَأۡخُذُواْ مِنۡهُ شَيًۡٔاۚ أَتَأۡخُذُونَهُۥ بُهۡتَٰنٗا وَإِثۡمٗا مُّبِينٗا 20وَكَيۡفَ تَأۡخُذُونَهُۥ وَقَدۡ أَفۡضَىٰ بَعۡضُكُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٖ وَأَخَذۡنَ مِنكُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا21
आयत 19: इस्लाम से पहले, एक पुरुष अपनी किसी महिला रिश्तेदार (जैसे अपनी बहन या माँ) को शादी करने से रोकता था ताकि वह उसकी संपत्ति अपने लिए हथिया सके।
आयत 21: इसका अर्थ है, भलाई के साथ मिलकर रहने या सम्मान के साथ अलग होने का वादा।
विवाह के लिए वर्जित महिलाएँ
22अपने पिताओं की पूर्व पत्नियों से निकाह मत करो—सिवाय इसके कि जो पहले हो चुका। यह निश्चित रूप से एक बेहयाई, घृणित और बुरा कर्म था। 23तुम्हारे लिए हराम की गई हैं तुम्हारी माताएँ, तुम्हारी बेटियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी खालएँ, तुम्हारे भाई की बेटियाँ, तुम्हारी बहन की बेटियाँ, तुम्हारी वे दूध-माताएँ जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया, तुम्हारी दूध-बहनें, तुम्हारी सासें, और तुम्हारी वे सौतेली बेटियाँ जो तुम्हारी परवरिश में हैं, जिनकी माताओं से तुम्हारा सहवास हो चुका है—लेकिन यदि तुमने उनकी माताओं से सहवास नहीं किया है, तो तुम उनसे विवाह कर सकते हो—और तुम्हारे अपने बेटों की पत्नियाँ, और एक ही समय में दो बहनों को एक साथ—सिवाय इसके कि जो पहले हो चुका। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान है। 24और विवाहित स्त्रियाँ भी तुम पर हराम हैं, सिवाय उन दासी स्त्रियों के जो तुम्हारे दाहिने हाथ का अधिकार हैं। यह अल्लाह का तुम पर आदेश है। लेकिन अन्य सभी स्त्रियाँ तुम्हारे लिए हलाल हैं—बशर्ते कि तुम उन्हें अपने माल के बदले निकाह में तलाश करो, न कि व्यभिचार के लिए। जब तुम उनसे निकाह करो, तो उन्हें उनका महर देना अनिवार्य है। तुम पर कोई गुनाह नहीं यदि तुम उस महर के बारे में एक-दूसरे की रज़ामंदी से कुछ कम-ज़्यादा कर लो जिस पर तुम सहमत हुए हो। निःसंदेह अल्लाह सर्वज्ञ, हिकमत वाला है।
وَلَا تَنكِحُواْ مَا نَكَحَ ءَابَآؤُكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا قَدۡ سَلَفَۚ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةٗ وَمَقۡتٗا وَسَآءَ سَبِيلًا 22حُرِّمَتۡ عَلَيۡكُمۡ أُمَّهَٰتُكُمۡ وَبَنَاتُكُمۡ وَأَخَوَٰتُكُمۡ وَعَمَّٰتُكُمۡ وَخَٰلَٰتُكُمۡ وَبَنَاتُ ٱلۡأَخِ وَبَنَاتُ ٱلۡأُخۡتِ وَأُمَّهَٰتُكُمُ ٱلَّٰتِيٓ أَرۡضَعۡنَكُمۡ وَأَخَوَٰتُكُم مِّنَ ٱلرَّضَٰعَةِ وَأُمَّهَٰتُ نِسَآئِكُمۡ وَرَبَٰٓئِبُكُمُ ٱلَّٰتِي فِي حُجُورِكُم مِّن نِّسَآئِكُمُ ٱلَّٰتِي دَخَلۡتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمۡ تَكُونُواْ دَخَلۡتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ وَحَلَٰٓئِلُ أَبۡنَآئِكُمُ ٱلَّذِينَ مِنۡ أَصۡلَٰبِكُمۡ وَأَن تَجۡمَعُواْ بَيۡنَ ٱلۡأُخۡتَيۡنِ إِلَّا مَا قَدۡ سَلَفَۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا 23وَٱلۡمُحۡصَنَٰتُ مِنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۖ كِتَٰبَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡۚ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَآءَ ذَٰلِكُمۡ أَن تَبۡتَغُواْ بِأَمۡوَٰلِكُم مُّحۡصِنِينَ غَيۡرَ مُسَٰفِحِينَۚ فَمَا ٱسۡتَمۡتَعۡتُم بِهِۦ مِنۡهُنَّ فََٔاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةٗۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا تَرَٰضَيۡتُم بِهِۦ مِنۢ بَعۡدِ ٱلۡفَرِيضَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا24
आयत 22: इस्लाम से पहले, यदि किसी पुरुष की मृत्यु हो जाती थी, तो उसका बेटा अपनी सौतेली माँ से विवाह कर सकता था, या उसकी शादी किसी और से करवा कर उसका विवाह उपहार ले सकता था, या उसे दोबारा शादी करने से रोक सकता था ताकि उसकी मृत्यु के बाद वह उसकी संपत्ति का वारिस बन सके।

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, "अगर पैगंबर को मानवाधिकारों की परवाह थी, तो उन्होंने पहले दिन से ही गुलामी पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया?" पैगंबर की बात करने से पहले, आइए संयुक्त राज्य अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के बारे में थोड़ी बात करें। उनके समय में, उत्तरी और दक्षिणी राज्य दासों को मुक्त करने पर असहमत थे, जिसके कारण अमेरिकी गृहयुद्ध (1861-1865) हुआ, जिसमें 620,000 से अधिक सैनिक मारे गए और लाखों अन्य घायल हुए। राष्ट्रपति लिंकन को स्वयं 1865 में एक ऐसे व्यक्ति ने मार डाला था जो दक्षिणी राज्यों का समर्थन करता था, जो गुलामी के पक्षधर थे।
भले ही दक्षिण युद्ध हार गया और दासों को आधिकारिक तौर पर मुक्त कर दिया गया, फिर भी पूर्व गुलाम अफ्रीकी-अमेरिकियों को गोरों के साथ कुछ समानता का आनंद लेने में कम से कम 100 साल और लग गए। जिम क्रो कानूनों (जो 1968 में समाप्त हुए) के तहत, अश्वेतों को 'अलग लेकिन असमान' सुविधाओं का उपयोग करना पड़ता था। ब्रिटानिका किड्स के अनुसार, "कानून निर्माताओं ने ऐसे कानून पारित किए जिनके तहत गोरों और अश्वेतों को अलग-अलग स्कूलों में जाना पड़ता था और सार्वजनिक परिवहन में अलग-अलग जगहों पर बैठना पड़ता था। ये कानून पार्कों, कब्रिस्तानों, थिएटरों और रेस्तरां तक फैले हुए थे। अश्वेतों और गोरों को अलग-अलग पीने के फव्वारे, प्रतीक्षालय, आवास और दुकानें इस्तेमाल करनी पड़ती थीं। इन कानूनों ने अश्वेत और गोरे लोगों को एक-दूसरे के साथ समान रूप से संबंध बनाने से रोका। इन कानूनों ने अफ्रीकी अमेरिकी लोगों की स्वतंत्रता और अवसरों को सीमित कर दिया। प्रत्येक राज्य के अपने जिम क्रो कानून थे... 'रंगीन लोगों' को कहाँ जाने की अनुमति नहीं थी, यह दिखाने के लिए संकेतों का उपयोग किया जाता था।"

लगभग 13 सदियों पहले, पैगंबर ने घोषणा की थी कि सभी लोग समान हैं, क्योंकि वे एक ही पिता और माता से आए हैं। उन्होंने कहा कि गोरे अश्वेतों से बेहतर नहीं थे, और अश्वेत गोरों से बेहतर नहीं थे। यह ध्यान में रखते हुए कि गुलामी हजारों सालों से मौजूद थी, पैगंबर जानते थे कि दासों को रातोंरात मुक्त करना असंभव होगा (जैसा कि लिंकन ने बाद में करने की कोशिश की)। हालांकि, पैगंबर ने इस मुद्दे को हल करने में मदद करने के लिए कई नियम पेश किए। उदाहरण के लिए, इस्लाम ने दासों को मुक्त करना एक धर्मार्थ कार्य बनाकर गुलामी को समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया। पैगंबर और उनके साथियों ने दासों को आर्थिक रूप से सहायता दी ताकि वे अपनी स्वतंत्रता खरीद सकें, जैसा कि उन्होंने सलमान नामक एक प्रसिद्ध साथी के साथ किया था। इस्लाम से पहले, स्वतंत्र लोगों का अपहरण कर उन्हें गुलाम के रूप में बेच दिया जाता था। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, किसी भी स्वतंत्र व्यक्ति को गुलाम नहीं बनाया जा सकता। दासों से पैदा हुए बच्चे स्वतः ही गुलाम बन जाते थे। इस्लाम के तहत, गुलाम-मालिकों से पैदा हुए बच्चों को स्वतंत्र माना जाता था, और उनकी माताओं को उनके मालिकों की मृत्यु पर स्वतंत्रता मिल जाती थी। एक माँ को उसके बच्चों से अलग करना वर्जित था।
कई पापों का प्रायश्चित एक गुलाम को मुक्त करके किया जाता था, जिसमें अनजाने में हत्या, अपनी शपथ तोड़ना, और रमज़ान के रोज़ों के दिनों में पति-पत्नी के बीच रोमांटिक संबंध शामिल थे।

पूर्व दासों को मुस्लिम समाज में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ दी गईं। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी मूल के बिलाल, इस्लाम में प्रार्थना के पहले आधिकारिक अज़ान देने वाले थे। उसामा इब्न ज़ैद (एक अश्वेत व्यक्ति, एक मुक्त दास का बेटा) को पैगंबर द्वारा 18 साल की उम्र में मुस्लिम सेना का नेता नियुक्त किया गया था। एक और साथी, इब्न अबज़ा, 'उमर के समय में मक्का के महापौर बने। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि मामलुक (गुलाम सैनिक) ने लगभग 3 सदियों (1250-1517) तक मिस्र और सीरिया पर शासन किया।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, "अपने गुलामों को वही खिलाओ जो तुम खाते हो, उन्हें वही पहनाओ जो तुम पहनते हो, और उन पर इतना काम न थोपो, जब तक कि तुम उनकी मदद न करो।" (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम)
यद्यपि विश्वभर में गुलामी को आधिकारिक तौर पर प्रतिबंधित कर दिया गया है, फिर भी गुलामी के अनेक रूप आज भी विद्यमान हैं। इनमें बंधुआ मजदूर, यौन दास, कर्ज के गुलाम, इत्यादि शामिल हैं। गरीब देशों में कई बच्चे उन कंपनियों के लिए गुलामों की तरह काम करते हैं जो कुछ धनी पश्चिमी देशों में व्यवसायों को उत्पाद उपलब्ध कराती हैं।
दासियों से निकाह की अनुमति
25लेकिन तुम में से कोई किसी आज़ाद ईमान वाली औरत से शादी करने की क्षमता न रखता हो, तो वह किसी ईमान वाली लौंडी से शादी कर ले जो तुम्हारे कब्ज़े में हो। अल्लाह ही तुम्हारे ईमान की हकीकत को बेहतर जानता है। तुम सब एक दूसरे से ही हो। तो उनसे उनके मालिकों की इजाज़त से शादी करो, और उन्हें दस्तूर के मुताबिक उनका मेहर दो, अगर वे पाक दामन हों, न तो बदकारी करती हों और न चोरी-छिपे यारियां रखती हों। फिर अगर वे शादी के बाद बदकारी की मुर्तकिब हों तो उन्हें आज़ाद औरतों की सज़ा से आधी सज़ा मिलेगी। यह इजाज़त तुम में से उनके लिए है जिन्हें गुनाह में पड़ने का डर हो। लेकिन अगर तुम सब्र करो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है। और अल्लाह बख्शने वाला, मेहरबान है।
وَمَن لَّمۡ يَسۡتَطِعۡ مِنكُمۡ طَوۡلًا أَن يَنكِحَ ٱلۡمُحۡصَنَٰتِ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ فَمِن مَّا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُم مِّن فَتَيَٰتِكُمُ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِۚ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِإِيمَٰنِكُمۚ بَعۡضُكُم مِّنۢ بَعۡضٖۚ فَٱنكِحُوهُنَّ بِإِذۡنِ أَهۡلِهِنَّ وَءَاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِ مُحۡصَنَٰتٍ غَيۡرَ مُسَٰفِحَٰتٖ وَلَا مُتَّخِذَٰتِ أَخۡدَانٖۚ فَإِذَآ أُحۡصِنَّ فَإِنۡ أَتَيۡنَ بِفَٰحِشَةٖ فَعَلَيۡهِنَّ نِصۡفُ مَا عَلَى ٱلۡمُحۡصَنَٰتِ مِنَ ٱلۡعَذَابِۚ ذَٰلِكَ لِمَنۡ خَشِيَ ٱلۡعَنَتَ مِنكُمۡۚ وَأَن تَصۡبِرُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ25


ज्ञान की बातें
आयत 28 के अनुसार, मनुष्य को कमज़ोर, अधीर और अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ बनाया गया है। हमारी शारीरिक कमज़ोरी तब स्पष्ट हो जाती है जब हम अपने विकास और शक्ति की तुलना अन्य प्राणियों से करते हैं। शुरुआत के लिए, मानव शिशुओं को अपना सिर उठाने में कम से कम 3 महीने लगते हैं, चलने में लगभग एक साल, और कुछ को अपने माता-पिता के बिस्तर छोड़ने में कई साल लग सकते हैं! हालाँकि, एक घोड़े का बच्चा जन्म के कुछ घंटों के भीतर दौड़ सकता है। एक कछुए का बच्चा अंडे से निकलने के एक या दो दिन बाद ही तैर सकता है, जबकि एक नीली चिड़िया दो हफ्तों में घोंसले से उड़ सकती है।
इसके अलावा, कुछ प्राणियों में ऐसी महाशक्तियाँ होती हैं जिनकी हम बराबरी नहीं कर सकते। यहाँ नेशनल ज्योग्राफिक के कुछ मज़ेदार तथ्य दिए गए हैं: एक 200 टन वज़न वाली नीली व्हेल 40 हाथियों (प्रत्येक 5 टन वज़न का) या 2,667 मनुष्यों (प्रत्येक 70 किलोग्राम वज़न का) के बराबर होती है। एक अकेली चींटी अपने शरीर के वज़न का 50 गुना उठा सकती है। इसकी बराबरी करने के लिए, एक मनुष्य (80 किलोग्राम वज़न का) को 4,000 किलोग्राम उठाना होगा। एक छोटा पिस्सू अपने शरीर की लंबाई का 150 गुना कूद सकता है। एक 2 मीटर लंबे मनुष्य को पिस्सू की बराबरी करने के लिए 300 मीटर कूदना होगा। एक समुद्री घोड़ा एक बार में औसतन 1,500 बच्चों को जन्म दे सकता है। एक छोटा जीव जिसे वॉटर बेयर (या टार्डिग्रेड) के नाम से जाना जाता है, अत्यधिक ठंड और गर्मी में जीवित रह सकता है और अंतरिक्ष में भी जीवित रह सकता है। यह सालों तक बिना भोजन या पानी के रह सकता है। इसकी तुलना में, कुछ लोग सोच सकते हैं कि अगर वे रमज़ान में कुछ घंटों के लिए रोज़ा रखते हैं तो वे मर जाएँगे!
हालाँकि हम कई अन्य प्राणियों की तुलना में सबसे बड़े, सबसे मज़बूत या सबसे तेज़ नहीं हैं, अल्लाह ने हमें श्रेष्ठ बुद्धि और स्वतंत्र इच्छा से नवाज़ा है। उसने हमें पृथ्वी का प्रभारी बनाया और हमें सही काम करने और गलत से बचने का आदेश दिया।

छोटी कहानी
यह सूरह अल्लाह की रहमत के बारे में बहुत कुछ बताती है। सूरह 9 के अपवाद के साथ, सभी सूरह बिस्मिल्लाह से शुरू होती हैं ताकि हमें याद दिलाया जा सके कि वह वास्तव में अर-रहमान (अत्यंत दयालु) और अर-रहीम (निरंतर दया करने वाला) है। आयत 26-28 में, अल्लाह कहता है कि वह हमेशा लोगों पर दया करता है और उनके बोझ को हल्का करता है, यह जानते हुए कि उन्हें कमजोर बनाया गया है।
यह मुझे कनाडा में एक मुस्लिम भाई के साथ हुई एक बहुत ही भावुक कहानी याद दिलाता है। उसकी छोटी बेटी बहुत बीमार हो गई, और आखिरकार अस्पताल को उसे लाइफ-सपोर्ट पर रखना पड़ा। कुछ समय बाद, डॉक्टरों ने उसे और उसकी पत्नी को बताया कि उनकी बेटी कभी ठीक नहीं होगी और उसे लाइफ-सपोर्ट से हटा देना चाहिए - जिसका मतलब था कि वह उसके तुरंत बाद मर जाएगी। पिता ने कागजात पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। एक हफ्ता बीत गया, लेकिन वह फिर से ऐसा नहीं कर सका। वह उसके और उसके परिवार के लिए बहुत तनावपूर्ण समय था। आखिरकार, यह महसूस करने के बाद कि उसकी बेटी की हालत केवल बिगड़ती जा रही थी, उसने अल्लाह की रहमत के लिए दुआ की और कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए कलम उठाई। जब डॉक्टर ने उसे हस्ताक्षर करने की जगह दिखाई तो उसका हाथ कांपने लगा। अचानक, एक नर्स कमरे में दौड़ी आई और उसे बताया कि हस्ताक्षर करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसकी बेटी की अभी-अभी अपने आप मृत्यु हो गई थी। पिता ने कलम गिरा दी और उस तीव्र क्षण में अल्लाह की रहमत के लिए शुक्र अदा करने के लिए सजदे में चला गया।
इन सभी नियमों का उद्देश्य
26अल्लाह तुम्हें बातें स्पष्ट करना चाहता है, और तुम्हें उन लोगों के नेक तरीकों की राह दिखाना चाहता है जो तुमसे पहले गुज़रे, और तुम पर रहम करना चाहता है। अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है। 27और अल्लाह तुम पर अपनी रहमत के साथ रुजू करना चाहता है, लेकिन जो अपनी ख्वाहिशों के पीछे चलते हैं, वे चाहते हैं कि तुम पूरी तरह से गुमराह हो जाओ। 28और अल्लाह तुम्हारी मुश्किलों को आसान करना चाहता है, क्योंकि इंसान को कमज़ोर पैदा किया गया था।
يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمۡ وَيَهۡدِيَكُمۡ سُنَنَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَيَتُوبَ عَلَيۡكُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ 26وَٱللَّهُ يُرِيدُ أَن يَتُوبَ عَلَيۡكُمۡ وَيُرِيدُ ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلشَّهَوَٰتِ أَن تَمِيلُواْ مَيۡلًا عَظِيمٗا 27يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمۡۚ وَخُلِقَ ٱلۡإِنسَٰنُ ضَعِيفٗا28
मोमिनों को हिदायत
29ऐ ईमान वालो! एक-दूसरे का माल नाजायज़ तरीके से मत खाओ, सिवाय इसके कि वह तुम्हारी आपसी रज़ामंदी से तिजारत (व्यापार) हो। और अपनी जानों को हलाक न करो। बेशक अल्लाह तुम पर बहुत मेहरबान है। 30और जो कोई यह काम सरकशी और ज़ुल्म से करेगा, तो हम उसे आग में झोंक देंगे। और यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है। 31अगर तुम उन बड़े गुनाहों से बचोगे जिनसे तुम्हें मना किया गया है, तो हम तुम्हारी छोटी बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें एक इज़्ज़त वाली जगह में दाख़िल करेंगे।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَكُم بَيۡنَكُم بِٱلۡبَٰطِلِ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً عَن تَرَاضٖ مِّنكُمۡۚ وَلَا تَقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُمۡ رَحِيمٗا 29وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ عُدۡوَٰنٗا وَظُلۡمٗا فَسَوۡفَ نُصۡلِيهِ نَارٗاۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا 30إِن تَجۡتَنِبُواْ كَبَآئِرَ مَا تُنۡهَوۡنَ عَنۡهُ نُكَفِّرۡ عَنكُمۡ سَئَِّاتِكُمۡ وَنُدۡخِلۡكُم مُّدۡخَلٗا كَرِيمٗا31
आयत 31: जन्नत
विरासत के नियम: हसद मत करो।
32और उस चीज़ की कामना न करो जिससे अल्लाह ने तुम में से कुछ को दूसरों पर श्रेष्ठता दी है। पुरुषों के लिए वह है जो उन्होंने कमाया और स्त्रियों के लिए वह है जो उन्होंने कमाया। बल्कि अल्लाह से उसकी कृपा माँगो। निःसंदेह अल्लाह को हर चीज़ का पूर्ण ज्ञान है। 33और हमने माता-पिता और निकट संबंधियों की छोड़ी हुई चीज़ों के लिए वारिस मुक़र्रर किए हैं। और जिन लोगों से तुमने प्रतिज्ञा की है, उन्हें उनका हिस्सा दो। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर गवाह है।
وَلَا تَتَمَنَّوۡاْ مَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بِهِۦ بَعۡضَكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٞ مِّمَّا ٱكۡتَسَبُواْۖ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٞ مِّمَّا ٱكۡتَسَبۡنَۚ وَسَۡٔلُواْ ٱللَّهَ مِن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا 32وَلِكُلّٖ جَعَلۡنَا مَوَٰلِيَ مِمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَۚ وَٱلَّذِينَ عَقَدَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡ فََٔاتُوهُمۡ نَصِيبَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدًا33
आयत 33: इस्लाम से पहले दोस्तों के बीच एक-दूसरे को वारिस बनाने की प्रथा आम थी। यह प्रथा सूरह 8 आयत 75 के अवतरण के साथ समाप्त हो गई। हालाँकि अब दोस्तों का विरासत में कोई हिस्सा नहीं होता, फिर भी उनके दोस्त उन्हें अपनी संपत्ति का % तक उपहार के तौर पर दे सकते हैं।

ज्ञान की बातें
निम्नलिखित अंश एक ऐसी स्थिति का वर्णन करता है जहाँ पत्नी गंभीर रूप से दुर्व्यवहार करती है, अपने पति का अनादर करती है, उसे उसके अधिकार देने में विफल रहती है, या किसी अन्य पुरुष के साथ अवैध संबंध रखती है। परिवार के संरक्षक और रक्षक के रूप में, पति को निम्नलिखित कदम उठाने का अधिकार है:
1. अपनी पत्नी को नसीहत देना और सावधान करना।
2. यदि इससे बात नहीं बनती, तो वह उसके साथ शय्या साझा करने से इनकार कर सकता है।
3. लेकिन यदि इससे भी बात नहीं बनती, तो वह उसे अनुशासित कर सकता है। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि वह उसके बुरे व्यवहार से खुश नहीं है, न कि उसके प्रति हिंसक होना। अपने अंतिम भाषण में, पैगंबर ने लोगों को अपनी महिलाओं के प्रति दयालु रहने की सलाह दी। उन्होंने स्वयं कभी किसी महिला या सेवक को नहीं मारा। यदि पति अपनी पत्नी के प्रति अनुचित या अपमानजनक है, तो वह अपने अभिभावक से मदद ले सकती है या तलाक की मांग कर सकती है। (इमाम इब्न कसीर और इमाम अल-कुर्तुबी)
पति - पालनकर्ता और संरक्षक
34पति अपनी पत्नियों के संरक्षक हैं, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ को दूसरों पर श्रेष्ठता दी है और इसलिए भी कि वे अपने माल में से ख़र्च करते हैं। और नेक पत्नियाँ (अपने) रब की आज्ञा मानती हैं और अपने पतियों की अनुपस्थिति में अल्लाह की हिफ़ाज़त में अमानत की रक्षा करती हैं। जिन पत्नियों से तुम्हें सरकशी का डर हो, उन्हें पहले नसीहत करो, फिर उनके बिस्तरों को अलग कर दो और फिर उन्हें (हल्की) मारो। फिर यदि वे तुम्हारी बात मान लें, तो उन पर ज़्यादती का कोई रास्ता न ढूँढो। निःसंदेह अल्लाह बहुत बुलंद और महान है। 35और यदि तुम्हें पति-पत्नी के बीच बिगाड़ का डर हो, तो एक निर्णायक पुरुष के परिवार से और एक निर्णायक स्त्री के परिवार से भेजो। यदि वे दोनों सुलह कराना चाहेंगे, तो अल्लाह उन दोनों के बीच मेल करा देगा। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला और पूरी तरह ख़बर रखने वाला है।
ٱلرِّجَالُ قَوَّٰمُونَ عَلَى ٱلنِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ وَبِمَآ أَنفَقُواْ مِنۡ أَمۡوَٰلِهِمۡۚ فَٱلصَّٰلِحَٰتُ قَٰنِتَٰتٌ حَٰفِظَٰتٞ لِّلۡغَيۡبِ بِمَا حَفِظَ ٱللَّهُۚ وَٱلَّٰتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَٱهۡجُرُوهُنَّ فِي ٱلۡمَضَاجِعِ وَٱضۡرِبُوهُنَّۖ فَإِنۡ أَطَعۡنَكُمۡ فَلَا تَبۡغُواْ عَلَيۡهِنَّ سَبِيلًاۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيّٗا كَبِيرٗا 34وَإِنۡ خِفۡتُمۡ شِقَاقَ بَيۡنِهِمَا فَٱبۡعَثُواْ حَكَمٗا مِّنۡ أَهۡلِهِۦ وَحَكَمٗا مِّنۡ أَهۡلِهَآ إِن يُرِيدَآ إِصۡلَٰحٗا يُوَفِّقِ ٱللَّهُ بَيۡنَهُمَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا خَبِيرٗا35
आयत 34: इसका अर्थ है कि उनकी अनुपस्थिति में अपने पतियों की इज़्ज़त और माल की हिफाज़त करना।

छोटी कहानी
एक दिन, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अब्दुल्लाह इब्न मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) से फरमाया कि वे उन्हें कुरान की कुछ आयतें सुनाएँ। इब्न मसऊद ने अर्ज किया, 'मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ, जबकि यह आप पर अवतरित हुआ है?' नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, 'मैं इसे किसी और से सुनना पसंद करूँगा।' तो, इब्न मसऊद ने इस सूरह की शुरुआत से तिलावत करना शुरू किया। जब वे आयत 41 पर पहुँचे, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उनसे फरमाया, 'बस इतना काफी है।' इब्न मसऊद ने फरमाया कि उन्होंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तरफ देखा और देखा कि उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम)

ज्ञान की बातें
आयत 36-40 उन लोगों की आलोचना करती हैं जो दूसरों के साथ साझा करने से नफरत करते हैं और अल्लाह के मार्ग में दान करने में विफल रहते हैं, भले ही उनकी सारी दौलत केवल उसी से आई हो। ऐसे लोग इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हैं कि एक दिन वे मर जाएंगे और सब कुछ पीछे छोड़ जाएंगे। जो लोग बुद्धिमान हैं, उन्हें आभारी होना चाहिए कि अल्लाह ने उन्हें धन से नवाज़ा है, उन्हें दान करने का मार्गदर्शन दिया है, और उनके दान के लिए उन्हें पुरस्कृत करने का वादा किया है। दूसरों की मदद करना और उनकी कठिनाई को कम करना एक मुसलमान के रूप में आप जो सबसे अच्छे काम कर सकते हैं, उनमें से एक है।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया, "जो कोई किसी मोमिन से इस दुनिया की कठिनाइयों में से एक कठिनाई को दूर करेगा, अल्लाह उस व्यक्ति से क़यामत के दिन की कठिनाइयों में से एक कठिनाई को दूर करेगा। जो कोई किसी मुश्किल में फंसे व्यक्ति के लिए चीज़ों को आसान बनाएगा, अल्लाह उस व्यक्ति के लिए इस दुनिया और आख़िरत में चीज़ों को आसान बनाएगा। और जो कोई किसी मुसलमान की ख़ामियों को ढँकेगा, अल्लाह उस व्यक्ति की ख़ामियों को इस दुनिया और आख़िरत में ढँकेगा। अल्लाह हमेशा एक व्यक्ति की मदद करेगा जब तक वह व्यक्ति दूसरों की मदद करता रहेगा। जो लोग ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग तलाशते हैं, अल्लाह उनके लिए जन्नत का मार्ग आसान कर देगा। यदि कोई समूह मस्जिद में एक साथ अल्लाह की किताब का पाठ करने और उसका अध्ययन करने के लिए इकट्ठा होता है, तो उन पर शांति उतर आएगी, रहमत उन्हें ढँक लेगी, फ़रिश्ते उनके चारों ओर होंगे, और अल्लाह अपनी उपस्थिति में मौजूद लोगों से उनका ज़िक्र करेगा। और जहाँ तक उन लोगों का सवाल है जो अपने अच्छे कामों में पीछे रह जाते हैं, उनकी कुलीन वंश-परंपरा उन्हें आगे नहीं बढ़ाएगी।" (इमाम मुस्लिम)


छोटी कहानी
जोहा एक अमीर आदमी था, लेकिन उसे बांटना पसंद नहीं था।

छोटी कहानी
जोहा की तरह, हमजा हमेशा चीजें अपने लिए रखता था। हालांकि अल्लाह ने उसे बहुत धन से नवाज़ा था, उसने मस्जिद या किसी भी नेक काम के लिए दान नहीं किया। उसे पैसे से इतना प्यार था कि उसने आरामदायक जीवन जीने के लिए भी उसका उपयोग नहीं किया। एक दिन उसके दोस्त ज़की ने उससे पूछा, "हमजा! सर्दियों में जब तुम्हारे घर में ठंड लगती है तो तुम क्या करते हो?" उसने जवाब दिया, "बेशक, मैं अपने कमरे में इलेक्ट्रिक हीटर लगाता हूँ।" उसके दोस्त ने फिर पूछा, "अगर बहुत ज़्यादा ठंड हो जाए तो?" हमजा ने जवाब दिया, "मैं हीटर के और करीब बैठ जाता हूँ।" दोबारा उसके दोस्त ने पूछा, "अगर इतनी ठंड हो जाए कि तुम जम कर मर जाओ तो?" हमजा ने कहा, "तब मैं हीटर चालू करूँगा!"
काफ़िरों को चेतावनी
36अल्लाह की ही इबादत करो और किसी को उसका शरीक न ठहराओ। और माता-पिता, रिश्तेदारों, यतीमों, गरीबों, पास के और दूर के पड़ोसियों, संगी-साथियों, राहगीरों और तुम्हारे अधीन लोगों के साथ भलाई करो। बेशक अल्लाह किसी भी अहंकारी, दिखावा करने वाले को पसंद नहीं करता। 37जो खुद खर्च नहीं करते, दूसरों को भी खर्च करने से रोकते हैं और अल्लाह ने जो कुछ उन्हें दिया है, उसे छिपाते हैं। हमने काफ़िरों के लिए अपमानजनक अज़ाब तैयार कर रखा है। 38और वे लोग जो अपना माल लोगों को दिखाने के लिए खर्च करते हैं और अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान नहीं रखते। और जिसने शैतान को अपना साथी बना लिया, तो वह कितना बुरा साथी है! 39उन्हें क्या मुश्किल थी कि वे अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर ईमान लाते और उसमें से खर्च करते जो अल्लाह ने उन्हें दिया है? और अल्लाह को उन सबकी पूरी जानकारी है। 40बेशक अल्लाह किसी पर ज़रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं करता। और अगर कोई नेकी हो, तो वह उसे कई गुना बढ़ा देता है और अपनी ओर से बहुत बड़ा अज्र देता है। 41तो कैसा होगा जब हम हर उम्मत से एक गवाह लाएँगे और आपको (ऐ नबी) अपनी उम्मत के खिलाफ गवाह बनाकर लाएँगे? 42उस दिन, जिन्होंने अल्लाह को झुठलाया और रसूल की नाफ़रमानी की, वे चाहेंगे कि काश ज़मीन उन्हें निगल लेती। और वे अल्लाह से कुछ भी नहीं छुपा सकेंगे।
وَٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَلَا تُشۡرِكُواْ بِهِۦ شَيۡٔٗاۖ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَٰنٗا وَبِذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱلۡجَارِ ذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡجَارِ ٱلۡجُنُبِ وَٱلصَّاحِبِ بِٱلۡجَنۢبِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ مُخۡتَالٗا فَخُورًا 36ٱلَّذِينَ يَبۡخَلُونَ وَيَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبُخۡلِ وَيَكۡتُمُونَ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۗ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٗا مُّهِينٗا 37وَٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۗ وَمَن يَكُنِ ٱلشَّيۡطَٰنُ لَهُۥ قَرِينٗا فَسَآءَ قَرِينٗا 38وَمَاذَا عَلَيۡهِمۡ لَوۡ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقَهُمُ ٱللَّهُۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِهِمۡ عَلِيمًا 39إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَظۡلِمُ مِثۡقَالَ ذَرَّةٖۖ وَإِن تَكُ حَسَنَةٗ يُضَٰعِفۡهَا وَيُؤۡتِ مِن لَّدُنۡهُ أَجۡرًا عَظِيمٗا 40فَكَيۡفَ إِذَا جِئۡنَا مِن كُلِّ أُمَّةِۢ بِشَهِيدٖ وَجِئۡنَا بِكَ عَلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ شَهِيدٗا 41يَوۡمَئِذٖ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَعَصَوُاْ ٱلرَّسُولَ لَوۡ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضُ وَلَا يَكۡتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثٗا42
आयत 40: अर्थात् धूल का सबसे छोटा कण

ज्ञान की बातें
मुसलमानों को नमाज़ से पहले खुद को पाक करना चाहिए। यदि किसी को पानी न मिले या वह बीमारी या ठंडे मौसम के कारण इसका उपयोग करने में असमर्थ हो, तो उन्हें एक बार अपने हाथों की हथेलियों से पाक मिट्टी या रेत को छूने, फिर अपने हाथों में फूंक मारकर अपने चेहरों और हाथों पर फेरने की अनुमति है। इस हुक्म को **तयम्मुम** कहते हैं। (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम)
नमाज़ से पहले तहारत
43ऐ ईमान वालो! नशे की हालत में नमाज़ के करीब न जाओ जब तक कि तुम यह न जान लो कि तुम क्या कह रहे हो, और न ही जनाबत (शारीरिक अशुद्धि) की हालत में, सिवाय इसके कि तुम सिर्फ़ रास्ते से गुज़र रहे हो, जब तक कि तुम ग़ुस्ल न कर लो। लेकिन अगर तुम बीमार हो, या सफ़र पर हो, या तुम में से कोई पाख़ाने से आया हो, या तुमने औरतों को छुआ हो (यानी उनसे संभोग किया हो) और तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो, अपने चेहरों और हाथों पर मल लो। बेशक अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला, बख़्शने वाला है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَقۡرَبُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنتُمۡ سُكَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَعۡلَمُواْ مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغۡتَسِلُواْۚ وَإِن كُنتُم مَّرۡضَىٰٓ أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوۡ جَآءَ أَحَدٞ مِّنكُم مِّنَ ٱلۡغَآئِطِ أَوۡ لَٰمَسۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمۡ تَجِدُواْ مَآءٗ فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدٗا طَيِّبٗا فَٱمۡسَحُواْ بِوُجُوهِكُمۡ وَأَيۡدِيكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا43
आयत 43: 25. शराब पीना बाद में हराम कर दिया गया जब आयतें 5:90-91 नाज़िल हुईं। 26. उदाहरण के लिए, जब पति और पत्नी शारीरिक संबंध बनाते हैं। 27. मतलब अगर आपका उनके साथ शारीरिक संबंध हुआ हो।

पृष्ठभूमि की कहानी
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, मदीना के कुछ यहूदी शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पैगंबर का उपहास करते थे। 'रा'इना' (हम पर विशेष ध्यान दें) कहने के बजाय, वे इसे 'हमारा मूर्ख' जैसा सुनाते थे। वे जोर से कहते थे, 'हम सुनते हैं,' फिर फुसफुसाते थे, 'लेकिन हम अवज्ञा करते हैं!' और कहते थे, 'हमें सुनो,' फिर चुपचाप जोड़ते थे, 'काश तुम कभी न सुनो!' वे आपस में निजी तौर पर कहते थे, 'अगर यह व्यक्ति वास्तव में एक पैगंबर होता, तो उसे पता होता कि हम उसका उपहास कर रहे हैं।' परिणामस्वरूप, आयत 46 अवतरित हुई, जिसमें ऐसे वैकल्पिक वाक्यांश प्रस्तुत किए गए जिन्हें तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता था। (इमाम इब्न कसीर और इमाम अल-कुर्तुबी)
नाफ़रमान यहूदियों के विरुद्ध चेतावनी
44क्या आपने (ऐ नबी) उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब का एक अंश दिया गया था, फिर भी वे उसे गुमराही के बदले बेचते हैं और चाहते हैं कि आप सीधे रास्ते से भटक जाएं? 45अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को खूब जानता है! और अल्लाह ही काफी है निगहबान के तौर पर, और वही काफी है मददगार के तौर पर। 46कुछ यहूदी शब्दों के अर्थ को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और कहते हैं, "हमने सुना और हमने नाफ़रमानी की," और "सुनो! तुम्हें न सुनने को मिले," और 'राइना!'—शब्दों के साथ खिलवाड़ करते हुए और धर्म का अनादर करते हुए। यदि वे विनम्रतापूर्वक कहते, "हमने सुना और हमने आज्ञा मानी," "हमारी बात सुनो" और "उंज़ुरना," तो यह उनके लिए बेहतर और अधिक उचित होता। लेकिन अल्लाह ने उन्हें उनके कुफ़्र के कारण धिक्कार दिया है, इसलिए वे बहुत कम ईमान रखते हैं। 47ऐ अहले-किताब! उस पर ईमान लाओ जो हमने नाज़िल किया है—जो तुम्हारी अपनी किताबों की पुष्टि करता है—इससे पहले कि हम तुम्हारे चेहरों को मिटा दें और उन्हें पीछे की ओर फेर दें, या हम ऐसे लोगों को धिक्कार दें जैसा हमने सब्त तोड़ने वालों को किया था। और अल्लाह का हुक्म पूरा होकर रहता है। 48बेशक, अल्लाह शिर्क को माफ़ नहीं करता, लेकिन इसके सिवा जिसे चाहे माफ़ कर देता है। और जिसने अल्लाह के साथ शिर्क किया, उसने यकीनन एक बहुत बड़ा गुनाह किया है।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يَشۡتَرُونَ ٱلضَّلَٰلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّواْ ٱلسَّبِيلَ 44٤٤ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِأَعۡدَآئِكُمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَلِيّٗا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ نَصِيرٗا 45مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُواْ يُحَرِّفُونَ ٱلۡكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ وَيَقُولُونَ سَمِعۡنَا وَعَصَيۡنَا وَٱسۡمَعۡ غَيۡرَ مُسۡمَعٖ وَرَٰعِنَا لَيَّۢا بِأَلۡسِنَتِهِمۡ وَطَعۡنٗا فِي ٱلدِّينِۚ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَا وَٱسۡمَعۡ وَٱنظُرۡنَا لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ وَأَقۡوَمَ وَلَٰكِن لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَلَا يُؤۡمِنُونَ إِلَّا قَلِيلٗا 46يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ ءَامِنُواْ بِمَا نَزَّلۡنَا مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبۡلِ أَن نَّطۡمِسَ وُجُوهٗا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰٓ أَدۡبَارِهَآ أَوۡ نَلۡعَنَهُمۡ كَمَا لَعَنَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلسَّبۡتِۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ مَفۡعُولًا 47إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغۡفِرُ أَن يُشۡرَكَ بِهِۦ وَيَغۡفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱفۡتَرَىٰٓ إِثۡمًا عَظِيمًا48
आयत 47: सब्त तोड़ने वालों की कहानी का ज़िक्र 7:163-165 में है।
आयत 48: जिस किसी ने इस्लाम के सुंदर संदेश को सुना, उसे भली-भांति समझा, लेकिन कुफ़्र की हालत में मरने का फैसला किया, तो अल्लाह उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।
बेवफ़ा यहूदियों को चेतावनी
49क्या आपने (ऐ पैगंबर) उन लोगों को नहीं देखा जो अपने लिए झूठा बड़प्पन का दावा करते हैं? नहीं! अल्लाह ही है जो जिसे चाहता है इज़्ज़त बख्शता है। और किसी पर एक ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा। 50देखो वे अल्लाह पर कैसे झूठ गढ़ते हैं—यही अकेला एक बड़ा गुनाह है। 51क्या आपने (ऐ पैगंबर) उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिया गया था, फिर भी वे बुतों और तागूत पर ईमान रखते हैं और काफ़िरों (मूर्तिपूजकों) के बारे में कहते हैं कि वे ईमान वालों से ज़्यादा हिदायत याफ्ता हैं? 52उन पर अल्लाह की लानत है। और जिस पर अल्लाह लानत करे, उसका कोई मददगार नहीं होगा। 53क्या उनके पास अल्लाह की बादशाहत का कोई हिस्सा है? अगर होता, तो वे किसी को एक ज़र्रा बराबर भी कुछ न देते। 54या क्या वे लोगों से अल्लाह के फ़ज़ल पर हसद करते हैं? हमने तो इब्राहीम की औलाद को किताब और हिकमत दी है, और उन्हें एक बड़ा मुल्क भी अता किया है। 55फिर उनमें से कुछ ने उस पर ईमान लाया और कुछ ने उससे मुँह मोड़ लिया। जहन्नम ही अज़ाब के लिए काफ़ी है! 56बेशक, जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, हम उन्हें आग में डालेंगे। जब भी उनकी खाल जलकर ख़ाक हो जाएगी, हम उसे एक नई खाल से बदल देंगे ताकि वे हमेशा दर्द महसूस करते रहें। अल्लाह यक़ीनन सर्वशक्तिमान और बुद्धिमान है। 57और जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए, हम उन्हें ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे जिनके नीचे नहरें बहती होंगी, वे उनमें हमेशा-हमेशा रहेंगे। वहाँ उनके लिए पाक बीवियाँ होंगी, और हम उन्हें ताज़गी बख़्शने वाली छाँव में रखेंगे।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنفُسَهُمۚ بَلِ ٱللَّهُ يُزَكِّي مَن يَشَآءُ وَلَا يُظۡلَمُونَ فَتِيلًا 49ٱنظُرۡ كَيۡفَ يَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَۖ وَكَفَىٰ بِهِۦٓ إِثۡمٗا مُّبِينًا 50أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡجِبۡتِ وَٱلطَّٰغُوتِ وَيَقُولُونَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ هَٰٓؤُلَآءِ أَهۡدَىٰ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ سَبِيلًا 51أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُۖ وَمَن يَلۡعَنِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ نَصِيرًا 52أَمۡ لَهُمۡ نَصِيبٞ مِّنَ ٱلۡمُلۡكِ فَإِذٗا لَّا يُؤۡتُونَ ٱلنَّاسَ نَقِيرًا 53أَمۡ يَحۡسُدُونَ ٱلنَّاسَ عَلَىٰ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۖ فَقَدۡ ءَاتَيۡنَآ ءَالَ إِبۡرَٰهِيمَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَءَاتَيۡنَٰهُم مُّلۡكًا عَظِيمٗا 54فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ بِهِۦ وَمِنۡهُم مَّن صَدَّ عَنۡهُۚ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا 55إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بَِٔايَٰتِنَا سَوۡفَ نُصۡلِيهِمۡ نَارٗا كُلَّمَا نَضِجَتۡ جُلُودُهُم بَدَّلۡنَٰهُمۡ جُلُودًا غَيۡرَهَا لِيَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمٗا 56وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَنُدۡخِلُهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ لَّهُمۡ فِيهَآ أَزۡوَٰجٞ مُّطَهَّرَةٞۖ وَنُدۡخِلُهُمۡ ظِلّٗا ظَلِيلًا57
आयत 54: क्या इसका मतलब यह है कि वे इसलिए ईर्ष्या करते हैं क्योंकि अल्लाह ने मुहम्मद को अपना नबी चुना है? दाऊद और सुलेमान की सल्तनत की तरह।
आयत 55: इब्राहीम

पृष्ठभूमि की कहानी
पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक बार अपने साथियों के एक समूह को मदीना के बाहर भेजा, और अब्दुल्ला इब्न हुज़ाफ़ा को उनका नेता नियुक्त किया। अपनी यात्रा के दौरान, अब्दुल्ला, जो अपने चंचल स्वभाव के लिए जाने जाते थे, ने उन्हें एक बड़ी अलाव जलाने का निर्देश दिया। फिर उन्होंने उन्हें चुनौती दी, पूछते हुए, 'क्या अल्लाह के रसूल ने तुम्हें मेरी आज्ञा मानने का हुक्म नहीं दिया?' जब उन्होंने इसकी पुष्टि की, तो उन्होंने उन्हें आग में कूदने का आदेश दिया! दुविधा में पड़कर, साथियों ने संकोच किया। कुछ ने तर्क दिया, 'हमने इस्लाम कबूल किया ताकि आग (जहन्नम की आग) से सुरक्षित रहें।' उनकी वापसी पर, उन्होंने पैगंबर को यह घटना सुनाई। उन्होंने जवाब दिया, 'अगर तुम उसमें घुस जाते, तो तुम कभी बाहर नहीं निकल पाते। अपने नेताओं की आज्ञा मानो केवल तभी जब वे तुम्हें सही काम करने को कहें।' इस घटना के कारण आयत 59 का अवतरण हुआ। (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम)

छोटी कहानी
आयत 58 ईमान वालों को चीज़ों को उनके सही मालिकों को लौटाने का हुक्म देती है। इसका एक बेहतरीन मिसाल उस्मान इब्न तलहा की कहानी है, जिनके परिवार के पास पीढ़ियों से काबा की चाबी थी। मक्का में इस्लाम के शुरुआती दिनों में, पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) काबा में प्रवेश करना चाहते थे, लेकिन उस्मान (जो तब भी मूर्तिपूजक थे) ने अशिष्टता से इनकार कर दिया। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उस्मान से कहा, 'एक दिन, यह चाबी मेरे हाथों में आएगी और मैं इसे जिसे चाहूंगा उसे दूंगा।' कई साल बाद, जब मुस्लिम सेना ने मक्का को फ़तह किया, तो उस्मान को काबा के अंदर नमाज़ के लिए पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को चाबी सौंपनी पड़ी। हालांकि अल-अब्बास (पैगंबर के चाचा) ने नए चाबीदार बनने का अनुरोध किया, पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने चाबी उस्मान को लौटा दी, यह कहते हुए, 'तुम्हारा परिवार क़यामत के दिन तक इस चाबी का प्रभारी रहेगा।' उस्मान पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की माफ़ी और दयालुता से गहरे प्रभावित हुए। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फिर उनसे पूछा, 'क्या तुम्हें याद है जो मैंने तुम्हें इस चाबी के बारे में कई साल पहले बताया था?' उन्होंने जवाब दिया, 'बिल्कुल! आप वास्तव में अल्लाह के रसूल हैं।' (इमाम इब्न साद)। उस्मान का परिवार आज तक काबा की चाबी का प्रभारी है।

अल्लाह का इंसाफ
58निःसंदेह, अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि तुम अमानतों को उनके मालिकों को लौटाओ और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो तो न्याय से काम लो। अल्लाह की ओर से तुम्हें यह कितनी उत्तम नसीहत है! निश्चित रूप से अल्लाह सब कुछ सुनता और देखता है। 59ऐ ईमान वालो! अल्लाह का आज्ञापालन करो और रसूल का आज्ञापालन करो, और उन लोगों का भी जो तुम में से अधिकार वाले हैं। फिर यदि तुम किसी बात में मतभेद रखो, तो उसे अल्लाह और उसके रसूल की ओर लौटाओ, यदि तुम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर सचमुच ईमान रखते हो। यही अधिक उचित और परिणाम में उत्तम है।
إِنَّ ٱللَّهَ يَأۡمُرُكُمۡ أَن تُؤَدُّواْ ٱلۡأَمَٰنَٰتِ إِلَىٰٓ أَهۡلِهَا وَإِذَا حَكَمۡتُم بَيۡنَ ٱلنَّاسِ أَن تَحۡكُمُواْ بِٱلۡعَدۡلِۚ إِنَّ ٱللَّهَ نِعِمَّا يَعِظُكُم بِهِۦٓۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ سَمِيعَۢا بَصِيرٗا 58يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَ وَأُوْلِي ٱلۡأَمۡرِ مِنكُمۡۖ فَإِن تَنَٰزَعۡتُمۡ فِي شَيۡءٖ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ إِن كُنتُمۡ تُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۚ ذَٰلِكَ خَيۡرٞ وَأَحۡسَنُ تَأۡوِيلًا59
आयत 58: अमानत कोई ऐसी चीज़ होती है (जैसे पैसे या चाबियाँ) जिसे आप किसी को एक निश्चित समय के लिए रखने के लिए देते हैं।
अल्लाह का फैसला
60क्या आपने (ऐ पैगंबर) उन मुनाफ़िक़ों को नहीं देखा जो दावा करते हैं कि वे उस पर ईमान लाए हैं जो आप पर नाज़िल किया गया है और उस पर भी जो आपसे पहले नाज़िल किया गया था? वे तागूत (झूठे न्यायधीशों) से फ़ैसला चाहते हैं, जबकि उन्हें हुक्म दिया गया था कि वे उसका इनकार करें। और शैतान तो बस उन्हें बहुत दूर भटकाना चाहता है। 61जब उनसे कहा जाता है, 'अल्लाह की आयतों और रसूल की तरफ़ आओ,' तो आप देखते हैं कि मुनाफ़िक़ आपसे पूरी तरह मुँह मोड़ लेते हैं। 62तब क्या हाल होगा जब उनके अपने हाथों के किए की वजह से उन पर कोई मुसीबत आ पड़ेगी, फिर वे आपके पास अल्लाह की क़सम खाते हुए आएँगे, 'हमारा इरादा तो बस भलाई करने और मेल-मिलाप कराने का था।' 63अल्लाह ही जानता है जो उनके दिलों में है। सो उनसे मुँह मोड़ लो, उन्हें नसीहत करो, और उनसे ऐसी बात कहो जो उनके दिलों को झकझोर दे।
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يَزۡعُمُونَ أَنَّهُمۡ ءَامَنُواْ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ يُرِيدُونَ أَن يَتَحَاكَمُوٓاْ إِلَى ٱلطَّٰغُوتِ وَقَدۡ أُمِرُوٓاْ أَن يَكۡفُرُواْ بِهِۦۖ وَيُرِيدُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَن يُضِلَّهُمۡ ضَلَٰلَۢا بَعِيدٗا 60وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ إِلَىٰ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ رَأَيۡتَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودٗا 61فَكَيۡفَ إِذَآ أَصَٰبَتۡهُم مُّصِيبَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡ ثُمَّ جَآءُوكَ يَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنۡ أَرَدۡنَآ إِلَّآ إِحۡسَٰنٗا وَتَوۡفِيقًا 62أُوْلَٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُ ٱللَّهُ مَا فِي قُلُوبِهِمۡ فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ وَعِظۡهُمۡ وَقُل لَّهُمۡ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ قَوۡلَۢا بَلِيغٗا63
अल्लाह और उनके रसूल की फरमाबरदारी
64हमने रसूलों को केवल इसलिए भेजा कि अल्लाह की अनुमति से उनकी आज्ञा मानी जाए। यदि वे 'मुनाफ़िक़' (कपटी) अपने आप पर ज़ुल्म करने के बाद आपके पास आते—अल्लाह से माफ़ी की उम्मीद करते हुए, और रसूल उनके लिए माफ़ी की दुआ करते, तो वे निश्चित रूप से अल्लाह को तौबा क़बूल करने वाला और अत्यंत दयालु पाते। 65लेकिन नहीं! आपके रब की क़सम 'ऐ पैग़म्बर', वे कभी 'सच्चे' मोमिन नहीं होंगे जब तक वे अपने मतभेदों में आपको निर्णायक न मान लें, और आपके फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपने दिलों में कुछ भी न पाएं और पूरी तरह से समर्पण न कर दें। 66यदि हमने उन्हें अपने आप को क़ुर्बान करने या अपने घरों को छोड़ने का आदेश दिया होता, तो कुछ को छोड़कर कोई भी आज्ञा का पालन नहीं करता। यदि उन्होंने वह किया होता जो उन्हें करने के लिए कहा गया था, तो यह उनके लिए और उनके ईमान (विश्वास) के लिए कहीं बेहतर होता। 67और हम उन्हें अपनी ओर से एक महान प्रतिफल (इनाम) भी देते। 68और उन्हें सीधे मार्ग पर चलाते। 69और जो कोई अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करेगा, वह उन लोगों के साथ होगा जिन पर अल्लाह ने कृपा की है: नबियों, सिद्दीक़ों (सत्यनिष्ठों), शहीदों और सालेहीन (नेक लोगों) के साथ – क्या ही उत्तम संगति है! 70यह अल्लाह का अनुग्रह है, और अल्लाह भली-भाँति जानता है कि 'कौन इसका पात्र है'।
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ إِذ ظَّلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ جَآءُوكَ فَٱسۡتَغۡفَرُواْ ٱللَّهَ وَٱسۡتَغۡفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ لَوَجَدُواْ ٱللَّهَ تَوَّابٗا رَّحِيمٗا 64فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤۡمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيۡنَهُمۡ ثُمَّ لَا يَجِدُواْ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَرَجٗا مِّمَّا قَضَيۡتَ وَيُسَلِّمُواْ تَسۡلِيمٗا 65وَلَوۡ أَنَّا كَتَبۡنَا عَلَيۡهِمۡ أَنِ ٱقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ أَوِ ٱخۡرُجُواْ مِن دِيَٰرِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٞ مِّنۡهُمۡۖ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ فَعَلُواْ مَا يُوعَظُونَ بِهِۦ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ وَأَشَدَّ تَثۡبِيتٗا 66وَإِذٗا لَّأٓتَيۡنَٰهُم مِّن لَّدُنَّآ أَجۡرًا عَظِيمٗا 67وَلَهَدَيۡنَٰهُمۡ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا 68وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ فَأُوْلَٰٓئِكَ مَعَ ٱلَّذِينَ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّۧنَ وَٱلصِّدِّيقِينَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَٱلصَّٰلِحِينَۚ وَحَسُنَ أُوْلَٰٓئِكَ رَفِيقٗا 69ذَٰلِكَ ٱلۡفَضۡلُ مِنَ ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ عَلِيمٗا70
आयत 66: मतलब अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करना।
आयत 69: जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवाई।

मुस्लिम सेना को नसीहत
71ऐ ईमान वालो! चौकस रहो, चाहे टुकड़ियों में निकलो या सब मिलकर निकलो। 72तुम में से कुछ मुनाफ़िक़ ऐसे होंगे जो पीछे रह जाएँगे, ताकि अगर तुम्हें कोई नुक़सान पहुँचे तो वे इतराएँगे और कहेंगे, "अल्लाह ने हम पर फ़ज़्ल किया कि हम उनके साथ नहीं थे।" 73लेकिन अगर तुम अल्लाह के फ़ज़्ल के साथ वापस आओ, तो वे कुढ़ेंगे—गोया कि उनका तुमसे कोई वास्ता ही न था—"काश! हम भी उन लोगों के साथ होते ताकि हम भी बड़ी ग़नीमत पाते!"
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ خُذُواْ حِذۡرَكُمۡ فَٱنفِرُواْ ثُبَاتٍ أَوِ ٱنفِرُواْ جَمِيعٗا 71وَإِنَّ مِنكُمۡ لَمَن لَّيُبَطِّئَنَّ فَإِنۡ أَصَٰبَتۡكُم مُّصِيبَةٞ قَالَ قَدۡ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيَّ إِذۡ لَمۡ أَكُن مَّعَهُمۡ شَهِيدٗا 72وَلَئِنۡ أَصَٰبَكُمۡ فَضۡلٞ مِّنَ ٱللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَن لَّمۡ تَكُنۢ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُۥ مَوَدَّةٞ يَٰلَيۡتَنِي كُنتُ مَعَهُمۡ فَأَفُوزَ فَوۡزًا عَظِيمٗا73
आयत 73: अर्थ है जीत और ग़नीमत।
दुर्व्यवहार के विरुद्ध संघर्ष
74जो लोग दुनिया की ज़िंदगी को आख़िरत के बदले बेचना चाहते हैं, वे अल्लाह की राह में लड़ें। और जो कोई अल्लाह की राह में लड़ता है, चाहे वह शहीद हो जाए या जीत हासिल करे, हम उसे बहुत बड़ा अज्र देंगे। 75और तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह की राह में और उन बेबस मर्दों, औरतों और बच्चों के लिए नहीं लड़ते जो दुआ करते हैं, "ऐ हमारे रब! हमें इस ज़ालिमों की बस्ती से निकाल! और हमारे लिए अपनी ख़ास रहमत से कोई हिमायती और कोई मददगार भेज!" 76ईमान वाले अल्लाह की राह में लड़ते हैं और काफ़िर शैतान की राह में लड़ते हैं। तो तुम शैतान के दोस्तों से लड़ो। बेशक शैतान की चाल बहुत कमज़ोर है।
فَلۡيُقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ يَشۡرُونَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا بِٱلۡأٓخِرَةِۚ وَمَن يُقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيُقۡتَلۡ أَوۡ يَغۡلِبۡ فَسَوۡفَ نُؤۡتِيهِ أَجۡرًا عَظِيمٗا 74وَمَا لَكُمۡ لَا تُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلۡمُسۡتَضۡعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلۡوِلۡدَٰنِ ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا مِنۡ هَٰذِهِ ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلظَّالِمِ أَهۡلُهَا وَٱجۡعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ وَلِيّٗا وَٱجۡعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ نَصِيرًا 75ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱلطَّٰغُوتِ فَقَٰتِلُوٓاْ أَوۡلِيَآءَ ٱلشَّيۡطَٰنِۖ إِنَّ كَيۡدَ ٱلشَّيۡطَٰنِ كَانَ ضَعِيفًا76

पृष्ठभूमि की कहानी
मदीना जाने से पहले, कई शुरुआती मुसलमान पैगंबर से अपने मक्की दुश्मनों के खिलाफ लड़ने की अनुमति मांगते रहे। लेकिन उन्होंने उनसे कहा कि उन्हें अभी तक जवाबी कार्रवाई करने का आदेश नहीं मिला था। इसके बजाय, उन्होंने उन्हें अल्लाह के साथ एक मजबूत रिश्ता बनाने पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। अंततः, जब मदीना जाने के बाद लड़ने का आदेश आया, कुछ लोग आत्मरक्षा के लिए लड़ने में रुचि नहीं रखते थे। (इमाम अन-नसाई)
हिम्मत हारने वाले
77क्या तुमने, ऐ नबी, उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था, "लड़ाई मत करो! इसके बजाय, फिलहाल नमाज़ पढ़ो और ज़कात अदा करो"? फिर जब लड़ाई का हुक्म आया, तो उनमें से एक गिरोह अपने दुश्मन से ऐसे डरने लगा जैसे अल्लाह से डरना चाहिए, या उससे भी ज़्यादा। वे गिड़गिड़ाने लगे, "हमारे रब! तूने हमें लड़ने का हुक्म क्यों दिया? काश तूने इस हुक्म को थोड़ी देर के लिए टाल दिया होता!" कहो, ऐ नबी, "इस दुनिया का सुख बहुत थोड़ा है, जबकि आख़िरत (परलोक) उन लोगों के लिए कहीं बेहतर है जो अल्लाह से डरते हैं। और तुम में से किसी पर एक ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा।"
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ قِيلَ لَهُمۡ كُفُّوٓاْ أَيۡدِيَكُمۡ وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقِتَالُ إِذَا فَرِيقٞ مِّنۡهُمۡ يَخۡشَوۡنَ ٱلنَّاسَ كَخَشۡيَةِ ٱللَّهِ أَوۡ أَشَدَّ خَشۡيَةٗۚ وَقَالُواْ رَبَّنَا لِمَ كَتَبۡتَ عَلَيۡنَا ٱلۡقِتَالَ لَوۡلَآ أَخَّرۡتَنَآ إِلَىٰٓ أَجَلٖ قَرِيبٖۗ قُلۡ مَتَٰعُ ٱلدُّنۡيَا قَلِيلٞ وَٱلۡأٓخِرَةُ خَيۡرٞ لِّمَنِ ٱتَّقَىٰ وَلَا تُظۡلَمُونَ فَتِيلًا77
सब कुछ लिखा हुआ है।
78तुम जहाँ कहीं भी होगे, मृत्यु तुम्हें आ पकड़ेगी, चाहे तुम सुदृढ़ दुर्गों में ही क्यों न हो। जब उन्हें कोई भलाई पहुँचती है, तो वे 'मुनाफ़िक़' कहते हैं, "यह अल्लाह की ओर से है," लेकिन जब उन्हें कोई बुराई पहुँचती है, तो वे कहते हैं, "यह तुम्हारी (हे पैग़म्बर) वजह से है!" कहो, "दोनों अल्लाह की ओर से हैं।" तो इन लोगों को क्या हो गया है? ये बात को मुश्किल से ही समझते हैं! 79तुम्हें जो भी भलाई पहुँचती है, वह अल्लाह की ओर से है, और तुम्हें जो भी बुराई पहुँचती है, वह तुम्हारी अपनी ओर से है। हमने तुम्हें (हे पैग़म्बर) समस्त मानवजाति के लिए एक रसूल बनाकर भेजा है। और अल्लाह गवाह के तौर पर काफ़ी है।
أَيۡنَمَا تَكُونُواْ يُدۡرِككُّمُ ٱلۡمَوۡتُ وَلَوۡ كُنتُمۡ فِي بُرُوجٖ مُّشَيَّدَةٖۗ وَإِن تُصِبۡهُمۡ حَسَنَةٞ يَقُولُواْ هَٰذِهِۦ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَيِّئَةٞ يَقُولُواْ هَٰذِهِۦ مِنۡ عِندِكَۚ قُلۡ كُلّٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ فَمَالِ هَٰٓؤُلَآءِ ٱلۡقَوۡمِ لَا يَكَادُونَ يَفۡقَهُونَ حَدِيثٗا 78مَّآ أَصَابَكَ مِنۡ حَسَنَةٖ فَمِنَ ٱللَّهِۖ وَمَآ أَصَابَكَ مِن سَيِّئَةٖ فَمِن نَّفۡسِكَۚ وَأَرۡسَلۡنَٰكَ لِلنَّاسِ رَسُولٗاۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدٗا79
आयत 79: इसका मतलब है कि पैगंबर (ﷺ) इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए थे, न कि मुसीबत का कारण, जैसा कि मुनाफिक दावा करते हैं।

ज्ञान की बातें
हालाँकि, कुरान को 23 वर्षों की अवधि में एक ऐसे पैगंबर पर अवतरित किया गया था जो पढ़ या लिख नहीं सकते थे, फिर भी इसकी दोहराई गई कहानियाँ और विषय पूरी तरह से सुसंगत हैं। कुरान ने स्वयं मक्कावासियों (जो अरबी भाषा के महारथी थे) को कुरान की शैली के समान कुछ रचने या किताब में गलतियाँ खोजने की चुनौती दी, लेकिन वे ऐसा करने में विफल रहे। जो बात कुरान को अन्य पवित्र पुस्तकों में अद्वितीय बनाती है, वह यह है कि इसे पैगंबर के समय में ही याद कर लिया गया था और लिख लिया गया था। आज, दुनिया भर में लाखों मुसलमान हैं जो कुरान को कंठस्थ किए हुए हैं, जिनमें कई गैर-अरब भी शामिल हैं। यदि दुनिया की सभी किताबें नष्ट हो जाएँ, तो केवल कुरान ही बचेगा क्योंकि इसे आसानी से, शब्द-दर-शब्द, स्मृति से फिर से लिखा जा सकता है। आयत 82 इस बात की पुष्टि करती है कि कुरान सुसंगत है क्योंकि यह अल्लाह की ओर से है। मूसा (मूसा), दाऊद (दाऊद) और ईसा (यीशु) जैसे अन्य पैगंबरों को भी ईश्वर से प्रकाशनाएँ प्राप्त हुईं। हालाँकि, उन प्रकाशनाओं को कई सदियों तक विभिन्न लोगों द्वारा लिखा और संपादित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अनगिनत बदलाव और गलतियाँ हुईं। यह बताता है कि क्यों बाइबिल के विभिन्न संस्करण हैं जो समान नहीं हैं।


ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, 'यदि कुरान सुसंगत है, तो आप क़िराअत की अवधारणा को कैसे समझाते हैं?' यह एक तकनीकी प्रश्न है जिसका उत्तर विभिन्न तरीकों से दिया जा सकता है। इसे सरल रखने के लिए, निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार करें: बाइबल के विपरीत, कुरान का केवल एक ही संस्करण है, जो अरबी भाषा में है। अरब जनजातियाँ एक ही भाषा बोलती थीं, लेकिन थोड़ी भिन्न बोलियों (बोलने के तरीके) के साथ। जब कोई जनजाति पैगंबर से सीखने आती थी, तो वे उन्हें कुरान उनकी बोलने की शैली के अनुसार सुनाते थे। उदाहरण के लिए, यदि कोई जनजाति 'وَاَلضُّحَىٰ' (वद-दुहा 'सुबह की रोशनी की कसम') या 'الْمُؤْمِنُونَ' (अल-मुमिनून 'विश्वासी') नहीं कह पाती थी, तो वे इन 2 शब्दों को उनकी अपनी शैली में सुनाते थे: 'وَدُّحِ' (वद-दुहे) और 'الْمُومِنُونَ' (अल-मुमिनून)। उच्चारण की ये शैलियाँ (जिन्हें क़िराअत के नाम से जाना जाता है) बाद में मुस्लिम दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैल गईं। उदाहरण के लिए, पहली शैली (जिसे हफ़्स के नाम से जाना जाता है) मिस्र और पाकिस्तान जैसे कई स्थानों पर उपयोग की जाती है, जबकि दूसरी (जिसे वर्श के नाम से जाना जाता है) मोरक्को और ट्यूनीशिया जैसे कुछ देशों में उपयोग की जाती है। कुछ अन्य शैलियाँ भी हैं। इन क़िराअत का अर्थ आमतौर पर समान होता है। मान लीजिए कि एक पल के लिए कुरान अंग्रेजी में अवतरित हुआ था। भले ही 'वॉटर' शब्द को ब्रिटिश मुसलमानों द्वारा /वूटा/ और अमेरिकी मुसलमानों द्वारा /वडार/ के रूप में पढ़ा जाता, फिर भी इसका अर्थ वही रहता। मूल लिपि - जो पैगंबर के समय और उनके बाद लिखी गई थी - में तश्कील चिह्न (जैसे ज़बर, ज़ेर, पेश) या नुक्ते नहीं थे। कभी-कभी, एक क़िराअत अर्थ का एक और पहलू दे सकती है, मुख्यतः तश्कील या नुक्ते में अंतर के कारण। उदाहरण के लिए, 'ثمر' (समर 'फल') और 'ثمر' (सुमुर 'फल') के साथ-साथ 'كبيرة' (कबीरा 'बड़ा') और 'كبيرة' (कसीरा 'बहुत')। जैसा कि आप देख सकते हैं, प्रत्येक युग्म तश्कील और नुक्ते के बिना समान है (ثمر और كبيرة), इसलिए सभी के लिए एक ही लिपि को देखकर उसे अपनी उच्चारण शैली में पढ़ना आसान था।

मुनाफ़िक़ों का रवैया
80जिसने रसूल का आज्ञापालन किया, उसने अल्लाह का आज्ञापालन किया। और जिसने मुँह मोड़ा, तो (हे नबी!) हमने तुम्हें उन पर कोई निगहबान बनाकर नहीं भेजा है। 81और वे (मुनाफ़िक़) कहते हैं, "हम आपकी आज्ञा मानते हैं," लेकिन जब वे तुम्हारे पास से जाते हैं, तो उनमें से एक गिरोह रात को उन बातों के विपरीत योजना बनाता है जो उन्होंने कही थीं। अल्लाह उनके सभी गुप्त षड्यंत्रों को लिखता है। तो उनसे मुँह मोड़ लो, और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह कार्य-साधक के रूप में पर्याप्त है। 82तो क्या वे क़ुरआन पर गहराई से विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो वे इसमें अवश्य ही बहुत सी परस्पर विरोधी बातें पाते। 83और जब उनके पास अमन या ख़ौफ़ की कोई ख़बर आती है, तो वे उसे फैला देते हैं। यदि वे उसे रसूल या अपने अधिकारियों के पास ले जाते, तो उनमें से जो लोग निष्कर्ष निकालने की क्षमता रखते हैं, वे उसे जान लेते। और यदि अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो तुम शैतान के पीछे चल पड़ते, सिवाय तुम में से थोड़े से लोगों के। 84तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो, हे नबी! तुम पर केवल तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी है। और ईमानवालों को युद्ध के लिए प्रेरित करो ताकि शायद अल्लाह काफ़िरों के ज़ोर को रोक दे। और अल्लाह शक्ति में भी बहुत प्रबल है और दंड देने में भी बहुत कठोर है।
مَّن يُطِعِ ٱلرَّسُولَ فَقَدۡ أَطَاعَ ٱللَّهَۖ وَمَن تَوَلَّىٰ فَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيظٗا 80وَيَقُولُونَ طَاعَةٞ فَإِذَا بَرَزُواْ مِنۡ عِندِكَ بَيَّتَ طَآئِفَةٞ مِّنۡهُمۡ غَيۡرَ ٱلَّذِي تَقُولُۖ وَٱللَّهُ يَكۡتُبُ مَا يُبَيِّتُونَۖ فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا 81أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ ٱلۡقُرۡءَانَۚ وَلَوۡ كَانَ مِنۡ عِندِ غَيۡرِ ٱللَّهِ لَوَجَدُواْ فِيهِ ٱخۡتِلَٰفٗا كَثِيرٗا 82وَإِذَا جَآءَهُمۡ أَمۡرٞ مِّنَ ٱلۡأَمۡنِ أَوِ ٱلۡخَوۡفِ أَذَاعُواْ بِهِۦۖ وَلَوۡ رَدُّوهُ إِلَى ٱلرَّسُولِ وَإِلَىٰٓ أُوْلِي ٱلۡأَمۡرِ مِنۡهُمۡ لَعَلِمَهُ ٱلَّذِينَ يَسۡتَنۢبِطُونَهُۥ مِنۡهُمۡۗ وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ لَٱتَّبَعۡتُمُ ٱلشَّيۡطَٰنَ إِلَّا قَلِيلٗ 83فَقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفۡسَكَۚ وَحَرِّضِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأۡسَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ وَٱللَّهُ أَشَدُّ بَأۡسٗا وَأَشَدُّ تَنكِيلٗا84

ज्ञान की बातें
आयत 85 दूसरों के लिए **शफ़ाअत** करने की बात करती है, जिसका अर्थ है किसी के लाभ के लिए या उनसे नुकसान हटाने के लिए उनके समर्थन में बोलना। उदाहरण के लिए, यदि हमज़ा नौकरी की तलाश में है, तो आप किसी से बात कर सकते हैं ताकि उसे नौकरी पर रखा जा सके यदि वह उस पद के लिए योग्य है। इसी तरह, यदि ज़ैनब को एक छोटी सी गलती के लिए उसकी नौकरी से निकाल दिया गया है, तो आप उसके प्रबंधक से बात कर सकते हैं ताकि उसे दूसरा मौका दिया जा सके। जब लोग आपसे मदद मांगते हैं, तो आपको आभारी होना चाहिए कि अल्लाह ने आपको दूसरों की मदद करने की स्थिति में रखा है।
कल्पना कीजिए कि अल्लाह ने आपको 2 विकल्प दिए हैं: 1. दूसरों की मदद करने की शक्ति से धन्य होना। 2. या दूसरों से मदद के लिए ज़रूरतमंद और बेताब होना। आप कौन सा विकल्प चुनेंगे?
पैगंबर ने फरमाया, 'अल्लाह को सबसे ज़्यादा प्यारे वे लोग हैं जो दूसरों के लिए सबसे ज़्यादा फायदेमंद होते हैं। और अल्लाह के लिए सबसे अच्छा अमल वह है जब आप किसी मुसलमान को खुश करते हैं, उनसे कोई कठिनाई दूर करते हैं, उनका कर्ज चुकाते हैं, या भूखों को खाना खिलाते हैं। मैं एक महीने तक अपनी मस्जिद (मदीना में) में इ'तिक़ाफ़ (इबादत के लिए मस्जिद में रहने का कार्य) करने के बजाय किसी की ज़रूरतों में मदद करना ज़्यादा पसंद करूँगा।' (इमाम अत-तबरानी)

छोटी कहानी
एक दिन, अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (पैगंबर के चचेरे भाई) पैगंबर की मस्जिद में एतिकाफ कर रहे थे। उन्होंने पास में एक उदास चेहरा लिए हुए आदमी को देखा और उससे पूछा कि क्या बात है। उस आदमी ने बताया कि वह अपना कर्ज अदा नहीं कर पा रहा था और उसे और समय चाहिए था। इब्न अब्बास ने उसके साथ कर्ज देने वाले से बात करने के लिए जाने की पेशकश की। वह आदमी हैरान था कि पैगंबर के चचेरे भाई उसके लिए शफाअत (सिफारिश) करने के लिए मस्जिद छोड़ने को तैयार थे। तब इब्न अब्बास ने उस आदमी से कहा, 'मैंने पैगंबर को कहते हुए सुना है, 'दूसरों की मदद करना मेरी मस्जिद में एतिकाफ करने से बेहतर है।''
मुसलमानों को नसीहत
85जो कोई किसी अच्छे काम की हिमायत करता है, उसे उसका सवाब मिलेगा, और जो कोई किसी बुरे काम की हिमायत करता है, उसे उसका बोझ उठाना पड़ेगा। अल्लाह हर चीज़ पर निगरानी रखने वाला है। 86और जब तुम्हें सलाम किया जाए, तो उससे बेहतर जवाब दो या कम से कम वैसा ही। बेशक, अल्लाह हर चीज़ का पूरा-पूरा हिसाब लेने वाला है। 87अल्लाह—उसके सिवा कोई माबूद नहीं। वह यक़ीनन तुम सबको क़यामत के दिन जमा करेगा—जिसके बारे में कोई शक नहीं। और अल्लाह से ज़्यादा सच्चा कौन हो सकता है?
مَّن يَشۡفَعۡ شَفَٰعَةً حَسَنَةٗ يَكُن لَّهُۥ نَصِيبٞ مِّنۡهَاۖ وَمَن يَشۡفَعۡ شَفَٰعَةٗ سَيِّئَةٗ يَكُن لَّهُۥ كِفۡلٞ مِّنۡهَاۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ مُّقِيتٗا 85وَإِذَا حُيِّيتُم بِتَحِيَّةٖ فَحَيُّواْ بِأَحۡسَنَ مِنۡهَآ أَوۡ رُدُّوهَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٍ حَسِيبًا 86ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۚ لَيَجۡمَعَنَّكُمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا رَيۡبَ فِيهِۗ وَمَنۡ أَصۡدَقُ مِنَ ٱللَّهِ حَدِيثٗا87
मुनाफ़िक़ों के प्रति रवैया
88तुम मोमिनो (ईमानवालो) मुनाफ़िक़ों (कपटी लोगों) के बारे में दो गिरोहों में क्यों बँट गए हो, जबकि अल्लाह ने उनके करतूतों के कारण उन्हें कुफ़्र (नास्तिकता/इनकार) की ओर लौटा दिया है? क्या तुम उन्हें हिदायत देना चाहते हो जिन्हें अल्लाह ने गुमराह कर दिया है? और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तुम उसके लिए कभी कोई राह नहीं पाओगे। 89वे तो चाहते हैं कि तुम भी वैसे ही काफ़िर (ईमान से फिर जाने वाले) हो जाओ जैसे वे हैं, ताकि तुम सब एक जैसे हो जाओ। अतः उन्हें अपने विश्वसनीय साथी न बनाओ जब तक कि वे अल्लाह की राह में हिजरत (प्रवास) न करें। लेकिन यदि वे तुमसे मुँह मोड़ते रहें, तो उन्हें पकड़ो और जहाँ कहीं भी पाओ, उन्हें मार डालो, और उनमें से किसी को भी अपना साथी या मददगार न बनाओ। 90लेकिन ऐसा उन लोगों के साथ न करो जो ऐसी क़ौम (जाति/समूह) से जा मिलते हैं जिनसे तुम्हारा शांति समझौता है, या उन लोगों के साथ जो तुम्हारे पास इस हालत में आते हैं कि उनके दिल तुमसे और अपनी क़ौम से लड़ने के बिल्कुल ख़िलाफ़ हैं। यदि अल्लाह चाहता, तो वह उन्हें आसानी से तुम्हें लड़ने के लिए सक्षम बना देता। अतः यदि वे तुम्हें अकेला छोड़ दें, तुमसे लड़ना बंद कर दें, और तुम्हें शांति की पेशकश करें, तो अल्लाह तुम्हें उन्हें किसी भी तरह का नुक़सान पहुँचाने की इजाज़त नहीं देता। 91हालाँकि, तुम्हें कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे जो तुमसे और अपनी क़ौम से बस सुरक्षित रहना चाहते हैं। लेकिन जब भी उन्हें फ़ितना (उपद्रव/गड़बड़ी) फैलाने का मौक़ा मिलता है, वे उसे हाथ से जाने नहीं देते। यदि वे तुम्हें अकेला न छोड़ें, तुम्हें शांति की पेशकश न करें, या तुम पर हमला करना बंद न करें, तो उन्हें पकड़ो और जहाँ कहीं भी पाओ, उन्हें मार डालो। हमने तुम्हें ऐसे लोगों पर पूरा अधिकार दिया है।
فَمَا لَكُمۡ فِي ٱلۡمُنَٰفِقِينَ فِئَتَيۡنِ وَٱللَّهُ أَرۡكَسَهُم بِمَا كَسَبُوٓاْۚ أَتُرِيدُونَ أَن تَهۡدُواْ مَنۡ أَضَلَّ ٱللَّهُۖ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلٗا 88وَدُّواْ لَوۡ تَكۡفُرُونَ كَمَا كَفَرُواْ فَتَكُونُونَ سَوَآءٗۖ فَلَا تَتَّخِذُواْ مِنۡهُمۡ أَوۡلِيَآءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَخُذُوهُمۡ وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَيۡثُ وَجَدتُّمُوهُمۡۖ وَلَا تَتَّخِذُواْ مِنۡهُمۡ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرًا 89إِلَّا ٱلَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىٰ قَوۡمِۢ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُم مِّيثَٰقٌ أَوۡ جَآءُوكُمۡ حَصِرَتۡ صُدُورُهُمۡ أَن يُقَٰتِلُوكُمۡ أَوۡ يُقَٰتِلُواْ قَوۡمَهُمۡۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَسَلَّطَهُمۡ عَلَيۡكُمۡ فَلَقَٰتَلُوكُمۡۚ فَإِنِ ٱعۡتَزَلُوكُمۡ فَلَمۡ يُقَٰتِلُوكُمۡ وَأَلۡقَوۡاْ إِلَيۡكُمُ ٱلسَّلَمَ فَمَا جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمۡ عَلَيۡهِمۡ سَبِيلٗا 90سَتَجِدُونَ ءَاخَرِينَ يُرِيدُونَ أَن يَأۡمَنُوكُمۡ وَيَأۡمَنُواْ قَوۡمَهُمۡ كُلَّ مَا رُدُّوٓاْ إِلَى ٱلۡفِتۡنَةِ أُرۡكِسُواْ فِيهَاۚ فَإِن لَّمۡ يَعۡتَزِلُوكُمۡ وَيُلۡقُوٓاْ إِلَيۡكُمُ ٱلسَّلَمَ وَيَكُفُّوٓاْ أَيۡدِيَهُمۡ فَخُذُوهُمۡ وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَيۡثُ ثَقِفۡتُمُوهُمۡۚ وَأُوْلَٰٓئِكُمۡ جَعَلۡنَا لَكُمۡ عَلَيۡهِمۡ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينٗا91
आयत 88: इसका अर्थ है कि आपको इस बात से असहमत नहीं होना चाहिए कि मुनाफ़िक़ सच्चे मोमिन नहीं होते।
आयत 89: यह आयत मुनाफ़िक़ीन के एक ऐसे समूह के बारे में बताती है जो मुसलमानों के दुश्मनों का गुप्त रूप से समर्थन करते थे। अपने ईमान को साबित करने के लिए, उन मुनाफ़िक़ीन से हिजरत करके मोमिनों से जुड़ने को कहा गया। अन्यथा, उन्हें दुश्मनों में गिना जाएगा।

ज्ञान की बातें
यदि कोई मुसलमान कोई बड़ा गुनाह करता है (जैसे जानबूझकर किसी को मारना या अवैध संबंध रखना) और बिना तौबा किए मर जाता है, तो उसे परलोक में उसके गुनाह के अनुसार सज़ा दी जाएगी। अंततः, उसे जन्नत में भेजा जाएगा। कोई भी मुसलमान जहन्नम में हमेशा के लिए नहीं रहेगा। हालाँकि आयत 93 कहती है कि जो व्यक्ति किसी मोमिन को जानबूझकर मारता है वह जहन्नम में हमेशा के लिए रहेगा, इसका वास्तव में अर्थ 'बहुत लंबा समय' है।
हम अपने दैनिक जीवन में भी इसी तरह की शैली का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण मुलाकात के लिए कुछ मिनट देर से आता है, तो हम में से कुछ कह सकते हैं, 'हमने उसका हमेशा के लिए इंतज़ार किया' या 'उसे आने में हमेशा के लिए लग गया।'
मोमिन का क़त्ल करने का अपराध
92किसी मोमिन के लिए यह जायज़ नहीं कि वह किसी दूसरे को क़त्ल करे सिवाय ख़ता के। और जिसने किसी मोमिन को ख़ता से क़त्ल कर दिया, तो उसे एक मोमिन गुलाम आज़ाद करना होगा और उसके घरवालों को ख़ून-बहा (दियत) देना होगा, सिवाय इसके कि वे उसे सदक़ा समझकर माफ़ कर दें। लेकिन अगर मक़तूल (मारा गया व्यक्ति) मोमिन हो और ऐसे लोगों में से हो जिनसे तुम्हारी जंग है, तो सिर्फ़ एक मोमिन गुलाम आज़ाद करना होगा। और अगर मक़तूल ऐसे लोगों में से हो जिनसे तुम्हारी सुलह (शांति) का समझौता है, तो उसके घरवालों को ख़ून-बहा देना होगा और एक मोमिन गुलाम आज़ाद करना होगा। और जो इसकी ताक़त न रखता हो, तो वह लगातार दो महीने के रोज़े रखे अल्लाह की तौबा (माफ़ी) के लिए। और अल्लाह इल्म वाला, हिकमत वाला है। 93और जिसने किसी मोमिन को जानबूझकर क़त्ल किया, तो उसकी सज़ा जहन्नम है जिसमें वह हमेशा रहेगा। अल्लाह उस पर ग़ज़बनाक होगा, उस पर लानत करेगा और उसके लिए एक भयानक अज़ाब तैयार करेगा।
وَمَا كَانَ لِمُؤۡمِنٍ أَن يَقۡتُلَ مُؤۡمِنًا إِلَّا خَطَٔٗاۚ وَمَن قَتَلَ مُؤۡمِنًا خَطَٔٗا فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖ وَدِيَةٞ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦٓ إِلَّآ أَن يَصَّدَّقُواْۚ فَإِن كَانَ مِن قَوۡمٍ عَدُوّٖ لَّكُمۡ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖۖ وَإِن كَانَ مِن قَوۡمِۢ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُم مِّيثَٰقٞ فَدِيَةٞ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦ وَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖۖ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ شَهۡرَيۡنِ مُتَتَابِعَيۡنِ تَوۡبَةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا 92وَمَن يَقۡتُلۡ مُؤۡمِنٗا مُّتَعَمِّدٗا فَجَزَآؤُهُۥ جَهَنَّمُ خَٰلِدٗا فِيهَا وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ وَلَعَنَهُۥ وَأَعَدَّ لَهُۥ عَذَابًا عَظِيمٗا93

पृष्ठभूमि की कहानी
आयत 94 तब अवतरित हुई जब सहाबा में से एक, जिनका नाम **अल-मिक्दाद** था, ने एक दूसरे व्यक्ति को मार डाला, हालाँकि पीड़ित ने कहा था कि वह एक मुसलमान है और उसने अल-मिक्दाद को सलाम किया था। फिर भी, अल-मिक्दाद ने उसे मारने में जल्दबाजी की, केवल उसकी संपत्ति को युद्ध लाभ (ग़नीमत) के रूप में लेने के लिए, यह सोचकर कि वह व्यक्ति झूठ बोल रहा था। (इमाम अल-बज़्ज़ार और इमाम अत-तबरानी)
बेवजह लड़ाई नहीं
94हे ईमान वालो! जब तुम अल्लाह के मार्ग में निकलो, तो अच्छी तरह जाँच-परख लो (कि तुम किससे लड़ते हो)। और उन लोगों से मत कहो जो तुम्हें सलाम करें, "तुम मोमिन नहीं हो!"—इस दुनिया के थोड़े से लाभ की तलाश में, जबकि अल्लाह के पास बहुत से अन्य लाभ हैं। तुम भी पहले उन्हीं की तरह थे, फिर अल्लाह ने तुम पर इस्लाम का एहसान किया। फिर से सावधानी बरतो! निःसंदेह, अल्लाह तुम्हारे हर काम से पूरी तरह वाकिफ है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا ضَرَبۡتُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَتَبَيَّنُواْ وَلَا تَقُولُواْ لِمَنۡ أَلۡقَىٰٓ إِلَيۡكُمُ ٱلسَّلَٰمَ لَسۡتَ مُؤۡمِنٗا تَبۡتَغُونَ عَرَضَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا فَعِندَ ٱللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٞۚ كَذَٰلِكَ كُنتُم مِّن قَبۡلُ فَمَنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمۡ فَتَبَيَّنُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا94
आयत 94: अर्थात युद्ध में प्राप्त माल।

छोटी कहानी
यह निम्नलिखित अंश उन महान प्रतिफलों और सम्मानों के बारे में बात करता है जो अल्लाह उन लोगों को देता है जो उसके मार्ग में बलिदान करते हैं। पैगंबर के साथियों की कई अद्भुत कहानियाँ हैं जिन्होंने इस्लाम की रक्षा और प्रचार के लिए हर संभव प्रयास किया, जिनमें **अबू अय्यूब अल-अंसारी (खालिद इब्न ज़ैद)** भी शामिल हैं। जब पैगंबर मदीना चले गए, तो हर कोई उनकी मेजबानी करना चाहता था। हालांकि, उन्होंने उनसे कहा कि उनके ऊंट को वहीं ले जाने का आदेश दिया गया था जहाँ उन्हें रहना था। आखिरकार, ऊंट अबू अय्यूब के घर के ठीक सामने बैठ गया, इसलिए उन्हें पैगंबर की मेजबानी करने का सम्मान मिला। अबू अय्यूब ने अपना जीवन इस्लाम की सेवा के लिए समर्पित कर दिया और पैगंबर के समय के दौरान या उसके बाद कभी कोई लड़ाई नहीं छोड़ी।
80 साल की उम्र में भी, अबू अय्यूब मुआविया के समय में कुस्तुंतुनिया (इस्तांबुल) को जीतने के लिए मुस्लिम सेना में शामिल हुए। हालांकि, अबू अय्यूब बहुत बीमार पड़ गए और मरने लगे। उनकी अंतिम इच्छा थी कि मुस्लिम सैनिक उनके शरीर को ले जाएं और उन्हें कुस्तुंतुनिया के जितना संभव हो सके उतना करीब दफनाएं। आखिरकार, लगभग 800 साल बाद, उस्मानी सुल्तान **मुहम्मद अल-फ़ातिह (फ़ातिह सुल्तान मेहमेद)** कुस्तुंतुनिया को जीतने में सफल रहे। अबू अय्यूब अल-अंसारी की विरासत का सम्मान करने के लिए, **अय्यूब सुल्तान मस्जिद** (यहाँ चित्रित) जल्द ही इस्तांबुल के अंदर बनाई गई, जहाँ उनके अवशेषों को स्थानांतरित किया गया था। उस्मानियों ने उन्हें इतना प्यार किया कि हर नए सुल्तान ने अबू अय्यूब की मस्जिद में शपथ ली।

अल्लाह की राह में कुर्बानी
95सिवाय उन लोगों के जिनके पास वैध बहाने हैं, घर पर बैठे रहने वाले मोमिन उन लोगों के बराबर नहीं हैं जो अल्लाह की राह में अपने माल और अपनी जान से जिहाद करते हैं। अल्लाह ने अपने माल और अपनी जान से जिहाद करने वालों का दर्जा उन लोगों से कहीं बुलंद किया है जो (वैध बहाने के साथ) पीछे रह गए। अल्लाह ने हर एक से बड़े सवाब का वादा किया है, लेकिन जिहाद करने वालों को दूसरों से कहीं बेहतर सवाब मिलेगा। 96बहुत ऊँचे दर्जे, और उसकी ओर से माफ़ी और रहमत। और अल्लाह बख़्शने वाला, मेहरबान है।
لَّا يَسۡتَوِي ٱلۡقَٰعِدُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ غَيۡرُ أُوْلِي ٱلضَّرَرِ وَٱلۡمُجَٰهِدُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡۚ فَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلۡمُجَٰهِدِينَ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ عَلَى ٱلۡقَٰعِدِينَ دَرَجَةٗۚ وَكُلّٗا وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَفَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلۡمُجَٰهِدِينَ عَلَى ٱلۡقَٰعِدِينَ أَجۡرًا عَظِيمٗا 95دَرَجَٰتٖ مِّنۡهُ وَمَغۡفِرَةٗ وَرَحۡمَةٗۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمًا96
आयत 95: जैसे कि औरतें, बूढ़े लोग, बीमार लोग आदि।

पृष्ठभूमि की कहानी
आयत 97 मक्का के उन कुछ व्यक्तियों के बारे में चर्चा करती है जिन्होंने गुप्त रूप से इस्लाम स्वीकार कर लिया था, लेकिन अन्य मोमिनों के साथ मदीना हिजरत करने से इनकार कर दिया था। उनका ईमान इतना कमज़ोर था कि इस्लाम पर अमल करना उनकी प्राथमिकता नहीं थी। कुछ तो बदर की लड़ाई में मारे भी गए थे, जब मक्का वालों ने उन्हें मुसलमानों के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूर किया था। (इमाम इब्न कसीर और इमाम अल-क़ुर्तुबी)
यही हुक्म उन मुसलमानों पर भी लागू होता है जो ज़ुल्म सहते हैं और ऐसी जगहों पर जाने से इनकार करते हैं जहाँ वे इज़्ज़त के साथ रह सकें और आज़ादी से अपने दीन पर अमल कर सकें।
जो दुर्व्यवहार सहते हैं
97जब फ़रिश्ते उन लोगों की रूहें कब्ज़ करेंगे जिन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया था, उनसे पूछेंगे, "तुम किस हाल में थे?" वे कहेंगे, "हम ज़मीन में कमज़ोर और सताए हुए थे।" फ़रिश्ते जवाब देंगे, "क्या अल्लाह की ज़मीन इतनी विशाल नहीं थी कि तुम कहीं और हिजरत कर जाते?" ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नम होगा, और वह कितना बुरा ठिकाना है! 98सिवाय उन बेबस मर्दों, औरतों और बच्चों के जो न तो कोई रास्ता पा सकते हैं और न ही उसका खर्च उठा सकते हैं, 99उम्मीद है कि अल्लाह उन्हें माफ़ कर देगा। और अल्लाह बड़ा माफ़ करने वाला, बख़्शने वाला है। 100जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत करेगा, वह ज़मीन में बहुत से पनाहगाह और भरपूर रिज़्क़ पाएगा। और जो कोई अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की ओर हिजरत करते हुए निकले और फिर उसे मौत आ जाए, तो उसका अज्र अल्लाह के ज़िम्मे हो चुका है। और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला, निहायत मेहरबान है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ ظَالِمِيٓ أَنفُسِهِمۡ قَالُواْ فِيمَ كُنتُمۡۖ قَالُواْ كُنَّا مُسۡتَضۡعَفِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ قَالُوٓاْ أَلَمۡ تَكُنۡ أَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٗ فَتُهَاجِرُواْ فِيهَاۚ فَأُوْلَٰٓئِكَ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَسَآءَتۡ مَصِيرًا 97إِلَّا ٱلۡمُسۡتَضۡعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلۡوِلۡدَٰنِ لَا يَسۡتَطِيعُونَ حِيلَةٗ وَلَا يَهۡتَدُونَ سَبِيل 98فَأُوْلَٰٓئِكَ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَعۡفُوَ عَنۡهُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَفُوًّا غَفُورٗا 99وَمَن يُهَاجِرۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ يَجِدۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُرَٰغَمٗا كَثِيرٗا وَسَعَةٗۚ وَمَن يَخۡرُجۡ مِنۢ بَيۡتِهِۦ مُهَاجِرًا إِلَى ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ يُدۡرِكۡهُ ٱلۡمَوۡتُ فَقَدۡ وَقَعَ أَجۡرُهُۥ عَلَى ٱللَّهِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا100

ज्ञान की बातें
आमतौर पर, 85 किमी (लगभग 53 मील) या उससे अधिक की दूरी तय करने वाले मुसलमानों को अपनी नमाज़ (सलाह) को छोटा करने की अनुमति है। इसका अर्थ है कि 4 रकात वाली नमाज़ (जैसे ज़ुहर, अस्र या 'इशा) को घटाकर केवल 2 रकात कर दिया जाता है। यात्रियों के लिए मामलों को और आसान बनाने के लिए, ज़ुहर को अस्र के साथ (प्रत्येक 2 रकात के रूप में अदा की जाती है) जोड़ा जा सकता है, और मग़रिब को 'इशा के साथ (क्रमशः 3 और 2 रकात) जोड़ा जा सकता है। केवल फ़ज्र की नमाज़ को अन्य चार नमाज़ों में से किसी के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।
एक युद्ध में, मूर्तिपूजकों के सरदार ने मुसलमानों पर तब हमला करने की योजना बनाई जब वे नमाज़ पढ़ रहे थे। इस प्रकार, दुश्मन की साज़िश के बारे में पैगंबर को चेतावनी देने के लिए आयत 102 अवतरित हुई। (इमाम अहमद)। इस आयत के आधार पर, मोमिनों को दो समूहों में बँट जाना चाहिए। जबकि पहला समूह इमाम के साथ नमाज़ पढ़ता है, दूसरा समूह उनके पीछे पहरा देता है। फिर, पहला समूह अपनी नमाज़ पूरी होने के बाद पहरा देने के लिए पीछे चला जाता है, जबकि दूसरा समूह आगे बढ़कर नमाज़ पढ़ता है, इमाम अभी भी नमाज़ का नेतृत्व कर रहे होते हैं।
सफ़र या जंग में नमाज़
101जब तुम (ऐ ईमानवालो) ज़मीन में सफ़र करो, तो तुम्हारे लिए नमाज़ को क़स्र करना जायज़ है, ख़ासकर जब तुम्हें काफ़िरों के हमले का डर हो। यक़ीनन, काफ़िर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं। 102जब तुम (ऐ पैग़म्बर) ईमानवालों के साथ हो और उन्हें नमाज़ पढ़ाओ, तो उनमें से एक गिरोह तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और वे अपने हथियार लिए रहें। जब वे सजदा करें, तो दूसरा गिरोह उनके पीछे पहरा दे। फिर वह गिरोह जिसने अभी नमाज़ नहीं पढ़ी है, तुम्हारे साथ नमाज़ में शामिल हो—और वे भी चौकस और हथियारबंद रहें। काफ़िर तो यही चाहेंगे कि तुम अपने हथियारों और सामान से ग़ाफ़िल हो जाओ, ताकि वे तुम पर अचानक हमला कर सकें। लेकिन अगर तुम्हें भारी बारिश या बीमारी के कारण अपने हथियार रखने पड़ें, तो इसमें कोई गुनाह नहीं, पर चौकस रहना। यक़ीनन, अल्लाह ने काफ़िरों के लिए अपमानजनक अज़ाब तैयार कर रखा है। 103जब नमाज़ें पूरी हो जाएँ, तो अल्लाह को याद करो—चाहे तुम खड़े हो, बैठे हो, या लेटे हो। लेकिन जब तुम सुरक्षित हो जाओ, तो नियमित नमाज़ क़ायम करो। यक़ीनन, नमाज़ पढ़ना ईमानवालों पर निर्धारित समय पर फ़र्ज़ है। 104दुश्मन का पीछा करने में सुस्ती न बरतो—अगर तुम्हें तकलीफ़ पहुँच रही है, तो उन्हें भी तकलीफ़ पहुँच रही है। लेकिन तुम अल्लाह से उस चीज़ की उम्मीद रख सकते हो जिसकी वे कभी उम्मीद नहीं रख सकते। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है।
وَإِذَا ضَرَبۡتُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَقۡصُرُواْ مِنَ ٱلصَّلَوٰةِ إِنۡ خِفۡتُمۡ أَن يَفۡتِنَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْۚ إِنَّ ٱلۡكَٰفِرِينَ كَانُواْ لَكُمۡ عَدُوّٗا مُّبِينٗا 101وَإِذَا كُنتَ فِيهِمۡ فَأَقَمۡتَ لَهُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَلۡتَقُمۡ طَآئِفَةٞ مِّنۡهُم مَّعَكَ وَلۡيَأۡخُذُوٓاْ أَسۡلِحَتَهُمۡۖ فَإِذَا سَجَدُواْ فَلۡيَكُونُواْ مِن وَرَآئِكُمۡ وَلۡتَأۡتِ طَآئِفَةٌ أُخۡرَىٰ لَمۡ يُصَلُّواْ فَلۡيُصَلُّواْ مَعَكَ وَلۡيَأۡخُذُواْ حِذۡرَهُمۡ وَأَسۡلِحَتَهُمۡۗ وَدَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡ تَغۡفُلُونَ عَنۡ أَسۡلِحَتِكُمۡ وَأَمۡتِعَتِكُمۡ فَيَمِيلُونَ عَلَيۡكُم مَّيۡلَةٗ وَٰحِدَةٗۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ إِن كَانَ بِكُمۡ أَذٗى مِّن مَّطَرٍ أَوۡ كُنتُم مَّرۡضَىٰٓ أَن تَضَعُوٓاْ أَسۡلِحَتَكُمۡۖ وَخُذُواْ حِذۡرَكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٗا مُّهِينٗا 102فَإِذَا قَضَيۡتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ قِيَٰمٗا وَقُعُودٗا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمۡۚ فَإِذَا ٱطۡمَأۡنَنتُمۡ فَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَۚ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ كَانَتۡ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ كِتَٰبٗا مَّوۡقُوتٗا 103وَلَا تَهِنُواْ فِي ٱبۡتِغَآءِ ٱلۡقَوۡمِۖ إِن تَكُونُواْ تَأۡلَمُونَ فَإِنَّهُمۡ يَأۡلَمُونَ كَمَا تَأۡلَمُونَۖ وَتَرۡجُونَ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا يَرۡجُونَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا104

पृष्ठभूमि की कहानी
आयतों 105-113 को मदीना में **ज़ैद** नामक एक यहूदी व्यक्ति का बचाव करने के लिए अवतरित किया गया था, जिस पर चोरी का झूठा आरोप लगाया गया था। **तुअमाह** नामक एक मुनाफिक (कपटी) ने **क़तादाह** (एक मुसलमान) से एक ढाल चुराई, उसे आटे के एक बोरे में रखा, और ज़ैद को यह बताए बिना दे दिया कि वह चोरी की थी। बोरे में एक छेद था, और क़तादाह ने अपनी ढाल गायब पाकर, अपने घर से ज़ैद के घर तक आटे के निशान का पीछा किया। ज़ैद ने समझाया कि तुअमाह ने उसे ढाल सौंपी थी। एक भीड़ जमा हो गई, जिसमें कुछ लोग ज़ैद का बचाव कर रहे थे और कुछ तुअमाह का।
आखिरकार, मामला पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक पहुँचा। तुअमाह के लोगों ने रात में एक गुप्त बैठक की और पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर यहूदी को दोषी ठहराने का दबाव डालने का फैसला किया, यह तर्क देते हुए कि अगर एक मुसलमान को चोरी के लिए दंडित किया गया तो यह अच्छा नहीं लगेगा। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कोई निर्णय ले पाते, उससे पहले ये आयतें अवतरित हुईं, जिन्होंने ज़ैद की बेगुनाही की घोषणा की। तुअमाह मक्का भागने में कामयाब रहा। बाद में, उसने एक घर लूटने के लिए एक दीवार के नीचे सुरंग बनाने की कोशिश की, लेकिन दीवार ढह गई, जिससे उसकी तुरंत मृत्यु हो गई। (इमाम अल-क़ुरतुबी और इमाम अज़-ज़मख़्शरी)


ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, 'यदि अरबी में आयत 108 यह बताती है कि अल्लाह उन बुरे लोगों के साथ मौजूद था जब वे योजनाएँ बना रहे थे, तो इसका अनुवाद अलग क्यों किया जाता है?' यह एक अच्छा सवाल है। हमें याद रखना चाहिए कि अल्लाह अपने अर्श (सिंहासन) के ऊपर है और वह समय या स्थान से सीमित नहीं है, क्योंकि उसने इन दोनों को बनाया है। अल्लाह अपनी सारी सृष्टि के बारे में सब कुछ जानता है, जिसमें उनके विचार भी शामिल हैं। यही वह सार है जो इमाम इब्न अल-कय्यिम ने अपनी कविता में व्यक्त किया है:
यहूदी के लिए न्याय
105निःसंदेह, हमने आप पर (ऐ पैगंबर!) यह किताब सत्य के साथ अवतरित की है ताकि आप लोगों के बीच उस चीज़ के अनुसार न्याय करें जो अल्लाह ने आपको दिखाया है। तो आप विश्वासघातियों के पक्ष में तर्क न करें। 106और अल्लाह से क्षमा याचना करें। निःसंदेह, अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यंत दयावान है। 107उन लोगों के पक्ष में तर्क न करें जो स्वयं पर अत्याचार करते हैं। निःसंदेह, अल्लाह उन लोगों को पसंद नहीं करता जो विश्वासघाती और पापी हैं। 108वे लोगों से (अपने अपराध को) छिपाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे अल्लाह से उसे कभी नहीं छिपा सकते, जबकि वह उनके साथ होता है जब वे रात में ऐसी बातों की योजना बनाते हैं जो उसे अप्रिय हैं। और अल्लाह उनके सभी कामों से भली-भाँति अवगत है। 109देखो, तुम तो इस दुनिया में उनकी ओर से बहस कर रहे हो (ऐ ईमानवालो!), लेकिन क़यामत के दिन अल्लाह के सामने उनकी ओर से कौन बहस करेगा? या कौन उनका बचाव करेगा? 110जो कोई बुराई करता है या अपनी जान पर ज़ुल्म करता है, फिर अल्लाह से माफ़ी मांगता है, तो वह अल्लाह को बहुत बख़्शने वाला, निहायत मेहरबान पाएगा। 111और जो कोई गुनाह करता है, तो वह सिर्फ़ अपने ही नुक़सान के लिए करता है। अल्लाह सब कुछ जानने वाला, हिकमत वाला है। 112और जो कोई बुराई या गुनाह करता है, फिर उसे किसी बेगुनाह पर थोप देता है, तो उसने यक़ीनन बुहतान (झूठा इल्ज़ाम) और एक अज़ीम गुनाह का बोझ उठाया। 113अगर अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत न होती, तो उनमें से कुछ लोग आपको 'ऐ नबी' गुमराह करने की कोशिश करते। हालाँकि वे सिर्फ़ अपने आप को ही गुमराह करते हैं, और वे आपको किसी भी तरह नुक़सान नहीं पहुंचा सकते। अल्लाह ने आप पर किताब और हिकमत नाज़िल की है और आपको वह सिखाया जो आप पहले नहीं जानते थे। और आप पर अल्लाह का फ़ज़्ल बहुत बड़ा है!
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ لِتَحۡكُمَ بَيۡنَ ٱلنَّاسِ بِمَآ أَرَىٰكَ ٱللَّهُۚ وَلَا تَكُن لِّلۡخَآئِنِينَ خَصِيمٗا 105وَٱسۡتَغۡفِرِ ٱللَّهَۖ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا 106وَلَا تُجَٰدِلۡ عَنِ ٱلَّذِينَ يَخۡتَانُونَ أَنفُسَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمٗا 107يَسۡتَخۡفُونَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَلَا يَسۡتَخۡفُونَ مِنَ ٱللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمۡ إِذۡ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرۡضَىٰ مِنَ ٱلۡقَوۡلِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا يَعۡمَلُونَ مُحِيطًا 108هَٰٓأَنتُمۡ هَٰٓؤُلَآءِ جَٰدَلۡتُمۡ عَنۡهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا فَمَن يُجَٰدِلُ ٱللَّهَ عَنۡهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ أَم مَّن يَكُونُ عَلَيۡهِمۡ وَكِيلٗ 109وَمَن يَعۡمَلۡ سُوٓءًا أَوۡ يَظۡلِمۡ نَفۡسَهُۥ ثُمَّ يَسۡتَغۡفِرِ ٱللَّهَ يَجِدِ ٱللَّهَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا 110وَمَن يَكۡسِبۡ إِثۡمٗا فَإِنَّمَا يَكۡسِبُهُۥ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا 111وَمَن يَكۡسِبۡ خَطِيَٓٔةً أَوۡ إِثۡمٗا ثُمَّ يَرۡمِ بِهِۦ بَرِيٓٔٗا فَقَدِ ٱحۡتَمَلَ بُهۡتَٰنٗا وَإِثۡمٗا مُّبِينٗا 112وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكَ وَرَحۡمَتُهُۥ لَهَمَّت طَّآئِفَةٞ مِّنۡهُمۡ أَن يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡۖ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِن شَيۡءٖۚ وَأَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمۡ تَكُن تَعۡلَمُۚ وَكَانَ فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكَ عَظِيمٗا113
राज़ की बातें
114उनके अधिकतर गुप्त विचार-विमर्श में कोई भलाई नहीं है, सिवाय उन बातों के जो दान, परोपकार, या लोगों के बीच सुलह को प्रोत्साहित करती हैं। और जो कोई अल्लाह की प्रसन्नता की आशा में ऐसा करता है, हम उसे एक महान प्रतिफल देंगे। 115और जो लोग रसूल का विरोध करते हैं, उनके लिए मार्गदर्शन स्पष्ट हो जाने के बाद और ईमानवालों के मार्ग के सिवा कोई और मार्ग अपनाते हैं, हम उन्हें उसी 'भटके हुए मार्ग' पर चलने देंगे जिस पर वे चलना चाहते हैं, फिर उन्हें जहन्नम में जलाएँगे—कितना बुरा अंत!
لَّا خَيۡرَ فِي كَثِيرٖ مِّن نَّجۡوَىٰهُمۡ إِلَّا مَنۡ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوۡ مَعۡرُوفٍ أَوۡ إِصۡلَٰحِۢ بَيۡنَ ٱلنَّاسِۚ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ ٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِ فَسَوۡفَ نُؤۡتِيهِ أَجۡرًا عَظِيمٗا 114وَمَن يُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ ٱلۡهُدَىٰ وَيَتَّبِعۡ غَيۡرَ سَبِيلِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصۡلِهِۦ جَهَنَّمَۖ وَسَآءَتۡ مَصِيرًا115
नाक़ाबिले माफ़ी गुनाह
116निःसंदेह, अल्लाह अपने साथ दूसरों को शरीक करने (शिर्क) को माफ़ नहीं करता, लेकिन वह इसके अलावा जिसे चाहता है, माफ़ कर देता है। वास्तव में, जिसने अल्लाह के साथ दूसरों को शरीक किया, वह पूरी तरह भटक गया। 117अल्लाह के बजाय, वे केवल 'झूठी' देवियों की पूजा करते हैं, लेकिन वास्तव में वे दुष्ट शैतान के सिवा किसी की पूजा नहीं करते— 118अल्लाह द्वारा लानत किया गया—जिसने चुनौती दी, "मैं तेरे बंदों में से एक निश्चित संख्या को अपने वश में करूँगा। 119मैं उन्हें निश्चित रूप से गुमराह करूँगा, उन्हें खोखली उम्मीदों से धोखा दूँगा, और उन्हें ऐसे आदेश दूँगा कि वे ऊँटों के कान चीरेंगे और अल्लाह द्वारा बनाए गए प्राकृतिक मार्ग (फ़ितरत) को भ्रष्ट करेंगे।" और जिसने अल्लाह के बजाय शैतान को अपना संरक्षक बनाया, उसने वास्तव में एक भयानक घाटा उठाया। 120शैतान उनसे केवल 'झूठे' वादे करता है और उन्हें 'खोखली' उम्मीदों से धोखा देता है। शैतान उनसे जो वादा करता है, वह केवल एक भ्रम है। 121उनका ठिकाना जहन्नम होगा, और उन्हें उससे कोई निजात नहीं मिलेगी! 122जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए, हम उन्हें ऐसे बागों में दाखिल करेंगे जिनके नीचे नदियाँ बहती होंगी, वे उनमें सदा-सर्वदा रहेंगे। अल्लाह का वादा सदा सत्य है। और अल्लाह से बढ़कर सच्चा कौन हो सकता है?
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغۡفِرُ أَن يُشۡرَكَ بِهِۦ وَيَغۡفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا 116إِن يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ إِنَٰثٗا وَإِن يَدۡعُونَ إِلَّا شَيۡطَٰنٗا مَّرِيدٗا 117لَّعَنَهُ ٱللَّهُۘ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنۡ عِبَادِكَ نَصِيبٗا مَّفۡرُوضٗا 118وَلَأُضِلَّنَّهُمۡ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمۡ وَلَأٓمُرَنَّهُمۡ فَلَيُبَتِّكُنَّ ءَاذَانَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ وَلَأٓمُرَنَّهُمۡ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلۡقَ ٱللَّهِۚ وَمَن يَتَّخِذِ ٱلشَّيۡطَٰنَ وَلِيّٗا مِّن دُونِ ٱللَّهِ فَقَدۡ خَسِرَ خُسۡرَانٗا مُّبِينٗا 119يَعِدُهُمۡ وَيُمَنِّيهِمۡۖ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ إِلَّا غُرُورًا 120أُوْلَٰٓئِكَ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُ وَلَا يَجِدُونَ عَنۡهَا مَحِيصٗا 121وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَنُدۡخِلُهُمۡ جَنَّٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٗاۚ وَمَنۡ أَصۡدَقُ مِنَ ٱللَّهِ قِيلٗا122
आयत 116: 45. यह उन पर लागू होता है जो काफ़िरों के रूप में मरते हैं।
आयत 117: अरब के मूर्तिपूजक अपनी मूर्तियों को महिलाओं के रूप में गढ़ते थे और उन्हें अल-लात, अल-उज़्ज़ा और मनात जैसे स्त्री नाम देते थे।
आयत 119: इस्लाम से पहले, इमाम इब्न कसीर (रहमतुल्लाह अलैह) के अनुसार, बुतपरस्त लोग बुतों को समर्पित ऊँटों के कान चीर दिया करते थे। एक अल्लाह पर ईमान - वह फितरी तरीका जिसे अल्लाह ने अपनी रचना में रखा है।

छोटी कहानी
यह फिलिस्तीन के एक इमाम द्वारा सुनाई गई एक सच्ची कहानी है: 'एक डाउन सिंड्रोम वाला युवक है जो रमज़ान में हर रात मेरे पीछे पहली पंक्ति में लगातार तरावीह की नमाज़ पढ़ता है। नमाज़ के दौरान उसकी आवाज़ कभी-कभी तेज़ हो सकती है, इसीलिए मैं उसे सुन पाता हूँ। जब मैं रुकू' (झुकने) से उठता हूँ और कहता हूँ, 'समिअ अल्लाहु लिमन हमिदह' (अल्लाह उसकी सुनता है जो उसकी प्रशंसा करता है), तो वह व्यक्ति मासूमियत से पूछता है, 'क्या आप मुझे सुनते हैं, अल्लाह?' और जब हम सजदा (प्रणाम) करते हैं, तो वह मासूमियत से कहता है, 'मैं आपसे प्यार करता हूँ, अल्लाह! क्या आप मुझसे प्यार करते हैं?' मैं नमाज़ के बाद अपने आँसू नहीं रोक पाता। एक बार किसी ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ है, और मैंने उसे बताया कि डाउन सिंड्रोम वाला यह व्यक्ति शायद हम सभी से बेहतर अल्लाह की इबादत करता है। वह अल्लाह से ऐसे पेश आता है जैसे वह उसे देख रहा हो! इसे **इहसान** कहते हैं। वह सिर्फ अल्लाह की इबादत नहीं करता; वह अल्लाह से प्यार करता है!'


ज्ञान की बातें
निम्नलिखित अंश उन लोगों की प्रशंसा करता है जो इब्राहीम (अब्राहम) के मार्ग का अनुसरण करते हैं। आयत 1 के अनुसार, ऐसे लोग स्वयं को पूरी तरह अल्लाह के प्रति समर्पित करते हैं और 'इहसान' (अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार) के साथ भलाई करते हैं। पैगंबर मुहम्मद (उन पर शांति हो) ने फरमाया, 'इहसान यह है कि तुम अल्लाह की इबादत ऐसे करो जैसे तुम उसे देख रहे हो। भले ही तुम उसे न देख सको, वह निश्चित रूप से तुम्हें देखता है।' (इमाम अल-बुखारी और इमाम मुस्लिम)
इब्राहीम की राह
123अल्लाह की रहमत न तुम्हारी आरज़ुओं पर है और न अहले किताब की आरज़ुओं पर! जो कोई बुराई करेगा, उसे उसका बदला मिलेगा, और उसे अल्लाह के सिवा कोई संरक्षक या मददगार नहीं मिलेगा। 124लेकिन जो लोग नेक अमल करेंगे—चाहे वे पुरुष हों या महिलाएँ—और ईमान रखते हों, वे जन्नत में दाखिल होंगे और उन पर कभी एक ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म नहीं किया जाएगा। 125और किसका दीन उससे बेहतर हो सकता है जो अल्लाह के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाए, नेक अमल करे, और इब्राहीम के तरीक़े पर चले, जो सीधा (एकाग्र) था? अल्लाह ने इब्राहीम को अपना ख़लील (घनिष्ठ मित्र) बनाया। 126जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, वह सब अल्लाह ही का है। और अल्लाह हर चीज़ से पूरी तरह वाक़िफ़ है।
لَّيۡسَ بِأَمَانِيِّكُمۡ وَلَآ أَمَانِيِّ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِۗ مَن يَعۡمَلۡ سُوٓءٗا يُجۡزَ بِهِۦ وَلَا يَجِدۡ لَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا 123وَمَن يَعۡمَلۡ مِنَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ مِن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَأُوْلَٰٓئِكَ يَدۡخُلُونَ ٱلۡجَنَّةَ وَلَا يُظۡلَمُونَ نَقِيرٗا 124وَمَنۡ أَحۡسَنُ دِينٗا مِّمَّنۡ أَسۡلَمَ وَجۡهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنٞ وَٱتَّبَعَ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۗ وَٱتَّخَذَ ٱللَّهُ إِبۡرَٰهِيمَ خَلِيلٗ 125وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٖ مُّحِيطٗا126
यतीम बच्चियों की देखभाल
127वे आपसे, ऐ पैगंबर, औरतों के बारे में फ़ैसले पूछते हैं। कहो, "अल्लाह ही तुम्हें उनके बारे में फ़ैसले देता है।" और तुम्हारे पास किताब में पहले ही उन यतीम औरतों के बारे में हिदायतें आ चुकी हैं जिन्हें तुम उनके अधिकारों से वंचित रखते हो, फिर भी उनसे शादी करना चाहते हो, और बेसहारा बच्चों और यतीमों के हक़ में खड़े होने के बारे में भी। और तुम जो भी भलाई करते हो, वह यक़ीनन अल्लाह को मालूम है।
وَيَسۡتَفۡتُونَكَ فِي ٱلنِّسَآءِۖ قُلِ ٱللَّهُ يُفۡتِيكُمۡ فِيهِنَّ وَمَا يُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ فِي يَتَٰمَى ٱلنِّسَآءِ ٱلَّٰتِي لَا تُؤۡتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرۡغَبُونَ أَن تَنكِحُوهُنَّ وَٱلۡمُسۡتَضۡعَفِينَ مِنَ ٱلۡوِلۡدَٰنِ وَأَن تَقُومُواْ لِلۡيَتَٰمَىٰ بِٱلۡقِسۡطِۚ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِهِۦ عَلِيمٗا127
आयत 127: 50. इसका आशय इस सूरह की आयतों 2-11 में वर्णित नियमों से है। 51. मतलब उनकी मीरास और मेहर।

छोटी कहानी
एक स्कूल प्रिंसिपल अपने छात्रों को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाना चाहते थे। एक दिन लंच ब्रेक के दौरान, उन्होंने सभी 500 छात्रों को जिम में इकट्ठा किया और प्रत्येक को एक पीला गुब्बारा दिया। प्रत्येक छात्र को अपना गुब्बारा फुलाना था, उस पर अपना नाम लिखना था और उसे जिम में फेंकना था। शिक्षकों की मदद से, प्रिंसिपल ने सभी गुब्बारों को मिला दिया। छात्रों के पास फिर अपना गुब्बारा ढूंढने के लिए 3 मिनट थे। लगन से खोजने के बावजूद, कोई भी अपना गुब्बारा नहीं ढूंढ सका। इस बिंदु पर, प्रिंसिपल ने छात्रों को निर्देश दिया कि वे जो पहला गुब्बारा पाएं उसे उठाएं और उस व्यक्ति को सौंप दें जिसका नाम उस पर लिखा था। 5 मिनट से भी कम समय में, सभी के पास अपना गुब्बारा था। प्रिंसिपल ने छात्रों से कहा, 'ये गुब्बारे खुशी की तरह हैं। अगर हर कोई केवल अपनी खुशी की तलाश में रहेगा, तो हम इसे कभी नहीं ढूंढ पाएंगे। लेकिन अगर हम दूसरों की खुशी की परवाह करते हैं, तो हमें अपनी भी मिल जाएगी।'
आयत 128 इस दुखद वास्तविकता को उजागर करती है कि मनुष्य स्वार्थी होते हैं। कई लोग दूसरों की उपेक्षा करते हुए केवल खुद को, अपने अधिकारों को और अपनी खुशी को प्राथमिकता देते हैं। यह विवाह, व्यावसायिक साझेदारी और विभिन्न अन्य रिश्तों पर लागू होता है। यदि हम इस जीवन में शांति और संतुष्टि चाहते हैं, तो हमें दयालु होना चाहिए, अल्लाह को ध्यान में रखना चाहिए, और दूसरों के लिए वही कामना करनी चाहिए जो हम अपने लिए करते हैं।
निकाह के मुद्दे
128यदि किसी स्त्री को यह भय हो कि उसका पति उससे विरक्त हो जाएगा या उसे छोड़ देगा, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं यदि वे आपस में सुलह कर लें, और सुलह करना ही उत्तम है। मनुष्य का मन लोभ की ओर प्रवृत्त होता है। लेकिन यदि तुम भलाई करो और अल्लाह का ध्यान रखो, तो निश्चय ही अल्लाह तुम्हारे सभी कर्मों से भली-भाँति अवगत है। 129तुम 'पतियों' के लिए यह कभी संभव नहीं होगा कि तुम अपनी पत्नियों के बीच 'भावनात्मक' न्याय बनाए रख सको—चाहे तुम कितनी भी कोशिश कर लो। अतः किसी एक की ओर पूरी तरह से न झुक जाओ, जिससे दूसरी अधर में लटकी रह जाए। और यदि तुम सुधार करो और अल्लाह का ध्यान रखो, तो निश्चय ही अल्लाह क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान है। 130लेकिन यदि वे अलग होने का निर्णय लें, तो अल्लाह अपनी असीम कृपा से उन दोनों में से प्रत्येक को समृद्ध कर देगा। और अल्लाह बड़ी कृपा और हिकमत वाला है।
وَإِنِ ٱمۡرَأَةٌ خَافَتۡ مِنۢ بَعۡلِهَا نُشُوزًا أَوۡ إِعۡرَاضٗا فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَآ أَن يُصۡلِحَا بَيۡنَهُمَا صُلۡحٗاۚ وَٱلصُّلۡحُ خَيۡرٞۗ وَأُحۡضِرَتِ ٱلۡأَنفُسُ ٱلشُّحَّۚ وَإِن تُحۡسِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا 128وَلَن تَسۡتَطِيعُوٓاْ أَن تَعۡدِلُواْ بَيۡنَ ٱلنِّسَآءِ وَلَوۡ حَرَصۡتُمۡۖ فَلَا تَمِيلُواْ كُلَّ ٱلۡمَيۡلِ فَتَذَرُوهَا كَٱلۡمُعَلَّقَةِۚ وَإِن تُصۡلِحُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا 129وَإِن يَتَفَرَّقَا يُغۡنِ ٱللَّهُ كُلّٗا مِّن سَعَتِهِۦۚ وَكَانَ ٱللَّهُ وَٰسِعًا حَكِيمٗا130
आयत 128: ५२. उदाहरण के लिए, उसे तलाक़ देने के बजाय, वह उसके साथ कम समय बिताने की पेशकश कर सकता है, और वह उस पर अपने कुछ वित्तीय अधिकारों को छोड़ सकती है। ५३. कई पति और पत्नियाँ एक-दूसरे को उनके अधिकार देना नहीं चाहेंगे।
आयत 129: किसी को वैवाहिक संबंध में ऐसी अनिश्चित स्थिति में न छोड़ें जहाँ उसे न तो एक विवाहित महिला के पूरे अधिकार मिल रहे हों और न ही उसे पूरी तरह से तलाक दिया गया हो।
अल्लाह की कुदरत और रहमत
131आसमानों में जो कुछ है और ज़मीन में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। यक़ीनन हमने तुमसे पहले किताब दिए गए लोगों को और तुम्हें भी यही हुक्म दिया है कि अल्लाह से डरो। लेकिन अगर तुम नाफ़रमानी करते हो, तो जान लो कि आसमानों और ज़मीन में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। और अल्लाह बेनियाज़ है और वही हर तारीफ़ का हक़दार है। 132और आसमानों में जो कुछ है और ज़मीन में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। और अल्लाह हर चीज़ का निगहबान होने के लिए काफ़ी है। 133अगर वह चाहे, तो ऐ इंसानो, वह तुम्हें बिल्कुल मिटा सकता है और तुम्हारी जगह दूसरों को ला सकता है। और अल्लाह इस पर पूरी तरह क़ादिर है। 134जो कोई दुनिया का सवाब चाहता है, तो जान लो कि दुनिया और आख़िरत दोनों का सवाब अल्लाह ही के पास है। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और देखने वाला है।
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَلَقَدۡ وَصَّيۡنَا ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَإِيَّاكُمۡ أَنِ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ وَإِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدٗا 131وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا 132إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ أَيُّهَا ٱلنَّاسُ وَيَأۡتِ بَِٔاخَرِينَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ قَدِيرٗا 133مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ ٱلدُّنۡيَا فَعِندَ ٱللَّهِ ثَوَابُ ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعَۢا بَصِيرٗا134
न्याय के लिए खड़े होना
135ऐ ईमानवालो! इंसाफ़ के लिए अल्लाह के गवाह बनकर खड़े हो जाओ, चाहे वह तुम्हारे अपने, तुम्हारे माता-पिता या तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ ही क्यों न हो। चाहे कोई अमीर हो या ग़रीब, अल्लाह ही दोनों का सबसे अच्छा संरक्षक है। अतः अपनी इच्छाओं के पीछे लगकर पक्षपात न करो। यदि तुम (सत्य को) तोड़-मरोड़ते हो या छिपाते हो, तो जान लो कि अल्लाह तुम्हारे हर काम से पूरी तरह अवगत है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُونُواْ قَوَّٰمِينَ بِٱلۡقِسۡطِ شُهَدَآءَ لِلَّهِ وَلَوۡ عَلَىٰٓ أَنفُسِكُمۡ أَوِ ٱلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَۚ إِن يَكُنۡ غَنِيًّا أَوۡ فَقِيرٗا فَٱللَّهُ أَوۡلَىٰ بِهِمَاۖ فَلَا تَتَّبِعُواْ ٱلۡهَوَىٰٓ أَن تَعۡدِلُواْۚ وَإِن تَلۡوُۥٓاْ أَوۡ تُعۡرِضُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا135
मुनाफ़िक़ों से चेतावनी
136ऐ मोमिनो! अल्लाह पर, उसके रसूल पर, उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी, और उन किताबों पर जो उसने इससे पहले उतारीं, ईमान लाओ। और जो कोई अल्लाह का, उसके फ़रिश्तों का, उसकी किताबों का, उसके रसूलों का और आख़िरत के दिन का इनकार करे, तो वह यक़ीनन बहुत दूर की गुमराही में पड़ गया है। 137बेशक, जिन लोगों ने ईमान लाए फिर कुफ़्र किया, फिर ईमान लाए और फिर कुफ़्र किया, और कुफ़्र में ही बढ़ते चले गए—अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बख़्शेगा और न ही उन्हें सीधी राह दिखाएगा। 138मुनाफ़िक़ों को एक दर्दनाक अज़ाब की खुशख़बरी दो, 139जो मोमिनों के बजाय काफ़िरों को अपना दोस्त बनाते हैं। क्या वे उनके पास इज़्ज़त और ताक़त तलाश करते हैं? बेशक सारी इज़्ज़त और ताक़त अल्लाह ही के लिए है। 140उसने तुम्हें किताब में पहले ही बता दिया है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों का इनकार किया जा रहा है या उनका मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है, तो ऐसे लोगों के साथ मत बैठो जब तक कि वे बात न बदल दें, वरना तुम भी उन्हीं जैसे हो जाओगे। अल्लाह यक़ीनन मुनाफ़िक़ों और काफ़िरों को जहन्नम में एक साथ जमा करेगा। 141मुनाफ़िक़ वे हैं जो तुम्हारे अंजाम की प्रतीक्षा करते रहते हैं। फिर यदि अल्लाह तुम्हें फ़तह देता है, तो वे तुमसे कहते हैं, "क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे?" और यदि काफ़िरों को कुछ कामयाबी मिलती है, तो वे उनसे कहते हैं, "क्या हमने तुम्हारी देखभाल नहीं की और तुम्हें ईमानवालों से नहीं बचाया?" अल्लाह क़यामत के दिन तुम सबके बीच फ़ैसला करेगा। और अल्लाह कभी भी काफ़िरों को ईमानवालों पर पूर्ण प्रभुत्व नहीं देगा।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ ءَامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلَّذِي نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ مِن قَبۡلُۚ وَمَن يَكۡفُرۡ بِٱللَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا 136إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ ثُمَّ ءَامَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ ثُمَّ ٱزۡدَادُواْ كُفۡرٗا لَّمۡ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغۡفِرَ لَهُمۡ وَلَا لِيَهۡدِيَهُمۡ سَبِيلَۢا 137بَشِّرِ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ بِأَنَّ لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمًا 138ٱلَّذِينَ يَتَّخِذُونَ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ أَيَبۡتَغُونَ عِندَهُمُ ٱلۡعِزَّةَ فَإِنَّ ٱلۡعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعٗا 139وَقَدۡ نَزَّلَ عَلَيۡكُمۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ أَنۡ إِذَا سَمِعۡتُمۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ يُكۡفَرُ بِهَا وَيُسۡتَهۡزَأُ بِهَا فَلَا تَقۡعُدُواْ مَعَهُمۡ حَتَّىٰ يَخُوضُواْ فِي حَدِيثٍ غَيۡرِهِۦٓ إِنَّكُمۡ إِذٗا مِّثۡلُهُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ جَامِعُ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱلۡكَٰفِرِينَ فِي جَهَنَّمَ جَمِيعًا 140ٱلَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمۡ فَإِن كَانَ لَكُمۡ فَتۡحٞ مِّنَ ٱللَّهِ قَالُوٓاْ أَلَمۡ نَكُن مَّعَكُمۡ وَإِن كَانَ لِلۡكَٰفِرِينَ نَصِيبٞ قَالُوٓاْ أَلَمۡ نَسۡتَحۡوِذۡ عَلَيۡكُمۡ وَنَمۡنَعۡكُم مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ فَٱللَّهُ يَحۡكُمُ بَيۡنَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ وَلَن يَجۡعَلَ ٱللَّهُ لِلۡكَٰفِرِينَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ سَبِيلًا141
आयत 140: ५५. यह ६:६८ को संदर्भित करता है।

ज्ञान की बातें
सूरह 2 में चर्चा की गई है, मदनी सूरह अक्सर **मुनाफ़िक़ों** के नकारात्मक रवैये और प्रथाओं को संबोधित करती हैं। आयतों 4:142-145 के अनुसार, मुनाफ़िक़ शारीरिक रूप से मुसलमानों के साथ मौजूद होते हैं, लेकिन उनके दिल उनके खिलाफ होते हैं। वे इस्लाम के खिलाफ साज़िशें रचते हैं, लेकिन ये योजनाएँ अंततः उन्हीं पर भारी पड़ती हैं। वे संदेहों से घिरे रहते हैं और केवल **दिखावे (रिया)** के लिए अच्छे कर्म करते हैं। दान करते समय भी, वे गुप्त रूप से इसे पैसे की बर्बादी मानते हैं। वे नमाज़ में भी आलसी होते हैं, इसे केवल समय की बर्बादी मानते हैं।

छोटी कहानी
अस्र से ठीक पहले, तीन आलसी मुनाफ़िक़ ज़ुहर की नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद पहुँचे, भक्ति से नहीं बल्कि दिखावा करने के लिए। उन्होंने जल्दी-जल्दी नमाज़ पढ़ना शुरू किया क्योंकि कोई आस-पास नहीं था। उनकी नमाज़ के बीच में, एक व्यक्ति मस्जिद में दाख़िल हुआ। उसकी मौजूदगी भांपकर, उन्होंने ठीक से नमाज़ पढ़ना शुरू कर दिया। वह व्यक्ति मुअज़्ज़िन निकला, जो अस्र की अज़ान देने आया था। ज़ाहिर है, वे अगली नमाज़ के लिए रुकना नहीं चाहते थे। तो, पहले मुनाफ़िक़ ने अपनी नमाज़ बीच में ही तोड़ दी और मुअज़्ज़िन से पूछा, 'क्या आपको यक़ीन है कि अस्र का वक़्त हो गया है?' दूसरे मुनाफ़िक़ ने पहले की ओर देखा और कहा, 'अरे मूर्ख! तुमने नमाज़ पढ़ते हुए बात करके अपनी नमाज़ तोड़ दी।' तीसरे ने बाकी दोनों मुनाफ़िक़ों की ओर देखा, अपनी नमाज़ पूरी करने से पहले, और शेखी बघारी, 'अल-हम्दु-लिल्लाह (अल्लाह का शुक्र है), मैंने तुम दोनों की तरह अपनी नमाज़ नहीं तोड़ी!'

मुनाफ़िक़ों को चेतावनी
142निःसंदेह, मुनाफ़िक़ अल्लाह को धोखा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन वह उन्हें ही धोखे में डाल देता है। जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो वे सुस्ती से खड़े होते हैं, केवल लोगों को दिखाने के लिए, और अल्लाह को बहुत कम याद करते हैं। 143वे ईमान और कुफ़्र के बीच डगमगाते रहते हैं, न इन 'ईमानवालों' के हैं और न उन 'काफ़िरों' के। और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो तुम उसके लिए कभी कोई रास्ता नहीं पाओगे। 144ऐ ईमानवालो! ईमानवालों के बजाय काफ़िरों को अपना दोस्त न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह को अपने विरुद्ध स्पष्ट प्रमाण दो? 145निःसंदेह, मुनाफ़िक़ जहन्नम के सबसे निचले दर्जे में होंगे, और तुम उनके लिए कभी कोई सहायक नहीं पाओगे। 146सिवाय उनके जिन्होंने तौबा की, और अपने आचरण सुधारे, और अल्लाह को मज़बूती से थाम लिया, और अल्लाह के लिए अपने दीन को ख़ालिस कर लिया। ऐसे लोग ईमानवालों के साथ होंगे। और अल्लाह ईमानवालों को बहुत बड़ा प्रतिफल देगा। 147अल्लाह आपको सज़ा क्यों देगा यदि आप शुक्रगुज़ार और ईमान वाले हैं? अल्लाह क़द्रदान और इल्म वाला है।
إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَهُوَ خَٰدِعُهُمۡ وَإِذَا قَامُوٓاْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ قَامُواْ كُسَالَىٰ يُرَآءُونَ ٱلنَّاسَ وَلَا يَذۡكُرُونَ ٱللَّهَ إِلَّا قَلِيلٗا 142مُّذَبۡذَبِينَ بَيۡنَ ذَٰلِكَ لَآ إِلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ وَلَآ إِلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلًا 143يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ أَتُرِيدُونَ أَن تَجۡعَلُواْ لِلَّهِ عَلَيۡكُمۡ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينًا 144إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ فِي ٱلدَّرۡكِ ٱلۡأَسۡفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمۡ نَصِيرًا 145إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ وَأَصۡلَحُواْ وَٱعۡتَصَمُواْ بِٱللَّهِ وَأَخۡلَصُواْ دِينَهُمۡ لِلَّهِ فَأُوْلَٰٓئِكَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ وَسَوۡفَ يُؤۡتِ ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ أَجۡرًا عَظِيمٗا 146مَّا يَفۡعَلُ ٱللَّهُ بِعَذَابِكُمۡ إِن شَكَرۡتُمۡ وَءَامَنتُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمٗا147
सबके सामने बुरी बातें कहना
148अल्लाह बुरी बात का खुल्लम-खुल्ला कहना पसंद नहीं करता, सिवाय उसके जिस पर ज़ुल्म हुआ हो। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है। 149तुम कोई नेकी ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ, या किसी बुराई को माफ़ कर दो, तो बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला, बड़ी कुदरत वाला है।
لَّا يُحِبُّ ٱللَّهُ ٱلۡجَهۡرَ بِٱلسُّوٓءِ مِنَ ٱلۡقَوۡلِ إِلَّا مَن ظُلِمَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا 148إِن تُبۡدُواْ خَيۡرًا أَوۡ تُخۡفُوهُ أَوۡ تَعۡفُواْ عَن سُوٓءٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوّٗا قَدِيرًا149
आयत 148: अल्लाह को यह पसंद नहीं है जब लोग दूसरों की पीठ पीछे बुराई करते हैं, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे तकलीफ़ पहुँची हो और वह सलाह या अधिकारियों से मदद चाहता हो।
सभी नबियों पर ईमान
150निसंदेह, वे लोग जो अल्लाह और उसके रसूलों का इनकार करते हैं और अल्लाह और उसके रसूलों के बीच भेद करना चाहते हैं, यह कहते हुए कि "हम कुछ रसूलों पर ईमान लाते हैं और कुछ का इनकार करते हैं," (अपनी पसंद से) चुनना चाहते हैं, 151वे ही निश्चित रूप से सच्चे काफ़िर हैं। और हमने काफ़िरों के लिए अपमानजनक अज़ाब तैयार कर रखा है। 152और वे लोग जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाते हैं—उनमें से किसी के बीच भेद किए बिना—वह निश्चित रूप से उन्हें उनका अज्र देगा। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُواْ بَيۡنَ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيَقُولُونَ نُؤۡمِنُ بِبَعۡضٖ وَنَكۡفُرُ بِبَعۡضٖ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُواْ بَيۡنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا 150أُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡكَٰفِرُونَ حَقّٗاۚ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٗا مُّهِينٗا 151وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَمۡ يُفَرِّقُواْ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّنۡهُمۡ أُوْلَٰٓئِكَ سَوۡفَ يُؤۡتِيهِمۡ أُجُورَهُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا152

ज्ञान की बातें
कई मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि ईसा (यीशु) के एक साथी ने रोमनों को उनका स्थान बताकर उनके साथ विश्वासघात किया। इस धोखेबाज़ को दंडित करने के लिए, अल्लाह ने उसे हूबहू ईसा जैसा बना दिया, जिससे रोमन सैनिकों ने उसे ईसा समझकर गिरफ्तार कर लिया और सूली पर चढ़ा दिया। कुरान (4:158) के अनुसार, पैगंबर ईसा को सुरक्षित रूप से स्वर्ग में उठा लिया गया था। क़यामत से पहले उनका दूसरा आगमन क़यामत के दिनों की निशानियों में से एक माना जाता है (43:61)। (इमाम अल-आलूसी और इमाम इब्न 'अशूर)
ईसाई मान्यताओं के अनुसार, यीशु (ईसा) को सूली पर मरना पड़ा ताकि ईश्वर लोगों के 'आदि पाप' को क्षमा कर सकें—वह पाप जो उन्हें अपने पिता, आदम, से वर्जित वृक्ष का फल खाने के कारण विरासत में मिला था। इस्लाम में, हम 'मूल अच्छाई' में विश्वास करते हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य बिना किसी पाप के पैदा होता है। इसके अलावा, आदम ने पश्चाताप किया और अल्लाह द्वारा पहले ही क्षमा कर दिए गए थे। आदि पाप की ईसाई मान्यता बहुत भ्रम पैदा करती है: यीशु (जिन्हें कई ईसाई ईश्वर भी मानते हैं) को उन लोगों के पापों के लिए क्यों मरना पड़ा जो उन्होंने किए ही नहीं थे, और जिसे ईश्वर ने पहले ही क्षमा कर दिया था? हम मानते हैं कि अल्लाह न्यायपूर्ण, शक्तिशाली और क्षमाशील है।

यहूदियों में से काफ़िर
153अहले किताब आपसे (ऐ पैगंबर!) माँग करते हैं कि आप उनके लिए आसमान से एक लिखी हुई किताब उतार लाएँ। उन्होंने मूसा से इससे भी बड़ी चीज़ माँगी थी, यह कहते हुए कि "हमें अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला दिखा दो!" तो उनके ज़ुल्म के कारण उन्हें एक कड़क ने आ पकड़ा। फिर उन्होंने वाज़ेह निशानियाँ देखने के बाद बछड़े को पूजना शुरू कर दिया। फिर भी हमने उन्हें उस (गुनाह) के लिए माफ़ कर दिया (उनकी तौबा के बाद) और मूसा को खुली दलील दी। 154हमने उनके ऊपर पहाड़ को उठा दिया (एक चेतावनी के तौर पर) उनके अहदों को तोड़ने के कारण और हमने उनसे कहा, "इस (शहर के) दरवाज़े में विनम्रता से दाख़िल हो।" और हमने उनसे यह भी कहा, "सब्त के दिन का उल्लंघन न करो" और उनसे एक मज़बूत अहद लिया। 155लेकिन (वे बर्बाद हुए) अपने अहद को तोड़ने के कारण, अल्लाह की निशानियों को झुठलाने के कारण, नबियों को नाहक़ क़त्ल करने के कारण और यह कहने के कारण कि "हमारे दिल बंद हैं!" बल्कि, यह अल्लाह ही है जिसने उनके दिलों पर उनकी कुफ़्र के कारण मुहर लगा दी है, इसलिए वे बहुत कम ईमान लाते हैं। 156और (वे बर्बाद हुए) अपने कुफ़्र के कारण और मरियम पर लगाए गए उनके भयानक इल्ज़ाम के कारण। 157और यह शेखी बघारने के कारण कि "हमने मसीह, मरियम के बेटे ईसा, अल्लाह के रसूल को क़त्ल कर दिया!" जबकि उन्होंने न तो उसे क़त्ल किया और न ही सूली पर चढ़ाया—बल्कि उन्हें किसी और का भ्रम हो गया था। यहाँ तक कि जो लोग उसकी मौत के लिए बहस करते हैं, वे भी शक में हैं। उन्हें इस बारे में बिल्कुल कोई इल्म नहीं है, वे केवल अटकलें लगा रहे हैं। उन्होंने यक़ीनन उसे क़त्ल नहीं किया। 158बल्कि, अल्लाह ने उसे अपनी ओर उठा लिया। और अल्लाह प्रभुत्वशाली, हिकमतवाला है। 159अहले किताब में से हर एक अपनी मृत्यु से पहले 'ईसा के बारे में' सत्य को पहचान लेगा। और क़यामत के दिन वह उनके विरुद्ध गवाह होगा। 160हमने यहूदियों पर उनके ज़ुल्म के कारण कुछ पाक चीज़ें हराम कर दीं, और बहुतों को अल्लाह के मार्ग से रोकने के कारण, 161सूद लेना, जबकि वह उनके लिए अवैध था, और लोगों का माल अवैध रूप से हड़पना। हमने उनमें से काफ़िरों के लिए एक दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है। 162लेकिन उनमें से जो ज्ञान में दृढ़ हैं और जो ईमान वाले हैं, वे उस पर ईमान लाते हैं जो आप पर अवतरित किया गया है और जो आपसे पहले अवतरित किया गया था। और नमाज़ क़ायम करने वाले, ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान रखने वाले भी। हम ऐसे लोगों को एक बड़ा प्रतिफल देंगे।
يَسَۡٔلُكَ أَهۡلُ ٱلۡكِتَٰبِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيۡهِمۡ كِتَٰبٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِۚ فَقَدۡ سَأَلُواْ مُوسَىٰٓ أَكۡبَرَ مِن ذَٰلِكَ فَقَالُوٓاْ أَرِنَا ٱللَّهَ جَهۡرَةٗ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّٰعِقَةُ بِظُلۡمِهِمۡۚ ثُمَّ ٱتَّخَذُواْ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ فَعَفَوۡنَا عَن ذَٰلِكَۚ وَءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينٗا 153وَرَفَعۡنَا فَوۡقَهُمُ ٱلطُّورَ بِمِيثَٰقِهِمۡ وَقُلۡنَا لَهُمُ ٱدۡخُلُواْ ٱلۡبَابَ سُجَّدٗا وَقُلۡنَا لَهُمۡ لَا تَعۡدُواْ فِي ٱلسَّبۡتِ وَأَخَذۡنَا مِنۡهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا 154فَبِمَا نَقۡضِهِم مِّيثَٰقَهُمۡ وَكُفۡرِهِم بَِٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَقَتۡلِهِمُ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖ وَقَوۡلِهِمۡ قُلُوبُنَا غُلۡفُۢۚ بَلۡ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَيۡهَا بِكُفۡرِهِمۡ فَلَا يُؤۡمِنُونَ إِلَّا قَلِيل 155وَبِكُفۡرِهِمۡ وَقَوۡلِهِمۡ عَلَىٰ مَرۡيَمَ بُهۡتَٰنًا عَظِيمٗا 156وَقَوۡلِهِمۡ إِنَّا قَتَلۡنَا ٱلۡمَسِيحَ عِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ رَسُولَ ٱللَّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَٰكِن شُبِّهَ لَهُمۡۚ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِ لَفِي شَكّٖ مِّنۡهُۚ مَا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمٍ إِلَّا ٱتِّبَاعَ ٱلظَّنِّۚ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينَۢا 157بَل رَّفَعَهُ ٱللَّهُ إِلَيۡهِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا 158وَإِن مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ إِلَّا لَيُؤۡمِنَنَّ بِهِۦ قَبۡلَ مَوۡتِهِۦۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يَكُونُ عَلَيۡهِمۡ شَهِيدٗا 159فَبِظُلۡمٖ مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمۡنَا عَلَيۡهِمۡ طَيِّبَٰتٍ أُحِلَّتۡ لَهُمۡ وَبِصَدِّهِمۡ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ كَثِيرٗا 160وَأَخۡذِهِمُ ٱلرِّبَوٰاْ وَقَدۡ نُهُواْ عَنۡهُ وَأَكۡلِهِمۡ أَمۡوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡبَٰطِلِۚ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ مِنۡهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا 161لَّٰكِنِ ٱلرَّٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ مِنۡهُمۡ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ يُؤۡمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَۚ وَٱلۡمُقِيمِينَ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَٱلۡمُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ أُوْلَٰٓئِكَ سَنُؤۡتِيهِمۡ أَجۡرًا عَظِيمًا162
आयत 153: 58. उन्होंने माँग की कि क़ुरआन एक साथ नाज़िल किया जाए। आयत 25:32 इस माँग का जवाब देती है।
आयत 154: 59. अल्लाह के हुक्मों की अवज्ञा करने के विरुद्ध एक चेतावनी के तौर पर। 60. इमाम इब्न कसीर के अनुसार, संभवतः बैतुल मुक़द्दस (यरूशलम)।
आयत 155: उन्होंने दावा किया कि उनके हृदय पहले से ही ज्ञान से परिपूर्ण थे, इसलिए उन्हें पैगंबर के मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं थी।
आयत 156: उन्होंने मरियम पर इल्ज़ाम लगाया कि वह 'ईसा अलैहिस्सलाम' से एक नाजायज़ रिश्ते के ज़रिए गर्भवती हुई थीं।

आखिरी पैगंबर
163निःसंदेह, हमने आपको (ऐ पैगंबर!) वही भेजी है जैसे हमने नूह और उनके बाद के नबियों को वही भेजी थी। और हमने इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक़, याक़ूब और उनके पोतों को भी वही भेजी थी, और ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान को भी। और हमने दाऊद को ज़बूर दी थी। 164हमने आपसे कुछ रसूलों के किस्से पहले ही बयान कर दिए हैं, और कुछ के नहीं किए। और मूसा से अल्लाह ने सीधे बात की थी। 165ये सब रसूल थे जो खुशखबरी देने वाले और डराने वाले थे ताकि रसूलों के आने के बाद लोगों के पास अल्लाह के सामने कोई बहाना न रहे। और अल्लाह ज़बरदस्त हिकमत वाला है। 166लेकिन अल्लाह गवाह है उस पर जो उसने आप पर उतारा है—उसने इसे अपने इल्म से उतारा है। और फ़रिश्ते भी गवाह हैं। और अल्लाह ही गवाह के तौर पर काफी है। 167जिन लोगों ने कुफ़्र किया और दूसरों को अल्लाह की राह से रोका, वे यकीनन बहुत दूर की गुमराही में पड़ गए। 168जो लोग कुफ्र करते हैं और अपनी जानों पर ज़ुल्म करते हैं, अल्लाह उन्हें हरगिज़ नहीं बख्शेगा और न ही उन्हें किसी राह पर हिदायत देगा, 169सिवाय जहन्नम की राह के, जिसमें वे हमेशा हमेशा रहेंगे। और यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है। 170ऐ लोगो! बेशक तुम्हारे पास रसूल तुम्हारे रब की तरफ से हक़ लेकर आए हैं, तो ईमान लाओ, यह तुम्हारे लिए बेहतर है। और अगर तुम कुफ्र करो, तो जान लो कि जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, वह अल्लाह ही का है। और अल्लाह इल्म वाला, हिकमत वाला है।
إِنَّآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ كَمَآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ نُوحٖ وَٱلنَّبِيِّۧنَ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيۡمَٰنَۚ وَءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ زَبُورٗا 163وَرُسُلٗا قَدۡ قَصَصۡنَٰهُمۡ عَلَيۡكَ مِن قَبۡلُ وَرُسُلٗا لَّمۡ نَقۡصُصۡهُمۡ عَلَيۡكَۚ وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكۡلِيمٗا 164رُّسُلٗا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى ٱللَّهِ حُجَّةُۢ بَعۡدَ ٱلرُّسُلِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا 165لَّٰكِنِ ٱللَّهُ يَشۡهَدُ بِمَآ أَنزَلَ إِلَيۡكَۖ أَنزَلَهُۥ بِعِلۡمِهِۦۖ وَٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ يَشۡهَدُونَۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا 166إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ قَدۡ ضَلُّواْ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا 167إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَظَلَمُواْ لَمۡ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغۡفِرَ لَهُمۡ وَلَا لِيَهۡدِيَهُمۡ طَرِيقًا 168إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٗا 169يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلۡحَقِّ مِن رَّبِّكُمۡ فََٔامِنُواْ خَيۡرٗا لَّكُمۡۚ وَإِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا170
यहूदियों और ईसाइयों को जागृत करने का आह्वान
171ऐ अहले किताब! अपने दीन में हद से आगे न बढ़ो, और अल्लाह के बारे में सच के सिवा कुछ न कहो। मसीह, ईसा इब्न-ए-मरियम, अल्लाह के एक रसूल और उसका 'कलिमा' (शब्द) थे जिसे उसने मरियम पर डाला था, और उसकी तरफ़ से एक रूह (आत्मा) थे। तो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ, और यह न कहो कि "तीन (खुदा) हैं"। इससे बाज़ आ जाओ, यह तुम्हारे लिए बेहतर है! अल्लाह तो बस एक ही माबूद (पूज्य) है। वह पाक है! वह इससे बहुत बुलंद है कि उसका कोई बेटा हो! जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है, सब उसी का है। और अल्लाह ही हर चीज़ का निगराँ होने के लिए काफ़ी है। 172मसीह कभी भी अल्लाह का बंदा होने से तकब्बुर (घमंड) न करेगा, और न ही अल्लाह के मुकर्रब (निकटवर्ती) फ़रिश्ते। और जो लोग उसकी इबादत से तकब्बुर करेंगे, उन सबको वह अपने सामने इकट्ठा करेगा। 173तो जो लोग ईमान लाए और नेक अमल किए, उन्हें वह उनका पूरा अजर (बदला) देगा और अपने फ़ज़्ल (कृपा) से और ज़्यादा देगा। और जो लोग तकब्बुर करेंगे, उन्हें वह दर्दनाक अज़ाब (यातना) देगा। और वे अल्लाह के सिवा कोई हिमायती (संरक्षक) या मददगार न पाएंगे।
يَٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لَا تَغۡلُواْ فِي دِينِكُمۡ وَلَا تَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡحَقَّۚ إِنَّمَا ٱلۡمَسِيحُ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ رَسُولُ ٱللَّهِ وَكَلِمَتُهُۥٓ أَلۡقَىٰهَآ إِلَىٰ مَرۡيَمَ وَرُوحٞ مِّنۡهُۖ فََٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۖ وَلَا تَقُولُواْ ثَلَٰثَةٌۚ ٱنتَهُواْ خَيۡرٗا لَّكُمۡۚ إِنَّمَا ٱللَّهُ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ سُبۡحَٰنَهُۥٓ أَن يَكُونَ لَهُۥ وَلَدٞۘ لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا 171لَّن يَسۡتَنكِفَ ٱلۡمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبۡدٗا لِّلَّهِ وَلَا ٱلۡمَلَٰٓئِكَةُ ٱلۡمُقَرَّبُونَۚ وَمَن يَسۡتَنكِفۡ عَنۡ عِبَادَتِهِۦ وَيَسۡتَكۡبِرۡ فَسَيَحۡشُرُهُمۡ إِلَيۡهِ جَمِيعٗا 172فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَيُوَفِّيهِمۡ أُجُورَهُمۡ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضۡلِهِۦۖ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسۡتَنكَفُواْ وَٱسۡتَكۡبَرُواْ فَيُعَذِّبُهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا173
आयत 171: यहूदियों को चेतावनी दी जाती है कि वे ईसा (अलैहिस्सलाम) को झूठा न कहें, जबकि ईसाइयों को चेतावनी दी जाती है कि वे उन्हें ईश्वर न कहें। अल्लाह ने ईसा (अलैहिस्सलाम) को 'कुन' (हो जा!) शब्द से पैदा किया।

इस्लाम की दावत
174ऐ लोगो! तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारे पास एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है, और हमने तुम्हारी ओर एक रोशन नूर उतारा है। 175तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उससे मज़बूती से जुड़े रहे, वह उन्हें अपनी रहमत और बरकतों में दाखिल करेगा और उन्हें सिरात-ए-मुस्तकीम के ज़रिए अपनी ओर मार्गदर्शन देगा।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَآءَكُم بُرۡهَٰنٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَأَنزَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ نُورٗا مُّبِينٗا 174فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَٱعۡتَصَمُواْ بِهِۦ فَسَيُدۡخِلُهُمۡ فِي رَحۡمَةٖ مِّنۡهُ وَفَضۡلٖ وَيَهۡدِيهِمۡ إِلَيۡهِ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا175
आयत 174: क़ुरआन

ज्ञान की बातें
कोई पूछ सकता है, 'क्या आयत 176 को सूरा की शुरुआत में विरासत से संबंधित समान आयतों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए था?' अरबी में, इस साहित्यिक युक्ति को 'अंत को शुरुआत से जोड़ना' (رد العجز على الصدر) कहा जाता है। इमाम अर-राज़ी के अनुसार, अल्लाह ने इस आयत के साथ सूरा का समापन इसलिए किया ताकि पाठकों को सूरा के प्रारंभिक विषय—विरासत—की याद दिलाई जा सके। यह शैली विशेष रूप से लंबी सूरतों में उपयोग की जाती है जहाँ पाठक अंत तक पहुँचते-पहुँचते महत्वपूर्ण प्रारंभिक विषय को भूल सकते हैं। आप इस शैलीगत दृष्टिकोण को कई अन्य सूरतों में पा सकते हैं, उदाहरण के लिए:
सूरह 56 की शुरुआत (आयत 7-11) हमें बताती है कि क़यामत के दिन लोगों को 3 समूहों में बांटा जाएगा, और सूरा का अंत (आयत 88-94) उन 3 समूहों के भाग्य को दोहराता है।
सूरह 25 की अंतिम आयत उन इनकार करने वालों को चेतावनी देती है जिनका उल्लेख सूरा की शुरुआत में किया गया है।
सूरह 23 की शुरुआत (आयत 1) कहती है कि मोमिन कामयाब होंगे, और सूरा का अंत (आयत 117) घोषणा करता है कि काफ़िर कभी कामयाब नहीं होंगे।
सूरह 20 की शुरुआत (आयत 2) स्पष्ट करती है कि कुरान पैगंबर को कष्ट देने के लिए अवतरित नहीं किया गया था, और सूरा का अंत (आयत 124) चेतावनी देता है कि जो लोग इस रहस्योद्घाटन से मुंह मोड़ेंगे, वे तनावपूर्ण जीवन जिएंगे।
उत्तराधिकार कानून: सगे भाई-बहन
176वे आपसे फ़तवा पूछते हैं। कहो, 'अल्लाह तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में फ़तवा देता है जो बेऔलाद और बेवालिद मर जाए।' यदि कोई पुरुष बेऔलाद मर जाए और एक बहन छोड़ जाए, तो उसे उसकी संपत्ति का आधा मिलेगा, जबकि यदि वह (बहन) बेऔलाद मर जाए तो उसका भाई उसकी सारी संपत्ति ले लेगा। यदि वह व्यक्ति दो या अधिक बहनें छोड़ जाए, तो उन्हें संपत्ति का दो-तिहाई मिलेगा। लेकिन यदि वह व्यक्ति भाई और बहनें छोड़ जाए, तो पुरुष का हिस्सा स्त्री के हिस्से का दुगुना होगा। अल्लाह तुम्हारे लिए इसे स्पष्ट करता है ताकि तुम गुमराह न हो जाओ। और अल्लाह हर चीज़ का पूरा ज्ञान रखता है।
يَسۡتَفۡتُونَكَ قُلِ ٱللَّهُ يُفۡتِيكُمۡ فِي ٱلۡكَلَٰلَةِۚ إِنِ ٱمۡرُؤٌاْ هَلَكَ لَيۡسَ لَهُۥ وَلَدٞ وَلَهُۥٓ أُخۡتٞ فَلَهَا نِصۡفُ مَا تَرَكَۚ وَهُوَ يَرِثُهَآ إِن لَّمۡ يَكُن لَّهَا وَلَدٞۚ فَإِن كَانَتَا ٱثۡنَتَيۡنِ فَلَهُمَا ٱلثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَۚ وَإِن كَانُوٓاْ إِخۡوَةٗ رِّجَالٗا وَنِسَآءٗ فَلِلذَّكَرِ مِثۡلُ حَظِّ ٱلۡأُنثَيَيۡنِۗ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ أَن تَضِلُّواْۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمُۢ176